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भारत-इजरायल संबंध: इस पर कोई “दाएं”, कोई “बाएं” नहीं!

डेनियल कारमोन
शनि, 14 अगस्त 2021   |   6 मिनट में पढ़ें

वर्ष 2014में इज़राइल की संसद के चुनावो के अवसर पर जब भारत में इज़राइल के राजदूत के रूप में सेवा करते समय, भारत सरकार के एक वरिष्ठ प्रतिनिधि ने मुझसे संपर्क किया, जिन्होंने पूछा कि क्या चुनावों के प्रतीक्षित परिणाम हमारे दोनों देशों के बीच विकासशील द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित कर सकते हैं? मेरे वार्ताकार को जबाबदेते हुए  मुझे आश्चर्य नहीं हुआ। चुनाव परिणामो का निश्चित रूप से भारत-इजरायल संबंधो पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। अपने आकलन के समर्थन में मैंने  आपसी संबंधों के अनेक पहलुओं जैसे राजनीतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और रणनीति पहलुओं का उल्लेख किया इजरायलकीदृष्टि में जिन पर राजनीतिक और लोकप्रिय हलकों में आपसी सहमति हैं।

आज, छह साल बाद, जब यरूशलेम में एक नए प्रशासक ने कार्यभार संभाला,  तो मेरा यह विश्वास जारी  रहा कि भारत-इजरायल के संबंध और मैत्री जो मजबूत थी, है और बढ़ती साझेदारी एवं दोस्ती तथा इजरायल की आम सहमति से आगे भी  दृढ़ता सेजारी रहेगी।

आधिकारिक भारतअपनी जीवंत ट्विटर कूटनीति, अपने नए इजरायली समकक्षों के लिए प्रधान मंत्री मोदी और विदेश मंत्री जयशंकर के गर्मजोशी भरे संदेशों के साथ, नई इजरायली सरकार को गले लगाने वाले पहले देशो में से एक था। ये न केवल एक व्यक्तिगत संबंध या पारंपरिक राजनयिक प्रोटोकॉल का प्रतीक हैं, बल्कि दोनों देशों के बीच विशेष संबंधों, उनकी स्थायित्व, गहराई और निरंतरता की मान्यता का प्रमाण भी हैं।

विदेश मंत्री और उनके इजरायली समकक्ष, एफएम लैपिड के बीच हुए फोन पर बातचीत में इजरायल में नई सरकार के लिए गर्मजोशी से भारतीय “स्वागत” को अपना लिया। ये मुद्रा पारस्परिक हित के विभिन्न क्षेत्रों जैसे कृषि, जल प्रबंधन, व्यापार, लोगों का आपसी संपर्क, विज्ञान, प्रौद्योगिकी,स्वास्थ्य के साथ-साथ रक्षा, अंतरिक्ष,मातृभूमि सुरक्षा, साइबर सहयोग और अन्य में सफलता के अनेक उदाहरणओ के साथ तीन दशकों के बढ़ते सहयोग और साझेदारी को दर्शाते हैं। भारत इस्राइल को अपने शीर्ष मूल्य के “तकनीकी भागीदारों” में से एक के रूप में देखता है, जिसमे दोनों देशो की सरकारों और व्यक्तियों को आपसी लाभ प्रदान किये जा सके।वर्ष2018 के बाद से  संबंधों को आधिकारिक तौर पर “रणनीतिक साझेदारी” के रूप में परिभाषित किया गया है।

मेरा मानना है कि अपने सबंधो को पूरी क्षमता के साथ जीवंत रखने और भारत-इजरायल द्विपक्षीय संबंधों के सामरिक महत्व के लिए हमारे दोनों देशों को  एक “राष्ट्र-से-राष्ट्र बहुदलीय दृष्टिकोण” की आवश्यकता है, चाहे दिल्ली या यरुशलम में सत्ता में  कोई भी सरकार हो । इसलिए, नई सरकार के पिछले सप्ताह नयी सरकार बनने के बाद, इज़राइल के भीतर  भारत के प्रति निरंतर सहमति बननी रही  इस पर कोई “दाएं”, कोई “बाएं” नहीं …

दिल्ली में अपने कार्यकाल के दौरान, मैंने यथा संभव अधिक से अधिक राजनीतिक और सामाजिक हलकों के प्रतिनिधियों के साथ संवाद स्थापित करने और उनसेबात चीत करने का प्रयास किया। हम सभी राजनीतिक दलों, राष्ट्रीय और राज्य स्तर के प्रतिनिधियों सहित समाज के सभी गुटों के साथ जुड़ रहे, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि दोनों देशों के बीच बढ़ती साझेदारी भारतीयों के लिए अधिक से अधिक प्रासंगिक, राष्ट्रव्यापी और स्थायी होगी।

जैसा कि आपसी विचार विमर्श के  अनेक मामलो मेंसकारात्मक, मैत्रीपूर्ण और सौहार्दपूर्ण होने वाली वार्ताओ में भी, कभी-कभी अंतराल और असहमति हो जाती है । इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि भारत में मेरी बातचीत में, फिलीस्तीनियों और ईरान से संबंधित प्रश्न अक्सर स्पष्ट चर्चा के विषय थे। फिर भी, बहुदलीय पहुचभारत के बड़े वर्ग को आपसी लाभ वाली विकसित सांझेदारी से परिचित कराने में सहायक हुए जो एक ओर बेहतर समझ – या कम से कम – इजरायल की संवेदनशीलता और जरूरतों के बारे में जानकारी देने में भी सहायक हुई।

मेरे आधिकारिक विदेश मंत्रालय के वार्ताकारों (और अन्य लोगों को) के लिए मेरा निरंतर संदेश था: कि इजरायल तब तक फिलिस्तीनीयो के लिए भारत के पारंपरिक समर्थन का सम्मान करता रहेगा ,जब तक कि हमारे द्विपक्षीय संबंध प्रभावित नहीं होते हैं। वर्ष 2014की गर्मियों के दौरान दिल्ली द्वारा खुले तौर पर अपनाई गई भारत सरकार की ऐतिहासिक नीति ‘डी-हाइफ़नेशन’, वास्तव में ‘ज़ीरो सम गेम’ की  पुरानी दुनिया को पीछे छोड़ने के संबंध में थी,जो इज़राइल के प्रति अधिक सूक्ष्म दृष्टिकोण के पक्ष में थी।

यह नीति भारत को फिलीस्तीनियों के साथ इसकी अति आवश्यक मित्रता को स्वतन्त्र रूप से विकसित करने में प्रमुख भूमिका निभाएगी । इस समीकरण से दोनों पक्षों को एक साथ बनाए रखने के लिए एक बहुत ही सूक्ष्म, नाजुक राजनयिक संतुलन की आवश्यकता है।

यह बेहतरीन संतुलन वर्ष 2021 के मध्य में चुनौती पूर्ण हो गया, जब हमास के आतंकवादी संगठन एक बार फिर सक्रिय हुआ,हिंसक घटनाये हुई, और एक बार फिर गाजा से इजरायल की ओर हजारों रॉकेट छोड़े जाने लगे । आतंकवादी संगठनों की परंपरा का पालन करते हुए, हमास ने भय और विनाश का वातावरण बनाने के लिए इज़राइल में नागरिक आबादी को निशाना बनाया। हमास ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त नेतृत्व और फिलिस्तीनी लोगों के प्रतिनिधि के रूप में फिलीस्तीनी प्राधिकरण (पीए) की भूमिका को चुनौती देते हुए युद्ध के वक्त में फिलीस्तीनी  लोगो का प्रतिनिधित्व करने का लक्ष्य बनाया ।वर्ष 2005 में इजराइल की वापसी के बाद एक वास्तविक तख्तापलट डी’एटैट में पीए को हिंसक रूप से बाहर करने के बाद अंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा निर्धारित तीन शर्तों को खारिज करते हुए और पीए की अवहेलना करते हुए, इसने गाजा पट्टी पर कब्जा कर लिया, और व्यावहारिक रूप से एक “हमस्तान” बना लिया। कुछ सप्ताह की पूर्व घटनाओ को फिलीस्तीनी शिविर के बीच आंतरिक शक्ति युद्ध के रूप में भी देखा जा सकता है।

इस बात पर जोर दिया जाना चाहिए कि हमास इजरायल के साथ कोई समझौता नहीं करना चाहता, लेकिन खुले तौर पर घोषणा करता है कि उसका रणनीतिक उद्देश्य इजरायल को नष्ट करना है। तथ्य यह है कि हमास को ईरान द्वारा वित्त पोषित किया जाता है – जो एक बड़े मध्य पूर्व को अस्थिर करने वाला और खुद इजरायल के विनाश का उत्साही समर्थक है। इसकी उपेक्षा नही की जा सकती।  मैं सुरक्षित रूप से कह सकता हूं कि हमास ने कुछ देशों द्वारा, एक आतंकवादी संगठन के रूप में अपना पदनाम दिये जाने को सिद्ध’किया है।

पिछले मई में हमास द्वारा शुरू की गई ताज़ा हिंसक घट्नाओ के दौरान, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में से अनेक ने स्पष्ट रूप से खुद को हमास के खिलाफ बताया और आतंक के कृत्यों के खिलाफ इजरायल के आत्मरक्षा के अधिकार का समर्थन किया। भारत ने न्यूयॉर्क में दिए गए अपने बयानों के माध्यम से और जिनेवा में एक वोट से अलग रह के “फिलिस्तीनी कारण का समर्थन” और इस लड़ाई के बीच के अंतर को स्पष्ट किया और गाजा से रॉकेट हमलों पर बल दिया । इसमेहमास या उसके द्वारा आतंक के इस्तेमाल का कोई जिक्र नहीं है।

बड़े फिलिस्तीनी मुद्दे पर अपनी स्थिति के पूर्वाग्रह के बिना, और यह जानते हुए कि जहां तक ​​​​हमास का संबंध है, आतंकवादी हिंसा का एक अगला दौर अपरिहार्य है, मैं भारत से अंतरराष्ट्रीय समुदाय के भीतर कई लोगों को शामिल करने का आग्रह करूंगा, जिन्होंने पहले से ही हमास को एक आतंकवादी संगठन के रूप में नामित किया है। यदि इतिहास अगली बार खुद को दोहराता है, तो भारत को भी हमास की स्पष्ट रूप से निंदा करनी चाहिए कि उसने नागरिक आबादी पर अंधाधुंध रॉकेट लॉन्च करके, मानव ढाल का उपयोग करके और मस्जिदों, अस्पतालों और स्कूलों के पास या उससे संचालन करके आतंक का इस्तेमाल किया। इससे आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में भारत की अग्रणी भूमिका की पुष्टि होगी, जिसमे दिल्ली के पारंपरिक समर्थन का खंडन किए बिना  फिलीस्तीन समर्थन हो पायेगा । यह फिलिस्तीनी लोगों के वैध, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त प्रतिनिधियों के प्रति दिल्ली की प्रतिबद्धता की भी पुष्टि करेगा। मैं यह कहने की हिम्मत करता हूं कि भारत के फिलिस्तीनी समकक्ष,पीएलओ और पीए, जिन्हें खुद हमास द्वारा लगातार चुनौती दी जाती है, इस तरह के कदम की सराहना करेंगे तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय के अन्य सदस्यों द्वारा भी ऐसा ही किया जायेगा।

भारत, जो हमेशा अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य पर एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी है, आजकल सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्य के रूप में एक विशेष जिम्मेदारी भी है। इजरायल की तरह भारत भी आतंकवाद का शिकार है। आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में, भारत ने अतीत में आतंकवाद को परिभाषित करने की संयुक्त राष्ट्र प्रक्रिया में मुख्य भूमिका निभाई है। जब आतंकवाद का मुकाबला करने की बात आती है तो हमारे हित समान होते हैं:,जेरूसलम की तरह, दिल्ली  भी किसी भी परिस्थिति में आतंकवाद को खारिज करती है।

मुझे लगता है कि आजकल, इजरायल-भारत द्विपक्षीय संबंध पहले से कहीं ज्यादा मजबूतऔर सुरक्षित हुए हैं क्योंकि उनके बहु-विषयक रणनीतिक हित समान हैं, जो खाद्य और जल सुरक्षा से लेकर रक्षा, मातृभूमि सुरक्षा और आतंकवाद विरोधी आदि हैं। उन्हें बनाए रखने में आपसी रुचि बहुत अधिक है।

सर्वोच्च अधिकारियों, राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों के पारस्परिक दौरे और उनके परिणाम, आवश्यक मजबूत संपर्क, इतने सारे क्षेत्रों में उन्नत, बहु-विषयक घनिष्ठ सहयोग – नवीनतम उदाहरण COVID-19 में सहयोग – सभी एक मजबूतऔर  स्थायी बंधन को दर्शाते हैं। हमने एक बहुत ही मजबूत और स्पष्ट संबंध विकसित किया है और ‘उड़ते रंगों’ के साथ, दोस्ती,आत्मविश्वास, विवेक, दृश्यता और विश्वसनीयता के “परीक्षणों” को पूरे वर्षों में पारित किया है।

हमारीसयुंक्त उपलब्धियां जबरदस्त हैं। भविष्य की संभावनाएं बहुत अधिक हैं। हमारी बहुआयामी साझेदारी तीसरे देशों को भी लाभान्वित कर सकती है, जब हमारे संबंधित तुलनात्मक लाभ, अनुभव का उपयोग करते हैं और जानते हैं कि कैसे यह, “राजनयिक चैनलों” के माध्यम से दांव पर लगे राजनीतिक मुद्दों पर निरंतर स्पष्ट चर्चा के साथ, सरकारों के परिवर्तन से अप्रभावित, द्विपक्षीय संबंधों की स्थिरता और अपरिवर्तनीयता सुनिश्चित करेगा।

एक फ़िलिस्तीनी सरकार की मान्यता के लिए अन्य देसो द्वारा उल्लिखित तीन सिद्धांत/शर्तें थीं (1) हिंसा का त्याग, (2) इज़राइल के अस्तित्व के अधिकार की मान्यता, और (3) पीएलओ और इज़राइल के बीच हस्ताक्षरित सभी समझौतों के प्रति प्रतिबद्धता

इन उपरोकत शर्तो को हमास दावरा स्वीकार करने पर ही इस एरिया में शांति की आशा जा सकती है



अस्वीकरण

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POST COMMENTS (2)

rajendra singh chauhan

अगस्त 31, 2021
भारत और इज़रायल में काफी समनताए हैं। इजरायल दुनिया का एकमात्र यहुदी राष्ट्र है,भारत एकमात्र हिंदू बहुल्य राष्ट्र है। आतंकवाद दोनों देश की समस्या है।दोनों राष्ट्र अपने अस्तित्व को बचाने के लिए लड़ रहे हैं। इजरायल ओर भारत ने युद्ध जैसी परिस्थिति में एक दूसरे का साथ दिया है जिसका इतिहास गवाह है।

Shailendra

अगस्त 19, 2021
हम हिंदू इजराइल और यहुदी को मानते है, क्योंकि हमारी समस्या एक है, वो है अस्तित्व का सवाल,लेकिन हमारे पीएम को संतमहात्मा बननेका चस्का चढ़ा है ऐसा हमे लग रहा है।

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