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इस सदी की भयानक आपदा की उत्पत्ति का कोई पता नहीं

कंवल सिब्बल
शुक्र, 30 जुलाई 2021   |   5 मिनट में पढ़ें

बुहान के वायरस द्वारा फैली सर्वव्यापी महामारी ने विश्व के सभी देशों को भयानक क्षति पहुंचाई है जो एक बहुत बड़ी विडंबना है! क्या यह वायरस प्राकृतिक है या बुहान की एक प्रयोगशाला से निकलकर फैला है यह एक बहस का विषय है और इस बहस के किसी निर्णय तक पहुंचने की कोई संभावना नहीं है ! चीन कभी यह स्वीकार नहीं करेगा कि यह वायरस उसकी प्रयोगशाला से फैला है, क्योंकि उसकी स्वीकारोक्ति उसकी राजनीतिक छवि को भारी क्षति पहुंचाएगी ! इससे उसकी व्यवस्था भी बदनाम हो जाएगी जिसे चीन पश्चिमी देशों की व्यवस्थाओं से बेहतर मानता है ! यदि चीन स्वीकार करता है तो उसकी कम्युनिस्ट पार्टी की छवि और उनके राष्ट्रपति चिन्ह कि विश्व में छवि और सम्मान को ठेस लग सकती है ! इसके अतिरिक्त यदि चीन स्वीकार कर लेता है तो चीन के विरुद्ध बहुत बड़े क्षतिपूर्ति के विवाद उठेंगे, राष्ट्रपति ट्रंप ने तो 10 बिलियन डालर के हरजाने का आंकड़ा चीन पर लगा भी दिया है !

यदि यह सिद्ध हो जाता है कि यह वायरस चीन के प्रयोगशाला से फैला है तो फिर चीन को यह स्पष्टीकरण देना होगा उसने इसकी सूचना जल्दी से जल्दी विश्व स्वास्थ्य संगठन को क्यों नहीं दी ! चीन द्वारा सूचना को दबाने के कारण इसका संक्रमण चारों तरफ फैला ! क्योंकि बुहान के निवासी बड़ी संख्या में दुनिया के अन्य देशों में गए जहां वे इस वायरस को अपने साथ ले गए ! शुरू में चीनी सरकार इस वायरस के तथ्यों को छुपाती रही जिसके कारण विश्व स्वास्थ संगठन इस महामारी की विश्वव्यापी घोषणा नहीं कर सका ! पूरे विश्व को भुलावे में डालने के लिए चीन कहता रहा कि इस वायरस की उत्पत्ति कई अन्य देश मैं हुई है और उसे भी बाद में इसका पता लगा है ! उसके अनुसार इसकी उत्पत्ति दक्षिण एशिया के किसी देश में हो सकती है, और चीन यह रिपोर्ट छापता रहा की आयातित डिब्बाबंद खाने थाने के द्वारा चीन में यह वायरस फैला है ! और यह सब तरह-तरह के बहाने विश्व को धोखा देने के उद्देश्य से करता रहा !

चीन ने उसके विरुद्ध उठने वाले सवालों तथा इन सवालों को उठाने वाले देशों को चुप कराने के लिए अपनी आर्थिक शक्ति का प्रयोग इन देशों को आर्थिक रूप से सजा देने के लिए किया ! चीन के इस आर्थिक शक्ति प्रदर्शन और सजा का पहला शिकार ऑस्ट्रेलिया था जब उसने इस महामारी की पारदर्शी जांच की मांग उठाई थी ! चीन ने ऑस्ट्रेलिया पर बहुत से आर्थिक प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया जिसके द्वारा वह एक ऐसा उदाहरण पेश पैदा करना चाहता था कि जब वह एक बड़े देश पर भी प्रतिबंध लगा सकता है जिसके साथ उसके बड़े व्यापारिक संबंध है तो विश्व के देशों को इस से सीख लेनी चाहिए और पारदर्शी जांच की आवाज में अपनी आवाज नहीं मिलानी चाहिए ! चीन की आर्थिक इकाइयां पूरे विश्व के देशों में होने और विश्व के ज्यादातर देशों के व्यापार का बड़ा हिस्सेदार होने तथा एक बेल्ट एक रोड परियोजना में विश्व के विकासशील देशों को अपने चंगुल में लेने के कारण चीन ने विश्व के सब देशों की जांच की मांग को दबा दिया है ! इसमें केवल अमेरिका को छोड़कर यूरोपीय देश भी आर्थिक कारणों से ही इस वायरस के फैलने की स्वतंत्र जांच की मांग नहीं कर रहे हैं ! यह बड़े दुर्भाग्य का विषय है कि इस सदी की सबसे बड़ी महामारी जिसकी भारी कीमत पूरा विश्व चुका रहा है के बारे में पूरी विश्व बिरादरी इसकी जांच और भविष्य में इसकी रोकथाम के लिए आवाज उठाने में अपने आपको असहाय पा रही है !

इस विषय पर विश्व में उठने वाले विश्व विवादों को शांत तथा अपने पक्ष में करने के बाद चीनने विश्व स्वास्थ्य संगठन की जांच टीम का वाहन में आने और अपना पूरा सहयोग देने का वायदा करके दिखावा किया है कि वहजांच में पूरे विश्व के साथ है ! इस दिखावे के बावजूद चीन ने जांच दल पर सख्त प्रतिबंध लगाए जिनके द्वारा उसने दल को वहां की जीवाणु प्रयोगशाला में नहीं जाने दिया और इस दल को कुछ थोड़े से ही दस्तावेज जांच के लिए उपलब्ध कराएं ! उसने जांच में देरी करके पूरा 1 साल का समय ले लिया जिसमें उसने ज्यादातर सबूतों को नष्ट कर दिया और अपने आप को इस प्रकार तैयार कर लिया जिससे जांच दल को उसके विरुद्ध कोई सबूत ना मिल सके ! क्योंकि विश्वास संगठन की इस टीम के सदस्यों का संबंध पहले से ही चीन की बुहान प्रयोगशाला से था इसलिए यह जांच दल किसी निर्णय पर नहीं पहुंच सका !

अमेरिका में डेमोक्रेटिक राजनीतिक दल के सदस्य इस वायरस के फैलाव में चीन के हाथ होने का आरोप उस पर नहीं लगाना चाहते ! क्योंकि वह एशिया अमेरिका समुदाय के विरुद्ध विश्व में घृणा और द्वेष के अपराध नहीं चाहते ! इस दल के सदस्य राष्ट्रपति ट्रंप के साथ अपने राजनीतिक मतभेद को भी उजागर कर रहे हैं ! अमेरिका के राष्ट्रपति बिडेन द्वारा एशियन तथा अमेरिकी नागरिकों की सुरक्षा के लिए जारी किए गए अध्यादेश की प्रशंसा करनी होगी जिसमें उन्होंने अपनी सामाजिक सोच का प्रदर्शन किया है ! यह सब यह दिखाता है कि बुहान वायरस का सामाजिक रूप मैं कितना राजनीतिकरण हुआ है ! इससे इस वायरस की उत्पत्ति जैसे मुख्य विषय से दुनिया का ध्यान हट गया है और चीन अपनी जवाबदारी से बच निकला है ! यहां पर सबसे ज्यादा खराब बात यह है कि वायरस के वैरिंट की उत्पत्ति को भारत में दिखाने का प्रयास अंतरराष्ट्रीय मीडिया कर रहा है ! जबकि भारतीय मूल के काफी लोग इंग्लैंड अमेरिका में है ! पश्चिमी देशों के नेता जो चीन का इस वायरस के लिए नाम लेने से बच रहे हैं वह भारत के विरुद्ध उठने वाली आवाजों को नकारने का कोई प्रयास नहीं कर रहे हैं ! अब विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस वायरस तथा इसके वैरीअंट को ग्रीस देश के पत्र के बाद भारतीय वेरिएंट का रूप मानकर इसे डेल्टा नाम दे दिया है ! जबकि पश्चिमी मीडिया विश्व स्वास्थ संगठन के इस कथन को नहीं मान रहा हैQ! सूचनाएं मिल रही है कि नया वेरिएंट ज्यादा घातक है और इससे भारत की प्रतिष्ठा को भारी क्षति पहुंच रही है ! उसके साथ ही भारतीय लोगों के द्वारा कोरोना की दूसरी लहर को भारत द्वारा सही प्रकार से नई संभालने में बरती गई कोताही की बात कहकर यह लोग मीडिया को भारत को और बदनाम करने में मदद दे रहे हैं !

बुहान प्रयोगशाला से वायरस के निकलने के रोजाना नए नए सबूत आने से राष्ट्रपति बिडेन ने सीआईए के द्वारा इस वायरस के पैदा होने के बारे में जांच के आदेश दे दिए हैं ! और उन्होंने इसकी रिपोर्ट 90 दिनों में मांगी है ! कहावत है कि जब तक धुआं छोड़ती बंदूक नहीं मिलती तब तक परिस्थिति का सबूत भी मान्य नहीं होते ! इसी प्रकार पुख्ता सबूतों के द्वारा ही बुहान प्रयोगशाला सें वायरस के निकलने को सिद्ध किया जा सकता है ! इस जांच को उलझाने की संभावना इस तथ्य से है कि अमेरिका के वैज्ञानिकों और उसकी राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्था और यूरोप के संस्थानों के संबंध चीन की बुहान प्रयोगशाला से रहे हैं ! चीन का आकर्षण इतना ज्यादा है कि अमेरिका तथा यूरोप के लोग चीन की राजनीतिक विचारधारा की परवाह न करते हुए उससे संबंध रखना चाहते हैं ! जबकि विश्व में चीन प्रतिद्वंदी बनकर उभरा है और उसकी पीएलए के संबंध बुहान प्रयोगशाला से भी हैं ! जीवाणु और वायरस पर शोध चलता रहा है और चीन द्वारा शोध को बायोलॉजिकल हथियार के रूप में प्रयोग करने की संभावना की पूरी अनदेखीहोती रही है और अमेरिका ने भी इस प्रकार के शोध किए हैं और इसको वहां के वैज्ञानिक डॉक्टर फोनसी ने सही ठहराया है ! उपरोक्त तत्वों के द्वारा सामने आया है कि अमेरिका भी जीवाणुओं पर शोध चीन के साथ कर रहा था इसलिए चीन अपनी गतिविधियों के बावजूद निश्चित है क्योंकि वे अमेरिका की संलिप्तता सिद्ध करने की स्थिति में है !

इतनी गंभीर मानवीय समस्या पर चीन द्वारा विश्व के अन्य देशों का साथ न देने को ध्यान में रखते हुए करोना महामारी से प्रभावितों विश्व के समस्त देशों को एकत्रित होकर चीन को इसके लिए जिम्मेदार ठहराना चाहिए और इस प्रकार मानवता के लिए खतरनाक बायोलॉजिकल शोधों को अंतरराष्ट्रीय देखरेख और पारदर्शी करने की मांग उठानी चाहिए !


लेखक
कंवल सिब्बल एक प्रतिष्ठित राजनयिक हैं जो भारत सरकार के विदेश सचिव के रूप में सेवानिवृत्त हुए हैं। 2017 में भारत सरकार ने उन्हें सार्वजनिक मामलों के क्षेत्र में उनकी विशिष्ट सेवाओं के लिए पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया।

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POST COMMENTS (1)

Abhishek Saxena

अगस्त 07, 2021
cheen ke business ko takkar Humko he deni hogi, Baaki countries ko farak nahi padta kyunki unka koi itihas astitva nahi hai

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