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पूर्वी तुर्किस्तान में उइगर नरसंहार

अब्दुलहकीम इदरीस
रवि, 08 अगस्त 2021   |   6 मिनट में पढ़ें

एक चीनी पुलिस अधिकारीने वर्ष 2019की एक डॉक्यूमेंट्री में पूर्वी तुर्किस्तान में उइगरों की स्थिति का वर्णन “क्या यह मानव अधिकार है”?के रूप में किया। “उन्हें ऐसे मानव के रूप में नहीं देखा जा रहा जिन्हें अधिकार प्राप्त है।” यह स्पष्टीकरण लाखों उइगरों को उनकी अपनी मातृभूमि पर अनुभव किए गए उत्पीड़न का सबसे सटीक उदाहरण है। चीनी कब्जे वाले क्षेत्रों में रहने वाले कज़ाख, किर्गिज़ और अन्य तुर्की समुदायों के उइगरो की स्थितिको अगर सरल भाषा में और इमानदारी से समझा जाये तो यह चीन की कम्युनिस्ट पार्टी द्वारा किया गया नरसंहार है।

पूर्वी तुर्किस्तान में नरसंहार की ऐतिहासिक जड़ें, 1949 में सीसीपी द्वारा अपना कब्जा शुरू करने से आरंभ हो जाती हैं। अध्यक्ष माओत्से तुंग के दिनों से ही सीसीपी शासन ने उइगरों को आत्मसात करने और परेशान करने के लिए कई कार्यक्रम विकसित किए। प्रत्येक प्रयास इस समुदाय के रूप, भाषा, धर्म और संस्कृति को जबरन बदलने के लिए किया गया था। हान चीनियो को जानबूझकर वहां प्रवास कराना, अनिवार्य जन्म नियंत्रण, और उइगर भाषा और संस्कृति पर लगातार रोक लगाना आदि सभी स्पष्ट दिखाई दे रहा है परतु यह नया नहीं है। वर्ष 1966 की तथाकथित सांस्कृतिक क्रांति के दौरानपूर्वी तुर्किस्तान के सभी स्कूल बंद कर दिए गए थे। शिक्षाविदों, विद्वानों और अन्य प्रमुख उइगरों को कैद कर लिया गया। अन्यों पर तथाकथित लोक अदालतों में करवाई की गई और उन्हें गोली मार दी गई। कुछ को स्टालिन के गुलाग्स की शैली में शिविरों में भेजा दिया गया।

वर्ष 1980 के दशक में थोड़े समय के लिए पूर्वी तुर्किस्तान के लोगों को इस दमन और उत्पीड़न से बचा लिया गया। वर्ष1979 में सोवियत संघ के अफगानिस्तान पर आक्रमण के कारण पूर्वी तुर्किस्तान को प्रभावित होने से रोकने के लिए बीजिंग सरकार ने तत्काल उपाय किए और उइगरों को पूर्व में उन्हें न मिली स्वतंत्रता प्रदान करने का फैसला किया। हालाँकि,बीजिंग सरकार द्वारा बनाई गईयह दोतरफा नीति, “झूठे सपने की तरह” जल्दी समाप्त हो गई। वर्ष 1989 में तियानमेन स्क्वायर के बाद, उइगर संस्कृति संक्रमण द्वारा नष्ट किये जाने वाले समाज के रूप में एक बार फिर निशाने पर आ गयी।

वर्ष 1990से2000 के दशक के बीच, उइगरों ने चीन के दबावों का प्रतिरोध किया। पार्टी की उपस्थिति से सामाजिक आयोजन समाप्त हो गये और बीजिंग सरकार द्वारा विच हौन्ट्स में बदल दिए गए। बीजिंग शासन का अवसर 11सितंबर के हमलों के साथ पूरा हो गया। सरकार ने अपने क्रूर हितों के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका की ‘आतंक पर युद्ध’ की अवधारणा का तुरंत इस्तेमाल किया। इसने उइगरों को उखाड़ फेकने के उद्देश्य से अपनी नीतियों में परिवर्तन किया। इसे “आतंक के खिलाफ युद्ध” की अवधारणा में बदल दिया। अपने तर्क में “अलगाववाद” और “धर्म में अतिवाद” जैसी अवधारणाओं को जोड़ने से इसे उइगरों पर हर तरह से हमला करने के लिए अपनी नरसंहार नीतियों को विकसित करने की अनुमति मिल गयी।

दरअसल, वर्ष 2008 के ओलंपिकस के दौरान जो घटित हुआ वह हैरान करने वाला है। ओलंपिक, की स्थापना खेलो के माध्यम से शांति और प्रेम का माहौल तेयार करने के लिए की गयी थी।एक ऐसा स्थान जहां अंतरराष्ट्रीय समुदाय एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते है, वह उइगर लोगों के लिए क्रूर हो गया।

बीजिंग सरकार ने हजारों उइगरो को महीनों तक बिना किसी कारण के जेल में बंद रखा क्योंकि इन्होने आतंकवाद से लड़ने का दावा किया था। अब, यह शासन बेरहमी से अधिक आक्रामकता के मूड में आ गया है। हर साल नए कानूनों और विनियमों के साथउइगरों के जीवन को एक जाग्रत दुःस्वप्न में बदलने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। उरुमकी से शुरू कर के, हर शहर सुरक्षा कैमरों से लैस हे, हर 500 मीटर पर सुरक्षा चौकियों की स्थापना की गई हे, और कई अन्य आक्रामक सुरक्षा उपायों को लागू किया गया।

वर्ष 2013 में, बीजिंग शासन ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) की घोषणा की। चीनी कम्युनिस्ट शासन को सुदूर एशिया से यूरोप तक फैले विशाल भूगोल के प्रभुत्व में लाने वाली परियोजनाओं को “निवेश, रोजगार, सामान्य समृद्धि” की कथाओ के साथ दुनिया के सामने रखा गया। हालांकि, बीजिंग सरकार के लिए इन परियोजनाओं पर कार्य करने में एक बड़ी बाधा थी। यह बाधा पूर्वी तुर्किस्तान है, जो एशिया के मध्य में स्थित है।

चीन जो दुनिया पर अपना दबदबा बनाना चाहता है, उइगरों की जमीन उसके लिए बाधक है। इस कारण वे उस क्षेत्र में उइगरो की उपस्थिति को नष्ट कर देना चाहते हैं। बीआरआई की घोषणा के एक साल बाद, पूर्वी तुर्किस्तान के शहरों के किनारों पर बड़ी निर्माण परियोजनाये आरंभ की गयी। यह व्यापक रूप से सुना गया था कि एक अधिकारी ने इन निर्माणों को देखने वाले उइगर से कहा, “आप सभी शीघ्र ही यहाँ स्थापित कर दिए जाओगे।” बीजिंग शासन ने इसे पहले ही आरम्भ कर दिया था।

उइगरों को एकाग्रता शिविरों में स्थानांतरित करने का प्रयास वर्ष 2014 में आरम्भ हो गया था। उइगर की पहचान और उनका दमन करने की नीति, जो थोड़े समय के लिए छोटे समूहों में थी, जल्द ही पूरी जनसँख्या पर काले बादलो की तरह फेल गई। राष्ट्रपति शी जिनपिंग जिन्होंने उस समय पूर्वी तुर्किस्तान का दौरा किया गया था उन्होंने कहा, “दया मत दिखाओ”; यह नई नीतियों का संकेत था। शासकों को वहां कमजोर पाते हुए,बीजिंग सरकार ने चेन क्वांगुओ को भेजा, जो पहले तिब्बत में तेनात थे और तिब्बती और पूर्वी तुर्किस्तान के लोगों के प्रति अपनी दमनकारी नीतियों के लिए जाने जाते थे। उनहोंने अपने अधीनस्थों को आदेश दिया कि “उठा लो जो उठाया जा सके।” उइगरों को समूहों में पूर्वी तुर्किस्तान की सड़कों पर ले जाया गया और उन्हें एकाग्रता शिविरों में भेज दिया गया। इस कारण से, वर्ष 2017की शुरुआत सेही उइगरो का अपने रिश्तेदारों से संपर्क टूट रहा था। कुछ ने दुबारा उतर ही नही दिया। जबकि अन्य, जैसे कि इस लेख के लेखक ने पूरी तरह से गायब होने से पहले अपने परिवारजनों से यह कहते सुना कि  “हमें फिर से कॉल मत करना”।

जब अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने प्रतिक्रिया देना शुरू किया, तो चीनी शासन ने इस झूठ का सहारा लिया कि “हम किसी को ‘एकाग्रता शिविरों’ में नहीं फेंक रहे हैं, वे व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रमों में शामिल हैं।” शासन तंत्र ने यहाँ तक घोषणा की कि पूर्वी तुर्किस्तान के अधिकृत एकाग्रता शिविरों में जो है वह 2019 में स्नातक हो जायेंगे। परन्तु क्या ऑस्ट्रेलियाई सामरिक नीति संस्थान (एएसपीआई) की रिपोर्ट में यह बताया गया है कि शिविर में वास्तविकता में ग्रेजुएशन करायी गयी?

एएसपीआई की रिपोर्ट के अनुसार,दसियों हज़ार उइगर, जो आज सैकड़ों हज़ारों की संख्या में हो गये हैं,पश्चिमी कंपनियों के लिए सामान बनाने वाली फैक्ट्रियों में गुलामों की तरह काम करते हैं। 80 विश्व प्रसिद्ध ब्रांड (नाइके, ज़ारा, एच एंड एम,और अन्य) अपने लाभ के लिए उइगरों का खून निचोड़ते है। चीन ने पूर्वी तुर्किस्तान के लोगों की जान पर खेल कर अपना प्रभाव बनाया है। सीसीपी ने प्रत्येक एकाग्रता शिविर के साथ में कारखानों और कार्यशालाओं का निर्माण किया। संक्षेप में, जैसा कि सीसीपी के अधिकारी बताते हैं, कोई स्नातक नहीं हुआ; केवल भोले-भाले लोगो का ब्रेनवॉश किया गया और उनकी उइगर के रूप में पहचान को खत्म कर दिया गया है। इन्हें तथाकथित “कम्युनिस्ट” शासन के पूंजीवादी उद्देश्यों के हथियार के रूप में परिवर्तित कर दिया गया।

इन तथाकथित शिक्षा या व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्रों में क्या हो रहा है? इस के लिए उन उइगिरो की कहानी सुननी होगी जिनकी लंदन स्थित नरसंहार न्यायाधिकरण में और प्रेस संगठनों में जाच हुई। क़लबिनूर सिद्दीक, जिन्हें एकाग्रता शिविरों में काम करने के लिए मजबूर किया गया था, उन्होंने बताया कि लोगों को बिजली की कुर्सियों से लेकर बिजली की छड़ो तक से यातना दी जाती थी। महिलाये, विशेष रूप से युवा लड़कियों के साथ बलात्कार किया जाता था और ऐसा भी देखा गया कि अधिकारी आपस में शेखी बघारते है कि उन्होंने उइगर महिलाओं के साथ बलात्कार किया है। तुर्सुनय ज़ियावदुन ने एक लड़की के बारे में बताया जिसे हर रात वार्ड से बाहर ले जाया जाता था। लौटी युवतियां एक कोने में बेठ कर चुपचाप रोती थीं और खुद उसे भी एक अंधेरे कमरे में ले जाकर कई बार दुष्कर्म किया गया। ओमर बेकाली जिसके हाथों और पैरों को जंजीर से बांधकर नरसंहार अदालत में लाया गया क्यूंकि वह शिविर में थे। उन्होंने सचाई बयान की कि चीन केसे बर्ताव करता है। चीन के एकाग्रता शिविर ऐसे हैं जहां लोगों पर लगातार प्रयोग किए जाते हैं,जिनमें से कुछ को अज्ञात दवाएं दी जाती हैं, जिससे वो बीमार हो जाते हैं और फिर गायब हो जाते हैं। यहाँ तक की चीनी कम्युनिस्ट शासन मध्य पूर्व के धनवान मुसलमानों को मुस्लिम उइगरों के अंग भी बेच देता  है, जिसे वह “हलाल” कहते हैं। संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के अनुसार, शिविरों में वर्णित अपराध नरसंहार हैं।

परन्तु, उइगरों को किन कारणों से एकाग्रता शिविरों में भेजा जाता है? अपराधों को “कराकैक्स सूची” में सूचीबद्ध किया गया है, जिसे कुछ समय पहले सार्वजनिक किया गया था। इसमें नियमित रूप से प्रार्थना करना, धार्मिक बातचीत में भाग लेना, अपना सिर ढंकना, पासपोर्ट नहीं होना, विदेश में रिश्तेदारों को बुलाना, मुस्लिम बहुमत वाले देशों की यात्रा करना आदि शामिल है। यदि इन अपराधों को ध्यान में रखा जाए तो आधी दुनिया को एकाग्रता शिविरों में भेज देना चाहिए। सच्चाई यह है कि सीसीपी शी जिनपिंग के आदेशों के अनुपालन में “कोई दया नहीं” दिखाती। इस नीति के साथ, पूर्वी तुर्किस्तान की महिलाओं को जन्म नियंत्रण के लिए मजबूर किया जाता है, गर्भ में ही बच्चों को मार दिया जाता है, और उइगर जनसंख्या को समाप्त करने के लिए इसे सुव्यवस्थित रूप से कम किया जा रहा है।

डॉ. एड्रियन ज़ेंज़ ने कहा कि,वर्ष2040तक पूर्वी तुर्किस्तान की जनसंख्या 10 मिलियन से अधिक से घट कर 2.6 मिलियन रह जाने की उम्मीद है। यह संयुक्त राष्ट्र नरसंहार सम्मेलन में “समूह की जनसंख्या को कम करने के उपाय” लेख में शामिल है। एकाग्रता शिविरों में रहने वाले उइगरों के बच्चे भी नरसंहार के शिकार हैं। यह कहा गया है कि उइगर परिवारों से अनुमानित 9,00,000बच्चों को ले लिया गया,उनमें से अधिकांश को सीसीपी के अनाथालयों में रखागया और कुछ को हान चीनी परिवारों में भेज दिया गया। बीजिंग शासन, जिसका लक्ष्य यह है कि एक भी उइगर पूर्वी तुर्किस्तान में ना बचे,वहयुवा उइगर लड़कियों की हान चीनी पुरुषों से जबरन शादी करके जनसांख्यिकीय परिवर्तन लाना चाहते है।

पूर्वी तुर्किस्तान में जो हो रहा है वह नरसंहार है। इस नरसंहार के शिकार उइगर, कज़ाख, किर्गिज़ और अन्य तुर्की समुदाय के लोग हैं। इसे तेजी से और पूरी तरह से समाप्त करना अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का नैतिक दायित्व है।

व्यक्त विचार निजी हैं।


लेखक
अब्दुलहकीम इदरीस विश्व उइगर कांग्रेस के महानिरीक्षक और उइगर अध्ययन केंद्र के कार्यकारी निदेशक हैं।

अस्वीकरण

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