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एफएटीएफ द्वारा पाकिस्तान को संदेहआत्मक सूची में रखना

सुशांत सरीन
शनि, 31 जुलाई 2021   |   6 मिनट में पढ़ें

हर बार आतंकवाद पर लगाम लगाने के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा गठित एफएटीएफ( वित्तीय कार्यवाही कार्य दल) के आतंकवाद पर पाकिस्तान के बारे में विचार करने के समय पाकिस्तान में  इस विषय पर बहुत सी क्रिया और प्रतिक्रियाएं दिखाई देती हैं ! यह सब अब एक परंपरा की तरह बन गया है ! एसएटीपीएफ की मीटिंग के समय पाकिस्तान के संबंधित अधिकारी आतंकवाद को रोकने की दिशा में किए गए  वादों को पूरा करने की दिशा में किए गए कार्यों के बारे में अपने पालतू मीडिया में तरह तरह से प्रचार करते  हैं, और विश्वास जताते हैं कि वे इस कार्य दल कि संदेहआत्मक निगरानी सूची से शीघ्र ही बाहर आ जाएंगे ! शायद पाकिस्तान यह नहीं जानता कि  संयुक्त राष्ट्र संघ के इस कार्य दल की कार्यप्रणाली क्या है और वह यह भी सोच कर चलते हैं कि उनका मनोवैज्ञानिक प्रोपेगेंडा  उन्हें स्वयं अंतर्राष्ट्रीय षड्यंत्र द्वारा आतंकवाद का शिकार साबित करने में सफल होग  इसके अलावा कम से कम उसके देशवासी इस पर विश्वास करेंगे तथा उनकी सरकार को इसके लिए जिम्मेदार ठहराना बंद  करेगी !

यह निश्चित है कि एफएटीएफ  पाकिस्तान की इन  चालो से प्रभावित नहीं होती और वह पाकिस्तान  का अपने सूचीबद्ध उद्देश के अनुसार ही आकलन करती है ! परंतु जैसे ज्यादातर पाकिस्तानियों ने कश्मीर पर संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव  को नहीं पड़ा है परंतु उसका उदाहरण देते रहते हैं इसी प्रकार इनमें से किसी ने भी  एस ए — टीएफ की रिपोर्ट को ना तो पढ़ा है और ना ही समझा है ! इस सब के साथ जब एसएटीएफ पाकिस्तान को संदेह आत्मक सूची में बनाए रखेगा तब पाकिस्तान अपने को भारत और अमेरिका के द्वारा उसके विरुद्ध चलाई जा रही मुहिम का ही शिकार बताएगा ! पिछलेसमय में कई बार इमरान के मंत्रिमंडल के सदस्यों ने स्वयं को इस बात की बधाई दी है कि पाकिस्तान अभी भी संदेह आत्मक सूची में ही है और वह काली सूची में नहीं गया है !  इनके लिए संदेहआत्मक सूची ही साफ सूची के बराबर है !

अभी कुछ दिन पहले एफएटीएफ द्वारा जांच के दौरान पाकिस्तान ने उसी प्रकार मीडिया इत्यादि में अपने कारनामों का बखान किया, परंतु इस बार पाकिस्तान की जनता में  गुस्सा का प्रदर्शन ज्यादा था ! इसका मुख्य कारण था कि उसने कार्य दल को बताया था कि  उसके द्वारा 2018 में दी गई 27 कार्यों की सूची में से उसने 26 कार्य पूरे कर लिए हैं ! परंतु फिर भी वह संदेहआत्मक सूची में ही रहेगा ! एफएटीएफ की मांग थी कि पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र संघ की सूची में आए आतंकी सरगनाओं तक धन पहुंचने की श्रंखला को भी समाप्त करें ! यह मांग इतनी आसान नहीं है हां पाकिस्तान ने दिखाने के लिए कुछ कार्यवाही की है ! जिसमें लश्कर-ए-तैयबा के सरगना हाफिजसईद, अब्दुल रहमान मक्की, जफर इकबाल,   याहया मुजाहिद और बहुत  से आतंकी नेताओं के विरुद्ध  मुकदमे शुरू किए हैं जिनमें उन्हें अलग-अलग अवधि की जेल की सजाएं दी गई है !

जबकि लश्कर पाकिस्तान सरकार की ही एक आज्ञाकारी शाखा है परंतु जैस ए मोहम्मद आतंकवाद में आईएसआई का ना विश्वास करने योग्य और अनिश्चित भागीदार है ! वहीं पर लश्कर ने अपने ऑपरेशनओं की योजना पाकिस्तान की सरकार के अनुसार ही बनाई परंतु   जैसे मोहम्मद के बारे निश्चय के साथ कुछ नहीं कहा जा सकता ! पाकिस्तान के फौजी शासक परवेज मुशर्रफ ने जब तालिबान  का साथ छोड़ दिया था ( केवल दिखावे के लिए) और अमेरिका का समर्थन किया था तब  जैसेमोहम्मद ने  विद्रोह कर दिया था ! उन्होंने न केवल मुशर्रफ की हत्या करने की कोशिश की थी बल्कि उन्होंने वहां पर सैनिक ठिकानों पर हमले भी किए थे ! इससे ज्यादा और क्या हो सकता है कि उसके कुछ सदस्यों ने अपने संबंध अलकायदा और तालिबान से रखे हुए थे और कुछ पंजाबी तालिबान उसी के केडर से ही !

इस समय जब  अफगान तालिबान दोबारा शक्तिशाली बन रहे हैं इससे जैसेमोहम्मद को भी सामरिक शक्ति मिलेगी, और ऐसी स्थिति में यदि पाकिस्तान सरकारों  उसको नियंत्रित करने या इसके नेताओं  या इसके कैडर को गिरफ्तार तथा इनकी संपत्तियों को कब्जे में लेगी तो यह पाकिस्तान की सेना और सरकार का विरोध और मुकाबला भी कर सकते हैं ! अभी तक पाकिस्तान में दिखावे के लिए भी इसके विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं हुई है, क्यों कि  जैसे- मोहम्मद की जम्मू कश्मीर तथा भारत के अन्य हिस्सों में जिहादी आतंकी भेजने में बराबर की भागीदारी रही है ! यह साफ है कि एसएटीएफ के द्वारा संयुक्त राष्ट्र द्वारा नामित आतंकी सरगनाओं के विरुद्ध जांच और अदालती कार्यवाही की मांग पर पाकिस्तान पर और दबाव पड़ेगा कि वह मसूद अजहर उसके भाइयों तथा उसके संगठन के और आतंकी तत्वों के विरुद्ध कार्रवाई करें !

एसएटीएफ ने अपनी विज्ञप्ति में 25 जून को घोषणा की है कि पाकिस्तान  ने उसके के द्वारा दी गई कार्य सूची पर कार्यवाही की है, और फरवरी 2021 से पाकिस्तान उसके द्वारा दी गई तीन बची हुई शर्तों में से 2 पर प्रभावी कार्रवाई करते हुए आतंकी संगठनों पर प्रतिबंध तथा उनके ऊपर सख्त कार्यवाही करते हुए उनकी संपत्तियों को निशाना बना रहा है ! इसके अंतर्गत इस साल के शुरू में पाकिस्तान द्वारा जल्दी से बहुत सारे अपराधिक केस लश्कर के नेताओं और इन को धन देने वालों के विरुद्ध अदालतों में चलाएंगए और अदालती कार्यवाही  को शीघ्रता से पूरा करते हुए कुछ हफ्तों में  और कुछ मामलों में कुछ दिनों में ही सजाएं दिलवाई ! परंतु यह आश्चर्य की बात है कि इस बार लश्कर के काडर द्वारा ना कोई विरोध और ना कोई प्रदर्शन किया ! ऐसा लग रहा था कि यह  संगठन है ही नहीं !

उर्दू प्रेस में खुलासा किया गया था कि लश्कर के कैडर को पहले ही बता दिया गया था कि वे एसटीएफ की आंधी के थमने का इंतजार करें ! परंतु यह आश्चर्य की बात है कि इन आतंकियों ने अपनी  सजाओ के विरुद्ध अदालतों में अपील भी नहीं की है ! इससे ऐसा लगता है जैसे पूरी लिखी हुई रूपरेखा के अनुसार सब कुछ हो रहा है !

यह कहा जा रहा है कि शायद हाफिज सईद तथाइसके दूसरे नेताओं को  केवल कागजों में ही सजा दी गई है ! वास्तव में यह सब अपनी बहुत सी पत्नियों तथा राखेलो  और बच्चों के साथ आराम से अपने घरों में रह रहे हैं ! इसका आभास अभी कुछ दिनों पहले  तब हुआ जब हाफिज सईद के घर के पास बम धमाका हुआ था ! इसका खुलासा  पाकिस्तान के एक भूतपूर्व  जनरल सोहेब जो वहां की सेना की आईएसपीआर द्वारा सेना तथा सुरक्षा के संबंधित विषयों  के मान्यता प्राप्त प्रवक्ता है, ने किया कि  हाफिज  अपने घर में ही रह रहा है(यह साफ नहीं है कि हमले के समय वह घर में मौजूद था या नहीं) इसको देखते हुए हालांकि पाकिस्तान ने एसटीएफ को लश्कर के विरुद्ध कार्यवाही का भरोसा दिला दिया है परंतु असलियत में यह पूरी कार्यवाही शक के घेरे में है ! इस स्थिति में दबाव में जब पाकिस्तानको जैस मोहम्मद के विरुद्ध कार्यवाही के  उस पर दबाव डाला जाएगा  तब उसकी असलियत सामने आएगी कि किस प्रकार वह  जांच दल की आंखों में धूल झोंक रहा था !

पाकिस्तान को  झकझोरने के लिए बड़ी बात यह है कि एफएटीएफ ने अब  अपनी 26 सूत्रीय कार्यसूची में अतिरिक्त 6 नए सूत्र और जोड़ लिए हैं ! ज्यादातर पाकिस्तानियों की सोच रही है कि एफएटीएफ अपनी प्राथमिकताओं को बदल रही है और इस प्रकार  पाकिस्तान पर चल रहा  औरआर्थिक प्रतिबंध लगने का खतरा उसी प्रकार बरकरार है ! पाकिस्तानी यह नहीं जानते कि एफएटीएफ के निर्णय उनके उद्देश के मापदंड के अनुसार ही होते हैं !  मुख्तया पाकिस्तान संदेह आत्मक सूची से इसलिए नहीं निकल  रहा है क्योंकि वह उन्हीं मापदंडों को पूरा नहीं कर रहा है जिनके लिए वे स्वयं सहमत हुआ था तथा लागू करने की उच्च स्तरीय राजनीतिक सहमति दी थी !

इस तथ्य का भी  खंडन नहीं किया जा सकता कि एफएटीएफ  के द्वारा पाकिस्तान में जो किया जा रहा है उसमें थोड़ी राजनीति भी है ! राजनीति यह है कि दूसरे देश पाकिस्तान  दोहरे चरित्र तथा चालाकियां के बारे में पूरी तरह जान गए हैं, दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि कोई भी पाकिस्तान पर विश्वास नहीं करता ! इसलिए वे चाहते हैं कि पाकिस्तान अपने किए वादों से बचकर ना निकल पाए ! विश्वास की कमी के कारण कोई भी पाकिस्तान के बारे में नरमीदिखाना नहीं चाहता, चाहे पाकिस्तान ने इस विषय पर  कितनी उपलब्धियां दिखाई है !

यहां पर यह प्रश्न उठता है कि क्या  अगले कुछ महीनों में पाकिस्तान संदेहआत्मक सूची से बाहर आ सकेगा ! इस को तीन  प्रकार से देखा जा सकता है जिसके कारण वह इस से बाहर शायद नहीं निकल पाएगा ! पहला पश्चिमी देशों खासकर अमेरिका ने यह महसूस किया है कि एफएटीएफ एक ऐसा हथियार है जिसके प्रयोग से पाकिस्तान में वह सब कर सकता है जो उसके अन्य प्रकार के दबावों  से नहीं करता है ! दूसरा  कार्य दल की कार्यप्रणाली और निर्णय लेने की प्रक्रिया पारदर्शी नहीं है ! एसटीएफ अपने सदस्यों को अपने विचार विमर्श को मीडिया को बताने से मना करता है ! इसके बारे में पाकिस्तान को तब पता चला जब उसके विदेश मंत्री  ख्वाजा आसिफ ने पाकिस्तान टेलीविजन पर यह कह दिया था कि पाकिस्तान  संदेहआत्मक सूची से बाहर आ गया है जबकि यह गलत था !

एफएटीएफ सारे निर्णय सर्वसम्मति से लेती है और इसका तात्पर्य कि यदि दो तीन सदस्य किसी मुद्दे से सहमत नहीं होते तो उसे स्वीकार नहीं किया जाता ! इसका तात्पर्य हुआ कि कुछ देश एकत्रित होकर ना कि देश को  संदेहआत्मक या काली सूची में डलवा सकते हैं और ना ही निकलवा सकते ! इसका मतलब हुआ कि भारत अपने कुछ मित्र देशों के सहयोग से पाकिस्तान को संदेहआत्मक सूची से बाहर निकलने से रोक सकता है ! परंतु यह समय की विश्व राजनीति पर निर्भर करेगा और आखिर में इस पर भी निर्भर करेगा कि पाकिस्तान अपने वादों को पूरा करता है नहीं, जो उस से मांगे गए हैं और यह पाकिस्तान के लिए एक बड़ी समस्या होगी !


लेखक
सुशांत सरीन आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो हैं और चाणक्य फोरम में सलाहकार संपादक हैं। वह पाकिस्तान और आतंकवाद विषयों के विशेषज्ञ हैं। उनके प्रकाशित कार्यों में बलूचिस्तान : फारगॉटेन वॉर, फॉरसेकेन पीपल (2017), कॉरिडोर कैलकुलस : चाइना-पाकिस्तान इकोनोमिक कोरिडोर और चीन का पाकिस्तान में निवेश कंप्रेडर मॉडल (2016) शामिल है।

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