• 25 April, 2024
Geopolitics & National Security
MENU

एस-400 पर अमेरिकी रुख के बावजूद रिश्‍ता मजबूत करेंगे भारत-रूस

डॉ. रहीस सिंह
गुरु, 02 दिसम्बर 2021   |   7 मिनट में पढ़ें

रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन इसी सप्ताह में नई दिल्ली आ रहे हैं। उनकी इस यात्रा के दौरान भारत और रूस अपने परम्परागत व रणनीतिक सम्बंधों में ‘2 प्लस 2’ वार्ता शुरू करने के साथ एक नया आयाम जोड़ेंगे। तो क्या हम यह मानकर चल सकते हैं कि रूस के साथ शुरू हो रही ‘2 प्लस 2 डायलॉग डिप्लोमैसी’ आज द्विपक्षीय ही नहीं बल्कि बहुपक्षीय जरूरतों को पूरा करने का एक सबल माध्यम बनेगी? क्या यह यूरेशिया और मध्य-पूर्व के साथ-साथ हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में निर्मित हो चुके भू-राजनीतिक समीकरणों को भी प्रभावित करने में सक्षम होगी?

रूस, सोवियत युग से ही भारत का पारंपरिक सहयोगी और भरोसे का साथी रहा है। यह अलग बात है कि बर्लिन की दीवार टूटने और सोवियत संघ के बिखरने के बाद शुरू हुए पूंजीवाद के नए युग में दुनिया के केन्द्र में अमेरिका आया और शेष दुनिया की तरह भारत ने भी नयी आवश्यकताओं के अनुरूप अमेरिका की ओर देखना शुरू कर दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि करीब पिछले 20 दशकों में अमेरिका के साथ भारत की सुरक्षा साझेदारी काफी बढ़ी। भारत और अमेरिका अब तक चार फाउंडेशनल एग्रीमेंट्स पर हस्ताक्षर कर चुके हैं। यही नहीं वर्ष 2015 में लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेण्डम ऑफ एग्रीमेंट (लिमोआ) के हस्ताक्षर होने के बाद अमेरिका ने भारत को अपना मेजर स्ट्रैटेजिक पार्टनर घोषित किया। जब वर्ष 2018 में अमेरिका के साथ तीसरा फाउंडेशनल एग्रीमेंट यानि कम्युनिकेशंस ऐंड इन्फोर्मेशन सिक्योरिटी मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (कॉमकासा) हस्ताक्षरित हुआ तो अमेरिका ने इसके ठीक बाद भारत को एसटीए1 (कण्ट्रीज एनटाइटिल्ड टू स्ट्रैटेजिक ट्रेड अथॉराइजेशन) की श्रेणी में प्रदान कर दी जो उच्च तकनीकी व्यापार के लिए मार्ग प्रशस्त करती है। यह दर्शाता है कि अमेरिका के साथ भारत के रिश्ते ठोस आधार प्राप्त कर चुके हैं। लेकिन इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं निकाला जाना चाहिए कि इससे रूस के साथ भारत के रिश्तों की परम्परागत डोर कमजोर पड़ गयी। भारत की अमेरिका के साथ बढ़ी नजदीकियों ने भारत के सामने रूस को लेकर कोई धर्म संकट पैदा किया, यह भी स्वीकार्य तर्क नहीं है। भारत की राष्ट्र केन्द्रित (नेशन सेंट्रिक) कूटनीति दोनों के बीच संतुलन स्थापित करने में ही नहीं बल्कि फारवर्ड ट्रैक पर चलने में भी कामयाब रही है।

भारत अब रूस के साथ ‘2 प्लस 2 डिप्लोमैसी’ के साथ आगे बढ़ने जा रहा है। यह कदम भारत को यूरेशिया और सेंट्रल एशिया में नयी रणनीति विकसित करने का अवसर प्रदान कर सकती है। इसके साथ ही यह पूर्वी एशिया या प्रशांत क्षेत्र के साथ-साथ दक्षिण एशिया पर भी प्रभाव डालेगी जहां रूस ‘पीवोट टू ईस्ट’ नीति के तहत आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा है। एक और बात, मॉस्को क्षेत्रीय मुद्दों को लेकर इस समय काफी संवेदनशील दिखायी दे रहा है, खासकर अफगानिस्तान और पाकिस्तान संबंधी मुद्दों को लेकर। इस स्थिति में उसे भारत के साथ स्ट्रेटेजिक बॉण्डिंग को और मजबूत करने की जरूरत है। काबुल पर तालिबान कब्जे के बाद दक्षिण एशिया ही नहीं बल्कि मध्य-पूर्व भी प्रभावित हुआ है और नई जियो-पॉलिटिकल उथल-पुथल होने की संभावनाएं बढ़ी हैं। कारण यह है कि अफगानिस्तान तथा अफगानिस्तान-पाकिस्तान के उन क्षेत्रों, जो आतंकी गुटों की शरणस्थली बने हुए हैं, से उत्पन्न होने वाले संभावित खतरों की अनदेखी नहीं की जा सकती। और न ही इस क्षेत्र में चीन द्वारा स्वयं या पाकिस्तान के जरिए चली जा रही तिरछी एवं ढाई चालों को कमतर आंका जा सकता है। एक बात और, तालिबान, इस्लामिक स्टेट-खुरासान, इस्लामी मूवमेंट उज़बेकिस्तान सहित अलकायदा के खण्डहरों पर बिखरे हुए तमाम चरमपंथी समूह शक्ति अर्जित कर एकाधिकार की लड़ाई लड़ना चाहते हैं। यदि ऐसा हुआ तो इन संगठनों में संघर्ष के साथ-साथ बिखराव व विकेन्द्रीकरण भी होगा जो कई मायनों में नुकसानदेह होगा। हालांकि इस खतरे से भारत सहित कुछ मध्य-एशियाई देश वाकिफ हैं। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसे देखते हुए 5 मध्य एशियाई देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों को नई दिल्ली में बैठक करनी पड़ गयी। इस खतरे के सापेक्ष जो बाइडेन की शिथिल रणनीति को देखते हुए रूस भारत के लिए अमेरिका से कहीं अधिक निर्णायक भूमिका निभा सकता है।

भारत और रूस के सम्बंधों में कुछ पक्षों पर बात करना और जरूरी मालूम पड़ता है। पहला यह कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच अच्छी केमिस्ट्री बनती दिखी है। व्लादिवोस्तक में प्रधानमंत्री मोदी ने स्वयं कहा था कि हमारे रिश्तों में एक खास केमिस्ट्री है, विशेष सुगमता है। प्रधानमंत्री इससे पहले ही यह कह चुके हैं कि दो नए दोस्तों के मुकाबले एक पुराना दोस्त ज्यादा अच्छा है। अब जियो-पॉलिटिक्स की बात करें तो इसके एक छोर पर रूस काफी प्रभावशाली दिख रहा है। भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय संबंधों में एक दूसरे के सहयोगी और भू-रणनीति सम्बंधों एक दूसरे के पूरक हैं। इसका फायदा भारत का मिल सकता है। भारत इसके लिए तैयार भी लग रहा है। यही वजह है कि भारत ने अमेरिका के काट्सा (काउंटरिंग अमेरिकाज एडवरसरीज थ्रू सैंक्शंस एक्ट) परवाह न करते हुए रूस से एस-400 ट्रायम्फ एयर डिफेन्स सिस्टम की खरीद सम्बंधी डील की। जबकि इसे लेकर अमेरिका हमेशा से सख्त रहा है। जहां तक अमेरिका का प्रश्न है तो वह भी इसे लेकर जिस प्रकार नजरिया तुर्की के प्रति रख रहा है वैसा भारत के प्रति नहीं। ध्यान रहे कि वर्ष 2019 में उसने न केवल तुर्की के साथ एफ-35 लड़ाकू विमान सौदा रद्द कर दिया था बल्कि तुर्की पर यात्रा और आर्थिक प्रतिबंध भी लगा दिए थे। दरअसल वर्ष 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में रूस के हस्तक्षेप का विषय सामने आया था।

इसके बाद रूस को सज़ा देने के उद्देश्य से वर्ष 2017 में अमेरिका ने काउंटरिंग अमेरिकाज़ एडवर्सरीज सैंक्शन ऐक्ट (काट्सा) पास कर दिया। इस के तहत रूस से सैन्य उपकरण ख़रीदने वाले देश पर प्रतिबंध लगाने का प्रावधान किया गया। हालांकि अभी तक इसके तहत अमेरिकी प्रशासन ने भारत पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय नहीं लिया है। लेकिन अभी हाल ही में डिप्टी सेक्रेटरी ऑफ स्टेट वेंडी रूथ शर्मन का एक बयान आया था जिसमें उन्होंने कहा है कि ‘जिस भी देश ने एस-400 का इस्तेमाल करने का फ़ैसला किया है, उसे लेकर हमारी नीति स्पष्ट और सार्वजनिक है। हमारा मानना है कि यह ख़तरनाक है और यह किसी के भी सुरक्षा हित में नहीं है।’ वेंडी शर्मन की यह टिप्पणी उस समय आयी थी जब भारतीय वायु सेना प्रमुख वीआर चौधरी ने इस बात की पुष्टि की है कि 2018 में 5.43 अरब डॉलर के एस-400 मिसाइल सिस्टम सौदे पर हस्ताक्षर हुआ था और इस साल के अंत यानि दिसंबर तक इसे सेना में शामिल कर लिया जाएगा।

यहां पर वेंडी शर्मन के वक्तव्य का एक सिरा भारत के साथ अलग दृष्टिकोण दर्शाता है। उनका कहा है कि भारत के साथ हमारी मज़बूत साझेदारी है और हम समस्याओं को बातचीत के ज़रिए सुलझाना चाहते हैं। इसके पीछे कुछ वजहें भी है। सबसे महत्वपूर्ण वजह तो यह है कि सम्पूर्ण यूरेशिया में जब भी अमेरिका को चीन का सामना होगा तो उसे भारत की सबसे ज्यादा जरूरत होगी न कि भारत को अमेरिका की। यह बात अमेरिका भी जानता है। उसे यह अच्छी तरह से मालूम है कि इस क्षेत्र में भारत अमेरिका का अकेला ऐसा दोस्त है जो चीन को चुनौती देना चाहता ही नहीं बल्कि दे भी रहा है। बेल्ट एण्ड रोड प्रोजेक्ट पर भारत शुरू से ही अपने निर्णय पर अडिग रहा जबकि अन्य देश काफी लचीले दिखे। अब अगर अमेरिका न केवल यूरेशिया में बल्कि हिन्द-प्रशांत में भी मूलभूत संघर्षों पर समाधान चाहता है तो उसे भारत के मामले में प्रतिबंधों को लेकर धैर्य का परिचय देना पड़ेगा। बहरहाल भारत-रूस-अमेरिका ट्रैंगल में भारत का साम्य तो है लेकिन रूस-अमेरिका के बीच साम्य स्थापित नहीं हो पा रहा। इसके बावजूद अमेरिका को चाहिए कि ‘भारत प्रथम नीति’ के तहत आगे बढ़े। ऐसी अमेरिका की आवश्यकता भी है। इस स्थिति में उसे भारत-रूस सम्बंधों को उस नजरिए से देखने की आवश्यकता नहीं है जिसके तहत वह रूस के साथ टर्की या चीन को देख रहा है।

फिलहाल भारत-रूस सम्बंधों से जुड़े अध्यायों की विषयवस्तु बताती है कि सोवियत संघ के पतन के बाद दोनों के रिश्ते ठहराव की छोटी सी अवधि के पश्चात पुनः मौलिकता की तरफ मुड़ गये। अक्टूबर 2000 में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की दिल्ली यात्रा के दौरान ‘डिक्लरेशन ऑफ स्ट्रेटजिक पार्टनरशिप’ से पुनः सम्बंधों में गरमाहट आयी। दोनों देशों ने यह बता दिया कि वे ऐतिहासिकता को जीवंत रखते हुए नयी आवश्यकताओं के अनुरूप आगे बढ़ेंगे। पुनः जब मार्च 2006 में रूसी प्रधानमंत्री मिखाइल फ्रादकोव की भारत यात्रा सम्पन्न हुयी तो विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में कई नये आयाम जुड़े। दोनों देशों के बीच 7 समझौतों पर हस्ताक्षर हुए और रूस ने भारत को यह आश्वासन दिया कि वह तारापुर परमाणु संयंत्र को तत्काल आवश्यक 60 मीट्रिक टन यूरेनियम की आपूर्ति करेगा। इससे पहले भी जब अमेरिका ने पोखरण 2 के बाद भारत पर प्रतिबंद्ध लगा दिया था तब रूस ने तारापुर परमाणु ऊर्जा संयत्र के लिए 58 मीट्रिक टन ईंधन की आपूर्ति की थी। यानि रूस ने सीधे यह संदेश दिया कि शीतयुद्ध के समापन और सोवियत संघ के विघटन के बाद भी वह भारत को एक अहम सहयोगी मानकर सहृदयता के आगे बढ़ने के लिए तैयार है। राष्ट्रपति मेदवेदेव के शासनकाल में रूस ने भारत की युद्धक विमान क्षमता को अपग्रेड और अपडेट करने के साथ-साथ उसमें अभूतपूर्व वृद्धि करने की दिशा में कदम बढ़ाए जो भारत की आवश्यकताओं के अनुरूप थे। विशेषकर 42 सुपर सुखोई-30 एमकेआई लड़ाकू विमान देने पर विचार, भारत में मौजूद 120 सुखोई विमानों को निकट भविष्य में अपडेट और अपग्रेड करके उन्नत बनाना….आदि। इसी समय द्विपक्षीय व्यापार को भी 2025 तक बढ़ाकर 10 बिलियन डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया। इस दौरान दोनों देशों ने अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण व्यापार तथा मालवाहक गलियारों को लेकर भी आगे बढ़ने का निर्णय लिया। 16वें शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी ने रूस को ‘मेक इन इंडिया’ अभियान में महत्वपूर्ण साझेदार बनाने की इच्छा व्यक्त की थी। फलतः भारत और रूस के बीच 16 समझौतों पर हस्ताक्षर हुए। इनमें कामोव 226 हेलीकॉप्टर समझौता, जो कि ‘मेक इन इंडिया’ के तहत पहली बड़ी रक्षा परियोजना बनी। ध्यान रहे कि भारत की तीनों फौजों की इन्वेंटरी (वस्तु सूची) का एक बड़ा हिस्सा रूस से ही प्राप्त होता है। यही नहीं भारत के पास इस समय टैंक, लड़ाकू विमान, पनडुब्बियां और आधुनिक जितने भी विध्वंसक हथियार हैं, वे सभी रूस से ही प्राप्त किए गये हैं।

दिक्कत बस इतनी है कि नयी अर्थव्यवस्था का वाहक या उसके मुख्य ड्राइवर के रूप में स्वयं को स्थापित करने में रूस असफल रहा है, हालांकि वह ब्रिक्स का एक अहम घटक है इसलिए उसकी इकोनॉमिक पोटैंशियल की उपेक्षा नहीं की जा सकती। इधर वह आर्थिक मोर्चे पर कमजोर पड़ता दिख रहा है और यूरोपीय देशों की उस पर त्योरियां चढ़ी हुयी हैं। ऐसे में उसे अपने परम्परागत मित्र के रूप भारत के सहयोग की जरूरत है। वैसे भी भारत रूस को अलग-थलग नहीं देखता बल्कि वह उसे यूरेशिया के रूप में देखता है जिसमें अपने भू-राजनीतिक और भू-अर्थशास्त्रीय मायने हैं। यह बात रूस भी समझ रहा है। इसलिए आने वाले समय में दोनों देश न केवल रक्षा के क्षेत्र में बल्कि भू-राजनीति (जियो-पॉलिटिक्स) और भू-अर्थशास्त्र (जियो-इकोनॉमिक्स) के क्षेत्र में आधारभूत बॉण्डिंग स्थापित कर नयी विश्वव्यवस्था को एक नई दिशा देने का कार्य कर सकते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो दोनों देश ईरान से होकर उत्तर-दक्षिण कॉरिडोर के पूरक के रूप में चेन्नई-व्लादिवोस्तोक पूर्वी समुद्री कॉरिडोर तथा  आर्कटिक क्षेत्र सहित उत्तरी समुद्री मार्ग के जरिए सम्बंधों की एक नई पटकथा लिख सकते हैं।

**************************************************


लेखक

डॉ. रहीस सिंह, एक्सपर्ट विदेश नीति एवं अंतर्राष्ट्रीय संबंध के लेखक हैं। लगभग 25 वर्षों से नियमित कॉलम लेखन एवं पत्रकारिता के साथ-साथ दिल्ली में सिविल सेवाओं से जुड़े प्रतिभागियों के बीच अध्यापन। इसके समानांतर इतिहास, वैश्विक सम्बंध, विदेश नीति आदि विषयों पर करीब दो दर्जन पुस्तकों का लेखन (जिन्हें पियर्सन, मैक ग्रॉ हिल, लेक्सिस नेक्सिस, प्रभात प्रकाशन नई दिल्ली आदि द्वारा प्रकाशित किया गया है।


अस्वीकरण

इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और चाणक्य फोरम के विचारों को नहीं दर्शाते हैं। इस लेख में दी गई सभी जानकारी के लिए केवल लेखक जिम्मेदार हैं, जिसमें समयबद्धता, पूर्णता, सटीकता, उपयुक्तता या उसमें संदर्भित जानकारी की वैधता शामिल है। www.chanakyaforum.com इसके लिए कोई जिम्मेदारी नहीं लेता है।


चाणक्य फोरम आपके लिए प्रस्तुत है। हमारे चैनल से जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें (@ChanakyaForum) और नई सूचनाओं और लेखों से अपडेट रहें।

जरूरी

हम आपको दुनिया भर से बेहतरीन लेख और अपडेट मुहैया कराने के लिए चौबीस घंटे काम करते हैं। आप निर्बाध पढ़ सकें, यह सुनिश्चित करने के लिए पूरी टीम अथक प्रयास करती है। लेकिन इन सब पर पैसा खर्च होता है। कृपया हमारा समर्थन करें ताकि हम वही करते रहें जो हम सबसे अच्छा करते हैं। पढ़ने का आनंद लें

सहयोग करें
Or
9289230333
Or

POST COMMENTS (1)

Pankaj kumar soam

दिसम्बर 03, 2021
Ha aapne sahi kha Russia india ka vafadar dost hai or india ko Russia ki or Russia ko india ki jarurat ha dono ek dusre ke purak hai jay hind Vande Matram

Leave a Comment