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मानव रहित वाहन : हमारे अग्रिम पंक्ति के योद्धाओं का संवर्धंन

ब्रिगेडियर अरविंद धनंजयन (सेवानिवृत्त), सलाहकार संपादक रक्षा
मंगल, 14 सितम्बर 2021   |   9 मिनट में पढ़ें

युद्ध के परिणाम, किसी पक्ष के बेहतर मनोबल और इच्छाशक्ति के साथ-साथ बेहतर प्रशिक्षण और उपकरणों के कारण प्रतिफलित होते हैं। वास्तव में इसके अन्य सभी कारकों पर भी विचार किया जाना चाहिए। किसी पक्ष द्वारा द्वंद्युद्ध, झड़प या लड़ाई में अपने लाभ के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग  करना, उसकी जीत की संभावना को बढ़ा देता है।                                                                        –लेखक

 

जटिलता संबंधी  वक्तव्यों का संग्रह- 2020 में की गयी प्रविष्टियों में से एक के अनुसार,   भारतीय सेना के लिए अनुकूल प्रौद्योगिकी की तलाश करने वाले एक डिजाइन ब्यूरो (एडीबी) द्वारा आगामी तिमाहियों  में सघन निगरानी एवं युद्ध  के लिए टैक्टिकल अनमैन्ड ग्राउंड व्हीकल (यूजीवी)   की प्रविष्टि है । इसे  भारतीय सेना (आईए) के लिए तैयार किये गए यूजीवी उद्यम के अनुरूप बनाया गया ।

यूजीवी एक ग्राउंड आधारित प्लेटफॉर्म है जो मानव उपस्थिति के बिना आँन-बोर्ड संचालित होता है। यद्यपि विस्फोटक उपकरणों  के साथ-साथ अन्य उद्देश्यों के लिए छोटे रोबोट सिस्टम लंबे समय से उपयोग में हैं,  परंतु सशस्त्र बल अब युद्ध भूमि  में व्यापक युद्ध सहायता अभियान के लिए यूजीवी की उपयोगिता की जाँच कर रहे हैं। यूजीवी  मानव रहित हवाई वाहनों और पानी के नीचे के वाहनों के लिए भूमि बलों का रिमोट संचालित उत्तर है। इन मशीनों को सशस्त्र/पुलिस बलों द्वारा उन स्थितियों में उपयोग  किया जाता है जहां अत्यधिक परिश्रम  अथवा कर्मियों के हताहत होने का खतरा होता है, साथ ही जहां मानव उपस्थिति  अव्यवाहरिक होती है। यूजीवी के सिस्टम आर्किटेक्चर में नेविगेशन/पर्यावरण प्रतिक्रिया के लिए सेंसर शामिल होते हैं और स्वायत्त  कार्यप्रणाली के लिए एक ऑनबोर्ड कंप्यूटर  भी  लगाया जा सकता है अथवा एक अन्य ऑपरेटर जो सेंसर से प्राप्त सूचना को रिले कर सकता हो वह वाहन को  रिमोट से नियंत्रित करेगा।

विरासत

1920 के दशक के प्रारंभ  में रेडियो कॉर्पोरेशन आँफ  अमेरिका की एक प्रमुख इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी की एक आवधिक पत्रिका ने मानव रहित, रिमोट संचालित, रेडियो नियंत्रित कार पर एक लेख  लिखा था। इसमे एक ऐसी तकनीक जिसमें भविष्य में बख्तरबंद वाहनों के अनुकूलन का विश्वास दिलाया गया था। नवंबर 1939 में, सोवियत-फिनिश युद्ध के दौरान, सोवियत संघ ने मानव रहित, रेडियो संचालित और रिमोट नियंत्रित टैंकों को तैनात करके अपने विरोधियों को चौंका दिया। ये ‘टेलीटैंक’ मशीनगनों से जुड़े  हुए थे तथा दूसरे टैंक द्वारा रिमोट से नियंत्रित  किये जाते थे। उनकी सफलता ने द्वितीय विश्व युद्ध के प्रारंभिक चरणों में एक्सिस पॉवर्स के विरुद्ध कम से कम दो टेलीटैंक बटालियनों को देखा।  इसमें पीछे न रहने के लिए, जर्मनी ने गोलियत लाइट चार्ज कैरियर विकसित किया, जिसका प्रयोग द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जर्मन सेना द्वारा  एक ट्रैक  यूजीवी के डिस्पोजेबल विध्वंस वाहन के रूप में  किया गया। ‘ट्रू ब्लड’ यूजीवी के पहले महत्वपूर्ण विकास का श्रेय यूएस की डिफेंस एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट्स एजेंसी (डीएआरपीए) को दिया गया। यह मशीन नेविगेशन और असाइन किए गए रोबोटिक कार्यों को निर्देशित करने के लिए कैमरा, सेंसर और एक ऑन-बोर्ड कंप्यूटर से लैस थी।  इस क्षेत्र में  विकास के पश्चात्, उन्नत रोबोटिक्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) में अनुसंधान के लिए डीएआरपीए ने सामरिक कंप्यूटिंग पहल के  रूप में, स्वायत्त भूमि वाहन  प्रदर्शित किया, जो पहला यूजीवी है जो पूर्ण स्वायत्त नेविगेशन में सक्षम है।

भारत की यूजीवी कहानी

भारत का रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन  (डीआरडीओ) पारंपरिक रूप से स्वदेशी यू जी वी  विकसित करने में अग्रणी  रहा है।  डीआरडीओ ने 1990 के दशक  के आरंभ में यूजीवी  की क्षमता को पहचाना और मौजूदा डोमेन विशेषज्ञता के साथ  इसका विकास आरंभ  किया। इन वर्षों में,  डीआरडीओ के अधीन यूजीवी के विकास के लिए चार भिन्न भिन्न प्रयोगशालाओं को स्थापित किया गया।जो निम्न प्रकार हैं, सेंटर फॉर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एंड रोबोटिक्स (सीएआईआर), बेंगलुरु, कॉम्बैट व्हीकल रिसर्च एंड डेवलपमेंट इस्टैब्लिशमेंट (सी वीआरडीइ) चेन्नई, रिसर्च एंड डेवलपमेंट इस्टैब्लिशमेंट इंजीनियर्स  (आर & डी ई), पुणे और वाहन अनुसंधान एवं विकास प्रतिष्ठान (वीआरडीई), अहमदनगर। यूजीवी की श्रेणियों को मुख्य रूप से ट्रैक्शन (पहिया/ट्रैक) और भार के आधार पर वर्गीकृत किया गया था, जिसके आधार पर सीएआईआर द्वारा माइक्रो/मैक्रो यूजीवी (5 से 50 किग्रा) विकसित किए जाने थे, जो आर एंड डी ई द्वारा एक से तीन टन की सीमा तक  निर्मित किये गएथे। वीआरडीई द्वारा पांच टन तक के पहिये वाले वाहन और सीवीआरडीई द्वारा पांच टन से अधिक के वाहनों को ट्रैक किया गया।

सीवीआरडीई  ने 2007 में  यूजीवी के विकास पर  कार्य आरंभ किया। पहली महत्वपूर्ण  उपलब्धि दूर से संचालित संशोधित  बीएमपी-एनएजी एंटी-टैंक मिसाइल कैरियर (एनएएमआईसीए) का विकास था। इस विकास के परिणामस्वरूप, सीवीआरडीई ने मिशन अनमैन्ड ट्रैक्ड (मुंत्रा)  प्रारंभ किया, जो एक  ऐसी प्रौद्योगिकी प्रदर्शक परियोजना है ,जिसे संबद्ध रोबोटिक्स क्षेत्र में किकस्टा,र्टिंग प्रगति का श्रेय दिया जाता है।  इसमें ड्राइव-बाय-वायर (डीबीडब्ल्यू) सहित कई फ्रंटलाइन प्रौद्योगिकियों का विकास हुआ है।  इनमे से कुछ नाम :टेली-ऑपरेशन, ऑटोनॉमस नेविगेशन सिस्टम (सीएआईआर के सहयोग से), मल्टी सेंसर डेटा फ्यूजन (एमएसडीएफ), रिमोट से संचालित सर्विलांस टेक्नोलॉजी, केमिकल, बायोलॉजिकल, रेडियोलॉजिकल एंड न्यूक्लियर (सीबीआरएन) टोही और माइन डिटेक्शन पेलोड,हैं। इसके  अतिरिक्त सीवीआरडीई उन चार प्रयोगशालाओं में से एक है जो भारत-सिंगापुर अंतरराष्ट्रीय सहयोग परियोजना के रूप में होंडा-सीआरवी पर आधारित उच्च गति वाले यूजीवी के विकास में सक्रिय रूप से शामिल हैं।

एनएएमआईसीए पर आधारित प्रोटोटाइप  यूजीवी: स्रोत- drdo.gov.in

 मुंतरा परियोजना

सीवीआरडीई  ने 2007 में मुंतरा परियोजना प्रारंभ की। इस परियोजना का उद्देश्य तीन  बीएमपी-ll एपीसी  को टेलीऑपरेटेड/स्वायत्त यूजीवी प्लेटफार्मों में परिवर्तित करना और निगरानी, सीबीआरएन ​​ टोही और माइन डिटेक्शन/मार्किंग मिशन के मानव रहित मिशनों के लिए पेलोड को लागू करना था। सिस्टम कॉन्फ़िगरेशन में तीन यूजीवी (प्रत्येक पेलोड मिशन के लिए एक) और एक बेस वाहन शामिल हैं। विकसित यूजीवी को निगरानी मिशनों के लिए मुंतरा-एस सीबीआरएन टोही मिशनों के लिए मुंतरा-एन तथा माइन डिटेक्शन/मार्किंग मिशन के लिए मुंतरा -एम नाम दिया गया है।

मूल वाहन  मुंतरा- बी है, जिसके द्वारा यू जी वी को वायरलेस संचार लिंक से टेली-ऑपरेट किया जाता है, इसका उपयोग वीडियो फुटेज और अन्य सेंसर डेटा को रिले करने के लिए भी किया जाता है। मीडिया  द्वारा आमतौर पर रेडियो फ्रीक्वेंसी (आरएफ) संचार, उपग्रह लिंक या वायरलेस फाइबर-ऑप्टिक का प्रयोग किया जाता है, क्योंकि  प्राय शहरी और अव्यवस्थित वातावरण में यूजीवी संचालन के लिए गैर-लाइन ऑफ विजन (एनएलओएस) संचार की आवश्यकता होती है।  समाविष्ट की गयी डीबीडब्ल्यू तकनीक इलेक्ट्रो-मैकेनिकल एक्ट्यूएटर्स के माध्यम से मैनुअल ड्राइवर के नियंत्रण को इलेक्ट्रॉनिक रूप से संचालित नियंत्रणों में परिवर्तित करने की अनुमति देती है।

मुंतरा- एस, निगरानी सेंसर के एक समूह का उपयोग करता है, जिसमें शॉर्ट रेंज बैटलफील्ड सर्विलांस रडार (एसआर- बीएफएसआर) और एक एकीकृत इलेक्ट्रो-ऑप्टिक्स समूह शामिल है जो  वापसी  योग्य कार्बन कम्पोजिट लाइटवेट मास्ट पर लगाया जाता है। इस सर्विलांस समूह  से एकल ऑपरेटर सभी मौसमों, दिन/रात की परिस्थितियों में 18 किमी तक निगरानी  कर सकता हैं। एकत्रित निगरानी डेटा की पूरी श्रृंखला बेस वाहन को प्रेषित की जाती है, जहां इसे ऑपरेटर की जानकारी के लिए प्रदर्शित किया जाता है। जनवरी 2017 में केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) द्वारा निगरानी समूहों का सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया था।

मुंतरा- एम ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार  (जीपीआर) और वेपर डिटेक्शन सिस्टम (वीडीएस) के रूप में माइन डिटेक्शन सेंसर से युक्त है। जीपीआर द्वारा खदान का पता लग जाने  के पश्चात् वाहन स्वतः बंद हो जाता है और वीडीएस द खदान  की पुष्टि करता है। खदान  स्थान को भौतिक रूप से स्प्रे पेंट से चिह्नित कर दिया जाता है तथा बेस व्हीकल के ग्राफिक यूजर इंटरफेस पर भू-स्थित किया जाता है।

मुंतरा-एन में सीबीआरएन टोही और डिटेक्शन पेलोड शामिल है, जिसमें प्राथमिक डिटेक्टर परमाणु विकिरण डिटेक्टर, एक रासायनिक युद्ध एजेंट/विषाक्त औद्योगिक रसायन (CWA सी डब्ल्यू ए /  टी आई) डिटेक्टर और एक जैविक एजेंट (बीए) डिटेक्टर हैं।

MUNTRA UGV की प्रमुख उप प्रणालियाँ: स्रोत- drdo.gov.in

प्रोजेक्ट MUNTRA का सिस्टम कॉन्फ़िगरेशन: स्रोत- drdo.gov.in

दक्ष

दक्ष  एक रिमोट संचालित वाहन (आरओवी) – एक  सूक्ष्म यूजीवी है, जिसे डीआरडीओ द्वारा बिना फटे बमों को बरामद करने के लिए  डिजाइन किया गया है। आरओवी एक शहरी सेटिंग में विभिन्न बाधाओं का सामना  कर सकता है। इसका उपयोग परमाणु और रासायनिक संदूषण स्तरों के सर्वेक्षण और निगरानी के लिए भी किया जा सकता है। आरओवी को  100 मीटर की दूरी पर फाइबर-ऑप्टिक संचार द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है अथवा मास्टर कंट्रोल स्टेशन (एमसीएस) से 500 मीटर से अधिक की दृष्टि दूरी से  वायरलेस संचार द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है। इसके 90% घटक स्वदेशी हैं। आईए ने 20 मशीनों के लिए  ऑर्डर दिया था।

 

टेली-ऑपरेटेड बीडी 50 डोजर: स्रोत- drdo.gov.in

वर्तमान विकास

रक्षा उत्‍पादन के क्षेत्र में नवाचारों और उद्यमिता को प्रोत्‍साहित करने के उद्देश्‍य से  तैयार रक्षा मंत्रालय की पहल  (आई डी इ एक्स) को यूजीवी के क्षेत्र में  रक्षा उत्कृष्टता के लिए अनुकूल प्रतिक्रिया मिली है।

सितंबर 2017 में, सीवीआरडीई ने विभिन्न उच्च क्षेत्रों में भूस्खलन और बर्फ निकासी कार्यों के दौरान मानव जीवन को संरक्षित करने के उद्देश्य से, आईए की विशिष्ट आवश्यकताओं  के लिए, इन-सर्विस बीडी 50 बुल डोजर के आधार पर एक टेली-संचालित बीडी 50 डोजर का विकास किया।  आईए द्वारा  यूजीवी का परीक्षण पहाड़ी क्षेत्रों में किया गया था। कतिपय आपत्तियां उठाई गईं जो सुधार की प्रक्रिया में हैं।

भारत फोर्ज की ईसीएआर यूजीवी: स्रोत- autocarpro.in

सेना प्रौद्योगिकी (एआरटेक) संगोष्ठी-2018 में भारत फोर्ज द्वारा विकसित एक यूजीवी का क्षेत्ररक्षण देखा गया। बाद में आईए द्वारा इस मशीन का परीक्षण मूल्यांकन किया गया।  उसके पश्चात्, विभिन्न शस्त्रों/सेवाओं और सेना कमानों से अनुशंसित पेलोड के संबंध में इनपुट मांगे गए, जिसमें गलवान घटना के बाद नई गति देखी गई। उस को अंतिम रूप दिया जा रहा है।

डिफेंस एक्सपो 2020 में चेन्नई स्थित उद्यमी क्षेत्र ‘सूरन’,   मे एक बख्तरबंद, रिमोट-नियंत्रित 500 किलोग्राम मल्टी-टेरेन, माउंटेड गन-बुर्ज के साथ ऑल-व्हील ड्राइव यूजीवी  प्रदर्शित किया गया। यूजीवी एआई सक्षम है और इसे तीन  प्रकार में संचालित किया जा सकता है: रिमोट से टेली-ऑपरेटेड, मोबाइल कंट्रोल स्टेशन से टेली-ऑपरेटेड और ऑटोनॉमस मोड में। यूजीवी निगरानी और टोही  कार्यो के लिए लंबी दूरी के कैमरों से भी लैस है।

सूरन यूजीवी: स्रोत- nairaland.com

चेन्नई स्थित स्टार्ट-अप टोरस रोबोटिक्स ने आर्मी डिज़ाइन ब्यूरो (  एडी बी) के परामर्श से  डीआरडीओ के लिए एक मोबाइल ऑटोनॉमस रोबोटिक सिस्टम ( एम एआर एस)  यूजीवी विकसित किया है। फर्म के अनुसार, बिजली से चलने वाले यूजीवी को 1 किमी की दूरी से इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (आईईडी) का पता लगाने, पहचानने और निपटाने के लिए डिज़ाइन किया गया है। यूजीवी का उपयोग टोही  कार्य तथा सूचना  एकत्रित करने के लिए भी किया जा सकता है। डीआरडीओ द्वारा  यू जी वी के सत्यापन के पश्चात् 21 फरवरी को आयोजित एयरो-इंडिया 2021 में इसे प्रदर्शित किया गया था। स्टार्ट-अप ने भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड (बीईएमएल) के सहयोग से यूजीवी ने उच्चाई वाले क्षेत्रों में  दस सैनिकों के बराबर भार वहन करने की क्षमता वाले उन्नत संस्करण को विकसित करने के लिए  भारत सरकार के साथ वहीं एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए।

मार्स यूजीवी: स्रोत- yourstory.com

मानव रहित लड़ाकू ग्राउंड व्हीकल (यूसीजीवी) का विकास

एक सक्रिय उपाय के रूप में, सीवीआरडीई ने ट्रैक किए गए यूसीजीवी के डिजाइन और विकास के लिए तीन चरणों की योजना बनाई है। यूसीजीवी वर्तमान बीएमपी-द्वितीय प्लेटफॉर्म का उपयोग करेगा। प्रारंभिक चरणों में रिमोट कंट्रोल्ड वेपन्स स्टेशन (आरसीडब्ल्यू एस), एक सॉफ्ट किल एक्टिव प्रोटेक्शन सिस्टम (एपीएस) और एक मध्यम शक्ति निर्देशित ऊर्जा हथियार ( डी ई डब्ल्यू) प्रणाली के विकास की परिकल्पना की गई है। तीसरे चरण में एक नोव्यू हाई स्पीड ट्रैक्ड व्हीकल प्लेटफॉर्म का विकास किया जायेगा। बढ़ी हुई अग्नि शक्ति के साथ  आर सी डब्ल्यू एस के अतिरिक्त, इस नए  यूसीजीवी में हार्ड किल  ए पी एस, हाई पावर डीइडब्ल्यू, ड्राइविंग कंट्रोल सिस्टम और सक्रियता से रुप परिवर्तन  की संभावना है।

यूसीजीवी का वैचारिक आरेख: स्रोत- drdo.gov.in

 भारतीय यूजीवी  के भविष्य  के दिशा निर्देश। परिप्रेक्ष्य युद्धक्षेत्र परिदृश्यों और उन्नत प्रौद्योगिकियों के लिए  अनुमान लगाया गया है कि स्वदेशी यूजीवी प्रौद्योगिकियां वर्ष 2050 तक वर्तमान टेली-संचालित यूजीवी से स्वायत्त नेटवर्क-केंद्रित यूजीवी में पूरी तरह से स्थानांतरित हो जाएंगी। तदनुसार, स्वदेशी यूजीवी/यूसीजीवी  का लक्ष्य तकनीकी रूप से उन्नत मशीनें  विकसित करना होगा।  जो अनिश्चित वातावरण में जटिल युद्धक्षेत्र में कार्य  करने में सक्षम हो। रिमोट टेली-ऑपरेशन तथा सहायक स्वायत्तता की वर्तमान तकनीक, स्वायत्त नेविगेशन के लिए उन्नत तकनीकों के विकास का मार्ग प्रशस्त करेगी, जो निकट भविष्य में मास्टर-स्लेव अथवा लीडर-फॉलोअर तकनीकों के शोधन के साथ प्रारंभ होगी, जिस प्रकार कठोर भूभाग/युद्धक्षेत्र स्थितियों में स्वायत्त संचालन हेतु  मशीन लर्निंग को बढ़ाने के लिए मुनन्त्रा प्रणाली में विकास किया गया है।

यूजीवी विकास के लिए डीआरडीओ रोडमैप: स्रोत- drdo.gov.in

निष्कर्ष

विभिन्न मंचों पर अपने यूजीवी उत्पादों का प्रदर्शन करने वाले विदेशी विक्रेताओं के  अतिरिक्त, कई स्वदेशी फर्में भी  निगरानी और अन्य सैन्य सहायता कार्यों के लिए यूजीवी विकास के क्षेत्र में  कार्य कर रही हैं। यह देश में बढ़ते मानवरहित वाहन उद्योग का प्रमाण है। यह  ड्रॉइंग बोर्ड से डिजाइन किए गए अथवा मौजूदा वाहन प्लेटफॉर्म  दोनों  प्लेटफोर्मो  से यूजीवी  के विकासशील उद्योग का साक्षी है। वाहन संशोधन किट भी उपलब्ध हैं, जो मैन्युअल रूप से संचालित वाहनों को यूजीवी में परिवर्तित करती हैं। ये प्रौद्योगिकियां मानव सहित/मानव रहित संचालन के विकल्प भी प्रदान कर सकती हैं, तथा परिचालन लाभों को बनाए रखते हुए उपयोग की जाने वाली  सुविधाओं में   वृद्धि कर सकती हैं। इस प्रगति के अनुरूप,   अगले कुछ वर्षों के दौरान  यू जी वी के  वैश्विक बाजार में 8% से अधिक की चक्रवृद्धि- वार्षिक वृद्धि दर से विस्तार होने का अनुमान है, जो इस बात का प्रमाण है कि अब शांति काल तथा  संघर्ष, दोनों  स्थितियों  में  इन मशीनों   के परिचालन लाभों में विश्वास किया जा रहा है।

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लेखक
ब्रिगेडियर अरविंद धनंजयन (सेवानिवृत्त) एक आपरेशनल ब्रिगेड की कमान संभाल चुके हैं और एक प्रमुख प्रशिक्षण केंद्र के ब्रिगेेडयर प्रभारी रहे हैं। उनका भारतीय प्रशिक्षण दल के सदस्य के रूप में दक्षिण अफ्रीका के बोत्सवाना में विदेश में प्रतिनियुक्ति का अनुभव रहा है और विदेशों में रक्षा बलों विश्वसनीय सलाहकार के रूप में उनका व्यापक अनुभव रहा है। वह हथियार प्रणालियों के तकनीकी पहलुओं और सामरिक इस्तेमाल का व्यापक अनुभव रखते हैं।

अस्वीकरण

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