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चाणक्य फोरम का नया स्तंभ : विजय या वीरगति

कर्नल शिवदान सिंह
बुध, 03 नवम्बर 2021   |   2 मिनट में पढ़ें

आज के युग में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सामरिक और रणनीतिक क्षेत्र में काफी उथलपुथल मची हुई है जिसके परिणाम स्वरूप नएनए गठबंधन जैसे क्वाड, ऑकस इत्यादि गठित हो रहे हैं। चाणक्य फोरम देश के प्रसिद्ध सामरिक और रणनीतिक विशेषज्ञों के विचारों द्वारा अपने पाठकों को सामरिक विषयों की पूरी जानकारी लेखों के द्वारा उपलब्ध करा रहा है। इसी के साथ पड़ोसी देशों पाकिस्तान और चीन की कुत्सित चालाकी की जानकारी भी आप सभी पाठकों तक पहुंचा रहे हैं।

    नयी पीढ़ी में राष्ट्र प्रेम की भावना जागृत करने और उन्हें राष्ट्रवादी विचारधारा से परिचित कराने के लिए ही देश पर मर मिटाने वाले वीर सपूतों की कहानियों को उनके समक्ष पेश कर रहे हैं। चाणक्य फोरम तीन नवंबर (मंगलवार) से भारतीय सेना के उन वीर शहीदों की कहानियों का स्तंभ ‘विजय या वीरगतिप्रारंभ कर रहा है जिन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश की सीमाओं की सुरक्षा में अपने प्राणों की आहुति देकर सीमाओं की और भारत की अखंडता और एकता की रक्षा की। भारत सरकार ने इनके बलिदान और शौर्य के लिए इन्हें विभिन्न प्रकार के वीरता पुरस्कारों से सम्मानित किया है। इसी क्रम में सर्वप्रथम देश के प्रथम परमवीर चक्र से मरणोपरांत सम्मानित मेजर सोमनाथ शर्मा की कहानी है।

    इसी क्रम में शांति के समय देश की आंतरिक सुरक्षा में वीरता और शौर्य का प्रदर्शन करने के लिए स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत सरकार ने अशोक चक्र, कीर्ति चक्र और शौर्य चक्र का प्रावधान किया। देश की आंतरिक सुरक्षा में सेना के साथसाथ अर्धसैनिक और केंद्रीय सुरक्षा बल के अतिरिक्त राज्य पुलिस बल भी अपना योगदान देते हैं। इसलिए आंतरिक सुरक्षा में देश विरोधी और आतंकवादी तत्वों के विरुद्ध लड़े जाने वाले इन युद्धों में योगदान देने वाले इन बलों के कर्मियों को भी सेना की तरह यह सिविल सम्मान दिए जाते हैं। इसलिए इस स्तंभ में शांति के समय आंतरिक सुरक्षा में इन सम्मनों को पाने वालों की कहानियों को भी पर्याप्त स्थान दिया जाएगा।

    चाणक्य फोरम का यही प्रयास है कि देशवासी इन कहानियों के द्वारा देश की सुरक्षा में अपना सर्वस्व बलिदान करने वालों की प्रेरणादायक वीर गाथाओं के बारे में जान सके तथा अपने देश की गौरवशाली विरासत पर गर्व कर सकें। युद्ध की नई टेक्निक के अनुसार आने वाले समय में युद्ध देश की सीमाओं के अतिरिक्त देश के आंतरिक हिस्सों में भी लड़े जाएंगे जिन्हें परोक्ष युद्ध कहते हैं। इन युद्धों में दुश्मन अपने मनोवैज्ञानिक प्रोपेगेंडा के द्वारा देशवासियों का ध्यान भटका कर उन्हें देश विरोधी गतिविधियों के लिए प्रेरित करते हैं। इस स्थिति में जब देशवासियों को अपनी विरासत के बारे में पता लगेगा तो वह देश के हर स्थान पर देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए अपना पूर्ण योगदान देने को तत्पर रहेंगे।

नोट : आज प्रकाशित होगा देश के पहले परम वीर चक्र से सम्मानित मेजर सोमनाथ शर्मा का लेख।

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लेखक
कर्नल शिवदान सिंह (बीटेक एलएलबी) ने सेना की तकनीकी संचार शाखा कोर ऑफ सिग्नल मैं अपनी सेवाएं देकर सेवानिवृत्त हुए। 1986 में जब भारतीय सेना उत्तरी सिक्किम में पहली बार पहुंची तो इन्होंने इस 18000 फुट ऊंचाई के दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र को संचार द्वारा देश के मुख्य भाग से जोड़ा। सेवानिवृत्ति के बाद इन्हें दिल्ली के उच्च न्यायालय ने समाज सेवा के लिए आनरेरी मजिस्ट्रेट क्लास वन के रूप में नियुक्त किया। इसके बाद वह 2010 से एक स्वतंत्र स्तंभकार के रूप में हिंदी प्रेस में सामरिक और राष्ट्रीय सुरक्षा के विषयों पर लेखन कार्य कर रहे हैं। वर्तमान में चाणक्य फोरम हिन्दी के संपादक हैं।

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