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कट्टरवाद के खिलाफ दिल्ली और ढाका की संयुक्त लड़ाई

डॉ शेषाद्री चारी
रवि, 31 अक्टूबर 2021   |   5 मिनट में पढ़ें

भारत का बांग्लादेश में जो भी दांव पर लगा है, वह हिंदू मंदिरों और दुर्गा पूजा से कहीं अधिक है। जो लोग इन हिंदू प्रतीकों पर हमला कर रहे हैं, वे वास्तव में भारत पर हमला कर रहे हैं और इस क्षेत्र में भारत के रणनीतिक हितों को कमजोर कर रहे हैं।

बांग्लादेश में पिछले कुछ समय से ग्रामीण इलाकों में बर्बरता, दंगे, हिंदू पुजारियों की हत्या और हिंदुओं पर हमले हो रहे हैं। इसकी शुरुआत मुख्य रूप से हिंदू आबादी वाले दूरदराज के इलाकों में हमलों से हुई थी। इस तरह की घटनाओं को छुटपुट और संपत्ति से संबंधित स्थानीय कलह के रूप में खारिज कर दिया गया था और कुछ ‘उपद्रवियों’ की गिरफ्तारी के बाद हमलों के ऐसे मामलों को बंद कर दिया गया था। इन घटनाओं को कभी-कभी राजनीतिक रंग भी दिया गया और इसे दो मुख्य राजनीतिक दलों, सत्तारूढ़ अवामी लीग और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) गुटों के बीच आपसी झड़प के रूप में रिपोर्ट किया जाता था। परंतु हमलों की श्रृंखला, उनमें शामिल लोगों की पृष्ठभूमि, इस तरह के हमलों में शामिल लोगों के वैचारिक आधार और कट्टरपंथी इस्लामी संगठन कुछ और ही  बयाँ कर रहे थे। जो दिखाई दे रहा है, उससे कहीं अधिक  है।

हाल के हमलों को कई कारणों से हाईलाइट किया गया, जो ठीक भी है। इस बार हिंदुओं, मंदिरों और दुर्गा पूजा पंडालों पर हमले उनकी प्रचलित कहानी, ‘कुरान का अपमान’ के साथ शुरू हुए। अत्यधिक कट्टरपंथी माहौल में ‘पवित्र पुस्तक का अपमान’ करने की चाल का उपयोग करके दंगा भड़काना ज़्यादा मुश्किल काम नहीं है, खासकर अगर अपराधियों के  राजनीतिक संबंध मजबूत हैं और वे उनके संरक्षण में हैं।

अवामी लीग की सरकार लगभग बीस साल पहले अपनी लोकतांत्रिक साख और अपने धर्म को मानने की स्वतंत्रता के आधार पर भ्रष्टाचार मुक्त सरकार प्रदान करने के वादे पर सत्ता में आई थी। लेकिन उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती इस्लामिक कट्टरपंथियों की थी, जिन्होंने कथित तौर पर उन्नीस हमलों से उन्हें खत्म करने की कोशिश की। यहां तक ​​कि अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर भी बांग्लादेश को पश्चिम से बहुत कम समर्थन मिला। शुरुआत में, अमेरिका बांग्लादेश की आजादी के खिलाफ था और उसने चटगांव बंदरगाह के करीब हिंद महासागर में सातवें बेड़े को तैनात करके भारत को धमकी दी थी। भारत ने तीन मोर्चों पर युद्ध लड़ने के जोखिम के साथ चुनौतियों का सामना किया और अंततः बांग्लादेश को  आजाद करने और 1947 के दुखद विभाजन को रद्द करने में सफल रहा, हालांकि यह आंशिक रूप से ही था।

बेहद लोकप्रिय नेता और स्वतंत्रता संग्राम के पथप्रदर्शक शेख मुजीबुर रहमान के नेतृत्व में  वहाँ की पहली सरकार एक धर्मनिरपेक्ष और उदार सरकार थी। हालांकि संविधान के व्यापक मापदंडों का गठन इस्लामिक सिद्धांतों के आधार पर हुआ था। 1975 में उनकी हत्या  धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के लिए एक बहुत बड़ा झटका थी। 1975 के कुख्यात तख्तापलट में सत्ता हथियाने वाले मेजर जनरल जिया उर रहमान ने इस्लामिक राज्य का मार्ग चुना और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को खारिज कर दिया। कुछ समय के लिए भारत और अन्य स्थानों पर सुरक्षा और रणनीतिक क्षेत्रों  में आशंका थी कि यह आजादी जल्द ही अतीत की बात हो जाएगी और इस्लामाबाद में अपने पूर्व शासकों के पाले में “नया राज्य” वापस आ जाएगा। लेकिन नई राजनीतिक पार्टी, बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) ने समझदारी से पाकिस्तान से एक सुरक्षित दूरी बनाए रखी, लेकिन सरकार का इस्तेमाल, इस्लामी सिद्धांतों पर मजबूती बना कर अवामी लीग के खिलाफ एक राजनीतिक उपकरण के रूप में किया। यह तब हुआ जब इस्लामी कट्टरवाद ने फिर से अपना सिर उठाया और कब्जा करना शुरू कर दिया था। हिंदुओं पर हमले, हिंदू मंदिरों में तोड़फोड़, बौद्धों और ईसाइयों पर हमले और उदार विचारकों पर भी, कभी-कभी सत्ताधारी प्रतिष्ठान के पूर्ण समर्थन के साथ, लगातार किए जाते रहे। यह परीक्षा का समय था। तब शेख हसीना ने सत्ता  में प्रवेश किया और दृढ़ता से इस्लामी कट्टरपंथ को खत्म करने का फैसला किया।

नई दिल्ली ने धर्मनिरपेक्ष विरोधी और लोकतंत्र विरोधी ताकतों के खिलाफ लड़ाई में शेख हसीना को समर्थन देने का फैसला किया। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से नई दिल्ली और ढाका को झटका लगा। जब तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन केरी ने ढाका को सुझाव दिया कि बांग्लादेश के इस्लामी कट्टरपंथी संगठन जमात-ए-इस्लामी के नेताओं के मुकदमों को बंद कर दिया जाना चाहिए। अमेरिका उन्हें युद्ध अपराधियों के रूप में नामित करने के विरुद्ध था, जो निसंदेह वे थे। शेख हसीना को इसका श्रेय जाता है कि उन्होंने अमेरिका की सलाह पर ध्यान नहीं दिया और जमात के उन नेताओं को दंडित किया, जो पाकिस्तानी सेना के साथ बांग्लादेश में नरसंहार का हिस्सा थे, और जिन्होंने बाद में 1971 में भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।

शेख हसीना की मुश्किलें यहीं खत्म नहीं हुईं। पाकिस्तान के आईएसआई ने बांग्लादेश में अपने शीनिगन्स को बढ़ाने और बांग्लादेश में दंगे कराने और तबाही मचाने के लिए कई और कट्टरपंथी संगठन बनाने का फैसला किया। ऐसे ही एक संगठन हिफ़ाज़त-ए-इस्लाम ने 05 मई 2013 को ढाका की घेराबंदी की घोषणा की जिसे हसीना ने अपनी शक्ति से दबा दिया। लेकिन ऐसा लग रहा है कि कट्टरपंथी समूहों की गतिविधियों में कोई कमी नहीं आई है। इस्लामिक कट्टरपंथी समूह हाल के दिनों में कथित तौर पर राजनीतिक दलों, विशेषकर अवामी लीग सरकार पर अपना दबाव बढ़ा रहे हैं और राजनीतिक जुड़ाव के नियमों को बदलने की मांग कर रहे हैं। शासन में इस्लामी सिद्धांतों का दबाव बढ़ रहा है। भारत के साथ अर्थव्यवस्था और सांस्कृतिक जुड़ाव को तोड़ने का दबाव भी बढ़ रहा है।

बांग्लादेश की पचासवीं वर्षगांठ समारोह में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की ढाका यात्रा के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए थे। मोदी के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व करने वाले दशक पुराने कट्टरपंथी इस्लामी संगठन हिफाजत-ए-इस्लाम (एचइआई) ने सरकार को तेरह सूत्रीय मांगों की सूची पहले ही दे दी है। ये मांगें तालिबान को कट्टरपंथ का नौसिखिया बना देंगी। वास्तव में हिफाजत-ए-इस्लाम और पाकिस्तान के तहरीक-ए-लब्बैक के बीच एक मजबूत संबंध है, जो ईशनिंदा कानूनों और कई अन्य कट्टरपंथी इस्लामी एजेंडों के लिए   इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं। राजनीतिक लाभ की वजह से ढाका ने अपने ‘धर्मनिरपेक्ष’ रुख को कम कर दिया है। इन समूहों के दबाव में, गैर-मुसलमानों की सत्रह लोकप्रिय कहानियों और कविताओं और डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत को स्कूली पाठ्यक्रम से हटा दिया गया है। एक साड़ी पहने महिला की तलवार पकड़े हुए और सुप्रीम कोर्ट की इमारत में सजी ‘लेडी जस्टिस’ को दर्शाने वाले स्वरूप को हटा दिया गया है, क्योंकि साड़ी और मूर्ति दोनों पर एचईआई- ने आपत्ति की और उसे “गैर-इस्लामी” माना था। यह मूर्ति स्थानीय कलाकार मृणाल हक द्वारा अदालत के सामने दिसम्बर में स्थापित की गई थी, और ग्रीक देवी थेमिस के पारंपरिक चित्र के समान, तलवार और तराजू पकड़े हुए  एक महिला को साड़ी में दर्शाया गया है। हालांकि मूर्तिकार ने खुद को स्पष्ट करते हुए कहा, “यह एक बंगाली महिला है, जिसने साड़ी पहनी हुई है। यह ग्रीक से संबंधित नहीं है। यह न्याय के प्रतीक के अलावा और कुछ नहीं है।”

इस विषय में दो अलग-अलग मत हो सकते हैं कि हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों पर हमले बंद होने चाहिए और अपराधियों को दंडित किया जाना चाहिए। लेकिन इसे केवल ढाका पर नहीं छोड़ा जा सकता और न ही वर्तमान सरकार की आलोचना से इसे हासिल किया जा सकता है। बांग्लादेश में हिंदुओं पर हाल के हमलों के पीछे की रणनीति को पूरी तरह से समझना होगा। ये हमले ढाका में शासन परिवर्तन के अंतिम उद्देश्य को प्राप्त करने और नई दिल्ली और ढाका के बीच सौहार्द को नष्ट करने वाली रणनीति की एक सतत श्रृंखला का हिस्सा हैं, जो अंततः क्षेत्रीय संतुलन और आर्थिक विकास को बहुत कमजोर कर देगा, और इसमें शामिल देशों को नुकसान होगा। ऐसी स्थिति से स्वाभाविक रूप से बीजिंग को फायदा होगा, जो अपने प्रभाव के क्षेत्र में भारत द्वारा पर्याप्त स्थान हासिल करने से परेशान है। तत्काल और विस्तारित पड़ोस में भारत के सामरिक और सुरक्षा हितों को उन कट्टरपंथी तत्वों द्वारा कमजोर नहीं करने देना होगा, जिनके इस्लामाबाद और बीजिंग के साथ संबंध हो सकते हैं।

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References-

[1] https://thedailyguardian.com/how-sheikh-hasina-has-transformed-the-lives-of-people-in-bangladesh/

[2] https://thedailyguardian.com/how-sheikh-hasina-has-transformed-the-lives-of-people-in-bangladesh/

[3] https://thediplomat.com/2021/05/bangladesh-cracks-down-on-hardline-islamist-group/

[4] https://www.theguardian.com/world/2017/may/26/lady-justice-statue-bangladesh-removed-islamist-objections


लेखक
डॉ शेषाद्रि चारी विदेश नीति, रणनीति और सुरक्षा मामलों पर टिप्पणीकार हैं। वह फोरम फॉर इंटीग्रेटेड नेशनल सिक्योरिटी (FINS) के महासचिव और अंग्रेजी साप्ताहिक आयोजक के पूर्व संपादक हैं।

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