मेलबर्न, 13 नवंबर (द कन्वरसेशन) : जलवायु से जुड़े विषयों पर काम करने वाले एक विशेषज्ञ के अनुसार ग्लासगो में सीओपी26 में घोषणाएं इतनी तेजी से हुईं कि अगली घोषणा के होने से पहले हर विषय पर चर्चा के लिए उचित समय ही नहीं मिला।
मेलबर्न विश्वविद्यालय में मेलबर्न सस्टेनेबल सोसाइटी इंस्टीट्यूट में ‘प्रोफेसरियल फेलो’ टिम फ्लैनेरी ने कहा कि उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के कई जलवायु परिवर्तन सम्मेलनों में भाग लिया है, लेकिन यह पखवाड़ा अलग लगा। जिन देशों ने पिछले वर्षों में सख्त कार्रवाई को लेकर कड़ी लड़ाई लड़ी, उन्होंने नयी प्रतिबद्धताओं के साथ कदम बढ़ाया। उनमें से कई पहले सप्ताह में नयी साझेदारियों और गठबंधनों की एक श्रृंखला में शामिल हो गए।
उन्होंने कहा कि अंतिम सीओपी26 समझौते की कोशिश करने और उसे जमीन पर उतारने के लिए वार्ताकारों की बातचीत तनावपूर्ण स्तर पर पहुंच गई है। सीओपी26 को सिर्फ ऐसे कार्यक्रम के रूप में नहीं देखना चाहिए कि जो आखिरी हो बल्कि इसे वास्तव में एक परिवर्तनकारी दशक की दिशा में शुरुआत के तौर पर देखा जाना चाहिए।
सिर्फ आगामी वर्षों में ही हम जान पाएंगे कि यह कार्यक्रम वास्तव में धरती के लिए तस्वीर बदलने वाला था या सिर्फ खोखले वादों का जमावड़ा। कार्यक्रम के मेजबान के रूप में ब्रिटेन सरकार पहले से इस बात से अवगत थी कि कई देश नए-नए संकल्प पेश करेंगे। लेकिन यह भी कि सिर्फ संकल्प कभी पर्याप्त नहीं होंगे।
संकल्पों की श्रृंखला में सबसे पहले अत्यधिक शक्तिशाली ग्रीन हाउस गैस मीथेन के उत्सर्जन को कम करने के लिए एक नयी वैश्विक प्रतिज्ञा के रूप में आया। साथ ही कोयला से उत्सर्जन को चरणबद्ध तरीके से घटाने, वनों की कटाई, जलवायु, वित्त और अन्य मुद्दे सामने आए। दूसरा, आने वाले वर्षों में देशों को अपनी प्रतिबद्धताओं को और मजबूत करना होगा। ग्लासगो में अंतिम समझौते के पहले मसौदे में देशों से एक नयी और मजबूत 2030 के लक्ष्य का आह्वान किया गया है। वार्ताकारों ने अंतिम विषय की बारीकियों पर चर्चा करने में कई घंटे बिताए और अब भी कोई रास्ता निकलना बाकी है। अगर अंतिम समझौता बहुत कमजोर है, तो तापमान में इजाफे को 1.5 सेल्सियस तक सीमित करने का लक्ष्य पाना गंभीर जोखिम का कार्य है।
इस बार के मसौदे को पहले की तुलना में अधिक मजबूत माना जा रहा है जिसका कई पर्यवेक्षकों ने अनुमान किया था। सीओपी26 अभी खत्म नहीं हुआ है और बातचीत अब भी वित्तीय मदद जैसे अहम मुद्दे पर टिकी है जैसा पूर्व में पेरिस समझौते में अमीर देशों ने विकासशील और गरीब देशों को 100 अरब डॉलर के वित्तीय मदद पर सहमति जताई थी। ऑस्ट्रेलिया ने सीओपी26 में दो समझौतों – मिथेन उत्सर्जन कम करने और कोयला आधारित ऊर्जा चरणबद्ध तरीको से घटाने के संकल्प से संबंधित समझौते पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया। ग्लोबल वार्मिंग की दिशा में यह एक अहम संकल्प है। इस बार इस संकल्प पर हस्ताक्षर करने वालों में वियतनाम, इंडोनेशिया, पोलैंड, यूक्रेन और दक्षिण कोरिया जैसे देश शामिल हैं।
ऑस्ट्रेलिया से तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) खरीदने वाले दो सबसे बड़े खरीदार देश जापान और दक्षिण कोरिया ने हाइड्रोजन और नवीनीकृत ऊर्जा की दिशा में बढ़ने की इच्छा व्यक्त की है। शिखर सम्मेलन का अंतिम परिणाम आना अभी शेष है जिसकी विज्ञान मांग करता रहा है। सीओपी26 की असली परीक्षा यही है कि क्या वादों को निभाया जाता है।
जलवायु वार्ता फिर शुरू, विश्वसनीय समझौते पर मुहर लगने की उम्मीद
संयुक्त राष्ट्र जलवायु वार्ता में शामिल वार्ताकार शनिवार को नए प्रस्ताव लेकर आयोजन स्थल पर फिर एकत्र हुए। इन प्रस्तावों से ऐसे समझौते पर मुहर लगाने में मदद मिल सकती है जिसे ‘ग्लोबल वार्मिंग’ से निपटने के वास्ते दुनिया के प्रयासों को बढ़ावा देने के लिए विश्वसनीय कहा जा सकता है। स्कॉटलैंड के ग्लासगो में वार्ता की अध्यक्षता कर रहे ब्रिटिश अधिकारियों ने आधिकारिक सीमा निकलने के एक दिन बाद नया मसौदा समझौता जारी किया। इससे पहले, शुक्रवार देर रात इन अधिकारियों ने लगभग 200 देशों के वार्ताकारों को कुछ आराम करने को कहा था।
व्यापक निर्णय संबंधी प्रस्ताव में विवादास्पद भाषा बरकरार रही जिसमें देशों से ‘बिना रुके कोयला बिजली और अपर्याप्त जीवाश्म ईंधन सब्सिडी से चरणबद्ध तरीके से निकलने की दिशा में प्रयास’ में तेजी लाने के लिए कहा गया है। लेकिन एक नए अतिरिक्त पाठ में कहा गया है कि राष्ट्र ‘एक उचित परिवर्तन के लिए समर्थन की आवश्यकता’ को पहचानेंगे।
वार्ता की अध्यक्षता कर रहे ब्रिटिश अधिकारी आलोक शर्मा ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि देश ग्लासगो में एक महत्वाकांक्षी समझौते को अंजाम देंगे। बैठक के लिए प्रवेश कर रहे शर्मा ने कहा, ‘‘मुझे उम्मीद है कि सहकर्मी इस मौके का लाभ उठाएंगे।’’ कुछ अभियान समूहों ने कहा है कि मौजूदा प्रस्ताव पर्याप्त रूप से मजबूत नहीं हैं।
ऑक्सफैम समूह से संबंधित ट्रेसी कार्टी ने कहा, ‘यहां ग्लासगो में, दुनिया के सबसे गरीब देशों के परिदृश्य से ओझल हो जाने का खतरा है, लेकिन अगले कुछ घंटों में हम जिस रास्ते पर चल रहे हैं उसे बदल सकते हैं और बदलना चाहिए।’ संबंधित एक अन्य प्रस्ताव में, देशों को 2025 तक 2035 के लिए उत्सर्जन में कमी के वास्ते और 2030 तक 2040 के लिए नए लक्ष्य प्रस्तुत करने के वास्ते ‘प्रोत्साहित’ किया गया है, जिससे पांच साल का चक्र स्थापित होता है। पहले, विकासशील देशों से केवल हर 10 साल में ऐसा करने की उम्मीद की जाती थी।
प्रस्तावित समझौते में कहा गया है कि 2015 के पेरिस समझौते के अनुरूप, पूर्व-औद्योगिक समय की तुलना में सदी के अंत तक ‘ग्लोबल वार्मिंग’ को 1.5 डिग्री सेल्सियस (2.7 फ़ारेनहाइट) पर सीमित करने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, देशों को अपने प्रयासों को और तेज करने की आवश्यकता होगी। इसमें कहा गया है कि इसके लिए वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में निरंतर कमी करनी होगी, जिसमें 2010 के स्तर के सापेक्ष 2030 तक वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में 45 प्रतिशत की कमी और सदी के मध्य तक इसका उत्सर्जन शून्य करने के साथ ही अन्य ग्रीनहाउस गैसों के स्तर में भी गहरी कमी लानी होगी।
वैज्ञानिकों का कहना है कि दुनिया 2015 के पेरिस समझौते के अनुरूप पूर्व-औद्योगिक समय की तुलना में सदी के अंत तक ‘ग्लोबल वार्मिंग’ को 1.5 डिग्री सेल्सियस (2.7 फ़ारेनहाइट) तक सीमित करने के महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने के मार्ग पर नहीं है।
( टिम फ्लैनेरी, प्रोफेसरियल फेलो, मेलबर्न सस्टेनेबल सोसाइटी इंस्टीट्यूट, मेलबर्न विश्वविद्यालय )
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