अब तक भारत की विवेकी जनता एकमत थी कि “हिंदी – चीनी भाई भाई” का नारा अब समाप्त हो चुका है, (भले ही वह भारतीय कल्पना से परे कभी था ही नहीं) और दूसरा, भारत की तुलना में चीन स्थिति को सख्त दिखाने तथा विवादित सीमा पर अतिरिक्त अप्रिय रूपों से स्वयं को साबित करने की आशा कर रहा है।
चाणक्य और उनके “मंडल” सिद्धांत के उत्तराधिकारी के रूप में, भारत को प्रारंभ से ही “एक पहाड़ पर दो बाघ” की संभावना पर संदेह होना चाहिए था, हालांकि उनके नेतृत्व के भाईचारे तथा उनके हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर का पारस्परिक रूप से समर्थन किया गया। कोविड के पश्चात की घटनाओं ने दिवास्वप्न देखने वालों के अतिरिक्त शेष सभी को आश्वस्त कर दिया कि चीन भारत को उसी पहाड़ पर एक खोह से वंचित करने के लिए बहुत अधिक प्रयास कर रहा है।
हाइब्रिड युद्ध
भारत और चीन की वर्तमान स्थिति पर कुछ अनुभवी पर्यवेक्षकों ने चीन द्वारा भारत के विरुद्ध “हाइब्रिड युद्ध” के प्रारंभ की भविष्यवाणी की है। एक कुशाग्र पर्यवेक्षक के उद्धहरण के अनुसार “हाइब्रिड युद्ध एक नायक को स्थिति का परीक्षण करने और आगे की प्रतिक्रियाओं को जांचने और स्वयं को नुकसान पहुचाये बिना बिना लौटने की अनुमति देता है। “भारतीय विश्लेषक केवल तभी जिम्मेदार और व्यावहारिक होंगे जब वे इसकी रूपरेखा को समझेंगे और इसके अनेक रूपों और प्रकारों का अनुमान लगा पाएंगे।” इसमें सीमा पर घर्षण, धमकी, साइबर खतरे, मोर्चों का विस्तार, लामबंदी, मुद्रा, प्रक्षेपण, आर्थिक युद्ध और आधुनिक जानकारी और मनोवैज्ञानिक युद्ध के अन्य अनेक प्रकार शामिल हैं”[2]
पाकिस्तानी सरोगेसी
चीन द्वारा भारत को अस्थिर करने के लिए पाकिस्तान का अत्यधिक “उपयोग” करने की संभावना आरंभ से ही है। इस संभावना का एक संकेत इस वर्ष मई में तब सामने आया जब पाक सेना के आईएसआई कर्नल ने चीनी केंद्रीय सैन्य आयोग के संयुक्त कार्यालय में पदभार ग्रहण किया। [3] यह भी ज्ञात हुआ है कि चीन को पाकिस्तान में खुफिया जानकारी का विशेषाधिकार प्रदान किया गया है।
विविधता में भेद डालना
कम्युनिस्ट शासन के अधीन चीन ने अपनी व्यापक विविधता को समाप्त करने के लिए कठोर कदम उठाए हैं। नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (एनपीसी) और चाइनीज पीपल्स पॉलिटिकल कंसल्टेटिव कॉन्फ्रेंस (सीपीपीसीसी) ने विभिन्न पृष्ठभूमि और जातियों (राष्ट्रीयता, जैसा कि चीनी कहेंगे) के प्रतिनिधियों को सार्वजनिक किया गया तथा अजीबो गरीब नामों एवं अजीब सी रंगीन परंपरागत वेशभूषा वालों को चीन के जातीय समूह के रूप में प्रचारित किया। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के लिए ऐसा प्रतीत होता है कि उसे पार्टी के सभी मतभेदों को समाप्त करना होगा। चीन से अपेक्षा है कि वह इसी प्रकार भारत की अद्भुत विविधता में हर किसी की गलती का फायदा उठाने की कोशिश करेगा। साम्प्रदायिक तनाव का प्रत्येक मामला चीनी हाइब्रिड वारफेयर ऑपरेटर को हमेशा शोषण करने की गुंजाइश प्रदान करेगा।
शर्मिंदगी की संभावना
हाइब्रिड आक्रामक कार्रवाइयों के लिए लक्ष्यों का चुनाव इस भाँति किया जायेगा कि वे अधिकतम लाभांश प्रदान करें। यदि प्रत्यक्ष परिणाम प्राप्त नहीं होते तो इस संचालन से लक्षित व्यक्तियों को उनके सिस्टम की अक्षमता दिखाने की कोशिश करेगा, और यह भी कि चीनी प्रणाली और इसके उपकरण कितने अधिक प्रभावी और श्रेष्ठ हैं। भारतीय समुदायों के भीतर असंतोष पैदा करने, प्रमुख पदाधिकारियों को प्रभावित करने और अलगाववादी या विभाजनकारी ताकतों के एकमुश्त वित्त पोषण के उदाहरण अतीत में देखे गए हैं; भारत से उस सब के प्रति अधिक संगठित और केंद्रित होने की अपेक्षा की जानी चाहिए।
विभिन्न रूप और परिस्तिथियाँ
हाइब्रिड ऑपरेशंस विशेष रूप से आजमाये गये, परीक्षण किये गए तथा मान्य हैं। इन्हे अपने लक्ष्यों को पूरा करने के लिए बड़े पैमाने पर लागू किया जाता है। यह अव्यवस्थित रहते है और एक सांप्रदायिक रूप से उभरती हुई आरोपित स्थिति का अनुमान लगाते हैं। पिछले कुछ समय से चले आ रहे छोटे सरल झगड़ों के निराशाजनक रूप में परिवर्तित होने की संभावना है और यहां तक कि साधारण परिस्थितियों पर भी काम किया जा सकता है ताकि इसे एक हाईब्रिड युद्ध के उद्देश्य के अनुरूप बनाया जा सके। यहाँ विकसित स्थितियों की निरंतर निगरानी और मॉनिटरिंग पूरी तरह से तैयार व्यवसायी को अवसर प्रदान करती हैं और साथ ही समस्या को आरंभ में ही रोकने के लिए एक चौकस सुरक्षा प्रणाली का अवसर मिल जाता है ।
सहकर्मी की संभावित शक्ति को कम करना
चीन ने भारत का एक संभावित समकक्ष शक्ति के रूप में बहुत पहले ही मूल्यांकन कर लिया था [4], शायद एकमात्र ऐसा देश जो एशिया में और अंततः दुनिया में उसके आधिपत्य के लिए समस्याएं पैदा कर सकता है, जिसे वह आदर्श रूप से अधीनस्थ, अथवा कम से कम लचीला चाहता है। [5] भारत की तुलना में अपनी शक्ति की बढ़ती असमानता के कारण, “चीन इन समझौतों और प्रोटोकॉल में बंधने की आवश्यकता महसूस नहीं करता। यह लगभग सदियों पुरानी उस कहावत पर ही कायम है कि नियम और कानून कमजोरों के लिए हैं, और एक बार जब आप शक्तिशाली हो जाते हैं, तो आपको उनकी आवश्यकता नहीं होती है।” [6]
सर्वव्यापी “विदेशी हाथ“
पाठकों की पुरानी पीढ़ी को वह “विदेशी हाथ” याद होगा, जिसे 70 के दशक के अंत और 80 के दशक की शुरुआत में भारत में हर बुराई के लिए दोषी ठहराया जाता था। हाइब्रिड वारफेयर के आने वाले युग में, भारतीय नागरिकों की व्यक्तिगत डेटा तक निरंतर और क्रमिक पहुंच, राष्ट्रीय सीमाओं के पार इंटरनेट- सुगम्यता से इसके संचालन में वृद्धि होने की संभावना है और साथ ही “रडार के नीचे उड़ान भरने”, जिससे शीघ्र पहचान से बचा जा सके और खोज हो जाने पर निश्चित रूप से इनकार किया जा सके। निधियों का कुछ हिस्सा अनुसंधान पर खर्च किया जा रहा है, जो “गहन परिस्तिथियों ” के लिए अपनी विकास क्षमताओं में योगदान देगा, ताकि वह लचीले, बार-बार नकार देने योग्य हाइब्रिड संचालन के लिए डेटा एकत्र करने, क्रंच करने और उपयोग करने में सक्षम हो सके।
भविष्य से निपटना
निःसंदेह इस प्रकार के आकारहीन, स्वरूप बदलने वाले खतरे से निपटने के लिए पहली आवश्यकता एक सक्षम सरकारी दृष्टिकोण है। कहा जाता है कि हमारे जैसे लोकतंत्रों में, व्यावाहरिक कार्यवाही की तुलना में बात करना आसान है।
भारत को यह भी समझना चाहिए कि चीनी, हमें किस प्रकार का व्यवहार करते हुए देखते हैं अथवा हमसे कैसे व्यवहार की अपेक्षा करते हैं। [7] शक्ति के उपयोग के लिए साधन बनाने में हिचकिचाहट ने कभी भी संभावित दुश्मनों का सम्मान अर्जित नहीं किया है। विशेष रूप से तब जब हम मुद्दों को सामान्य प्रक्रिया के रूप में सुलझाने के लिए कठोर शक्ति के उपयोग को छोड़ देते हैं। हमारे भीतर कठोर शक्ति का उपयोग करने की क्षमता भी होनी चाहिए, और महत्वपूर्ण है कि “हमे शांत एवं तैयार” रहना है। पूर्व के प्रासंगिक उन सिद्धांतो से चिपके रहना, न तो बुद्धिमानी है और न ही यह व्यावहारिक है। यदि कुछ विचारों को वर्तमान स्थिति से कुछ अधिक प्रासंगिकता के लिए बदलना पड़े, तो ऐसा करने में कोई झिझक नहीं होनी चाहिए।
अंत में, यद्यपि यह दिवास्वप्न हो सकता है परंतु, यदि देश के वास्तविक नागरिकों को शिक्षित और सशक्त बनाना है तो सरकार और जनता के मध्य एक निरंतर और परिपक्व संवाद को जारी रखा जाना होगा।
यह २०वीं सदी है। जनता से संवाद करना होगा।
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References-
[1] Lt Gen Syed Ata Hasnain (Retd), “Is Ladakh part of China’s hybrid war against India?”, https://www.newindianexpress.com/opinions/2020/sep/28/is-ladakh-part-of-chinas-hybrid-war-against-india-2202802.html, 28th September 2020
[2] Ibid.
[3] https://stratnewsglobal.com/a-pak-colonel-in-beijing/, 11 May 2020, accessed 06 Oct 2020
[4] http://shizheng.xilu.com/20200927/1000010001147756.html, in Chinese, accessed 06 Oct 2020.
[5] Rajeswari Pillai Rajagopalan, “China likes to see subservient and pliable India, finds marginal rise in its influence unacceptable”, https://www.firstpost.com/india/china-likes-to-see-subservient-and-pliable-india-finds-marginal-rise-in-its-influence-unacceptable-says-prof-rajeswari-rajagopalan-8880711.html, October 05, 2020
[6] Ibid.
[7] Rajesh Rajagopalan, “Why has India’s China policy been such a failure? Question New Delhi’s assumptions first”, https://theprint.in/opinion/why-has-indias-china-policy-been-such-a-failure-question-new-delhis-assumptions-first/518232/, 7 October, 2020
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सुनील कुमार नेगी
sambhaji