• 04 October, 2024
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भारत-फ्रांस में सामयिक व सामरिक वार्ता

डॉ सुरेंद्र कुमार मिश्र
शुक्र, 12 नवम्बर 2021   |   5 मिनट में पढ़ें

भारत और फ्रांस ने रणनीति वार्ता के 35वें सत्र के अवसर पर हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा को सुदृढ़ व सशक्त बनाने का निर्णय लिया और अफगानिस्तान के वर्तमान परिदृश्य की भी इस अवसर पर विशेष परिचर्चा की गई। फ्रान्स के यूरोप व विदेश मामलों के मंत्री जीन-यवेस ले ड्रियन तथा भारतीय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के बीच आतंकवाद और अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे से उत्पन्न सामयिक परिस्थितियों की विस्तृत विवेचना की गयी। दोनों देशों ने इस अवसर पर विशेष रूप से हिन्द प्रशान्त क्षेत्र में शान्ति, स्थिरता व सुरक्षा स्थापित करने के लिए सुदृढ़ समुद्री सुरक्षा, सामरिक साझेदारी व आपसी सहयोग के बढ़ाने के साथ ही आर्थिक विकास और विधि सम्मत व्यवस्था स्थापित करने हेतु सक्रिय सहयोग करने का भी निर्णय लिया। इसके साथ ही इस अवसर पर विशेष रूप से वैश्विक सुरक्षा परिदृश्य की भी चर्चा की गयी। फ्रान्सीसी मंत्री जीन-यवेश ले ड्रियन ने इस अवसर पर दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी को सुदृढ़ करने और इसके विभिन्न पहलुओं को सशक्त व सक्षम करने की प्रतिबद्धता पर बल दिया।

बहुचर्चित इस कूटनीतिक वार्ता में भारतीय प्रतिनिधि मण्डल का नेतृत्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और फ्रान्स के प्रतिनिधि मण्डल का नेतृत्व फ्रान्सीसी राष्ट्रपति के कूटनीतिक मामलों के सलाहकार इमैनुएल बोन द्वारा किया गया। इस अवसर पर क्षेत्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय हितों के सन्दर्भ में सम-सामयिक समस्याओं एवं उनके निदान हेतु आवश्यक कदमों के बारे में विस्तृत बातचीत भी की गयी। इस चर्चा में दोनों देशों के शीर्ष अधिकारियों ने हिन्द प्रशान्त क्षेत्र के सामरिक व आर्थिक महत्व की मीमान्सा विशेष रूप से की और समुद्री सुरक्षा को और अधिक सक्षम, सशक्त एवं स्थिर बनाने हेतु सहयोग बढ़ाने पर आपसी सहसमति व्यक्त की। यह नितांत सत्य है कि समुद्री सुरक्षा सहयोग के सन्दर्भ में भारत और फ्रान्स रणनीतिक साझेदारी का एक अत्यन्त महत्वपूर्ण पहलू बनता जा रहा है। समय एवं परिस्थितियों को विशेष रूप से ध्यान में रखते हुए फ्रान्स ने भू-राजनीतिक तथा भू-कूटनीतिक परिदृश्य को स्वीकार करते हुए हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र में एक प्रमुख राष्ट्र के रूप में अपनी अहम् भूमिका निभाने के लिए भी विशेष रूप से उत्सुक है। इसके पीछे फ्रान्स की एक दूरदर्शी सोच व ‘आकस’ संगठन में अमेरिका द्वारा शामिल न किये जाने के बाद का एक सामयिक व सामरिक अवसर का लाभ उठाने की सोच भी समाहित है।

फ्रान्स तथा भारत वर्ष 1998 से ही एक दूसरे के सामरिक साझेदार रहे हैं। रक्षा, अन्तरिक्ष और असैन्य परमाणु सहयोग में फ्रान्स ने भारत को सक्रिय सहयोग दिया है और द्विपक्षीय सम्बन्धों के पारस्परिक फोकस क्षेत्र रहे हैं। वास्तव में दोनों देशों के सम्बन्धों में समुद्री सुरक्षा सहयोग निरन्तर गहरा होता जा रहा है। फ्रान्स के सहयोग से देश में ही ‘प्रोजेक्ट-75’ के तहत बनाई गयी चौथी पनडुब्बी भारतीय नौसेना को सौंप दी गई। इस परियोजना के तहत स्कॉर्पियन डिजाइन की छः पनडुब्बी बनाई जा रही हैं। यह सच है कि हिन्द प्रशान्त क्षेत्र केवल भारत के लिए ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण विश्व के लिए एक महत्वपूर्ण क्षेत्र बन गया है। हिन्द प्रशान्त क्षेत्र में भारतीय रणनीति यही रही है कि इस क्षेत्र के सभी देशों के साथ समुचित एवं संतुलित रूप से सहयोग व समर्थन लिया जाये, ताकि शान्ति, स्थिरता एवं सुरक्षा के प्रयासों को सफल एवं सार्थक बनाया जा सके और इस क्षेत्र का आर्थिक विकास किया जा सके। वास्तव में चीन की विस्तारवादी सोच के कारण हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र अत्यन्त ही संवेदनशील बन चुका है और इसके फलस्वरूप ही अमेरिका, जापान, आस्ट्रेलिया व भारत सहित विश्व के अनेक देश प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से प्रभावित एवं परेशान नज़र आ रहे हैं। उल्लेखनीय है कि फ्रान्स जहां दुनिया की एक प्रमुख सैन्य शक्ति की पंक्ति में आता है, वहां उसकी सामुद्रिक शक्ति भी विश्व के अग्रणी श्रेणी में आंकी जाती है।

फ्रान्स के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बीच रोम में जी-20 के अवसर पर बैठक आयोजित हुई। जिसमें भारत व फ्रान्स ने अपनी रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करने और उसके विभिन्न पहलुओं को सुदृढ़ व सशक्त बनाने की प्रतिबद्धता पर विशेष बल दिया। यह कटु सत्य है कि हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र की सुरक्षा एक बड़ी रणनीतिक चुनौती है और इस क्षेत्र में संतुलन स्थापित करने के लिए फ्रान्स से प्रत्यक्ष एवं मूर्त रूप से सहयोग प्राप्त करना भी जरूरी है। भारत और फ्रान्स आवश्यक इण्टेलीजेन्स इन्फॉरमेशन और पारस्परिक क्षमताओं को सुदृढ़ व सशक्त बनाने के माध्यम से द्विपक्षीय रक्षा व सुरक्षा साझेदारी को समुचित शक्तिशाली करने हेतु सहमति व्यक्त की है। वर्ष 2022 की पहली छमाही में यूरोपीय संघ की फ्रान्सीसी प्रेसीडेंसी से हिन्द प्रशान्त क्षेत्र में यूरोपीय संघ के सम्बन्धों को एक नया स्वरूप देने की आशा व्यक्त की गयी है, जिसमें सुरक्षा सम्पर्क (कनेक्टिविटी) और आर्थिक विकास को विशेष रूप से शामिल किया गया है।
भारत-फ्रान्स समुद्री सहयोग को सुदृढ़ बनाने हेतु हिन्द महासागर क्षेत्रीय संगठन (आई.ओ.आर.ए.) हिन्द महासागर आयोग (आई.ओ.सी.) तथा हिन्द महासागर नौसेना संगोष्ठी (आई.ओ.एन.एस.) आदि प्रमुख क्षेत्रीय मंचों के आधारभूत संघ हैं। हाल के ही कुछ वर्षों में हिन्द महासागर के सामरिक व आर्थिक महत्व को विशेष रूप से नज़र में रखते हुए ही दोनों देशों के बीच समुद्री सुरक्षा सहयोग में सार्थक एवं सक्षम विकास हुआ है। हिन्द प्रशान्त क्षेत्र में अपने विस्तारित आर्थिक, समुद्री सामरिक एवं राजनयिक लक्ष्यों के साथ भारत सम्पूर्ण क्षेत्रीय देशों के साथ सम्बन्ध विकसित करने के लिए उत्साहित व ऊर्जावान सदैव ही रहा है। भारत-फ्रान्स द्विपक्षीय वार्ता में हिन्द महासागर एक अत्यन्त गंभीर एवं संवेदनशील मुद्दे के रूप में माना गया है।

जुलाई माह में भारतीय नौ सेना के जलयान आई.एन.एस. ‘ताबर’ द्वारा भारत-फ्रान्स सहयोग अभ्यास पूरा किया गया। फ्रांसीसी नौ सैनिक जलयान एफ.एन.एस. ‘एक्विटाइन’ के साथ समुद्री साझेदारी अभ्यास बिस्के की खाड़ी में हुआ। इस दौरान एन.एच. 90 हेलीकाप्टर और सहयोग अभ्यास हेतु फ्रान्सीसी नौसेना के साथ चार अति आधुनिक ‘राफेल’ विमानों को भी जोड़ा गया। इस नौसैनिक अभ्यास के तहत-‘सतह पर युद्ध का अभ्यास’, समुद्री दृष्टिकोण पर पुनः पूर्ति, लक्ष्य पर गोलाबारी वर्टिकल रिप्लेसमेंट और फ्रांस-डेक का भी अभ्यास करवाया गया, ताकि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अनुकूल रहकर शत्रु को समय पर ही सही सबक सिखाया जा सके। हिन्द महासागर क्षेत्र में चीन का मुकाबला करने के लिए अप्रैल में फ्रान्स व भारत ने ‘‘ला पेरोस’’ में बंगाल की खाड़ी में संयुक्त अभ्यास में भाग लिया। फ्रांस व भारत के बीच ‘पांचवी समुद्री सहयोग वार्ता’ 11 अक्टूबर 2021 को पेरिस में भारत के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार पंकज सरन और फ्रान्स के एम. मार्सेल एस्क्योर की उपस्थिति में आयोजित किया गया। इसमें समुद्री सुरक्षा और अन्य रक्षा क्षेत्रों में दोनों देशों का सहयोग परियोजनाओं को विकसित करने और उन्हें सुदृढ़ बनाने की बात हुई। इसके साथ ही हिन्द-प्रशान्त क्षेत्र में सभी प्रतिबद्धता की पुष्टि भी की गयी।

भारत-फ्रान्स द्वारा रक्षा, सुरक्षा व शान्ति हेतु साझेदारी बढ़ाने की सहमति सामरिक एवं राजनयिक दृष्टिकोण से अत्यन्त ही महत्वपूर्ण है। चूंकि फ्रान्स ने ‘आत्मनिर्भर भारत’ के दृष्टिकोण तथा रक्षा औद्योगिकीकरण, संयुक्त अनुसंधान तथा प्रौद्योगिकी प्रगति को उन्नत क्षमताओं की एक विस्तृत श्रंखला में पूरी तरह से समर्थन देने के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है। भारत के साथ सामरिक सहयोग का विस्तार करने के लिए फ्रान्स की पुनरावृत्ति ‘आकस’ (आस्ट्रेलिया, यू.के. तथा यू.एस.) के इस नये सुरक्षा गठबन्धन के अनावरण के लगभग दो माह बाद हो रही है- जिसे हिन्द प्रशान्त क्षेत्र में चीन की आक्रमणता के प्रतिकार के रूप में माना जाता है। विशेष रूप से उल्लेखीय है कि ‘आकस’ गठबन्धन की अप्रत्याशित घोषणा, जिसमें आस्ट्रेलिया के लिए पनडुब्बियों का निर्माण शामिल है, कैनबवरा द्वारा पेरिस के साथ एक अलग पनडुब्बी सौदे से बाहर निकलने के बाद फ्रान्स सरकार को नाराज कर दिया था। इससे भी फ्रान्स को एक बड़ी राहत मिली है।

निःसन्देह भारत-फ्रान्स रक्षा सहयोग एक सशक्त स्तम्भ है, चूंकि फ्रान्स भारत के सबसे बड़े रक्षा आपूर्तिकर्ताओं में से एक प्रमुख राष्ट्र है। सूचना संलयन केन्द्र में एक सम्पर्क अधिकारी तैनात करने वाला पहला देश भी है और पहला देश भी है, जिसके साथ भारत ने संयुक्त गश्त की है। यह दोस्ती ‘समुद्री साइबर’, आतंकवाद की निरन्तर चुनौती’ और ‘अन्तरिक्ष क्षेत्रों में उभरते खतरों’ का सामना करने में सहायक होगी। इसके साथ ही यह मित्रता वायु, सतह, समुद्र तथा साइबर डोमेन में नवीनतम रक्षा प्रौद्योगिकी के विकास में भारत के लिये सहायक सिद्ध होगी। भारत-फ्रान्स का यह रक्षा सहयोग शान्ति, स्थिरता व विकास हेतु सुदृढ़ समुद्री सुरक्षा का एक बड़ा आधार प्रमाणित होगा। यह रणनीतिक साझेदारी बहुपक्षवाद को मजबूत बनाने और हिन्द-प्रशान्त अन्तरिक्ष की रक्षा के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि भारत व फ्रान्स केवल एक सामरिक एवं रणनीतिक सहयोगी ही नहीं, बल्कि विश्व शान्ति एवं मानवीय मूल्यों की सुरक्षा के प्रति भी अपने उत्तरदायित्वों के प्रबल पक्षधर भी हैं।

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लेखक
डॉ सुरेंद्र कुमार मिश्र डिफेंस स्टडीज में पीएचडी हैं और इनका हरियाणा के विभिन्न गवर्नमेंट कालेजों में शिक्षण का अनुभव रहा है। वह जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी जोधपुर के विजिटिंग फेलो हैं। ‘रक्षा अनुसंधान’ और ‘टनर’ नामक डिफेंस स्टउीज रिसर्च जरनल से जुड़े हैं। 15 सालों का किताबों के संपादन का अनुभव है और करीब 35 सालों से देश के विभिन्न समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में लिख रहे हैं। डिफेंस मॉनिटर पत्रिका नई दिल्ली के संपादकीय सलाहकार हैं। उन्हें देश की रक्षा व सुरक्षा पर हिंदी में उल्लेखनीय किताब लिखने के लिए भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय से वर्ष 2000, 2006 और 2011 में प्रथम, तृतीय व द्वितीय पुरस्कार मिल चुका है। इन्होंने पांच रिसर्च प्रोजेक्ट पूरे किए हैं, इनकी 47 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं और 300 से अधिक रिसर्च पेपर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय जरनल में छप चुके हैं।

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