• 21 November, 2024
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बीआरआई के इर्द-गिर्द पाकिस्तान, चीन और टीटीपी की विचित्र तिकड़ी

कमांडर संदीप धवन (सेवानिवृत्त)
शुक्र, 08 अक्टूबर 2021   |   6 मिनट में पढ़ें

एक अक्टूबर को पाकिस्तान के प्रधान मंत्री इमरान खान ने तुर्की सरकार द्वारा संचालित टीवी चैनल टीआरटी वर्ल्ड पर जब इस बात का खुलासा किया कि पाकिस्तानी सरकार तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के साथ गुप्त वार्ता कर रही है, तो खूब शोर शराबा हुआ।

पाकिस्तान के लोग कई कारणों से परेशान थे। वे इस बात से भी परेशान थे कि सरकार की टीटीपी से वार्ता के दौरान उन्हे अंधेरे में रखा गया। एक और बात जिसने उन्हें परेशान किया, वह यह थी कि पाकिस्तानी प्रधान मंत्री ने एक तुर्की चैनल पर यह समाचार दिया,  पाकिस्तानी टीवी चैनल पर नहीं। लेकिन सबसे बड़ा झटका उन 150 से अधिक संख्या में बच्चों के माता-पिता के लिए था, जिनके बच्चो ने दिसंबर 2014 में पेशावर के आर्मी पब्लिक स्कूल (एपीएस) में टीटीपी द्वारा किए गए नरसंहार में अपनी जान गंवा दी थी।

टीटीपी के साथ वार्ता के समाचार को सार्वजनिक करते हुए, इमरान खान अनिश्चित मनो-  स्थिति में दिखे, ऐसा लगा कि उन्हें पूरी जानकारी नहीं दी गयी और वह सभी विवरणों से अनजान लग रहे थे। ऐसे में प्रश्न उठता है कि पाकिस्तानी सेना के अतिरिक्त और कौन  कौन इस चर्चा में शामिल था?

ऐसी खबरें हैं कि चीन ने काबुल और पंजशीर के मध्य बगराम एयरबेस का संचालन शुरू कर दिया है। एयरबेस में चीनी सैन्य विमानों की बड़ी संख्या में आवाजाही भी देखी गई है।  इससे पता चलता है कि कुछ उच्च स्तरीय चीनी वार्ताकार पहले से ही इस वार्ता के लिए अफगानिस्तान में थे।

चीनी प्रॉक्सी होना पाकिस्तानी नागरिकों के लिए ठीक है, परंतु अपने ही प्रधान मंत्री के विश्वासघात को वे पचा नहीं पा रहे हैं। इमरान खान ने ऐसा कदम क्यों उठाया जबकि उनकी अप्रूवल रेटिंग अपने सबसे बुरे दौर में है। क्या उसे फिर से चुनाव में दिलचस्पी नहीं है या उसे समर्थन देने वाले दलों ने उसे फिर से चुने जाने का आश्वासन दिया है?

टीटीपी ने कैसे सत्ता हासिल की

टीटीपी पाकिस्तान में सबसे बड़ा और सबसे सक्रिय सशस्त्र विपक्षी समूह है। यह वर्ष 2007 में बैतुल्लाह महसूद के नेतृत्व में अस्तित्व में आया। इसका गठन 2004 में संघीय  जनजातीय क्षेत्र (एफएटीए) में अल-कायदा के आतंकवादियों के  विरुद्ध किया गया था। हालाँकि,  इस संगठन की जड़े  वर्ष 2002 से ही देखी जा सकती है।

समूह का पतन और अंतर्कलह अगस्त 2009 में तब आरंभ हो गयी जब यू.एस. यूएवी से मिसाइल हमले में बैतुल्ला महसूद की मौत हो गई थी। वर्ष 2018 तक यह एक निष्क्रिय संगठन था। यद्यपि 2020 तक करिश्माई नेता नूर वली महसूद ने टीटीपी को फिर से  सजीव कर दिया। उन्होंने 2020 में पाकिस्तानी सेना और सुरक्षा बलों के विरुद्ध 120 से अधिक हमले किए। इस प्रकार एक्टर निर्देशक के  विरुद्ध हो गए थे।

केवल पिछले दो महीनों में ही टीटीपी ने 75 से अधिक हमले किए, जिसमें पाकिस्तानी सुरक्षा बल के अनेक सैनिक मारे गए। यह जानना दिलचस्प होगा कि दक्षिण-पूर्व अफगानिस्तान में  टीटीपी  के “हक्कानी नेटवर्क” को कौन सुरक्षित पनाह दे रहा है। जो एक ऐसा संगठन है जिसके कथित तौर पर पाकिस्तानी सेना के साथ अच्छे संबंध हैं।  शायद उन पर टीटीपी छोड़ने का अत्यधिक दबाव हो। हालांकि, हक्कानी नेटवर्क सेना को काल्पनिक रूप से खुश रखते हुए अपने हितों की देखभाल कर रहा है।

वर्तमान वार्ताओं के दौरान की घटनाओं से उत्साहित होकर, टीटीपी निम्नलिखित की मांग  करेगा:

  • जनजातीय क्षेत्रों के लिए अधिक स्वायत्तता।
  • उन क्षेत्रों में शरिया-आधारित शासन की बहाली।
  • आईएसआई के नेतृत्व में परिवर्तन।

इस तरह की मांगें आदिवासी नेताओं, अफगान तालिबान, अल-कायदा, इस्लामिक स्टेट (खोरासन) और हक्कानी नेटवर्क की याद दिलाती है। यह मान लेना मूर्खता होगी कि इन मांगों के पूरा होने के बाद टीटीपी अपनी महत्वाकांक्षा पर विराम लगा देगी। बल्कि इन मांगों के पूरा करने से टीटीपी की क्षमता में और अधिक वृद्धि होगी। वे एक ताकत के रूप में उभर कर सामने आएंगे। उनका अंतिम उद्देश्य पूरे पाकिस्तान में शरिया कानून लागू करना है और यह एक देश के रूप में पाकिस्तान और उस देश के मालिक के रूप में पाकिस्तानी सेना के लिए मौत की घंटी होगी।

हकीकत से हर कोई वाकिफ है

पाकिस्तानी सेना जानती है कि वे टीटीपी के विरुद्ध  जीत नहीं सकते। उन्होंने तालिबान को सोवियत सेना पर हमला करना सिखाया। दुर्भाग्य से चीन भी यह जानता है। चीन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव पर अत्यधिक निर्भर है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी इस पर    निर्भर हैं। 20वीं राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस सिर्फ एक वर्ष की दूरी पर है। कांग्रेस तय करेगी कि क्या शी जिनपिंग एक अभूतपूर्व तीसरे कार्यकाल में बने रहेंगे, या बेअसर हो जाएंगे। बीआरआई की विफलता उसके कष्टों को और बढ़ा देगी और वे इससे बाहर निकलने में तेजी लाएगें। वर्तमान अनिश्चित वित्तीय स्थिति और अभूतपूर्व बिजली की कमी ने पहले ही उनकी प्रतिष्ठा को बुरी तरह से प्रभावित किया है। उसे एक और आश्चर्य की आवश्यकता नहीं है। इसलिए, शी बीआरआई में कुछ समानता लाने के लिए हर हथकंडा अपनायेंगे। टीटीपी और अफगान तालिबान उस योजना के बहुत महत्वपूर्ण अंग हैं।

पूरी बीआरआई परियोजना दक्षिण और मध्य एशियाई क्षेत्र पर टिकी है। कुल 940 अरब अमेरिकी डॉलर के निवेश में से इस क्षेत्र का हिस्सा केवल 152 अरब अमेरिकी डॉलर है। यद्यपि यूरोप और मध्य पूर्व के साथ संपर्क के संबंध में इस क्षेत्र का अत्यधिक महत्व है। निम्नलिखित बीआरआई कॉरिडोर स्पष्ट रूप से इसकी पुष्टि करते हैं:

  • न्यू यूरेशियन लैंड-ब्रिज इकोनॉमिक कॉरिडोर (एनइएल बीइसी)
  • चीन-मध्य एशिया-पश्चिम एशिया आर्थिक गलियारा (सीसी ए डब्ल्यू एइसी)
  • चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीइसी)

तस्वीर स्रोत : ips-journal.eu

झिंजियांग

ये सभी आर्थिक गलियारे झिंजियांग से होकर गुजरते हैं। यह महत्वपूर्ण प्रांत चीन के दमन की भी जानकारी देता है जहां तालिबान सहित सभी इस्लामी संस्थाओं का बोलबाला है। पश्चिमी यूरोप (30 अरब अमेरिकी डॉलर), पूर्वी यूरोप (60 अरब अमेरिकी डॉलर) और मध्य पूर्व (94 अरब अमेरिकी डॉलर) में निवेश एक अलाभकारी निवेश बन जाएगा।

तालिबान नेता भले ही मध्यकालीन प्रतीत हो लेकिन वे अर्थशास्त्र के इस भाग को अच्छी तरह समझते हैं। अगर अफगानिस्तान में तालिबान शासन के पिछले कुछ दिनों के बयानों को समझने का प्रयास किया जाए, तो कोई भी इस योजना को अच्छी तरह से समझ  जायेगा। उन्होंने अफगानिस्तान में बीआरआई की सभी गतिविधियों को पूरी निष्ठा से  बिना शर्त समर्थन दिया है। जहां अफगान तालिबान अच्छे पुलिस वाले की भूमिका निभा रहा है, वहीं टीटीपी बुरे पुलिस वाले की भूमिका निभा रहा है। हाल के दिनों में, टीटीपी ने पाकिस्तान पर हमले तेज कर दिए हैं, जिसके परिणामस्वरूप चीन को मानसिक रूप से आतंकित किया जा रहा है। इसने चीन के सबसे बुरे सपने को ताजा कर दिया है। क्या होगा यदि ये संस्थाएं अपना ध्यान झिंजियांग की ओर मोड़ दें?

चीनी मीडिया के विचार

चीनी फुडन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर झांग जिआदोंग के अनुसार, “अफगान तालिबान की जीत से उत्साहित टीटीपी पाकिस्तान में पश्तूनों के शासन को महसूस करना चाहता है”। लान्झोउ विश्वविद्यालय में अफगानिस्तान अध्ययन केंद्र के निदेशक झू योंगबियाओ को लगता है कि टीटीपी इन हमलों के माध्यम से चीनी सरकार के साथ संवाद करने की कोशिश कर रहा है, “यदि आप अफगान तालिबान को हासिल कर सकते हैं, तो उसके भाई को स्वीकार क्यों न करें”। इसके विपरीत, सिंघुआ विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय रणनीति संस्थान में अनुसंधान विभाग के निदेशक कियान फेंग ने कहा कि टीटीपी चीनी और पाकिस्तानी सरकारों को भ्रमित करने के लिए चाल चल रही है।

पूरा परिदृश्य इस प्रकार उभरता है कि चीनी परियोजनाओं पर बड़ी संख्या में हमलों से  चीन हिल गया है। अप्रैल 2021 में, टीटीपी ने चीन के राजदूत के दौरे से कुछ घंटे पूर्व चीन को क्वेटा के एक होटल में बम हमले की अंतिम चेतावनी भेजी थी। संदेश जोरदार और स्पष्ट था, हमारे साथ आओ या बीआरआई परियोजनाओं को खो दो।

भारत और टीटीपी: एक तीर से दो शिकार

पाकिस्तानी सत्ता भारत को नुकसान पहुंचाने के लिए बेताब है। जब उन्होंने तालिबान की  सहायता से कानूनी रूप से चुनी अफगान सरकार को हटा दिया, तो उन्हें लगा कि उन्होंने भारत पर युद्ध जीत लिया है। परंतु वह सपना अल्पकालिक था। बल्कि,  वह देश के अंदर से  ही विभिन्न संगठनों के तीखे हमलों से घिर गया है। टीटीपी उनमें से एक है।

पाकिस्तानी सेना अपने नागरिकों के विरुद्ध जा सकती है परंतु चीनी सरकार के विरुद्ध नहीं। चीनी सरकार टीटीपी पर शासन के लिए पाकिस्तानी सेना पर भारी दबाव बना रही है। टीटीपी से हाथ मिलाना सेना के हित में है। यदि टीटीपी तैयार है, तो इससे चीनी भय दूर  होगा और यह भारत विरोधी ताकतों को लामबंद करेगा। अपना अस्तित्व बचाने के लिए पाकिस्तानी सेना का मुख्य औचित्य जम्मू और कश्मीर है। यदि पाकिस्तानी सेना कबायली इलाकों को टीटीपी को सौंप देती है, तो वे जम्मू-कश्मीर पर ध्यान केंद्रित करने के लिए स्वतंत्र होंगे।

पूरी योजना कारगर हो अथवा नहीं, परंतु पाकिस्तानी सेना के पास यह सबसे अच्छा  निशाना है। चीनी प्रतिनिधियों की निगरानी में और अफगान शासन के आशीर्वाद से   बैठकों का आयोजन हो रहा है। यदि पाकिस्तानी सेना के नापाक मंसूबे सफल होते है तो अफगान तालिबान और टीटीपी इस मनोवैज्ञानिक खेल को आपस में बांट लेंगे। शी जिनपिंग अपनी पहल को सुरक्षित रखेंगे और अपनी प्रतिष्ठा को बहाल करेंगे। पाकिस्तानी जनरलों को  इस निवेश से अनुकूल लाभ प्राप्त होगा। अंत में, दो हार दो लोगों की होगी,   एक आम पाकिस्तानी नागरिक जो सेना के झूठे बयानों को सहन करेंगे और दूसरे जम्मू-कश्मीर के निर्दोष व्यक्ति पाकिस्तान से निकलने वाली आतंकवाद की एक और लहर के लिए खुद को तैयार करेंगे।

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लेखक
भारतीय नौसेना के एक अनुभवी कमांडर धवन ने 1988 से 2009 तक नौसेना में सेवा की।
वह एक समुद्री टोही पायलट और एक फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर थे। वह एक भू-राजनीतिक विश्लेषक हैं 
और विभिन्न ऑनलाइन वेबसाइटों और संगठनों के लिए लिखते हैं।

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