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#पाकिस्तान पर प्रतिबंध लगाएं

सुशांत सरीन
मंगल, 17 अगस्त 2021   |   4 मिनट में पढ़ें

#पाकिस्तान पर प्रतिबंध लगाएं

सुशांत सरीन

ट्विटर पर रुझान  प्राय:  काफी कम समयावधि के लिए  होते है – यह कुछ  घंटो  के लिये अथवा अधिकतम एक दिन के हो सकते है। लेकिन कभी-कभी ये रुझान काफी दिनों तक बने रहते है और  भावनात्मक रूप ले लेते हैं एवं कार्रवाई के लिए प्रेरित करने वाले हो जाते है । लगभग एक हफ्ते से ट्विटर पर #SanctionPakistan ट्रेंड कर रहा है, जिसने दुनिया भर से करोड़ों ‘इंप्रेशन’ बनाए हैं। कनाडा के राजनेता और पूर्व राजनयिक क्रिस अलेक्जेंडर द्वारा संकटग्रस्त और परित्यक्त अफ़गानों के प्रति समर्थन  के बाद  से ही हैशटैग का चलन आरंभ हो गया जिन्होंने अफगानिस्तान और उसके लोगों पर होने वाली त्रासदी के पीछे वास्तविक खलनायक का नाम लेने में कोई दुविधा नहीं दिखायी।

जबकि इस हैशटैग के साथ लगभग 50% ट्वीट युद्धग्रस्त अफगानिस्तान के लिए थे, जिस पर पाकिस्तान के बर्बर तालिबानी प्रतिनिधियों द्वारा आक्रमण किया जा रहा था। लगभग 10% ट्वीट पाकिस्तान से आए थे, और इतनी ही संख्या भारत से आई थी। ऊपरी स्तर पर देखने से पाकिस्तानी संख्या हैरान करने वाली हैए लेकिन यह इस तथ्य को भी प्रतिबिंबित करता है कि पाकिस्तान का पश्तून समुदाय तालिबान के हमले का विरोध  करने वाले और विरोध  न करने वाले राष्ट्रवादी और प्रगतिशील पश्तूनों एवं तालिबान का समर्थन करने वाले और तालिबान  द्वारा पाकिस्तानी सेना के समर्थन वाले समुदाय के मध्य बिखर सा गया है।

चाहे अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस ट्विटर रुझान से प्रभावित हो अथवा न हो परंतु वास्तव में पाकिस्तान गुप्त रूप से अफगानिस्तान में घुसपैठ की  स्वीकृति प्रदान करता है। हैशटैग ने संपूर्ण पाकिस्तानी प्रतिष्ठान –  अर्थात सैन्य, राजनीतिक और उनके मीडिया समूहों को हिलाकर रख दिया और दहशत का वातावरण बना दिया।  जो पाकिस्तानी अपनी जान, घर, रहन-सहन को खो चुके अफगानी नागरिकों की विकट स्थिति पर नज़र रखे हुए थे जो थे, उन्होंने वैसे ही प्रतिक्रिया व्यक्त की जैसी वे आम तौर पर करते हैं – अनाड़ी पन लिए सहज और अप्रिय रूप से। कनाडा में पाकिस्तानी राजनयिकों ने सोचा कि उनका मेजबान देश पाकिस्तान जैसा ही है। जहां एक विपक्षी राजनेता को चुप कराया जा सकता है और यहां तक ​​कि गायब भी करवाया जा सकता है और अलेक्जेंडर के खिलाफ कार्रवाई की मांग करने वाला एक संदेश जारी कर दिया।

जब वह चाल बुरी तरह विफल हो गई, तो पाकिस्तानियों की चिंता इतनी बढ़ गई कि देश के असली शासक जनरलिसिमो यानी सकल सेनाध्यक्ष बाजवा ने सभी शीर्ष टीवी समाचार एंकरों, संपादकों, मीडिया प्रबंधकों, सेवानिवृत्त सैन्य और विदेश सेवा के उन अधिकारियों की एक बैठक बुलाई, जिन्हें सेना द्वारा नामित किया जाता है। इस बैठक में, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के ‘मुख्य चयनकर्ता’ ने इस विषय में  धारणा बनाने का निर्देश दिया  जिसकी आवश्यकता उन्हें #SanctionPakistan रुझाान का तिरोध करने के लिए  थी। कहने की जरूरत नहीं है कि सैन्य प्रतिष्ठान के इन मीडिया  पिछ्लग्गुओं ने शीघ् ही सैन्य और  राज्य की कथाओं के प्रचार के लिए टॉक शो बना दिया। लेकिन जल्दी ही उन्होंने महसूस किया कि वे अपनों के साथ और उनके बीच बात कर रहे थे। तो  क्या वे पहले से ही परिवर्तित लोगों को परिवर्तित करना चाहते थे ? वे जिन दर्शकों को दिखाना चाह रहे थे, वे उर्दू  भाषा को ठीक से समझते ही नहीं थे।  वहां के राष्ट्रीय प्रसारकों की विश्वसनीयता इतनी कम है कि पाकिस्तानी भी इसे नहीं देखते हैं। निश्चित रूप से  शेष संसार भी इसे गंभीरता से नहीं लेता। एक ‘स्वतंत्र’ अंग्रेजी भाषा का चैनल जो सेना के अनुसार चलने वाले कर्मचारियों से भरा है। ऐसे महान रणनीतिकार जो रणनीतिक विश्लेषण के लिए शब्दजाल  बिछाने के विषय में सोचते हैं। परंतु इस ​​ चैनल का भी दर्शक कोई नहीं है ।

अचानक सेना में जनरलों एवं विचार नियंत्रकों तथा मीडिया जोड़तोड़ करने वालों ने महसूस किया  कि उन्होंने पाकिस्तान के जीवंत और अपेक्षाकृत स्वतंत्र मीडिया को दबा करके  कैसे खुद के पैर पर कुलाहड़ी  मार ली है। लेकिन यह देखते हुए कि जनरल कमर बाजवा और आईएसपीआर के पूर्व प्रमुख आसिफ गफूर के नेतृत्व में, पाकिस्तान का मीडिया इतना कमजोर, गुलाम और अंतनिहित हो गया था कि वह एक पिंजड़े का तोता बन गया था जिसकी कोई विश्वसनीयता नहीं थी। इस स्तर पर पैरी ने लिखा कि पाकिस्तान की आतंकवाद की जन्म स्थली के रूप में बनी  छवि को चमकाने के लिए सेना की सभी गणनाएं और चालें एक हैशटैग द्वारा धूल में मिल गई थीं।

जैसा कि ऐसी परिस्थितियों में सामान्य है, पाकिस्तान अफगानिस्तान एनडीएस, भारतीय रॉ और यहां तक ​​​​कि इजरायल के मोसाद को दोष देने की साजिश के सिद्धांतों पर वापस लौट आया (और यह पाकिस्तान के जनरलों का पसंदीदा है जब वे आवाज बुलंद करना चाहते हैं) “पांचवीं पीढ़ी  का संघर्ष” इसका मुकाबला करने के आरोप लगा कर बुरी तरह पस्त हो गया। इसके प्रत्युतर में पाकिस्तानी षड्यंत्र पर से पर्दा उठाने के लिए,  सूचना मंत्रालय के एक विंग द्वारा एक “गहरी विश्लेषण” रिपोर्ट का खुलासा” किया। यह रिपोर्ट इतनी शर्मनाक और बचकानी थी कि इसने पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय हंसी का पात्र बना दिया। सबसे अधिक मनोरंजन एवं हास्यास्पद था की यह रिपोर्ट किसी अन्य द्वारा नहीं अपितु हेनरी किसींजर के पाकिस्तानी स्वरूप वहा के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रक्षा मोइजयूसुफ  द्वारा प्रस्तुत की गयी थी। जैसा कि कुछ सूत्रों ने  बताया की इस रिपोर्ट में न केवल कश्मीर को भारत का हिस्सा (पाकिस्तान में एक दंडनीय अपराध) दिखाते हुए एक नक्शा प्रकाशित किया  गया अपितु इसमें पाकिस्तान पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने और मुख्यधारा के मीडिया मे असंतुष्टों के स्थान को नकारने का भी आरोप लगाया।

इस ‘रिपोर्ट’ के भी विफल हो जाने से अब पाकिस्तान में एक वास्तविक भय है कि #Sanction Pakistan एक हैशटैग नहीं बल्कि एक वास्तविकता बन सकता है। जनरल और यहां तक कि राजनयिक भी अफगानिस्तान में पाकिस्तान की धूर्तता और विश्वासघात के खिलाफ एक गंभीर अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया को महसूस कर रहे हैं। न केवल सोशल मीडिया बल्कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया भी अफगानिस्तान के विनाश में पाकिस्तान की खलनायक भूमिका को उजागर करता रहा है। एक बार फिर दबाव महसूस करते हुए, पाकिस्तानी अपने मानक प्रोटोकॉल के अनुसार अवज्ञा,  उपेक्षा, इनकार और कुछ हद तक मजबूर करके उत्तर दे रहा हैं। दुर्भाग्य से आईएसपीआर की ट्रोल कॉर्प्स इस उद्यम में पूरी तरह से अप्रभावी साबित हुई है और पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो आलोचना मिल रही है, उसका कोई अंत नहीं है।

हालांकि बड़ा सवाल यह है कि क्या अमेरिका और उसके अन्य पश्चिमी सहयोगी वास्तव में पाकिस्तान पर प्रतिबंध लगाएंगे। अमेरिका के रिकॉर्ड को देखते हुए यह थोड़ा असंभव सा लगता है। अधिक से अधिक, वे कुछ  सीमा तक आईएमएफ सहायता को रोक सकते हैं या कुछ अन्य  उपाय कर सकते हैं। इसके अलावा, ऐसा नहीं लगता कि अमेरिका की इच्छा पाकिस्तान को दंडित करने की  है। यूरोपीय लोगों की तरह, अमेरिका भी कब्जा कर रहा है परतु वह अभी भी अपने पास मौजूद विशाल शक्ति का प्रयोग करने के लिए अनिच्छुक, यहां तक ​​कि अक्षम भी है। इसलिए, भले ही #SanctionPakistan ने प्रभाव बनाया और पाकिस्तान की पहले से ही खराब अंतरराष्ट्रीय छवि को एक बड़ा झटका दिया, यह शायद आभासी दुनिया से वास्तविक दुनिया में नहीं जा सकता । ऐसा लगता है कि पाकिस्तान एक बार फिर सामूहिक हत्याओं से मार्ग निकाल लेगा।

*****


लेखक
सुशांत सरीन आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो हैं और चाणक्य फोरम में सलाहकार संपादक हैं। वह पाकिस्तान और आतंकवाद विषयों के विशेषज्ञ हैं। उनके प्रकाशित कार्यों में बलूचिस्तान : फारगॉटेन वॉर, फॉरसेकेन पीपल (2017), कॉरिडोर कैलकुलस : चाइना-पाकिस्तान इकोनोमिक कोरिडोर और चीन का पाकिस्तान में निवेश कंप्रेडर मॉडल (2016) शामिल है।

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POST COMMENTS (2)

Manish Tiwari

अक्टूबर 17, 2021
This has to be done..

दिव्यराजसिंह%20जाडेजा

अगस्त 17, 2021
#sanctionsPakistan

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