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‘हाइब्रिड’ (मिश्रण या भ्रम) रणनीति में जब एक राष्ट्र शामिल होता है, तो उसका इरादा विरोधी को परेशान करना, तोड़ना, निराश करना और उसे हराना होता है। इसे हासिल करने के लिए वह कोई कोर-कसर नहीं छोड़ता। किसी भी कमजोर कड़ी को तलाशने या बनाने के लिए हर उपलब्ध क्षेत्र का उपयोग किय़ा जाता है।
पाकिस्तान प्रायोजित लंदन स्थित कानूनी कंपनी स्टोक व्हाइट ने 18 जनवरी 2022 को ब्रिटिश पुलिस से आवेदन किया जिसमें भारत के गृह मंत्री और सेना प्रमुख के साथ-साथ कुछ वरिष्ठ भारतीय सेना अधिकारियों और सरकारी अधिकारियों को जम्मू-कश्मीर में उनके द्वारा किये गये कथित अपराधों में उनकी कथित भूमिका के लिए गिरफ्तार करने की मांग की गई। पाकिस्तान की ओर से इस तरह की हरकतें हास्यास्पद लग सकती हैं लेकिन इसे कभी कम करके नहीं आंका जाना चाहिए।
हाइब्रिड रणनीति का इरादा एक कथित विवाद को जीवित रखने के लिए कूटनीति और छल के जरिये दुनिया को समय-समय पर याद दिलाते रहना है। इसके लक्षित आबादी में असंतोष को बढ़ावा देने के उद्देश्य के लिए भी किया जाता है। इसका उद्देश्य विरोधियों को शिकस्त देने के लिए संघर्ष को बरकरार रखने की होती है। इन प्रयासों में सूचना और संचार माध्यम प्रमुख भूमिका निभाते हैं।
पाकिस्तान ऐसी कार्रवाइयां करने से कभी नहीं हिचकिचाता, लेकिन वे सभी नकार दी जाती हैं क्योंकि आधिकारिक हाथ कभी प्रकट नहीं होते। यह पहली बार नहीं है कि पाकिस्तान के सूचना प्रबंधकों, इंटर सर्विस पब्लिक रिलेशंस (आईएसपीआर), जिसे अफगानिस्तान और जम्मू-कश्मीर में विवादों से निपटने का काफी अनुभव है, ने पाकिस्तान के वक्तव्यों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अधिक से अधिक फैलाने की कोशिश की है।
गौरतलब है कि 2011 में गुलाम नबी फई, ने संयुक्त राज्य अमेरिका में कश्मीरी अमेरिकी परिषद (केएसी) की स्थापना की थी और कश्मीरी अलगाववाद की ओर से पैरवी की थी, ने आईएसआई के इशारे पर अपने अभियान को फिर से मजबूत किया। वह हिजबुल मुजाहिदीन प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन का दोस्त था। एफबीआई के अनुसार, केएसी कश्मीर पर संगोष्ठियों, सम्मेलनों और व्याख्यानों की व्यवस्था करेगा, विशेष रूप से एक वार्षिक तथाकथित “कश्मीर शांति सम्मेलन” जिसे “भारतीय, पाकिस्तानी और कश्मीरी लोगों के लिए एक स्वतंत्र मंच” के रूप में प्रस्तुत किया गया था।
हालांकि, अमेरिकी न्याय विभाग ने अदालत में साबित कर दिया कि पाकिस्तानी सेना, विशेष रूप से आईएसआई ने वक्ताओं की सूची को मंजूरी दी और पाकिस्तानी दृष्टिकोण से कश्मीर के मुद्दे को उजागर करने के लिए फई को बढ़ावा दिया। हाल के प्रयास भी कुछ ऐसे ही हैं; अंतर्राष्ट्रीय ध्यान आकर्षित करना और भारतीय कथन के बारे में नकारात्मकता फैलाना।
अमेरिकी प्रतिबंधों की अवधारणा को पाकिस्तानी आंशिक अनुसरण कर रहे हैं। जब अमेरिका लक्षित देशों के कुछ अधिकारियों पर प्रतिबंध लगाता है तो वे स्वतंत्र रूप से यात्रा नहीं कर पाते और उत्पीड़न के आरोप लगाते हैं। भारतीय अधिकारियों, यहां तक कि गृह मंत्री और सेना प्रमुख के खिलाफ कानूनी शिकायतें दर्ज करके, पाकिस्तान इस उम्मीद के साथ प्रयास कर रहा है कि अदालतें सख्ती से गुजरेंगी और यूके की आव्रजन प्रणाली उचित ध्यान देगी। उनका विचार यह है कि इसे इंटरपोल के दायरे में फैलाया जाए ताकि अधिक से अधिक अंतरराष्ट्रीय प्रभाव डाला जा सके। बेशक, ये पाकिस्तानी एजेंसियों के ख्वाब हैं जो भारत की छवि को धूमिल करने के प्रयास में भारतीयों की क्षमता को कम करके आंकती हैं। फिर भी भारत को अपने पक्ष को और मजबूत करने की आवश्यकता है।
भारत में रहकर टेलीविजन पर भारतीय एंकरों को सुनना और देखना, या रणनीतिक विश्लेषकों द्वारा हमारे सैनिकों द्वारा किये गये कार्यों को पूर्ण औचित्य के साथ पेश करने से जनता को स्पष्ट रूप से हमारा दृष्टिकोण मिलता है। साथ ही उनके लिए यह समझना मुश्किल है कि हमारे वक्तव्यों के खिलाफ में विरोधियों द्वारा घटनाओं को एक और तरीके से पेश किया जा रहा है।
हमारे आख्यान (वक्तव्य) और कुछ नहीं बल्कि तथ्यों और विचारों को तर्कसंगत रूप में पेश करने का तरीका है। एक वक्तव्य को शब्दों के प्रयोग से और विरोधी तर्क द्वारा कई तरीके से पेश किया जा सकता है। जम्मू-कश्मीर के मुद्दे को जम्मू-कश्मीर की जनता के साथ-साथ दुनिया के मन में एक विवाद के रूप में जिंदा रखना पाकिस्तान की मंशा है। किस तरह से दुनिया की निगाह जम्मू कश्मीर की ओर आकृष्ट किया जाय, उसके लिए पाकिस्तानी ताना-बाना बुनते रहते हैं।
इस तरह के ताना-बाना बुनने के लिए कौन किसे पट्टी पढ़ा रहा है, यह निश्चित नहीं है। पाकिस्तान का रणनीतिक साझेदार और सहयोगी चीन इसे अपनी युद्ध रणनीति के तहत हर समय करता रहता है। कानूनी युद्ध, मीडिया युद्ध और मनोवैज्ञानिक युद्ध, चीन की ‘तीन युद्ध रणनीतियां’ हैं, जिनमें से अधिकांश दक्षिण चीन सागर के आसपास के देशों के खिलाफ उपयोग किया जाता है, जहां चीन अपना कानूनी दावा स्थापित कर रहा है, और भारत की उत्तरी सीमा पर गांवों को बसाने के जरिये मानचित्रों पर नाम बदलने का काम कर रहा है।
सभी को दो तथ्यों का जानना आवश्यक है। पहला, जम्मू-कश्मीर के मुद्दे को ऐतिहासिक तरीके से उलझा कर और जटिल बना दिया गया है और पाकिस्तान के सूचनात्मक हमले के जरिये इसे और बढ़ा दिया है।
भारतीय वक्तव्य बिलकुल स्पष्ट है। सर्वप्रथम संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव अब मान्य नहीं हैं, जब पाकिस्तान ने 1972 के शिमला समझौते के तहत द्विपक्षीय परामर्श के लिए अपनी सहमति दे दी और इस मुद्दे के समाधान के रूप में उपयोग करने के लिए सहमत हो गया। इस मुद्दे को हल करने के लिए पाकिस्तान द्वारा बार-बार बल प्रयोग करने से संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों को अमान्य कर दिया गया है। भारत हमेशा मुद्दों पर चर्चा के लिए तैयार है; हालाँकि यह तब तक बातचीत का सहारा नहीं लेगा जब तक जम्मू-कश्मीर में प्रायोजित छद्म युद्ध चलता रहेगा।
पिछले तीस वर्षों से जम्मू कश्मीर में जो भी हिंसा देखने को मिली है वह विशुद्ध रूप से परदे के पीछे से पाकिस्तान और आतंकवादी नेटवर्क के कारण हुई है, जिसके कारण इस क्षेत्र में जन-जीवन का नुकसान हुआ है। अगर पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों की बात करता है, तो यह स्पष्ट है कि जनमत संग्रह करने के लिए अपनी सेना को वापस नहीं लेने से गलती हुई, जो प्रस्ताव का एक हिस्सा था। 26 अक्टूबर 1947 को जम्मू-कश्मीर के महाराजा द्वारा हस्ताक्षरित विलय पत्र ने कानूनी रूप से इस क्षेत्र का नियंत्रण भारत को सौंप दिया, यह एक स्थिति है जो आज तक बरकरार है।
पाकिस्तान ने राज्य में अशांति उत्पन्न करने के लिए सड़कों पर हिंसा और आतंकवाद सहित हाइब्रिड रणनीति का उपयोग किया है और इस तरह वह अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकर्षित करना चाहता है। भारत के दृष्टिकोण के पक्ष में कई बातों का समर्थन है जबकि कुछ मुट्ठी भर राष्ट्र पाकिस्तान के विवाद का समर्थन करते हैं। बड़े पैमाने पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का मानना है कि द्विपक्षीय वार्ता के जरिये समाधान संभव है, बशर्ते पाकिस्तान हिंसा के जरिये भारत को परेशान करना छोड़ दे।
पाकिस्तान का सूचना तंत्र दुनिया भर में फैला हुआ है; यह इसकी हाइब्रिड रणनीति का हिस्सा है। जम्मू-कश्मीर पर अपने वक्तव्यों के समर्थन में वह विभिन्न प्रभावशाली लोगों, मीडिया और राजनीतिक व्यक्तित्वों के माध्यम से अक्सर दुनिया के महत्वपूर्ण शहरों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कार्यक्रम आयोजित करता है। मेरे अनुभव के अनुसार शिमला समझौते को बड़ी चतुराई से टाला जा रहा है और अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप के लिए एक स्पष्ट मामला बनाया जा रहा है। आईएसपीआर महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों और महत्वपूर्ण विचारकों और संगोष्ठियों पर भी नजर रखता है। यह इस तरह की सभाओं में अपने सेवानिवृत्त राजनयिकों और सैन्य अधिकारियों की उपस्थिति भी सुनिश्चित करता है ताकि आख्यानों पर राय बनाने और लोगों को प्रभावित करने के लिए अपनी बात रखी जा सके।
आधिकारिक राजनयिक क्षेत्र में भारत के प्रयास प्रशंसनीय रहे हैं, विशेष रूप से 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 का संशोधन, जो पाकिस्तान के प्रयासों को बेअसर करने और भारतीय रुख को स्पष्ट करने के लिए बेहतरीन कदम है। हमें इस मामले में अपने दृष्टिकोण में रूढ़िवादी नहीं होना चाहिए क्योंकि सूचना तंत्र का खेल भविष्य में और विस्तृत होने की संभावना है। इसके लिए और अधिक संरचनाओं की आवश्यकता है क्योंकि यह सिर्फ राजनयिक या खुफिया एजेंसियों का क्षेत्र नहीं रहने वाला, इसके लिए और अधिक समग्र नीति की आवश्यकता है।
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तस्वीर – भारतीय सेना बारामूला, कश्मीर के एक कश्मीरी युवक जनाब मकबूल शेरवानी के लिए प्रार्थना का आयोजन करती है, जिसने बहादुरी से पाकिस्तानी हमलावरों का मुकाबला किया और बाद में 1947 में उनके द्वारा बेरहमी से मारा गया।
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