• 22 December, 2024
Foreign Affairs, Geopolitics & National Security
MENU

निर्मलजीत सिंह के साहस से आसमान में भी हारा पाकिस्‍तान

कर्नल शिवदान सिंह
सोम, 07 फरवरी 2022   |   8 मिनट में पढ़ें

फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों पहले वायु सेना के अधिकारी थे, जिन्हें भारत सरकार ने अभूतपूर्व वीरता के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया था। 1971 के युद्ध में वायु सेना का 18 स्क्वाड्रन श्रीनगर हवाई अड्डे पर श्रीनगर की रक्षा के लिए तैनात था। अचानक 14 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के 6 एफ़86 सेवर लड़ाकू विमानों ने श्रीनगर हवाई अड्डे पर हमला कर दिया।  जिसके जवाब में फ्लाइट लेफ्टिनेंट घुम्मन की कमान में इस 18 स्क्वाड्रन लड़ाकू नेट भारत के लड़ाकू विमान भी इनसे टक्कर लेने के लिए आकाश में शीघ्रता से पहुंच गए। थोड़े समय के बाद ही घुम्मन का संपर्क अपने साथियों से टूट गया और निर्मल सिंह अकेले ही आकाश में पाकिस्तानी हमलावरों से टक्कर लेने के लिए अकेले रह गए। परंतु अकेले रहकर भी उन्होंने अपनी जान की परवाह किए बगैर अपने शौर्य और हवाई जहाज उड़ाने के कौशल से इन पाकिस्तानी हमलावर विमानों को जवाब देना शुरू किया। जिसमें उन्होंने अपने छोटे से नेट लड़ाकू विमान से पाकिस्तान के सबसे अगले विमान को जमीन पर मार गिराया। उसके बाद उन्होंने अपना निशाना दूसरे विमान पर भी साधा और उसमें आग लगा दी। इस प्रकार केवल शुरू में पाकिस्तानी हमलावर कुछ गोले श्रीनगर की उड़ान पट्टी पर गिरा पाए, परंतु उसके बाद निर्मलजीत सिंह ने एक बाज की तरह इन पाकिस्तानियों का मुकाबला करना शुरू कर दिया। जिसके कारण पाकिस्तानी हमलावर कुछ ही समय में वहां से भाग खड़े हुए और श्रीनगर को  पाकिस्तान के हवाई प्रहार से निर्मलजीत सिंह ने बचा लिया। परंतु इन हमलावरों का मुकाबला करते-करते इनके विमान में काफी गोलियां लग चुकी थी, जिनसे इनका विमान श्रीनगर के पास क्षतिग्रस्त होकर भूमि पर गिर गया जिसमें निर्मलजीत सिंह वीरगति को प्राप्त हुए।

युद्ध की पृष्ठ भूमि

पूर्वी पाकिस्तान में पश्चिमी पाकिस्तान के मिलिट्री शासकों की तानाशाही के कारण अशांति फैल चुकी थी। जिसका मुख्य कारण पश्चिमी पाकिस्तान के सत्ताधारी शासकों में अपने को पूर्वी  पाकिस्तान के निवासियों से ऊंचा समझना और इन्हें हीन भावना से ग्रस्त कराना था। इसी भावना के चलते जब शेख मुजीबुर रहमान की पार्टी को 1970 में आम चुनावों में भारी बहुमत‍ मिली पर पाकिस्तान के मिलिट्री शासक याहया खान ने उन्हें प्रधानमंत्री स्वीकार करने से मना कर दिया। जिसके कारण पूर्वी पाकिस्तान में बड़े स्तर पर विद्रोह शुरू हो गया और यह विद्रोह कुछ समय के बाद ही हिंसक हो गया। क्योंकि पाकिस्तानी सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में तरह-तरह के अत्याचार और स्त्रियों का बलात्कार सरेआम करना शुरू कर दिया। जिसको देखते हुए यहां के करोड़ों शरणार्थी भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों में शरण के लिए पलायन करने लगे। इसके बाद भी पाकिस्तान का अत्याचार नहीं रुका और सेना निवासियों को अपने बल पर यह दिखाना चाहती थी की पाकिस्तान की सत्ता पश्चिमी पाकिस्तान के हाथों में ही रहेगी। इस प्रकार की स्थिति में पूर्वी पाकिस्तान में फैले असंतोष और हिंसा से भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों में भी अशांति का माहौल बनने लगा था। इन राज्यों के निवासियों की भावना थी कि भारत को इसमें दखल देकर पश्चिमी पाकिस्तान की सेना को पूर्वी पाकिस्तान से भगाना चाहिए। इसके साथ-साथ इन शरणार्थियों के भरण-पोषण के लिए भारत सरकार पर अतिरिक्त आर्थिक दबाव पड़ने लगा था। 70 के दशक तक विश्व में आर्थिक विकास नहीं हुआ था जिसके कारण भारत की भी आर्थिक दशा ज्यादा मजबूत नहीं थी। इसको देखते हुए भारत सरकार ने निर्णय किया की पाकिस्तानी सेना को पूर्वी पाकिस्तान से भगाना चाहिए जिससे शरणार्थी वापस अपने देश जा सके। इसी के  लिए भारत सरकार ने अपनी सेना को पूर्वी पाकिस्तान की सीमा के नजदीक एकत्रित करना शुरू कर दिया। जिसको देखकर पाकिस्तानी सेना ने भी युद्ध की तैयारी बड़े स्तर पर करनी प्रारंभ कर दी और 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी वायु सेना ने भारत के वायु सेना ठिकानों पर दिन में 4:30 बजे भारी बमबारी की। इस प्रकार पाकिस्तान ने औपचारिक रूप से युद्ध की घोषणा कर दी। इसके जवाब में भारतीय सेना ने भी पूर्वी पाकिस्तान की सीमा पर हमला करके यहां से पाक सेना को भगाने का अभियान शुरू कर दिया। इस प्रकार भारत-पाकिस्तान में बड़े स्तर पर आमने-सामने का युद्ध शुरू हो गया और इस युद्ध में शुरू से ही पाकिस्तानी सेना को हार मिलनी शुरू हो गई। 13 दिसंबर तक यह साफ हो चुका था कि पाकिस्तानी सेना भारतीय सेना का मुकाबला करने में सक्षम नहीं और उनको पूर्वी पाकिस्तान से वापस जाना पड़ेगा। इस स्थिति में पाकिस्तान के वरिष्ठ फौजी अधिकारियों ने भारत का ध्यान उसकी पश्चिमी सीमाओं की तरफ करने के लिए उन्होंने श्रीनगर हवाई अड्डे पर 14 दिसंबर को हवाई हमला कर दिया। निर्मलजीत सिंह सेखों ने इस हमले का करारा जवाब दिया। जिसके परिणाम स्वरूप पाकिस्तानी सेना को दिख गया की वे शक्तिशाली भारत से मुकाबला नहीं कर सकते। इसलिए पाकिस्तानी सेना के 93,000 सैनिकों और उनके कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी ने ढाका के मैदान में 16 दिसंबर को भारतीय सेना के सामने समर्पण कर दिया। इस प्रकार भारतीय सेना ने पाकिस्तान की सेना पर सबसे बड़ी विजय प्राप्त की और बांग्लादेश का निर्माण किया।

साठ के दशक में पूरे विश्व में महा शक्तियों अमेरिका और सोवियत संघ के बीच में शीत युद्ध चल रहा था। इसमें अमेरिका को सोवियत संघ के मुकाबले के लिए एक उचित प्लेटफार्म एशिया में चाहिए था जिसके लिए उसने पाकिस्तान को उपयुक्त पाया। पाकिस्तान को अपने बस में करने के लिए अमेरिका ने पाकिस्तान को आर्थिक सहायता के साथ-साथ आधुनिकतम सैनिक हथियार भी देने शुरू कर दिए। जिनमें पैटन टैंक और लड़ाकू सेवर विमान भी शामिल थे। इसलिए पाकिस्तान अपने आप को क्षेत्र की सबसे शक्तिशाली सेना समझने लगा। इस प्रकार पाकिस्तान  भारतीय सेना को हीन दृष्टि से देख रहा था जबकि भारत के शासक विश्व में शांति का पैगाम फैला रहे थे। इसलिए भारत किसी भी देश से युद्ध की कल्पना नहीं कर रहा था। जिसके कारण भारत सैनिक तैयारियों पर कम आर्थिक खर्च कर रहा था। जिससे देश का धन जन कल्याण के विकास पर खर्च हो सके। इसलिए भारतीय सेना पुराने गोला बारूद और हथियारों से दुश्मन का मुकाबला करने के लिए तैयार रहती थी। भारतीय सेना आधुनिक हथियारों के मुकाबले व्यक्तिगत वीरता और देश प्रेम की भावना को अपना मुख्य हथियार समझती थी जिसका प्रदर्शन 1971 से पहले भारतीय सेना ने 1947- 48 और चीन युद्ध में किया था।

फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों की वीरगाथा

जहां पाकिस्तान आधुनिकतम शक्तिशाली सेवर लड़ाकू विमानों से भारत पर हमला कर रहा था वहीं पर पाकिस्तान के इन आधुनिकतम लड़ाकू विमानों के विरुद्ध भारत एक छोटे से नेट लड़ाकू विमान से इनका मुकाबला कर रहा था। नेट के साइज को देखते हुए इसको वायु सेना की  गोली जिसे फ्लाइंग बुलेट के नाम से पुकारा जाता था। भारतीय वायुसेना का लड़ाकू विमानों का 18 स्क्वाड्रन श्रीनगर हवाई अड्डे पर पाकिस्तानी वायु सेना का मुकाबला करने के लिए तैनात था। निर्मलजीत सिंह सेखों इसी स्क्वाडर्न का हिस्सा थे। 3 दिसंबर को भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हो चुका था और भारतीय सेना पाकिस्तानी सेना को खदेड़ते हुए पूर्वी पाकिस्तान में काफी अंदर तक घुस चुकी थी और यह निश्चित हो गया था कि भारतीय सेना इस युद्ध में विजई होगी। इसको देखते हुए पाकिस्तानी सेना ने युद्ध को समाप्त करने की योजना बनाई। इसके लिए पहले उन्होंने भारतीय सेना को युद्ध समाप्ति करने के लिए प्रयास शुरू कर दिए परंतु जब भारत ने इस युद्ध को इस प्रकार समाप्ति के लिए मना कर दिया और शर्त रखी कि यदि युद्ध समाप्त करना है तो पाकिस्तानी सेना को भारतीय सेना के सामने सरेआम समर्पण करना पड़ेगा और वह भी बांग्लादेश की राजधानी ढाका में होगा। शर्मनाक हार से बचने और भारत पर दबाव बनाने के लिए पाकिस्तानी सेना ने श्रीनगर में नया मोर्चा खोलने की कोशिश की। जिसके द्वारा  भारत दबाव में आकर पाकिस्तानी सेना के प्रस्ताव को स्वीकार कर लेगा। इसीलिए पाकिस्तानी सेना ने 14 दिसंबर को बमबारी की योजना श्रीनगर के लिए बनाई। जिसके बाद उसकी सेना  हवाई हमलों में बर्बाद हुए श्रीनगर पर कब्जा कर सके। इसी के अंतर्गत पाकिस्तानी वायुसेना ने अपने आधुनिकतम अमेरिकी सेवर जेट विमानों से भारत के श्रीनगर पर 14 दिसंबर को हवाई हमला कर दिया। इसके अंतर्गत छह पाकिस्तानी सेवर विमानों की टोली ने श्रीनगर हवाई अड्डे  पर अचानक बमबारी शुरू कर दी। इस बमबारी के द्वारा इस हवाई अड्डे की उड़ान पट्टी को गोलों से बर्बाद करना शुरू कर दिया। उस समय निर्मलजीत सिंह अपने नेट विमान में हमले का मुकाबला करने के लिए तैयार बैठे थे। इस प्रकार की तैयार रहने की स्थिति को वायु सेना में कॉकपिट रेडीनेस कहा जाता है। इसको देखते हुए निर्मलजीत सिंह फ्लाइट लेफ्टिनेंट घुम्‍मन की कमांड में इन पाकिस्तानी हमलावरों का मुकाबला करने के लिए उड़कर आसमान में पहुंचे। उन्होंने देखा कि चारों तरफ पाकिस्तानी हमलावर बड़ी मात्रा में गोलाबारी कर रहे हैं। इसमें  फ्लाइट लेफ्टिनेंट घुम्मन का संबंध अपने साथियों से टूट गया और शेखो आसमान में अकेले रह गए। परंतु अपने प्राणों की परवाह न करते हुए शेखो ने इन छह पाकिस्तानी विमानों से अपनी उड़ान भरने की विभिन्न प्रणालियों के द्वारा मुकाबला करना शुरू कर दिया। एयरफोर्स में इन प्रणालियों में पायलट अपने विमान को अलग-अलग मुद्रा में उड़ा कर दुश्मन को अपने ऊपर वार करने का मौका न देकर स्वयं उसके विमानों के पीछे या ऊपर जाकर उन पर हमला करता है।

ऐसा ही शेखो ने किया और पाकिस्तान के सबसे आगे उड़ने वाले विमान को फौरन मार गिराया। उसके बाद उसके दूसरे विमान में भी आग लगा दी यह सब शेखो ने अपनी उड़ान की कुशलता से किया। इस प्रकार काफी देर तक इन पाकिस्तानी लड़ाकू विमानों को आसमान में उलझा कर उन्हें भागने पर विवश किया। इस समय तक निर्मलजीत सिंह का विमान पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुका था। जिसको देखते हुए जमीन से विमानों को नियंत्रित करने वाले अधिकारियों ने शेखो को नीचे उतरने के आदेश दिए। परंतु सेखों ने अपनी जान की परवाह न करते हुए अपना मुकाबला जारी रखा। पाकिस्तानी विमानों को हराने के बाद उनका विमान क्षतिग्रस्‍त होने  के कारण क्रैश हो गया जिसमें निर्मलजीत सिंह वीरगति को प्राप्त हो गए। इस प्रकार निर्मलजीत सिंह ने श्रीनगर को पाकिस्तानी हवाई हमले में बर्बादी से बचाया और पाकिस्तानी सेना को इस क्षेत्र में आगे बढ़ने से रोका। इसलिए निर्मल जीत सिंह को श्रीनगर के रक्षक के रूप में भी जाना जाता है।

उनके अभूतपूर्व साहस और वीरता के लिए भारत सरकार ने उन्‍हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया था और यह वीरता पुरस्कार पाने वाले निर्मलजीत सिंह पहले और अब तक के एक मात्र वायु सैनिक हैं।

इस हमले में हिस्सा लेने वाले पाकिस्तानी पायलट एयर कमोडोर कैसरतूफेल और सलीम मिर्जा बेग जिन्होंने शेखो के विमान पर गोलीबारी की थी, ने उनकी वीरता, साहस और युद्ध कौशल का पूरा विवरण अपनी किताब में लिखा है। इस प्रकार शेखो ने अपने लड़ाकू विमान, जो देखने में एक खिलौना जैसा था, उसको पूरे विश्व में सम्मान दिलवाया और आज भारत के कुछ प्रमुख शहरों में इस विमान को एक प्रतीक के रूप में चौराहों पर स्थापित किया गया है।

जीवनी

फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह शेखो का जन्म 17 जुलाई 1945 में लुधियाना के ईसवाल गांव में हुआ था। इनके पिता मास्टर वारंट ऑफिसर त्रिलोक सिंह सेखों वायु सेना में कार्यरत थे। इनकी स्कूली शिक्षा अपने पिता के साथ हवाई सेना के विभिन्न स्टेशनों में हुई। जिसके बाद इन्होंने नेशनल डिफेंस एकेडमी में प्रवेश लिया। यहां से उन्हें वायुसेना के लिए उचित पाते हुए विमान उड़ाने की ट्रेनिंग के लिए वायु सेना के ट्रेनिंग स्टेशन भेजा गया और ट्रेनिंग के बाद 4 जून 1967 को यह पायलट अफसर के रूप में वायु सेना में सम्मिलित हुए।

***************************************************************************************************


लेखक
कर्नल शिवदान सिंह (बीटेक एलएलबी) ने सेना की तकनीकी संचार शाखा कोर ऑफ सिग्नल मैं अपनी सेवाएं देकर सेवानिवृत्त हुए। 1986 में जब भारतीय सेना उत्तरी सिक्किम में पहली बार पहुंची तो इन्होंने इस 18000 फुट ऊंचाई के दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र को संचार द्वारा देश के मुख्य भाग से जोड़ा। सेवानिवृत्ति के बाद इन्हें दिल्ली के उच्च न्यायालय ने समाज सेवा के लिए आनरेरी मजिस्ट्रेट क्लास वन के रूप में नियुक्त किया। इसके बाद वह 2010 से एक स्वतंत्र स्तंभकार के रूप में हिंदी प्रेस में सामरिक और राष्ट्रीय सुरक्षा के विषयों पर लेखन कार्य कर रहे हैं। वर्तमान में चाणक्य फोरम हिन्दी के संपादक हैं।

अस्वीकरण

इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और चाणक्य फोरम के विचारों को नहीं दर्शाते हैं। इस लेख में दी गई सभी जानकारी के लिए केवल लेखक जिम्मेदार हैं, जिसमें समयबद्धता, पूर्णता, सटीकता, उपयुक्तता या उसमें संदर्भित जानकारी की वैधता शामिल है। www.chanakyaforum.com इसके लिए कोई जिम्मेदारी नहीं लेता है।


चाणक्य फोरम आपके लिए प्रस्तुत है। हमारे चैनल से जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें (@ChanakyaForum) और नई सूचनाओं और लेखों से अपडेट रहें।

जरूरी

हम आपको दुनिया भर से बेहतरीन लेख और अपडेट मुहैया कराने के लिए चौबीस घंटे काम करते हैं। आप निर्बाध पढ़ सकें, यह सुनिश्चित करने के लिए पूरी टीम अथक प्रयास करती है। लेकिन इन सब पर पैसा खर्च होता है। कृपया हमारा समर्थन करें ताकि हम वही करते रहें जो हम सबसे अच्छा करते हैं। पढ़ने का आनंद लें

सहयोग करें
Or
9289230333
Or

POST COMMENTS (1)

Mangala C Shekhar

फरवरी 07, 2022
Indian army, airforce and navy are really bravest and they deserve highest tribute since they are outstanding.

Leave a Comment