23 अगस्त को जब वकार पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) के अपने गांव रावलकोट में दाखिल हुआ तो जैश के सैकड़ों समर्थकों ने हवा में फायरिंग करके उसका स्वागत कियाl इस जश्न में फायरिंग के शोर के बीच गांव मे बड़ी संख्या में लोगों ने “मुबारक हो” के नारे लगाए। उसके बंदूक धारी युवा आतंकी जैश का सफेद झंडा लहराते हुए कस्बे और गांवों में पूरे दिन जश्न मनाते रहे।
वकार को अफगान की जासूसी एजेंसी एनडीएस ने अफगानिस्तान में आतंकी गतिविधियों में पाकिस्तान का सहयोग करने के लिए गिरफ्तार किया थाl उसने काबुल के पास एक जेल में महीनों बिताए। 15 अगस्त के आस-पास जब काबुल में सरकार गिर गयी थी, उस समय जैशे मोहम्मद का यह सदस्य वकार आज़ाद था।
वकार जैश-ए-मुहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के अनेक आतंकवादियों में से एक है, जो पूरे अफगानिस्तान की जेलों में रहा है और अब कई शिविरों – विशेष रूप से अफगानिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) में प्रशिक्षण दे रहा है।
फाइनेंशियल एक्शन फोर्स (एफएटीएफ) द्वारा पाकिस्तान को मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकी वित्तपोषण के लिए वैश्विक निगरानी की ग्रे सूची में रखे जाने की हाल ही में की गयी घोषणा के बावजूद, वकार रावलपिंडी में जैश-ए-मुहम्मद और लश्कर-ए-तैय्यबा के आतंकी शिविरों को फिर से स्थापित करने के लिए आंदोलन कर रहा है। एफएटीएफ ने पाकिस्तान को मुंबई 26/11 के मास्टरमाइंड और 2019 में पुलवामा आत्मघाती हमले के प्रमुख संयोजक हाफिज सईद और जैश-ए-मुहम्मद के प्रमुख, मौलाना मसूद अजहर के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र द्वारा नामित अन्य आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा हैl इस आत्मघाती हमले में सीआरपीएफ के 40 भारतीय जवान शहीद हो गए थे। पाकिस्तान द्वारा तकनीकी पहलुओं पर अपनी वचनबद्धता न निभाने और उनके द्वारा सहयोग की कमी, इस देश को काली सूची में डाल सकती है। जिसकी वजह से इसकी आंतरिक आर्थिक स्थिति तथा ऋणों की स्थिति अधिक बिगड़ जायेगी।
अब कश्मीर पर बात करते हैंl आतंकी हमलों में हताहत नागरिकों के साथ-साथ इस कार्रवाई में मारे गए सुरक्षा बलों के कारण अक्तूबर का महीना बहुत घातक रहा। 11 से अधिक नागरिकों को चुनिंदा आतंकवादी गुटों ने निशाना बनाया। अधिकांश पीड़ित अल्पसंख्यक हिंदू और कश्मीर के सिख समुदाय से थे। श्रीनगर और अन्य जिलों में बार-बार हो रही इन हत्याओं से घाटी के अल्पसंख्यक समुदायों में भय व्याप्त हो गया है।
इन आतंकी हत्याओं के बाद से जम्मू-कश्मीर के पुंछ में भारत-पाकिस्तान नियंत्रण रेखा के पास छुपे हुए आतंकवादियों और भारतीय सेना के बीच लगातार गोलाबारी जारी है। दो सप्ताह से भी कम समय में इस गोलाबारी में भारत ने अपने 9 सैनिकों को खो दिया। अक्टूबर में जम्मू-कश्मीर के 23 नागरिक और सुरक्षा बलों के जवान शहीद हुएl इस मास में सुरक्षा बलों की 15 से अधिक मुठभेड़ों में 20 से अधिक आतंकवादी मारे गये।
जम्मू एवं कश्मीर पुलिस ने कश्मीर घाटी में हाइब्रिड आतंकवादियों का एक नया चलन देखा, जहां एक ऐसे आतंकवादी को, जो आतंकवादी रैंक या सुरक्षा बलों के रिकॉर्ड में सूचीबद्ध नहीं है, समूह में या अकेले आतंकवादी हमला करने के लिए चुना जाता हैl उसके तुरंत बाद वह गायब हो जाता है और एक सामान्य नागरिक के रूप में नियमित जीवन बिताने लगता हैl यह बलों के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती साबित हुई है।
नागरिकों की हत्याओं के बाद के इस दबाव के बीच, जम्मू-कश्मीर पुलिस ने घाटी के विभिन्न कोनों से 900 से अधिक ओवर ग्राउंड वर्कर्स को पकड़ा हैl इससे उनका आतंकी तंत्र पंगु हो जायेगा। जम्मू, श्रीनगर और बारामूला की विभिन्न जेलों में बंद 26 से अधिक अत्यधिक प्रशिक्षित आतंकवादियों को भारतीय वायु सेना के एक विशेष विमान से उत्तर प्रदेश के आगरा में स्थानांतरित कर दिया गया है। यह कदम इन जेलों से चलने वाली आतंकी योजनाओं और अन्य गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए उठाया गया है।
2017 में एनआईए द्वारा कश्मीर में की गयी छापेमारी से, जिसने पाकिस्तान प्रायोजित अलगाववाद को कमजोर कर दिया था, उस दौरान आतंकवाद से संबंधित मामलों से निपटने के लिए एक अलग सुरक्षा विंग स्थापित करने की आवश्यकता महसूस की गई। अब जम्मू एवं कश्मीर को आतंकी मामलों पर एनआईए के साथ समन्वय करने के लिए नोडल एजेंसी के रूप में एक नई राज्य जांच एजेंसी (एसआईए) मिल गयी है। एसआईए, आतंकवाद से जुड़े सभी अपराधों, आतंकी वित्तपोषण और नकली भारतीय मुद्रा के संचालन सहित अन्य सभी प्रकार के आतंकवादी कृत्यों की जांच करेगी। यूएपीए और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम के तहत आने वाले अन्य मामले भी इसमें शामिल होंगे।
राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय और गृह मंत्रालय की सलाह पर जम्मू-कश्मीर पुलिस द्वारा उठाए जा रहे ये कदम बहुत ही सामयिक हैं और इससे आंतरिक आतंकी तंत्र पर इनकी पकड़ बनी रहेगी। फिर भी, समझदारी की कमी और कश्मीर में- विशेष रूप से दक्षिण कश्मीर के गांवों में बढ़ती हुई कट्टरता से सुरक्षा बलों और सरकार की चुनौतियां दोगुनी हो गयी हैl
अनुच्छेद 370 के ऐतिहासिक निरस्तीकरण के कारण जम्मू-कश्मीर में इंटरनेट और संचार सेवाएं एक साल से अधिक समय तक ठप रही। सुरक्षा एजेंसियों को डर था कि इस समय पाकिस्तान हिंसा को व्यापक रूप से भड़काने के लिए बेताब होगाl जिससे कानून व्यवस्था की एक बड़ी समस्या हो जाएगी। जबकि पाकिस्तान के इरादों को कुचल दिया गया और उन्हें उनके मंसूबो मे सफल नहीं होने दिया गया परंतु, इस प्रक्रिया के दौरान सुरक्षा एजेंसियों के मानव खुफिया नेटवर्क को एक बड़ा झटका लगा।
कश्मीर में हाल मे हुई हत्याएं और सीमा पर आतंकवादियों से भारतीय सेना का बड़े पैमाने पर आमना सामना, पकिस्तान के कश्मीर में तनाव को बनाये रखने के इरादों की ओर इशारा हैl जिससे अंतरराष्ट्रीय ध्यान इस ओर बना रहे और बदलती हुई इस घाटी को किसी भी तरह से ‘विवादास्पद’ रखा जा सके।
भारत को जम्मू एवं कश्मीर में बड़े पैमाने पर घुसपैठ की आशंका के प्रति सतर्क रहना होगा। अफगानिस्तान में तालिबान के उदय से पाकिस्तानी आतकियों को फिर से एकजुट होकर घाटी में घुसपैठ करने और आतंकी योजनाओं की रणनीति बनाने का नया अवसर मिल सकता है। सर्दियां और बर्फबारी के मौसम की शुरुआत भारत के लिए कश्मीर मे एक अस्थायी राहत ला सकती है। अगर सरकार अगले वर्ष के अंत में सफल लोकतांत्रिक चुनाव कराना चाहती है, तो 2022 की ग्रीष्म ऋतु के लिए पहले से ही तैयारी करना बुद्धिमानी होगीl
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