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राष्ट्रीय मुद्रीकरण योजना (एनएमपी) – भारतीय अर्थव्यवस्था को बल प्रदान करना

डॉ शेषाद्री चारी
बुध, 15 सितम्बर 2021   |   5 मिनट में पढ़ें

संपूर्ण विश्व में संसाधनों की अत्यधिक कमी वाली सरकारों के द्वारा सार्वजनिक  परिसंपतियो को राजस्व के एक निश्चित और  सुगम स्रोत के रूप में मान्यता  प्रदान की गई है।  निर्मित, अप्रयुक्त अथवा कम प्रयुक्त राष्ट्रीय संपत्तियों को अनलॉक किया जाना  बुरा विचार नहीं है, परंतु यदि सरकार को गलत मार्ग पर फंसने से बचना है तो इसे बुद्धिमानी से लागू करने की आवश्यकता होगी। मुक्त बाजार अर्थव्यवस्था वाले अनेक लोकतांत्रिक देशों ने अपने संसाधन जुटाने के लिए परिसंपत्ति मुद्रीकरण प्रक्रिया का उपयोग किया और इसमें बड़ी सफलता के साथ साथ कुछ को अत्यधिक विफलता का अनुभव भी हुआ। आशा है कि वित्त मंत्रालय ने  पूरी प्रक्रिया का अध्ययन किया है, वैश्विक अनुभवों पर विचार किया है और तत्पश्चात एक विश्वसनीय  लक्ष्य निर्धारित किया है।

केंद्र सरकार द्वारा  परिसंपत्तियों  के दिशा  निर्धारण और उन्हें मुद्रीकृत करने के लिए एक महत्वाकांक्षी योजना की घोषणा की  गई है जिससे 2024-25 को समाप्त  आगामी चार वर्षों में अपनी महत्वाकांक्षी बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को आंशिक रूप से निधियां प्रदान करने के लिए लगभग छह ट्रिलियन रुपये एकत्र किए जा सकें।  यदि यह योजना सुस्पष्ट रूप से लागू  होती  है,  तो  वर्तमान वित्त वर्ष  में संपत्ति मुद्रीकरण के माध्यम से लगभग 88,000 करोड़ रुपये एकत्रित होंगे। राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (एनएमपी), विशेष प्रयोजन वाहन (एसपीवी), राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (एनआईपी) में सरकार की 43.29 ट्रिलियन  हिस्सेदारी का 14 प्रतिशत तक जोड़ देगा।

एनएमपी में बारह मंत्रालयों एवं विभागों से युक्त बीस परिसंपतियाँ सम्मिलित होगी जिसमें तीन शीर्ष क्षेत्र रोडवेज, रेलवे और बिजली हैं, जिनकी  कीमत लगभग डेढ़ ट्रिलियन रुपये है। अप्रयुक्त या कम प्रयुक्त उपजाऊ भूमि को भी नीलामी के  मुद्रीकरण ब्लॉक में रखा जाएगा, जो पिछले चार या पांच दशकों में अर्जित ‘ब्लू चिप’ टैग के साथ गर्व से प्रदर्शित  है। 25 हवाई अड्डे, 27 हजार किलोमीटर सड़कें, 6 गीगावॉट बिजली परियोजनाएं, 160 कोयला खदानें, लगभग 8000 किलोमीटर प्राकृतिक गैस पाइपलाइन; चमचमाती  परिसंपत्तियों की  यह सूची अंतहीन है।

कोरोनावायरस महामारी के परिणाम स्वरूप  उत्पन्न आर्थिक मंदी के कारण संसाधनों की  गंभीर  कमी से  अत्यधिक व्यय  हुआ तथा कर संग्रह नगण्य रहा । दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं की यही स्थिति है। ऐसा प्रतीत होता है कि वैश्विक निवेश वातावरण को विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के उत्पादन स्वरूप में  वापिस आने की  अभी प्रतीक्षा  है। बाजारों के जीवंत होने में अब और  अधिक विलंब  से कई उभरती अर्थव्यवस्थाओं को बहुत बड़ा झटका  लग सकता है। आर्थिक मंदी ने एशिया और अन्य कई उभरती अर्थव्यवस्थाओं  के केंद्रीय बैंकों को मुद्रा  छपाई के बिना ही राजस्व तक आसान पहुंच का मार्ग तलाश करने के लिए मजबूर किया है ,जिससे मुद्रास्फीति की प्रवृत्ति  में वृद्धि हो रही है।

अगस्त 2020 तक एशियाई विकास बैंक  (एडीबी) के लगभग 68 सदस्यों ने कुल लगभग 19,500 बिलियन डॉलर के पैकेज की घोषणा की थी। इसमें से लगभग 3,656 बिलियन डॉलर विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की श्रेणी में आने वाले 46 सदस्य देशों द्वारा घोषित आर्थिक सुधार पैकेजों के अनुरूप है। खर्च और कर कटौती आदि के माध्यम से आय का प्रत्यक्ष समर्थन, लगभग 7,687 बिलियन डॉलर  है।

विश्व स्तर पर परिसंपत्ति मुद्रीकरण की प्रक्रिया उतनी खराब नहीं है जितनी संभावना थी और उतनी अच्छी भी नहीं है जितनी सरकार का विश्वास है। चीन, फिलीपींस, सिंगापुर और अमेरिका में संपत्ति और ऋण मुद्रीकरण की प्रक्रिया ने मिश्रित परिणाम दिए हैं। इसके कारण अच्छे और बुरे उदाहरण भी  हैं। मुख्य प्रश्न यह है कि क्या सरकार वैश्विक अनुभव से  कुछ सीख लेगी अथवा गलतियों करके सीखना पसंद करेगी।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं के लिए यह अत्यधिक चुनौतीपूर्ण समय है, जहां बड़ी संख्या में बेरोजगार  पूरी तरह से कृषि और अनिश्चित मजदूरी पर निर्भर हैं। ऐसे समय में पारिवारिक सम्पति का विक्रय करना, अपने  प्राचीन,काल्पनिक,  लक्ष्य हीन मूल्यों को  अपनाने की तुलना में  अधिक विवेकपूर्ण प्रतीत होता है। इन  परिसंपत्तियों के निर्माण में दो पीढ़ियों के पांच से छह दशकों से अधिक समय का योगदान रहा है। अत सरकार को उन सभी पिछली सरकारों के प्रति आभार व्यक्त करना होगा जो इन संपत्तियों के निर्माण के लिए  उत्तरदायी हैं। यह वर्तमान सरकार को अधिक संपत्तियाँ बनाने के लिए राजस्व का विवेकपूर्ण उपयोग करने और लापरवाह न होने का भी संकेत देता है।

यह कोई रहस्य नहीं है कि सार्वजनिक क्षेत्र की कुछ संपत्तियाँ  कम उपयोग में आती हैं अथवा  उनका इष्टतम उपयोग नहीं किया जाता। ऐसी परिसंपत्तियों का मुद्रीकरण के माध्यम से उचित उपयोग संभव है तथा किया जाना  भी चाहिए ताकि अधिक से अधिक वितीय सुविधा हो । संसाधनों की कमी के भंवर में फंसी सरकार इन राष्ट्रीय संपत्तियों को अनलॉक करना चाहती है। संसाधन उपलब्ध कराने के अतिरिक्त, मुद्रीकरण भी एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से इन परिसंपत्तियों को बेहतर वित्तीय प्रबंधन के लिए निजी क्षेत्र में स्थानांतरित किया जा सकता है। यदि सरकार  स्वीकार करती है कि उसके पास व्यवसाय प्रबंधन के  व्यापार में बने रहने का कोई  कारण  नहीं है तो यह गलत नहीं  होगा।,

सरकार स्पष्ट रूप से दावा कर रही है कि वह परिसंपत्तियों को  बेच  नही रही है,  परंतु उसके  इस आश्वासन को संदेह की दृष्टि से देखा जा सकता है। जो लोग अतीत में सरकारों  का सामना कर चुके हैं, वे जानते हैं कि मुद्रीकरण निजीकरण की व्यंजना है। अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने, उत्पादन  प्रारंभ करने, रोजगार बाजार को बढ़ावा देने तथा अर्थव्यवस्था को ‘चमकाने’ के लिए यथासंभव राजस्व जुटाने के सरकार के प्रयास समझ  आते हैं। वर्ष 2016 में रुपये के विमुद्रीकरण, 2017 में जीएसटी के लागू होने, 2018-19 में वसूली की धीमी गति और 2020 में महामारी और लॉकडाउन ने वेतनभोगी वर्ग, दैनिक वेतन भोगी एवं व्यापार समुदाय की समान अनुपात में कमर तोड़ दी है। जबकि संपूर्ण विश्व के  साथ साथ नई दिल्ली  सरकार भी नोट छाप सकती हैं, संपत्ति बेच सकती हैं और घाटे में वित्तपोषण का सहारा ले सकती हैं, आम आदमी  जीवित रहने के लिए इनमें से कुछ भी नहीं कर सकता ।

केंद्र सरकार ने,  आर्थिक स्थिति से उभरने का,विशेष रूप से महामारी के झटके के पश्चात्,  हर संभव प्रयास किया। आत्मनिर्भर भारत कार्यक्रम, ‘वोकल फॉर  लोकल’ मंत्र और निर्माण को किक-स्टार्ट करने के प्रयासों का अनेक कारणों से  अभी तक कोई उत्साहजनक परिणाम नहीं दिखा  और इन घोषणाओं के  अच्छे परिणाम आने से  पूर्व ही, 2019 में विकास  की गति धीमी होकर 4.5 प्रतिशत रह गयी। यह खतरे  का संकेत  है।  उपभोक्ता वस्तुओं का  शून्य उत्पादन, सुस्त मांग और निवेश में गिरावट के साथ अर्थव्यवस्था नकारात्मकता की दिशा में  जा रही है।

ऐसी परिस्थितियों में राजस्व वृद्धि एवं नवीन बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के माध्यम से अर्थव्यवस्था में सुधार  के लिए  कोई भी सरकार मुद्रीकरण जैसे कदम उठाने से परहेज नहीं  करेगी । बढ़ा हुआ जीएसटी संग्रह हमेशा समृद्ध अर्थव्यवस्था का सही संकेतक नहीं होता  जब तक  अन्य मानदंड  पूरे नहीं होते। अत परिसंपत्तियों की बिक्री के माध्यम से संसाधनों को बढ़ाने की सरकार की मंशा को  दोष नहीं  दिया जा सकता । समस्या एनएमपी योजना के  सूक्ष्म विवरण, इसके कार्यान्वयन और परिणामों की गारंटी में निहित है।

यद्यपि  एनएमपी योजना के परिणाम की सटीक भविष्यवाणी करना संभव नहीं है परंतु इसके परिणाम योजना के लक्ष्यों  और पारदर्शिता पर निर्भर  हैं। भारत के निजी क्षेत्र ने विकट समस्याओं और बाधाओं के बावजूद तेजी से प्रगति की है। संकट के समय और विनिर्माण की धीमी गति में, निजी क्षेत्र को अधिक प्रोत्साहन, कम कर बोझ, आसान अनुपालन और बेहतर ऋण सुविधाओं की आवश्यकता है। सरकार को एक समान अवसर प्रदान करने और  स्पष्ट प्रशासन की तत्काल आवश्यकता है। जिस सरकार ने सात साल से अधिक समय से भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन प्रदान किया है, उसके लिए ये सुविधाएं प्रदान करना अधिक मुश्किल नहीं होना चाहिए। प्रेस में छपी  एक रिपोर्ट के अनुसार कुछ वैश्विक खिलाड़ी (जैसे ब्लैकस्टोन, ब्लैकरॉक और मैक्वेरी) मुद्रीकरण प्रक्रिया में भाग ले सकते हैं, यह शेयर बाजार के लिए अच्छी खबर हो सकती है, परंतु आत्मनिर्भर भारत  और सामान्य लोगों के लिए  यह खबर  बुरी प्रतीत होती है।  एक ईमानदार और जिम्मेदार सरकार होने के नाते, यह उचित होगा कि वित्त मंत्रालय या नीति आयोग, एनएमपी के दिशा निर्देश, इसकी बारीकियाँ, संपत्ति के मूल्यांकन की प्रक्रिया और सबसे महत्वपूर्ण  निजी एकाधिकार तथा  पूंजीपति मित्रों से बचने के लिए एक श्वेत पत्र जारी  करे।

इस बीच, यह सुझाव देना उचित  होगा कि सरकार को इस योजना के अंतर्गत बीमार एयर इंडिया को लाने पर गंभीरता से विचार करना चाहिए और इसकी बिक्री की प्रक्रिया को रोकना चाहिए। चूंकि एनएमपी योजना के  अंतर्गत संपत्तियां ‘बेची नहीं जा रही हैं’ और एक निश्चित अवधि के बाद ‘संपत्ति को वापस सौंपने’ का वचन  लिया जाएगा, सरकार  गर्व से राष्ट्रीय  वाहक   बनी रहेगी और तथा यह वितीय गड़बड़िया से भी मुक्त रहेगी।

एक और आशंका है, जिस पर सरकार को  ध्यान देना होगा वह सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को उबारने, गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) की बैंक  बैलेंस शीट को  पारदर्शी करने, ऋण चुकाने और ऋण के लिए परिसंपत्ति बिक्री राजस्व  का उपयोग हैं। सरकार द्वारा ‘पारिवारिक  संपति’ की बिक्री से प्राप्त राजस्व  का प्रयोग अनुत्पादक  और नयी परिसंपतियों का निर्माण कर पाने में असमर्थ परियोजनाओं को निधियां प्रदान  करने के लिए करना  अनुचित होगा। सरकार को, विशेष रूप से चुनावी वर्ष के दौरान लापरवाह  होने के प्रलोभन का दृढ़ता से विरोध करना  होगा।

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लेखक
डॉ शेषाद्रि चारी विदेश नीति, रणनीति और सुरक्षा मामलों पर टिप्पणीकार हैं। वह फोरम फॉर इंटीग्रेटेड नेशनल सिक्योरिटी (FINS) के महासचिव और अंग्रेजी साप्ताहिक आयोजक के पूर्व संपादक हैं।

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