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अफगानिस्तान के भविष्य की रूपरेखा

श्री नसीर सिद्दीकी
शुक्र, 30 जुलाई 2021   |   5 मिनट में पढ़ें

जब से अमेरिका के राष्ट्रपत जोसेफ विडेन जूनियर ने अमेरिका के अफगानिस्तान में चल रही लंबी लड़ाई को समाप्त करने और अपनी सेनाओं को अमेरिका में 9/ 11 हमले की बीसवीं सालगिरह से पहले बुलाने की घोषणा की है, तब से पुराने पर्यवेक्षकों तथा अभी के विभिन्न सरकारों के अधिकारी पूरे विश्व में उलझन में है और इसको विश्व में स्थाई शांति स्थापित करने का अवसर मान रहे हैं !

यह लोग उलझन मैं इस मुद्दे पर पर विचार कर रहे हैं किअमेरिकी तथा नाटो की सेनाओं की वापसी के बाद अफगानिस्तान के पास तालेबान और अंतरराष्ट्रीय आतंकी जैसे अलकायदा आईएसआईएस से लगातार लड़ने के लिए कोई सहारा नहीं होगा ! इस समय आशावादी विचारक अफगानिस्तान के तीन लाख युद्ध में अपने आप को सिद्ध किए हुए सैनिकों तथा 2001 के बाद की नई पीढ़ी तथा संस्थाओं में अपना विश्वास व्यक्त कर रहे हैं !

जहां समर्थकों और आलोचकों का ध्यान ज्यादातर पूरी तरह विपरीत संभावनाओं जैसे एकता और लचीलापन तथा दूसरी तरफ से पूरी तरह डरावनी तथा उथल-पुथल की स्थिति की भी कल्पना कर रहे हैं !

परंतु इन दोनों संभावनाओं के होने की कम आशा लग रही है क्योंकि इस सब के बीच इतना सब कुछ है जिसे मैं उस के रूप में रखकर फिर खतरों और मौकों के बारे में चर्चा करूंगा !

क्या तालिबान गंभीर खतरा है
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सुरक्षा की दृष्टि से आलोचक मानते हैं कि तालिबान एक शक्तिशाली प्रतिद्वंदी हैऔर इसको गंभीरता से लिया जाना चाहिए ! तालिबान के बारे में मुख्य ध्यान देने का विषय यह है कि अमेरिका की अगुवाई में सैनिक दखल के विरुद्ध 20 साल तक उसमें लड़ने की क्षमता उनके कट्टरपंथी विचार, इस्लामिक व्यवस्था के बारे में दृढ़ संकल्प, इनके जुनूनी समर्पित तथा पूरे समय के लिए उपलब्ध 100000 लड़ाके, अफगानिस्तान के प्रमुख भागों पर कब्जा, इनकी आय का जरिया अफीम द्वारा निर्मित नशीली दवाएं तथा स्मगलिंग, अवैध वसूलीऔर इनके पाकिस्तान में सुरक्षित ठिकाने तथा इनके विदेशी आतंकी संगठन अलकायदा इत्यादि से मजबूत संबंध !

बरसों से युद्ध के मैदानों पर देश में सघन युद्ध तथा तालिबान द्वारा चुन-चुन कर हत्याएं, स्कूलों स्वास्थ्य तथा विद्युत सप्लाई केंद्रों पर हमला देख कर कोई भी सही दिमाग का व्यक्ति तालिबान को एक गंभीर खतरा ही मानेगा !

2001 के अनुभवों को वास्तविकता से जोड़कर देखते हुए कहा जा सकता है कि तालिबान अपनी हिंसक गतिविधियों के द्वारा अफगानिस्तान की सरकार पर दबाव बना सकते हैं ! परंतु वह कभी भी वहां की सत्ता पर कब्जा नहीं कर सकते !

तालिबान पहले भी और अभी भी केवल एक सैनिक संगठन है जिसका अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठनों से संबंध है परंतु इनमें दूरदर्शिता और देश को चलाने की क्षमता का पूर्णतया अभाव है ! उनकी पूरी संख्या अफगान की 34 करोड़ जनसंख्या का केवल 1% है !

दूसरी तरफ अमेरिका तथा नाटो सैनिकों की वापसी की वकालत और सहायता करने वाले ना केवल अफगानिस्तान द्वारा राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक उन्नति की तरफ देख रहे हैं बल्कि वे तालिबान द्वारा लड़े गए युद्ध को गैर कानूनी सिद्ध करने की संभावना तथा वहां राजनीतिक गतिविधियों दोबारा शुरू करने की भी आशा कर रहे हैं !
एक विदेश के विषयों पर लिखने वाली पत्रिका में अफगानिस्तान के राष्ट्रपति मोहम्मद अशरफ गनी ने अमेरिका के राष्ट्रपति द्वारा सैनिकों की वापसी पर अपनी राय व्यक्त करते हुए उनके इस कथन का स्वागत किया है जिसमें इस्लामिक रिपब्लिक आफ अफ़गानिस्तानने समस्या का राजनीतिक समाधान अफगानिस्तान के अंदर विभिन्न संगठनों के साथ बातचीत करके किया है और शांति के लिए बातचीत में बहुत से बड़े और शांतिपूर्ण कदमों की भी घोषणा की है !

फरवरी 2018 मैं तालिबान से अमेरिका की सीधी बातचीत शुरू होने से कई महीने पहले राष्ट्रपति गनी ने अफगानिस्तान की शांति के लिए तालिबान के साथ की जा रही बातचीत के समर्थन की घोषणा की थी ! उसी साल वहां के सर्वोच्च सैनिक कमांडर ने बिना किसी पूर्व शर्त के एक तरफा 3 दिन के युद्ध विराम की घोषणा की थी जिसको पिछले 17 साल से लगातार हिंसा तथा बर्बादी करने वाले तालिबानियों को स्वीकार करना पड़ा था ! यह एक पुनर्विचार और खुशियों का मौका था परंतु तालेबान द्वारा दोबारा हिंसा शुरू करने के कारण यह ज्यादा नहीं चल पाया !

शांति के अपने निर्णय के प्रदर्शन के लिए अफगान सरकार ने वहां की लोया जरगा (बड़ी सभा) जिसमें वहां के 34 प्रांतों से जनता के द्वारा चुने हुए तथा सरकार द्वारा मनोनीत 3000 प्रतिनिधि होते हैं का आयोजन किया ! पूरे 2 दिन तक विचार-विमर्श के बाद इस सभा ने 23 सूत्री घोषणा जारी की जिसमें अफगान सरकार की शांति प्रक्रिया की रूपरेखा थी !

इस समय तक अमेरिकी पूर्व की सरकार जिसके मुखिया राष्ट्रपति ट्रंप थे ने अपने राजनयिकों को तालिबान से सीधी बातचीत का आदेश जारी कर दिया था ! महीनों चली गरमा गरम बहस तथा बातचीत के बाद वे दोनों समझौते पर पहुंचे परंतु दोनों के लिए इस समझौते को अफगान सरकार की रजामंदी के बगैर लागू करना मुश्किल था !
अमेरिका तथा तालिबान के बीच हुए समझौतों को लागू करने के लिए अफगान सरकार ने एक बहुत मुश्किल निर्णय लिया जिसके द्वारा उसने 6100 तालिबान कैदियों को रिहा कर दिया ! यह एक बार फिर उसकी अच्छी भावना तथा उसके शांति के निर्णय को लागू करने का प्रदर्शन था !

इस समय चल रही शांति प्रक्रिया जो 20 साल से चल रहे युद्ध की, एक शांतिपूर्ण समाप्ति का एक मौका है,इसे अपने खून द्वारा अफगानिस्तान की राष्ट्रीय सुरक्षा तथा इसके सुरक्षाबलों द्वारा चुकाई कीमत कहां जा सकता है और अफगान सरकार द्वारा किए गए समझौतों का परिणाम भी !

तालिबान अपने आकाओं और उनके संसाधन उपलब्ध कराने वालों के आदेशों पर चल रहे हैं ! शांति इस समय पुर अफगानिस्तान की सबसे बड़ी इच्छा और सालों की आशा है ! जिसको तालिबान ने दोहा के समझौते में स्वीकार किया था परंतु इसके बाद भी तालिबान और भी ज्यादा हिंसा फैला रहे हैं !

तालिबान अपने आकाओं और उन्हें संसाधन उपलब्ध कराने वालों के आदेशों पर चल रहे हैं ! शांति इस समय पूरे अफगानिस्तान की सबसे बड़ी इच्छा और इस समझौते की आशा है ! जिसको तालिबान लगातार ठुकरा रहे हैं ! जबकि उन्होंने इसे दोहा समझौते में माना था इसके बावजूद वह पूरे देश में और ज्यादा हिंसा फैला रहे

क्या है अफगानिस्तान के लिए आगे
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अफगानिस्तान में शांति को स्थाई बनाने के लिए यह जरूरी है कि इस प्रक्रिया को पिछले 20 साल में अफगानी जनता द्वारा की गई उन्नति के परिपेक्ष में आगे बढ़ाया जाना चाहिए ! जिसमें देश में आधारभूत ढांचे,, बोलने की स्वतंत्रता, स्त्रियों की आम जिंदगी में बढ़ती भागीदारी और अन्य क्षेत्रों में बड़ी प्रगति है ! अफगानिस्तान की जनता ने इस उन्नति के लिए बहुत बड़े बलिदान दिए हैं और यह साफ है कि वह इन उपलब्धियों की सुरक्षा तथा इनमें और बढ़ोतरी चाहती है !

अफगानिस्तान में शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए मिली-जुली पहल होनी चाहिए ! जिसमें वहां के युवा, महिलाएं, अल्पसंख्यकों तथा युद्ध पीड़ितों को भी जोड़ा जाना चाहिए तथा उनकी आवाज को हर स्तर पर प्रतिनिधित्व तथा बातचीत में स्थान दिया जाना चाहिए ! सब की मिली जुली टीम बनाना इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हैऔर यह जरूरी है कि अफगानी समाज के सब भाग अपने आप को इस प्रक्रिया का हिस्सा समझें ! एक प्रक्रिया जो सामाजिक सशक्तिकरण और एकीकरण को और मजबूत करें तथा इस्लामिक प्रजातंत्र की समाधान प्रक्रिया को और मजबूत बनाएं !

क्षेत्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसमें भाग लेने वालों को भी ऐसा रास्ता अपनाना चाहिए जिसके द्वारा हिंसा में कमी के साथ-साथ तालिबान को अर्थ पूर्ण तथा सौहार्द पूर्ण शांति प्रक्रिया में शामिल होने में बढ़ावा मिले !

आगे पीछे अफगानिस्तान में शांति तो आनी ही है क्योंकि हिंसा के द्वारा कोई हल नहीं निकलता है ! अफगानिस्तान की जनता तथा सरकार ऐतिहासिक रूप से सही मार्ग पर है परंतु अब देखना है कि तालिबान कौन सा रास्ता अपनाते हैं !


लेखक
श्री नासिर सिद्दीकी इस्लामिक रिपब्लिक आफ अफ़गानिस्तान के शांति स्थापना मंत्रालय में नीति और प्रोग्राम के जनरल डायरेक्टर हैं ! इसके पहले वे सरकार में नीति निर्धारण उप मंत्री तथा वित्त विभाग में डायरेक्टर जनरल ऑफ समन्वय और निगरानी रह चुके हैं !

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POST COMMENTS (1)

Jay Prakash

अगस्त 07, 2021
Har Har Mahadev

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