‘युद्ध और कुछ नहीं बल्कि अन्य साधनों के मिश्रण के साथ राजनीति की निरंतरता है।’
—कार्ल वॉन क्लॉज़विट्ज़— युद्ध के बारे में
चीनी रणनीति के सैन्य नेताओं में एक प्राचीन सलाह प्रचलित है: ‘एक जलते हुए घर को लूटो।’ चाल आसान और आत्म-व्याख्यात्मक है-जब आपका प्रतिद्वंद्वी कमजोर हो तो उस पर हमला कर दो। चीन ने इस तथा अन्य कई घृणित प्राचीन सलाहो को ‘पैक्स सिनिका’ की खोज में सर्वोपरि महत्व दिया है।
2008-09 के वित्तीय संकट के बाद, चीनी फर्मों ने दुनिया भर में रियायती सौदेबाजी की, विशेष रूप से रणनीतिक उपयोगिता वाले तत्व जैसे लौह एवं निकल अयस्क, तेल, और अन्य अनेक वस्तुएं जिन पर चीनी अर्थव्यवस्था निर्भर है। अफगानिस्तान में अमेरिका की पराजय की घटना के लिए धन्यवाद, क्योंकि इससे चीन का कोविड-19 का दोष दूर हो गया और उसने विनिर्माण के क्षेत्र में एक प्रमुख शुरुआत की। अफगानिस्तान में कमजोर स्थितियों का लाभ उठाने के लिए उनके पास ललचाने वाले अनेक प्रस्ताव है।
परंतु इस तरह के अवसर प्रस्तुत करने के बावजूद, चीन स्थिर जनसंख्या वृद्धि, व्यापार मॉडल और असफल ‘कॉमन प्रॉस्पेरिटी’ कार्यक्रम से घिरा है। शी जिनपिंग और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के पास 2022 के पार्टी कांग्रेस चुनाव से पहले आम नागरिकों के लिए कुछ भी नहीं है। क्या दुनिया एक और चीन निर्मित संकट की ओर बढ़ रही है? क्योंकि चीन को मिल्टन फ्रीडमैन का आपदा पूंजीवाद पसंद है।
तानाशाहों को आपदा पसंद है
“देशद्रोही के दिल में वफादारी नहीं होती, सिर्फ भरोसेमंद दिखने का झूठा कृत्य होता है।”
–जीसस अपोलिनारिस
मिल्टन फ्रीडमैन बीसवीं सदी के प्रमुख अमेरिकी अर्थशास्त्री थे। वे शिकागो स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के एक प्रतिष्ठित अध्यक्ष थे। 1951 में फ्रीडमैन को चालीस वर्ष से कम उम्र के अर्थशास्त्रियों को उत्कृष्ट उपलब्धि के लिए दिये जाने वाला जाँ बेट्स क्लार्क पदक और 1976 में अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
अपने प्रसिद्ध निबंधों में से एक में, फ्रीडमैन ने कहा, “केवल एक संकट वास्तविक या कथित वास्तविक परिवर्तन लाता है। जब ऐसा संकट आता है तो उस समय की जाने वाली कार्रवाई आसपास के विचारों पर निर्भर करती है। मेरा मानना है कि यह हमारा मूल कार्य है: मौजूदा नीतियों के विकल्प विकसित करना, उन्हें तब तक जीवित और उपलब्ध रखना जब तक कि राजनीतिक रूप से असंभव और अपरिहार्य न हो जाए। उन्होंने ‘आपदा पूंजीवाद’ का विचार रखा।
चीन मिल्टन फ्रीडमैन से प्यार करता है
“चीन के 600 मिलियन लोगों में दो उल्लेखनीय विशेषताएं हैं: सबसे पहले तो वे गरीब है और दूसरा बेरोजगार और खाली हैं। यह बात बुरी लग सकती है, परंतु यह वास्तव में अच्छा है। गरीब लोग बदलाव चाहते हैं, कुछ करना चाहते हैं, क्रांति चाहते हैं। कागज की एक साफ शीट में कोई धब्बा नहीं होता है, इसलिए उस पर नए और सुंदर शब्द लिखे जा सकते हैं, उस पर नए और सुंदर चित्र बनाए जा सकते हैं।”
– प्रोग्राम करने योग्य चीनी लोगों पर माओ के विचार
चीन में फ्रीडमैन – सौजन्य: काटो संस्थान
फ्रीडमैन के विचार साम्यवाद के लिए वरदान थे। उन्हें 1980 में पहली बार चीन में आमंत्रित किया गया था। बाद की उनकी यात्राएं 1988, 1992 और 1993 में हुईं। हाल के वर्षों में, चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के वरिष्ठ अधिकारियों ने फ्रीडमैन के ज्ञान में अपनी अधिक रुचि दिखायी है ।
चीन मिल्टन फ्रीडमैन से प्यार करता था। उन्होंने महसूस किया कि उनका सिद्धांत न केवल अन्य देशों पर बल्कि उनके अपने नागरिकों पर भी लागू किया जा सकता है। वे समझते थे कि युद्ध, तख्तापलट, आतंकवादी हमले, बाजार दुर्घटना, प्राकृतिक आपदा या महामारी जैसी चौंकाने वाली घटना से पहले देशों या नागरिकों को आर्थिक उपलब्धियों के एक उत्तम स्तर पर ले जाना होगा। जब देश या उसके नागरिक इस घटना से निपट रहे हो, तो उस समय उनको भ्रमित करना, लोकतंत्र को रोकना, मुक्त बाजार नीतियों पर अत्यधिक बल देना बहुत सरल है, जिससे गरीबों और मध्यम वर्ग की कीमत पर चीन के कुछ चुनिंदा लोग समृद्ध हो सके। चीन ने फ़्रीडमैन की कार्यप्रणाली का नवप्रवर्तन और विभाजन किया :
सभी चरणों के पूरा होने पर, देशों/नागरिकों को नापसंद पूर्व की अस्वीकार्य नीतियों को उचित ठहराया जा सकता है और संकट के नाम पर एक स्थायी स्थिरता बनाई जा सकती है। इसका प्रमुख उदाहरण 1917 में एक अस्थायी युद्ध के लिए कनाडा में आयकर की शुरूआत थी, युद्ध समाप्त हो गया, लेकिन आयकर बना रहा।
आर्थिक वर्चस्व चरण
यह पूरी रणनीति का अत्यंत महत्वपूर्ण हिस्सा है। देशों/नागरिकों में आर्थिक समृद्धता के सशक्तिकरण की भावना उत्पन्न करनी चाहिए। उन्हें एक प्रकार का नशा होना चाहिए जो उन्हें आर्थिक रूप से सफल होने का झूठा उत्साह दे। देशों/नागरिकों को प्रचुर मात्रा में ऋण और मुक्त-अस्थायी पूंजी उपलब्ध होनी चाहिए। उन्हें ऐसे समृद्ध समय के प्रदाता के प्रति स्वयं को ऋणी और बाध्य महसूस करवा दो। देशों/व्यक्तियों को कभी भी यह महसूस न हो सके कि वे अपने खर्च पर कुछ चुनिंदा लोगों को अमीर और सफल बना रहे हैं।
इस चरण को पूरा करने के लिए चीन अपने नागरिकों को समृद्धि के एक निश्चित स्तर पर ले गया। यह कई गरीब और आर्थिक रूप से अस्थिर देशों के लिए एक तारणहार के रूप में भी उभरा है। हाल के दिनों में चीन सबसे बड़ा ऋणदाता और निवेशक है। 2008 के वित्तीय संकट से लेकर 2020 की कोवड-19 महामारी तक चीन के ऋण और निवेश से संबंधित कुछ तथ्य निम्न प्रकार हैं :
इस चरण का एक और महत्वपूर्ण घटक-मजबूत राष्ट्रों को धोखा देना है। संयुक्त राज्य अमेरिका के अतिरिक्त, चीन ने महसूस किया कि अगले चरण में आने से पूर्व उसे यूरोपीय वित्तीय और तकनीकी शक्ति का उपयोग करना चाहिए। चीन की रणनीति सरल है-लूटो, उसका प्रतिरूप बनाओ, बदलो। यदि यह संभव नहीं है तो अंतिम विकल्प तकनीकी रूप से उन्नत यूरोपीय कंपनियों में निवेश करना है। हाल के दिनों में चीन द्वारा यूरोप में कुछ सबसे आश्चर्यजनक अधिग्रहण निम्न हैं :
यूके अधिग्रहण :
इतालवी अधिग्रहण:
भय और विस्मय चरण
भय और विस्मय चरण के दो भाग हैं। भय एक स्पष्ट प्रणाली का अनुसरण करता है। एक बार जब अन्य देश/नागरिक पूरी तरह से चीनी ऋणों और निवेशों में फंस जाते हैं, तो चीन संकट की प्रतीक्षा करता है, मदद करता है, कुछ या सभी शासी मानदंडों को निलंबित करता है, और फिर जितनी जल्दी हो सके चीन कमुनिस्ट पार्टी (सीसीपी) की इच्छा सूची को आगे बढ़ाता है।
सीसीपी ने इस क्रांति के तुरंत बाद जान लिया कि सीसीपी द्वारा पर्याप्त उन्माद के साथ तैयार की गयी कोई भी अशांत स्थिति उनके एजेंडे को आगे बढ़ा सकती है। यह एक सैन्य गतिरोध, आर्थिक आघात, बजट संकट या महामारी या जैव हमले जैसी जीवन के लिए घातक स्थितियों के रूप में एक बड़ी घटना हो सकती है। संकट की स्थिति का लाभ उठाते हुए, सीसीपी एक घबराई हुई आबादी/देश को सामाजिक सुरक्षा, या भारी खैरात देने में सक्षम होगा, उन संस्थाओं को सीसीपी के नेतृत्व के लिए मजबूर करेगा (मेरे शब्दों को चिह्नित करें, एवरगार्ड उस दिशा में बढ़ रहा है)।
वर्तमान कोविड-19 महामारी ने सीसीपी को भय और विस्मय चरण को खौफ के रूप में प्रस्तुत करने का सही अवसर प्रदान किया। जबकि दुनिया मीडिया की आड़ में अलग-थलग पड़ी थी, चीन ने खुद को एक बड़े भाई के रूप में प्रदर्शित किया। इसने कहा कि“हमने 130 से अधिक देशों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को कोरोनावायरस से लड़ने के लिए सहायता प्रदान की है। हम अन्य सरकारों के साथ भी मिलकर काम कर रहे हैं और हम उनकी मदद करेंगे।” इसने मीडिया कवरेज की पूरी चकाचौंध में फेस मास्क, सुरक्षात्मक सूट, थर्मामीटर, वेंटिलेटर, परीक्षण किट और सुरक्षात्मक चश्मे सहित चिकित्सा आपूर्ति का निर्यात किया है। देश और प्रसिद्ध हस्तियां वायरस की उत्पत्ति के विषय पर चीन को प्रताड़ित करना भूल गयी, बल्कि चीन के गीत गाने लगे। चीनी नागरिक उनके नेतृत्व की क्षमताओं और ज्ञान से अभिभूत है।
भय और विस्मय का लाभ तुरंत देखने को मिला। अड़सठ देशों और चार अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने चीनी निर्माताओं के साथ अनुबंध पर हस्ताक्षर किए। जून 2020 में, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने घोषणा की कि चीन “प्रासंगिक अफ्रीकी देशों” के ब्याज मुक्त ऋण को माफ कर देगा। हालाँकि, यह चीनी ऋणों का मात्र 2-3% हैं। चीन जो वास्तव में संकट में पड़े देशों की मदद के लिए कभी सामने नहीं आता, उसने खुद को एक बहुत ही उदार राष्ट्र के रूप में चित्रित किया है। इसके विपरीत, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिकी मार्शल योजना में अनुदान और सहायता की 90% धनराशि थी।
सैन्य या राजनीतिक वर्चस्व चरण
“संकट को अवसर में बदलना संभव है, विश्व में मेड इन चाइना की निर्भरता को बढ़ाने के लिए” – हान जियान, नागरिक मामलों के मंत्रालय के निदेशक।
वर्तमान में हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) और दक्षिण चीन सागर (एससीएस) चीनी रणनीति का सबसे महत्वपूर्ण पहलू हैं। एससीएस में चीन की स्थिति काफी मजबूत है यद्यपि, आईओआर इसकी अकिलीज़ हील बना हुआ है। इसकी 80 प्रतिशत व्यापार और ऊर्जा आवश्यकताओ को आईओआर के माध्यम से ही पूरा किया जाता है। आईओआर में, भारत चीन को चुनौती दे सकता है और उसकी आपूर्ति लाइनों को बंद करने में सक्षम है।
चीन ने भारत में अपने 26 अरब डॉलर के निवेश के साथ खुद को प्रमुख स्थिति में माना है। अलीबाबा ने अपने सहयोगी एंट फाइनेंशियल (ग्रुप) के जरिए भारतीय यूनिकॉर्न पेटीएम, बिगबास्केट, स्नैपडील और जोमैटो में 2.6 अरब डॉलर का निवेश किया। टेंशंट और अन्य कंपनियों ने ओला, स्विग्घी, हाइक, ड्रीम 11 और बॉयजु में 2.4 बिलियन डॉलर का निवेश किया। चीन ने अपनी मानक प्रथाओं के अनुसार भारतीय विनिर्माण क्षेत्र को बहुत कुशलता से समाप्त कर दिया। आज भारतीय विनिर्माण अपने सकल घरेलू उत्पाद से 9 अंक नीचे है। चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 2018 में 53.56 बिलियन डॉलर के आश्चर्यजनक आंकड़े तक पहुंच गया था, जब भारतीय निर्माताओं ने अपने कारखाने बंद कर दिए और व्यापारी बन गए।
एक बार जब चीन को आर्थिक वर्चस्व के चरण के पूरा होने का आश्वासन मिल गया, तो उसने भय और विस्मय चरण की प्रतीक्षा की, जो कोविड19 के रूप में सामने आया। (चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने जनवरी 2019 में अपने नेतृत्व को आगाह किया था कि उन्हें “ब्लैक स्वान” से सावधान रहना चाहिए।” यह कहते हुए कि अर्थव्यवस्था गहरे और जटिल परिवर्तनों का सामना कर रही है-महामारी की महामार)।
जब दुनिया चीनी मूल के कोरोनावायरस से जूझ रही थी, चीन अगले चरण में चला गया, वह सैन्य या राजनीतिक वर्चस्व चरण में पहुँच गया। इसने भारत–तिब्बत सीमा, ताइवान, एससीएस, पूर्वी चीन सागर (ईसीएस), पूर्वी तुर्कमेनिस्तान और हांगकांग पर एकतरफा सैन्य कार्रवाई आरंभ कर दी। दुर्भाग्य से, इस आक्रमण का चीन पर उल्टा असर हुआ।
भारत सपने देख रहा था, परंतु शी जिनपिंग की घरेलू मजबूरियों ने विशाल भारत को जगा दिया। लद्दाख क्षेत्र में भारतीय सैनिकों के हाथों 111 चीनी सैनिकों की हार और इसके घरेलू प्रभाव के नुकसान ने शी जिनपिंग को यू-टर्न लेने के लिए मजबूर कर दिया। एससीएस में अमेरिकी और अन्य सहयोगी नौसेनाओं ने अपने गार्ड को कम नहीं किया और चीन को अपनी सेनाओं को रुकने के लिए कहकर इज़्ज़त बचानी पड़ी। हालाँकि, हांगकांग में कठोर कानून बनाने और उइगर आबादी को अपने अधीन करने में यह सफल रहा।
अधिकांश विश्लेषक चीन के दो महत्वपूर्ण कदम-इटली और ईरान से चूक गए। ईरान के साथ, चीन होर्मुज समुद्र खंड में गहराई तक पहुँच गया है, जिसके फल स्वरूप पाकिस्तान का सीपीइसी ठंडे बस्ते में चला गया। लेकिन इन सबके बीच एक बड़ी उपलब्धि यूरोप की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था-इटली की अधीनता है। भूमध्य सागर में इसके बंदरगाह के बुनियादी ढांचे में जबरदस्त व्यापार और सैनिकों का निहितार्थ हैं। इटली पहले से ही गंभीर वित्तीय संकट में था और कोविड 19 के बाद चीन ने इस पर नियंत्रण कर लिया है। इटली सरकार महामारी से निपटने के लिए कदम उठा रही है लेकिन उनके पास अपने व्यवसायों को दिवालिया होने या चीन द्वारा अधिग्रहण से बचाने की कोई वास्तविक योजना नहीं है।
उपहार देने वाले यूनानियों से सावधान रहें
“पांच वर्ष पहले, मुझे यकीन था कि चीन शांति से उठ सकता है, उसके अनुसार जो वह चाहता भी है। अब, मुझे इसका यकीन नहीं है” -शी यिनहोंग, चीन के सबसे प्रख्यात विदेश नीति टिप्पणीकार।
आज दो बातें समानांतर रूप से हो रही हैं। यूरोपीय देश इटली, ब्रिटेन और जर्मनी चीन के खतरे से सावधान हो रहे हैं। इटली ने ड्रोन कंपनी एल्पी एविएशन के अधिग्रहण की जांच आरंभ कर दी है और ट्रक निर्माता इवेको स्पा की बिक्री रोक दी गयी है। यूके ने सबसे बड़े सेमीकंडक्टर निर्माता, न्यूपोर्ट वेफर फैब के अधिग्रहण और एसेक्स परमाणु ऊर्जा स्टेशन में साझेदारी को रोक रहा है। हालाँकि, पाकिस्तान और श्रीलंका जैसे विकासशील देशों में, चीनी गतिविधियाँ बिना किसी चुनौती के जारी हैं।
चीन को अपने इरादे में इस बार आंशिक रूप से सफलता मिली है परंतु वह किसी भी तरह से पीछे नहीं है। वर्तमान खतरा बहुत स्पष्ट है। शी जिनपिंग हताश हैं, समय से आगे भाग रहा हैं, और अपने दृष्टिकोण के प्रति लापरवाह हो रहा हैं। अगर विश्व एक साथ नहीं आयेगा और अपने निजी लालच से ऊपर नहीं उठेगा, तो वह दिन दूर नहीं जब चीन अधिक तीव्र प्रहार करेगा। वह पहले से ही इसका एक नया सामान्य रूप स्थापित करने में सफल रहा है। कोविड-19 के पश्चात के संभावित स्थायी परिवर्तनों को लेकर मीडिया में अटकलें जारी हैं। सोशल मीडिया विश्लेषण के अनुसार जनता के बीच अब इस बात पर सामान्य समर्थन है कि चीजें फिर कभी पहले जैसी नहीं होंगी। इससे पता चलता है कि चीन द्वारा आपदा-पूंजीवाद की नीतियों को लागू करने के लिए कैसे एक ही बार में वातावरण तैयार कर लिया। फ्रीडमैन अपनी कब्र में परेशानी होकर शेक्सपियर की इन पंक्तियों को याद कर रहे होंगे, “मनुष्य द्वारा की गयी प्रत्येक बुराई उनके साथ रहती हैं; अच्छाई अक्सर उनकी हड्डियों से जुड़ी होती है।”
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