14 जून 2020 को चीनी सैनिकों ने अचानक गलवान घाटी में नियंत्रण रेखा पर पेट्रोलिंग पॉइंट 14 के पास अपनी एक निगरानी चौकी और सैनिकों के लिए टेंट लगा दिए जो दोनों देशों के बीच हुए समझौते के विरुद्ध था। 15 जून की सुबह उस क्षेत्र में तैनात भारतीय सेना की 16 बिहार इन्फैंट्री बटालियन को जब इसकी सूचना मिली तो बटालियन के कमान अधिकारी कर्नल संतोष बाबू ने इस कब्जे को शांतिपूर्वक हटाने के लिए अपने समकक्ष चीनी अधिकारी से बातचीत करने के लिए पॉइंट 14 के पास जाकर एक मीटिंग बुलाई। कर्नल बाबू के समझाने के बावजूद चीनी सैनिक अपने कब्जे को हटाने के लिए तैयार नहीं हुए और भारतीय सैनिकों को आतंकित करने के लिए कर्नल बाबू के साथ हाथापाई करने लगे। जिसके बाद भारतीय सैनिकों ने इसका जमकर मुकाबला किया जिसमें भारतीय सैनिकों ने 44 चीनी सैनिकों को मार गिराया। इसमें 22 भारतीय सैनिक भी वीरगति को प्राप्त हुए। नियंत्रण रेखा पर शांति बनाए रखने के लिए 1993 और 96 का भारत-चीन के बीच हुआ समझौता टूट गया।
सेना की युद्ध प्रणाली के अनुसार दोनों देशों की सेना विवादित सीमा पर अपने सैनिक साजो सामान और हथियारों के साथ तैनात की जाती है, परंतु गलवान में 15 जून 2020 को दोनों देशों के सैनिक इस विवादित क्षेत्र में बगैर हथियारों के क्यों थे?
1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद धीरे धीरे दोनों देशों के बीच में शांति प्रक्रिया शुरू हो गई जिसके अनुसार दोनों के अंदर बेहतर संबंध बनाने का प्रयास राजनयिक स्तर पर किया जाने लगा। इसी समय 90 के दशक में आर्थिक प्रगति का युग आया जिसमें आर्थिक और व्यापारिक हितों के कारण विश्व के देश अन्य देशों के बाजारों के लिए संबंधों को बेहतर बनाने लगे। चीन भी उस समय एक उभरती हुई आर्थिक व्यवस्था थी और उसे भारत का बड़ा बाजार अपने आर्थिक हितों के लिए उपयोगी नजर आने लगा। इसके आकर्षण में चीन ने भारत के साथ संबंधों को बेहतर बनाने के लिए सीमाओं पर तनाव को कम करने के प्रयास शुरू कर दिए। दोनों देशों में राजनीतिक और राजनयिक स्तर पर बातचीत शुरू हो गई। इसी प्रयास में लद्दाख और अक्साई चीन की पूरी सीमा पर तनाव को कम करने के लिए 7 सितंबर 1993 को एक समझौता किया गया जिसमें मुख्यत्या निर्धारित किया गया कि दोनों देश एक दूसरे की संप्रभुता, अखंडता, सीमाओं की सुरक्षा, एक दूसरे के आंतरिक विषयों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे तथा नियंत्रण रेखा पर शांति बनाकर रखेंगे। दोनों के बीच विवादों को बातचीत के जरिए डिप्लोमेटिक और राजनीतिक स्तर पर शांति पूर्वक निपटाया जाएगा। उक्त समझौते को और व्यापक और प्रभावशाली बनाने के लिए 29 नवंबर 1996 में 1993 के समझौते में यह और जोड़ा गया की नियंत्रण रेखा के दोनों तरफ दोनों देशों के सैनिक 2 किलोमीटर की सीमा में बगैर हथियार के गश्त करेंगे और क्षेत्र में कोई निगरानी चौकी भी नहीं होगी। परंतु चीनी सैनिकों ने 14 जून 2020 की रात में इन समझौतों के विरुद्ध जाकर तनाव पैदा करने की कोशिश की जिसके द्वारा चीनी सैनिकों ने नियंत्रण रेखा के पेट्रोलिंग पॉइंट 14 के पास नियंत्रण रेखा पर एक निगरानी चौकी और सैनिकों के रहने के लिए टेंट लगा दिए।
चीन के रग-रग में है धोखा
गलवान घाटी पूर्वी लद्दाख में स्थित है। इसके पश्चिम में लद्दाख है तथा इसका दूसरा पूर्वी किनारा चीन के कब्जे वाले अक्साई चीन से मिलता है। इस घाटी में अक्साई चीन से निकलने वाली गलवान नदी बहती है जो आगे जाकर लद्दाख में सायोक नदी में मिल जाती है। गलवान घाटी के पश्चिम में ही भारतीय क्षेत्र में लेह को दौलत बेग ओल्डी को जोड़ने वाली सड़क स्थित है। शुरू से ही चीन इस क्षेत्र में भारत द्वारा सड़क निर्माण का विरोध कर रहा था, क्योंकि वह इस पूरे क्षेत्र को अपना क्षेत्र बताता है। पिछले कुछ समय से बार-बार चीनी सैनिकों द्वारा तरह-तरह के सीमा उल्लंघन और तनाव की हरकतें की जा रही थी। इनको नियंत्रित करने के लिए दोनों देशों की सेनाओं के बीच में अलग-अलग स्तरों पर बातचीत चल रही थी। 7 जून 2020 को दोनों देशों के उच्चतम सैनिक स्तर लेफ्टिनेंट जनरल रैंक के अधिकारियों के बीच में वार्ता की गई और यह तय किया गया की सीमाओं पर शांति बनाकर रखी जाएगी और 1996 के समझौतों के अनुसार दोनों देशों की सेनाएं बगैर हथियारों के गश्त करेंगी। परंतु चीनी सैनिकों ने अपनी धोखे की आदत के अनुसार 14 जून को इस समझौते का उल्लंघन करते हुए नियंत्रण रेखा पर अपनी निगरानी चौकी स्थापित कर दी। इसको देखते हुए 16 बिहार को उस क्षेत्र में स्थित ब्रिगेड हेड क्वार्टर से चीन के कब्जे को हटाने का आदेश प्राप्त हुआ।
16 बिहार के सैनिकों का निहत्था शौर्य प्रदर्शन
इस आदेश में ब्रिगेड द्वारा बटालियन के एक मेजर स्तर के अधिकारी को अपने सैनिकों के साथ जाकर इस कब्जे को हटाना था। इस क्षेत्र की ऊंचाई कम से कम 14000 फीट है और यहां पर ऑक्सीजन की बहुत कमी है। जहां पर थोड़े से शारीरिक श्रम से भी सांस की कमी महसूस होने लगती है। इसके अतिरिक्त यहां पर पूरे साल ठंड की स्थिति रहती है। इसलिए इस दुर्गम क्षेत्र की स्थिति और मसले की गंभीरता को देखते हुए बटालियन के कमान अधिकारी कर्नल संतोष बाबू ने खुद जाने का निर्णय लिया और 15 जून को शाम के 6:00 बजे उन्होंने अपने चीनी समकक्ष को बातचीत के लिए इस क्षेत्र में बुलाया। निर्धारित समय पर अपने सैनिकों के साथ दोनों देश के अधिकारी बातचीत के लिए मिले। कर्नल बाबू ने उपरोक्त समझौतों के अनुसार इस कब्जे को हटाने के लिए चीनी अधिकारी से कहां परंतु काफी बातचीत के बाद भी चीनी अधिकारी इस कब्जे को हटाने के लिए तैयार नहीं हुआ। इसी समय एक चीनी सैनिक ने अचानक कर्नल बाबू को जोर से धक्का दिया जिससे कर्नल बाबू पीछे गिर गए। भारतीय सैनिकों ने फौरन कर्नल बाबू को संभाला और चीनी सैनिक की अपने कमान अधिकारी के साथ की गई इस गलत हरकत के विरोध में चीनी सैनिकों से निहत्थे ही हाथापाई और मारपीट शुरू हो गई। दोनों देश के सैनिक एक दूसरे पर हाथ पैरों से वार करने लगे। यह हाथापाई करीब 30 मिनट तक चलती रही।
धोखे से हमले की तैयारी में आए थे चीनी सैनिक
कुछ देर के लिए स्थिति शांत हुई परंतु कुछ ही समय बाद पीछे से चीनी सैनिकों का एक झुंड धारदार हथियार और कटीले तार लगे हुए लाठी-डंडों के साथ वहां पर पहुंच गया। भारतीय सैनिकों ने इन अनजान सैनिकों को पहले कभी नहीं देखा था। क्योंकि ऐसे क्षेत्रों में आमने-सामने तैनात सैनिकों को सभी सैनिक पहचाने लगते हैं। परंतु अचानक आए हुए सैनिक कहीं बाहर से लाकर वहां पर इस स्थिति के लिए रखे गए थे। इस नई चीनी सैनिकों की टुकड़ी ने आते ही अपने हथियारों से भारतीय सैनिकों पर दोबारा हमला कर दिया। इसी समय ऊपर की चोटियों पर तैनात चीनी सैनिकों ने बड़े-बड़े पत्थर भारतीय सैनिकों पर डालने शुरु कर दिए। इसको देखते हुए कर्नल बाबू ने अपने सैनिकों का मनोबल बढ़ाते हुए उन्हें इन चीनी सैनिकों से टक्कर लेने के लिए उत्साहित किया। बिहारी सैनिकों ने चीनी सैनिकों से ही लाठी-डंडे छीन-छीन कर उन पर ही वार करने शुरू कर दिए। इसी समय ऊपर से एक बड़ा पत्थर कर्नल बाबू के सिर में लगा जिससे वह बुरी तरह घायल हो गए, परंतु इस चोट के बाद भी कर्नल बाबू ने पीछे हटने से मना कर दिया और वह पूरे जोर-शोर से अपने सैनिकों को उत्साहित और उन्हें आगे बढ़कर चीनी सैनिकों का मुकाबला करने के लिए आदेश देते रहे। इस सबके बावजूद भारतीय सैनिकों ने चीनी सैनिकों की इस चौकी को बर्बाद करके उसके टेंटों में आग लगा दी। इन ऊंचाई वाले क्षेत्रों में थोड़े से शारीरिक श्रम से ऑक्सीजन की कमी के कारण थकान महसूस होती है। इसको देखते हुए ही चीनी सैनिकों की दूसरी टोली ने इन भारतीय सैनिकों पर दूसरा हमला किया था जो पहले से इस स्थिति के लिए तैयार पीछे कुछ ही दूरी पर बैठे हुए थे। परंतु बहादुर बिहारी सैनिकों कि एक ही टोली ने शाम 6:00 बजे से लगातार हाथों से ही बिना हथियारों के चीनी सैनिकों का मुकाबला किया। दोनों तरफ के घायल सैनिक गलवान नदी और उसके आसपास के किनारों पर गिरते जा रहे थे। ऐसे समय में बिहार सैनिकों की टोली के साथ आई हुई भारतीय सेना की मेडिकल टीम दौड़-दौड़ कर अपने सैनिकों को फर्स्ट एड और अन्य जरूरी डॉक्टरी सहायता दे रही थी।
जख्मी हुए पर पीछे नहीं हटे कर्नल बाबू
इसी समय कर्नल बाबू जो अपने सैनिकों के साथ सबसे आगे थे उन्हें एक मोटा पत्थर सिर में लगा, जिससे वह बुरी तरह से घायल हो गए। इस स्थिति में उनके साथ मौजूद सैनिकों ने उन्हें पीछे जाने के लिए कहां परंतु कर्नल बाबू ने पीछे जाने से मना कर दिया क्योंकि वह खुद वहां पर रहकर अपने सैनिकों का मनोबल और संचालन करना चाहते थे। रात के 9:00 बजे तक कर्नल बाबू को बहुत सी चोट लग चुकी थी और वह गंभीर रूप से घायल हो गए थे परंतु फिर भी उन्होंने पीछे हटने से मना कर दिया और एक सच्चे वीर की तरह अगली लाइन में रहकर दुश्मनों का मुकाबला करते रहे और अपने सैनिकों का मनोबल बढ़ाते रहें। परंतु अचानक 9:00 बजे दूसरा पत्थर चीनी सैनिकों ने उनके सिर में मारा जिससे वे बेहोश होकर नीचे गलवान नदी में गिर गए और अपना सर्वस्व निछावर करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए। परंतु वीरगति को प्राप्त होने से पहले कर्नल बाबू ने चीनी सैनिकों पर पूर्णतया विजय प्राप्त कर ली थी और उनके नए ठिकाने को नेस्तनाबूद कर दिया था।
नायब सूबेदार नंदू राम सोरेन
सोरेन अपने साथियों को चीनी सैनिकों से मुकाबला करने के लिए अगले लाइन में रहकर उत्साहित कर रहे थे, और दौड़-दौड़ कर अपने साथियों की सहायता भी कर रहे थे। इनके योगदान के कारण भारतीय सैनिक बार-बार एकत्रित होकर चीनी सैनिकों को पूरी तरह परास्त करके पीछे धकेल रहे थे। जिसके कारण चीनी मोर्चे को बर्बाद किया जा सका। अंत में घायल अवस्था में सूबेदार सोरेन भी नदी में गिर गए और वीरगति को प्राप्त हो गए।
हवलदार (गनर) के. पलानी
हवलदार पलानी तोपखाना रेजिमेंट से थे और पास ही के मोर्चे में इस छेत्र में तोपों के टारगेट को पहचानने के लिए तैनात किए गए थे। अपने सैनिकों के संघर्ष को देखते हुए वह भी इस संघर्ष में कूद पड़े और बढ़-चढ़कर उन्होंने बिहार सैनिकों की मदद की। आगे बढ़-बढ़ कर हवलदार पलानी ने चीनी सैनिकों को नियंत्रण रेखा से बाहर किया। इस दौरान पत्थरों और धार दार हथियारों की चोट से गंभीर रूप से घायल होकर वह भी वीरगति को प्राप्त हो गए।
सिपाही गुरतेज सिंह और हवलदार तेजिंदर सिंह, 3 मीडियम रेजिमेंट
यह दोनों भी पलानी की तरह ही तोपखाने की तरफ से यहां पर तैनात थे। इन्होंने भी बिहार सैनिकों के साथ मिलकर चीनी सैनिकों का मुकाबला किया और घायल भारतीय सैनिकों को वह उठा-उठा कर पीछे ला रहे थे, जिनसे उन्हें चिकित्सकीय सहायता मिल सके। इस दौरान इन्होंने 11 भारतीय सैनिकों को पीछे जिंदा हालत में पहुंचाया था। इन दोनों ने अपनी जान की परवाह न करते हुए बढ़-चढ़कर चीनी सैनिकों का मुकाबला करते हुए अपने सैनिकों का मनोबल बढ़ाया और उन्हें सुरक्षित पीछे निकलने में सहायता की। इस प्रयास में सिपाही गुरतेज सिंह वहीं वीरगति को प्राप्त हो गए और इस युद्ध के अकेले हवलदार तेजिंदर सिंह गवाह के रूप में जीवित है।
नायक दीपक सिंह (नर्सिंग असिस्टेंट)
अग्रिम क्षेत्रों में डॉक्टरी सहायता पहुंचाने के लिए सेना की मेडिकल कोर के नर्सिंग असिस्टेंट बटालियन के साथ रहते हैं। इसी डॉक्टरी सहायता के लिए नायक दीपक सिंह 16 बिहार के साथ पोस्टेड थे। वह भी इस सैनिक पार्टी का हिस्सा थे। नायक दीपक सिंह ने जब देखा की भारतीय सैनिक इतने कम ऑक्सीजन में चीनी सैनिकों से हाथापाई का युद्ध कर रहे हैं और बार-बार ऑक्सीजन की कमी और चीनी हथियारों से घायल हो रहे हैं तो उन्होंने दौड़ दौड़ कर अपने सैनिकों को फर्स्ट एड तथा अपने ऑक्सीजन सिलेंडर से ऑक्सीजन देकर उनकी जान बचाई। जिससे भारतीय सैनिक दोबारा चीनी सैनिकों से मुकाबला करने के लिए तैयार होते रहे। माइक दीपक सिंह ने 30 सैनिकों की इस युद्ध में जान बचाई। इसी क्रम में अपना योगदान देते देते दीपक सिंह भी वीरगति को प्राप्त हुए।
तो अक्साई चिन की तरह फिर जम जाते चीनी सैनिक
यदि 15 जून 2020 को बिहार बटालियन के इन वीर सैनिकों ने चीनी सैनिकों के मोर्चे को तबाह और बर्बाद ना किया होता तो आज यह चीनी सैनिक क्षेत्र में अपने और ठिकाने बना लेते और उनमें उसी प्रकार जम जाते जैसे पिछले 1959 से अक्साई चिन क्षेत्र में जमे हुए हैं। इसलिए बिहार बटालियन के सैनिकों और कमान अधिकारी कर्नल बाबू ने इस दुर्गम क्षेत्र में अपने अभूतपूर्व बलिदान और वीरता से चीनी सेना को करारी हार देते हुए उन्हें उनकी जगह दिखाई और उन्हें महसूस करा दिया कि अब यह देश हर प्रकार से शक्तिशाली और चीनी सेना को परास्त करने में सक्षम है। पिछले युद्धों में देखने में आया है कि जब-जब पाकिस्तानी और चीनी सैनिक भारतीय सैनिकों के मुकाबले में कमजोर या कम संख्या में थे वह ऐसी स्थितियों में युद्ध भूमि से भागते नजर आए। परंतु गलवान में भारतीय सैनिकों ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया कि वह अपनी मातृ भूमि की रक्षा के लिए हर स्थिति में संघर्ष करने के लिए तैयार हैं।
वीर शहीदों को मिला सम्मान
भारत सरकार ने कर्नल बाबू और उसके साथी सैनिकों की वीरता और बलिदान के लिए उन्हें मरणोपरांत महावीर और 20 वीर चक्रों से सम्मानित किया। कर्नल संतोष बाबू कमान अधिकारी 16 बिहार को महावीर चक्र तथा नायब सूबेदार सुरेन, हवलदार पलानी, नायक दीपक सिंह, सिपाही गुरतेज सिंह और हवलदार तेजेंद्र सिंह को वीर चक् से सम्मानित किया। केबल हवलदार तेजिंदर सिंह ने यह सम्मान जीवित अवस्था में प्राप्त किया है।
गलवान युद्ध से विश्व को चीन का असली स्वरूप नजर आ गया
चीन पूरे विश्व में धोखेबाजी और अमानवता पूर्ण व्यवहार के लिए जाना जाता है। इसके कारण चीन ने अपने पड़ोसी 18 देशों जिनमें भारत, ताइवान, भूटान, ब्रूनी, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, नेपाल और वियतनाम शामिल है, इनकी जमीनों पर जबरदस्ती कब्जा किया हुआ है। अक्सर चीन ने अपने मित्र देश पर साथ शुरू में अच्छा व्यवहार करके उसकी भूमि पर कब्जा कर लिया और बाद में अपने किए हुए करार और संधियों को दरकिनार करके उनके विरुद्ध जाकर यह कब्जे किए हैं। गलवान में भी चीनी सेना ने चीन के द्वारा स्वयं 1993 और 1996 में किए हुए समझौते की अनदेखी करते हुए इस क्षेत्र में अपना मोर्चा बनाने की कोशिश की और इन समझौतों के अनुसार हथियारों की मनाही के बावजूद चीनी सैनिकों ने निहत्थे भारतीय सैनिकों पर हथियारों से हमला किया। इससे पूरे विश्व में यह धारणा फैल गई है कि चीन और उसकी सेना पर विश्वास नहीं किया जा सकता।
चीन हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान में पिछले कुछ समय से साझा आर्थिक गलियारा, एक बेल्ट एक रोड के अंतर्गत निर्माण कर रहा है। चीन की चालों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि निकट भविष्य में चीन पाकिस्तान को एक बड़ा धोखा देकर पूरे पाकिस्तान पर कब्जा कर लेगा। इस प्रकार का संदेश भारत के लोग पाकिस्तानी जनता को बार-बार दे रहे हैं परंतु पाकिस्तान के राजनीतिक नेता अपने स्वार्थ के लिए चीन के असली स्वरूप को पहचानते हुए फिर भी उसके धोखे में आ रहे हैं।
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Ashoke Roy