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पुंछ ऑपरेशन को पूरा करने में होने वाली देरी को कम नहीं किया जा सकता

लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन (सेवानिवृत्त)
शुक्र, 29 अक्टूबर 2021   |   6 मिनट में पढ़ें

पूँछ सेक्टर के राजौरी सुरनकोट रोड की उत्तर दिशा में भाटा धुरियन वन क्षेत्र में आतंकवादियों के विरुद् हालिया ऑपरेशन 11 अक्टूबर 2021 को शुरू हुआ। इसके शुरू होते ही बड़े आतंकी दलों से सुरक्षा बलो का सामना हुआ, जिसमें हमारे पांच बहादुर जवान शहीद हो गए। बाद की मुठभेड़ के परिणामस्वरूप राष्ट्रीय राइफल्स  के चार ज़वानों ने अपनी जान गंवाई। राष्ट्रीय राइफल्स कई आपेरसन्स में तपा हुआ शक्तिशाली बल है, जिसे जम्मू और कश्मीर में आतंक से लड़ने का 30 वर्षों का अनुभव  है।

इस नुकसान से जनता में निराशा है, जो होनी भी चाहिए; कोई भी राष्ट्र   विश्वासघातियों के हाथों अपने सैनिकों के नुकसान को बर्दाश्त नहीं कर सकता, खासकर अगर वह किसी पड़ोसी द्वारा आशांति फैलाने के लिए प्रायोजित किया जाता है। ऑपरेशन पूरा करने में लगने वाले समय की देरी के बारे में भी लोगों को बहुत चिंता है, जो कारगिल (1999) या 2003 में पीर पंजाल पहाड़ों में हिल्काका नामक स्थान पर आतंकवादियों के जमावड़े की घटना में लगने वाले समय के समान लग रहा है। जिसे जून 2003 में ऑपरेशन सर्प विनाश के द्वारा अंततः नष्ट कर दिया गया था।

समाचारों की छोटी छोटी जानकारियों और प्राइम-टाइम टेलीविज़न की टिप्पणियों  के अंश, किसी बात को बेहतर ढंग से समझा पाने या जानकारी की भूख को संतुष्ट करने में सहायक नहीं हैं। इन्हें कुछ अधिक की जरूरत है। इस तरह के  ऑपरेशन के लिए उस इलाके को, उसकी सीमाओं को, इसके लिए सबसे उपयुक्त रणनीति और आतंकवाद विरोधी अभियानों में संचालन और कमांड करने के अनुभव के अन्य कई पहलूओं को समझने की जरूरत होती है। मैंने यथासंभव  स्थिति को स्पष्ट करने का प्रयास किया है। बहुत लोगों की मांग पर मैंने यह  हिम्मत की।

आपको पांच साल पीछे ले जाता हूँ। अक्टूबर 2016 में उद्यमिता विकास संस्थान (ईडीआई) पंपोर में एक ऑपरेशन के दौरान विशेष बल के दो युवा अधिकारियों और एक जवान की मौत हो गई थी। छह मंजिला स्टैंडअलोन इमारत पर कब्ज़ा करने के मद्देनजर ऑपरेशन को पूरा होने में लंबा समय लग रहा था। टेलीविजन एंकरों ने अधीर होकर मुझे सुझाव दिया कि सेना यह सब गलत कर रही है, ऑपरेशन में इतना समय लग रहा है। पुंछ सेक्टर में वर्तमान में चल रहे ऑपरेशन में लगने वाले समय पर सवाल उठाने वालों के लिए मेरा मुहतोड़ जवाब बस इतना ही था – “अगर मैं प्रभारी होता, तो स्थानीय कमांडर को सात या अधिक दिन लेने के लिए कहता; जल्दी कहाँ है?” सार यह है कि; ऐसे ऑपरेशनों में जल्दबाजी करेंगे तो, जहां आप 6-8 या अधिक से मुठभेड़ करके, उनसे लड़कर सकारात्मक परिणाम चाहते हैं, तब 70-80 किमी तक फैले घने जंगली इलाके में भली भाँति प्रशिक्षित, अत्यधिक प्रेरित विदेशी आतंकवादीयो, के सामने इससे परेशानी खड़ी हो जायेगी। धैर्य एक सद्गुण है और एक प्रभावी वरिष्ठ सेनापति वह होता है, जो इस तरह के सवालों पर केवल बनावटी मुस्कुराहट दे और अपने लोगों को अपना काम करने दे।

यदि वरिष्ठ कमांडरों की ओर से धैर्य अनिवार्य है तो उन्हें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि संचालन करने वाली इकाइयों में युद्ध की शक्ति भी मौजूद है या नहीं।

मुंबई आतंकी हमले (26/11) से कुछ दिन पहले, नवंबर 2008 में, छह आतंकवादियों ने उरी सेक्टर में घुसपैठ की और सैटेलाइट फोन इंटरसेप्ट द्वारा इसकी पुष्टि हो गई। मेरे सैनिकों ने मुठभेड़ की मांग करते हुए बारामुला और रफियाबाद की ओर से उनके प्रवेश को रोकने का प्रयास किया, लेकिन 48 घंटे बाद भी कोई संपर्क नहीं हो पाया। वहाँ की जमीन झाड़ीदार, आंशिक रूप से जंगली और पहाड़ी थी। हालांकि पुंछ सेक्टर में पीर पंजाल की ऊंची चोटी और राजौरी एवं सुरनकोट के बीच की ऊंचाई जितनी दूर भी नहीं थी। सैनिक थके हुए थे और अगर कोई मुठभेड़ होती है तो इससे समस्या हो सकती थी। हमने सिर्फ दो चीजें सुनिश्चित कीं। पहला, अगले 8 दिनों में सैनिकों की अदला बदली की और दूसरा,  यह स्पष्ट था कि हमें कोई जल्दी नहीं है; सफलता इंतजार कर सकती है। हमें  यह सफलता सात दिन बाद मिली, हालांकि एक दुर्घटना भी हुई जो नहीं होनी चाहिए थी। लेकिन मैदान की बनावट की परिस्थितियों की वजह से यह क्षमा योग्य थी।

इस तरह के ऑपरेशन में वास्तविक चुनौतियां क्या हैं और विशेष रूप से सुरनकोट ऑपरेशन मामला क्या है? यह इलाका एलओसी के काफी पास है, लेकिन इतना भी नहीं कि घुसपैठिए वहां आराम से पहुंच सकें। जंगल घने हैं और चट्टानी इलाके, टूटे हुए और गुफाओं से घिरे हुए हैं। चराई क्षेत्रों की ओर जाने वाले मार्गों पर और वहां से गली (पास) तक ‘ढोक’ (खानाबदोशों के गौशाला) हैं, आतंकवादी जिनका उपयोग शिविरों या अस्थायी आश्रयों के रूप में कर सकते हैं।

जम्मू-कश्मीर के अंदर आतंकवादियों की ताकत बनाने के लिए पाकिस्तान की वही पुरानी ऑपरेशनल रणनीति है, जिसमें वो भारतीय सुरक्षा बलों को आंतरिक रूप से हराने के लिए स्थानीय लोगों को विद्रोह करने के लिए उकसाते हैं। भाटा डूरियन जंगल इतना घना है कि प्रभावी अवलोकन के लिए हेलीकॉप्टर और ड्रोन भी कवर  क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सकते हैं। यह स्थानीय इलाके से भर्ती किए जाने वाले  आतंकवादियों को प्रशिक्षण देने के लिए छिपने का आदर्श मैदान और प्रशिक्षण क्षेत्र  है, जिससे उन्हें प्रशिक्षण के लिए पीओके में पलायन नहीं करना पड़ता। यहाँ स्थानीय आतंकवादियों की एक बड़ी टुकड़ी सेना की नज़रों से दूर विभिन्न शिविरों में इकठी हो सकती है। आतंकवादियों के साथ एक बड़ी मुठभेड़ ही इसकी पुष्टि करेगी।

पहले कुछ छुट पुट मुठभेड़े सीमांत क्षेत्रों में हुई थी, हालांकि पता लगा कि आतंकवादियों के एक बड़े समूह ने शायद इस साल अगस्त में किसी समय पुंछ सेक्टर से घुसपैठ की थी। यह संभवत: स्थानीय रसद सहायता के माध्यम से होती है। चारों ओर आश्चर्य व्यक्त किया जा रहा है, क्योंकि इस क्षेत्र के लोगों को पाकिस्तान समर्थित सभी गतिविधियों को खारिज करने के लिए जाना जाता है। वास्तविकता यह है कि, गाइड और रसद समर्थक अपने व्यावसायिक लाभ के लिए एलओसी बेल्ट पर हमेशा उपलब्ध रहते हैं और उनमें से किसी का भी पाकिस्तान या आतंकवादियों के साथ कोई वैचारिक संबंध नहीं होता।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस क्षेत्र से आतंकवादियों की मौजूदगी को काफी हद तक खत्म कर दिया गया है और महत्वाकांक्षी केरियर की इच्छा वाले आर-आर इकाइयों के संभावित कमांडिंग ऑफिसर यहां तैनात होना पसंद नहीं कर रहे,  क्योंकि उन्हें अब यहाँ बहुत कम चुनौती दिखाई देती है। जब चुनौतियाँ सामने आती हैं, तो प्रारंभिक जानकारी भ्रामक हो सकती है। जंगल में तलाश  करना ‘लुका-छिपी’ के बचपन के पुराने प्रिय खेल की तरह है। भू-भाग और गुफाओं वाला जंगल, ये सभी यहाँ छुपे हुए लोगों की मदद करते हैं। खोज करने वाले भी इधर उधर घूमते हुए गतिशील रहते हैं और गति हमेशा लक्ष्य प्रदान करती है।

खोजी दस्तों द्वारा खोज हमेशा सबसे पहले बहुत धीरे धीरे और मेहनत से ही  करनी चाहिए, जिसमें हवाई क्षेत्र, सुनने और निगरानी उपकरणों सहित अन्य किसी भी प्रकार की तकनीक का उपयोग करना शामिल है। दूसरे, ये बेहद संवेदनशील होते है और उन्हें लगातार बदलते रहने की आवश्यकता होगी। आतंकवादियों द्वारा खोजी दलों के रास्ते में क्रूडआईईडी रख दिया जाता है; इसके लिए डिटेक्टरों की आवश्यकता होती है, जिससे स्वाभाविक रूप से गति धीमी हो जाती हैं। निगरानी इनपुट के माध्यम से स्थान निर्धारण होने से ही प्रभावी घेरा संभव हो पायेगा। इसमें विशेष बलों के कर्मियों को शामिल करना भी बहुत कम लाभ दे पायेगा जब तक कि सुनिश्चित संपर्क का हमारी शर्तो के अनुसार विशिष्ट स्थान निर्धारण न हो।

ऐसा प्रतीत होता है कि आतंकवादियों के पास अपनी ताकत बढ़ाने के लिए पूरा   तन्त्र मौजूद होता है। पानी की समस्या हो सकती है, हालांकि झरने प्रचुर मात्रा में हैं और स्थानीय लोगों के लिए यह बांये हाथ का खेल है। पुलिस ने एक गिरफ्तार पाकिस्तानी आतंकवादी को कब्जे के संभावित क्षेत्रों में ले जाने की कोशिश की।  तीन या चार संपर्क बक्करवाल (खानाबदोश चरवाहों) समुदाय की सहायता से स्थान निर्धारण में मदद करेंगे। एक बार ऐसा हो जाने के बाद प्रभावी घेरा बनाना संभव होगा। हालांकि, खोज में लगे सैनिकों को कमजोर बनाने के बजाय, कभी-कभी यह सलाह दी जा सकती है कि सब कुछ स्थिर रखें और जंगल के अंदर  घात लगाकर आतंकवादियों द्वारा कुछ जरूरी रसद के लिए कवर तोड़ने की प्रतीक्षा करें।

साल 2003 में ऑपरेशन सर्प विनाश के दौरान हिल्काका के दक्षिण में पीर पंजाल की घाटी की ओर सुरक्षा बलों ने कुछ दबाव बनाए, जिसमें बड़े आतंकी समूह इस दबाव से बचने का प्रयास कर रहे थे। घात लगाने वाले समूहों की सफाई के लिए सेना का यह एक फील्ड डे था। निश्चित रूप से इसीलिए सेना इस तरह के हमले  करती है।

अब जब मौसम की पहली बर्फबारी हो गई है, तो आतंकवादियों को पीर पंजाल के घास के मैदानों से घाटी में जाने में मुश्किल होगी और अगर वे कोशिश करते हैं तो ताजा बर्फ पर पैरों के निशानों से उनका विनाश होगा। इन परिस्थितियों में आर्मी एविएशन हेलीकॉप्टरों द्वारा विंटर एरियल सर्विलांस एंड ऑब्जर्वेशन (डब्ल्यूएएसओ) से आतंकवादियों का सफाया सुनिश्चित करें।

आतंकवादियों को सेटेलाइट या मोबाइल फोन पर बातचीत जारी रखने में कमजोर  करने की जरूरत है। मोबाइल इंटरनेट को स्थानीय रूप से बंद कर दिया जाना चाहिए और खुफिया एजेंसियों द्वारा ‘ऑफ द एयर’ मोबाइल मॉनिटर को संपर्क क्षेत्र की परिधि में ले जाया जाना चाहिए। जो यह सुनिश्चित करेगा कि आतंकवादियों के प्रभाव को रोकने के लिए हर ज्ञात तरीके का अभ्यास किया गया है और इसके बारे में कुछ भी अज्ञात नहीं है। यह केवल कुछ समय की ही बात है। सेना सब कुछ जानती है, उसे किसी सलाह की जरूरत नहीं है।

स्पष्ट रूप से सामने आने वाला जोरदार सबक यह है कि पाकिस्तान अक्सर अतीत के आचरण और कार्यप्रणाली को दोहराता है। हम इतिहास की अनदेखी करने और एक क्षेत्र की घटनाओं को दूसरे क्षेत्र से जोड़ने में लगे हैं। हमारा दृष्टिकोण ज्यादतर कार्यकाल पर आधारित होता है और हमारे प्रशिक्षण संस्थान शायद ही कभी अपने  प्रदर्शनों से होने वाले अनुभवों का उपयोग करते हों, जो हमे वर्षों में हुए है। सेना को संस्थागत स्मृति को बढ़ावा देना चाहिए।

अंत में, जनता हमेशा सेना की सराहना करती है, लेकिन समान रूप से सेना पर  भी निर्भर करता है कि वह यह सुनिश्चित करे कि संक्षेप में उपयुक्त सार्वजनिक जानकारी देश की जनता को प्राप्त हो, जैसा कि दुनिया भर में किया जाता है। शायद यह प्रयोग गलत नहीं होगा। पाकिस्तान का मशहूर सूचना युद्ध इस ऑपरेशन को दुष्प्रचार के लिए इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहा है। क्या हमारा सूचना आक्रमण तैयार है?

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लेखक
लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन (सेवानिवृत्त), पीवीएसएम, यूवाईएसएम, एवीएसएम, एसएम, वीएसएम, भारतीय सेना के श्रीनगर कोर के पूर्व कमांडर रहे हैं। वह रेडिकल इस्लाम के इर्द-गिर्द घूमने वाले मुद्दों पर विशेष जोर देने के साथ एशिया और मध्य पूर्व में अंतर-राष्ट्रीय और आंतरिक संघर्षों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। वह कश्मीर केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं और रणनीतिक मामलों और नेतृत्व के इर्द-गिर्द घूमने वाले विविध विषयों पर भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों में बड़े पैमाने पर बोलते हैं।

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