पूरे विश्व का ध्यान अफगानिस्तान पर है। अफगानिस्तान में आतंकवाद, आईएस, नशीले पदार्थ सभी चिंता के विषय हैं। तालिबान की सफलता ने अफ्रीका में आईएस से जुड़े लोगों को प्रसन्न कर दिया है।
मोजाम्बिक पर किसी की दृष्टि नहीं है, आतंकी खतरा वहाँ भी है, जबकि उस क्षेत्र में आईएस की भूमिका, ड्रग्स और बड़े पैमाने पर भारतीय निवेश है। भारत ने गैस क्षेत्र एफडीआई में लगभग 20 अरब डॉलर का निवेश किया, जो वर्ष 1996-2021 के बीच किए गए निवेश से 3.2 अरब डॉलर अधिक है। अफ्रीका में भारतीय एफडीआई के निवेश का 37% निवेश मोजाम्बिक में है और इसमें भारत से 772 मिलियन अमेरिकी डॉलर की रियायती लाइन ऑफ क्रेडिट भी है।
रणनीतिक रूप से स्थित मोज़ाम्बिक में सीमा पार विद्रोह आईएस द्वारा एकत्रित और समर्थित है। वर्ष 2017 से उन्होंने कई छोटे क्षेत्रीय समूहों को एकजुट करके और उन्हें कट्टरपंथी बनाकर मोज़ाम्बिक के उत्तरी काबो डेलगाडो प्रांत में आतंक फैलाया । यह प्रांत तंजानिया की सीमा पर है और गैस के भंडारों से समृद्ध है। मुस्लिम बहुल आबादी, कम विकास और कट्टरपंथ ने मोज़ाम्बिक के लिए सुरक्षा समस्या उत्पन्न कर दी है। हाल ही में 24 मार्च, 2021 को, आईएसआईएस से जुड़े अहलू सुन्नत वाल जमाह ( एएसडब्ल्यूजे) या आईएसआईएस-मोज़ाम्बिक विद्रोहियों ने पाल्मा पर हमला किया जिसमें अनेक नागरिक मारे गये ।
मोजाम्बिक अंतरराष्ट्रीय निवेशकों का प्रिय स्थान बनता जा रहा था। यहाँ 100 ट्रिलियन घन मीटर गैस का भंडार है। भारत ने मोजाम्बिक में गैस परिसंपत्तियों में 20 अरब डॉलर का निवेश किया है और इसकी निकासी के लिए बुनियादी ढांचे का निर्माण करने हेतु अभी और अधिक निवेश किया जाना अपेक्षित है। भारत का मोज़ाम्बिक में कोयला निवेश भी है और वह कोयले की खुदाई और निर्यात के लिए रेलवे लाईनों तथा बंदरगाह के माध्यम से साधन निर्मित करने के प्रयास कर रहा है। फ्रांस सर्वाधिक निवेश के साथ प्रमुख गैस निवेशक है।
जापान मोजाम्बिक में नकाला बंदरगाह विकसित कर रहा है जो सामरिक रूप से अफ्रीका के दक्षिण पूर्व में स्थित है। मोज़ाम्बिक चैनल जो मोज़ाम्बिक और मेडागास्कर के बीच है, एक प्रमुख शिपिंग मार्ग है। यह महत्वपूर्ण है कि काबो डेलगाडो का विद्रोह समुद्री डकैत बन कर न फैले।
हालांकि विद्रोह 2017 से चल रहा है, परंतु इस वर्ष मार्च में हुए एक बड़े हमले के पश्चात्, जिसमें अनेक लोग मारे गए थे, इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई। मोज़ाम्बिक बल और एफएडीएम पूरे क्षेत्र में फैला हुआ है, परंतु फिर भी कट्टरपंथी विद्रोह अनियंत्रित था, जिससे इसके कर्मियों को पूरी तरह से वहां से निकालना पड़ा।
प्रारंभिक अनिच्छा के बाद एसएडीसी ब्रिगेड को अंततः 9 अगस्त को मोजाम्बिक (एसएएमआईएम) में एसएडीसी मिशन के रूप में तैनात किया गया। इससे पूर्व रवांडा के साथ अचानक एक समझौता हुआ और 1000 रवांडा सैनिक जुलाई में काबो डेलगाडो पहुंचे और काम पर लग गए। रवांडा के सैनिकों ने विद्रोहियों को उस क्षेत्र से खदेड़ दिया, जिस पर उन्होंने कब्जा किया था। पहले स्थानीय लोग मोज़ाम्बिक सैनिकों के प्रति आशंकित थे परंतु, रवांडा के सैनिकों द्वारा अच्छा व्यवहार किया गया।
इससे दो प्रश्न उत्पन्न होते हैं। पहला, अगर रवांडा के लोग एक निर्धारित प्रणाली से आतंकवादियों को शीघ्र हरा सकते थे, तो मोजाम्बिक की सेना वर्षों तक इसमें सफल क्यों नहीं हुई? दूसरे क्या, रवांडा के लोग अनुशासित है और उन्हें अच्छा भुगतान किया जाता हैं। प्रारंभिक विश्लेषण से संकेत मिलता है कि रवांडा ने कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (DRC) के पूर्वी भाग में विद्रोहियों का मुकाबला किया, उनकी प्रगति की जाँच की और मोज़ाम्बिक की सहायता की। उन्होंने तंजानिया के माध्यम से उत्तरी मोजाम्बिक में जाने वाले पूर्वी डी आर सी के मध्य लंबे गलियारे के दूसरे छोर को प्लग किया।
अब कहानी कुछ और ही नजर आ रही है। इस क्षेत्र में व्यावसायिक हित सर्वविदित हैं। टोटेल में आतंकियों का सफाया करने के बाद रवांडा की सेना ने 50 किलोमीटर का क्षेत्र तय किया और अब टोटेल के वर्तमान कार्य क्षेत्र की सुरक्षा कर रही है। रवांडा सेना मोकिम्बो दा प्रिया और पाल्मा के शहरों पर नियंत्रण बनाए रखेगी, जो समग्र ऊर्जा परियोजना के लिए महत्वपूर्ण हैं।
यह स्पष्ट है कि फ्रांस-रवांडा-मोजाम्बिक में एक प्रत्यक्ष जुड़ाव है, जो ज्वार को विद्रोह के विरुद्ध करने तथा गैस भंडार के दोहन के लिए टोटेल को दोबारा आरंभ करने का विश्वास उत्पन्न करने में सहायक है। इससे पहले वर्ष 2020 में, संयुक्त राष्ट्र मिशन के बाहर मध्य अफ्रीकी गणराज्य में इसी प्रकार का एक रवांडा प्रयास बांगुई में सफल रहा था। क्या उसमें भी फ्रांसीसी हाथ था? रवांडा के पूर्व विदेश मंत्री लुईस मुशिकीवाबो फ़्रैंकोफ़ोनी के वर्तमान एसजी हैं, जो फ्रांसीसी राष्ट्रमंडल का व्यापक रूप है। मोजाम्बिक भी फ्रैंकोफोनी का सदस्य है।
पुर्तगाल की भाँति अमेरिका ने भी प्रशिक्षण अभियानों के माध्यम से मोजाम्बिक का समर्थन किया। अमेरिका ने एएसडब्ल्यूजे को एक विदेशी आतंकवादी संगठन आईएसआई एस’-मोजाम्बिक’ के रूप से नामित किया। मोजाम्बिक का कोई भी पश्चिमी सहयोगी धरती पर उतरने का इच्छुक नहीं है, जिससे एसएडीसी मिशन को प्रोत्साहन मिल सके। जैसे ही इसमें विलंब हुआ, फ्रांस रवांडा के माध्यम से इस विद्रोह से निपटने के लिए आगे बढ़ा। एक छोटा सा देश रवांडा सबसे शक्तिशाली सेनाओं में से हैं। वे यूएनपीकेओ के अंतर्गत 6800 कर्मियों के साथ सबसे बड़े सैन्य योगदान करने वाले देशों में से हैं। अतीत में वे पूर्वी डीआरसी में युगांडा और अन्य लोगों के साथ एक प्रतियोगिता में शामिल थे।
मोज़ाम्बिक के राष्ट्रपति ने एक व्यापार मेले का उद्घाटन करते हुए घोषणा की कि मोज़ाम्बिक में निवेश और विशेष रूप से गैस क्षेत्र मे निवेश के लिए सुरक्षा और स्थिरता एक शर्त है, और मोज़ाम्बिक ऐसी स्थिरता प्रदान करेगा।
वर्तमान एसएएमआईएम में, मोज़ाम्बिक टीवी ने बताया कि उसे तंजानिया 274 सैनिक, दक्षिण अफ्रीका 270, बोत्सवाना 108, लेसोथो 70, और अंगोला 16 अन्य एसएडीसी सदस्यों देसो का सहयोग प्राप्त है। संसद में दक्षिण अफ्रीका ने एक बयान में कहा कि वह मोजाम्बिक में 1,495 कर्मियों को तैनात करने का इरादा रखता है। जिम्बाब्वे प्रशिक्षण दल प्रदान करेगा। उपकरणों में, दक्षिण अफ्रीकी कैस्पिर बख्तरबंद वाहन, एक सेसना कारवां हल्का विमान, बोत्सवाना का पिरान्हा 5 पैदल सेना से लड़ने वाले वाहन और अंगोला से 76 परिवहन विमान शामिल हैं। पेम्बा से संचालित दक्षिण अफ्रीकी नौसेना का योद्धा-श्रेणी का गश्ती जहाज एसएएस मखंडा सैमिम का छोटा नौसैनिक घटक है।
उग्रवाद से निपटने के लिए नौसेना की तैयारी सबसे कमजोर कड़ी है। यह याद रखना होगा कि सोमालिया में भूमि से संचालित गिरोह पश्चिमी हिंद महासागर में समुद्री डकैती करते है। इसकी पुनरावृत्ति नहीं होनी चाहिए अन्यथा मोज़ाम्बिक चैनल और इसका उपयोग करने वाले वैश्विक शिपिंग को 30% खतरा होगा। मोजाम्बिक नौसेना अपने आप में छोटी है, जिसे अनुदान के रूप में कुछ तेज गश्ती नौकाएँ प्राप्त हुई हैं। इसमें दो नौकाएँ भारत की ओर से भी है। भारतीय, दक्षिण अफ्रीकी और फ्रांसीसी नौसेनाएं पिछले कुछ समय से आसपास के क्षेत्र में अभ्यास कर रही हैं, परंतु मोजाम्बिक पर ध्यान केंद्रित नहीं किया गया।
दक्षिण अफ्रीका ने कुछ नौसैनिक जहाज तैनात किये है, लेकिन इसकी क्षमता सीमित है। यह सबसे बड़ी क्षेत्रीय शक्ति हो सकती है, परंतु समुद्र पर इसे आसानी से चुनौती दी जा सकती है। भारत और फ्रांस दो नौसैनिक शक्तियाँ हैं जिनके पास इस क्षेत्र में संपदा है। फ़्रांस के ठिकाने रीयूनियन द्वीप, मैयट और अन्य स्थानों पर हैं जहाँ उसका बेड़ा तैनात है। भारत के नौसैनिक जहाजों का नियमित दौरा होता है जो मॉरीशस और सेशेल्स के साथ मिलकर काम करते हैं, और हाल ही में मोज़ाम्बिक के अतिरिक्त मेडागास्कर और कोमोरोस के साथ भी सहयोग कर रहे हैं।
उनके प्रयास बड़े पैमाने पर दक्षिणी हिंद महासागर में समुद्री डकैती को नियंत्रित करने की दिशा में रहे हैं, जैसा अनेक नौसेनाओं द्वारा पश्चिमी हिंद महासागर में, जिबूती के करीब किया गया है। इससे पहले कि स्थिति हाथ से निकल जाए, भारत और फ्रांस को उनके 2018 विजन दस्तावेज़ में परिकल्पित घनिष्ठ समन्वय पर ध्यान देना होगा। भारत और फ्रांस दोनों का मोज़ाम्बिक में पर्याप्त निवेश है, और इसलिए वहाँ एक साथ काम करने के लिए एक आर्थिक और रणनीतिक समानता है।
चिंता का एक अन्य क्षेत्र नशीली दवाओं का चलन है। आईएस से संबंधित समूह अक्सर अफगानिस्तान और पाकिस्तान के माध्यम से आने वाली ड्रग्स पर आश्रित रहते हैं। ड्रग्स आधारित व्यापार पूर्वी अफ्रीका के समुद्र तट के समीप है। अतीत में यह केन्या, सोमालिया और तंजानिया में लैंडिंग क्षेत्रों का उपयोग करता था। वे अब और आगे दक्षिण की ओर चले गए। मोजाम्बिक में स्थित पाकिस्तानी तत्वों की मदद से इस क्षेत्र में चल रहे नशीले पदार्थों के लिए एक मार्ग की सुविधा प्रदान की जाती है। इससे बड़ी मात्रा में धन जुटाया जाता है, जो बाद में यहां तथा अन्य स्थानो पर उग्रवाद के समर्थन में चला जाता है। अफ़ग़ानिस्तान में सरकार के गिरने से यह आशंका बढ़ गई है कि अब दक्षिणी मार्ग पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
भारत और अन्य निवेशकों के लिए मोजाम्बिक का महत्व इसलिए भी है कि उसके पास ऊर्जा आपूर्ति का शांतिपूर्ण और निर्बाध समुद्री मार्ग है। यदि सुरक्षा से समझौता किया जाता है, तो बड़े निवेश के लाभ कम हो जाएंगे और जोखिम बढ़ जाएगा। यह मोजाम्बिक के आसपास के समुद्रों पर सतर्कता और तत्काल निवारक कार्रवाई का आह्वान करता है।
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सुनील कुमार नेगी