क्वाड-आसियान रक्षा क्षेत्र में आपसी आदान-प्रदान में वृद्धि
गुरजीत सिंह
मालाबार क्वाड अभ्यास इस वर्ष सितंबर में आयोजित किया जायेगा। लगातार दूसरे वर्ष सभी चार क्वाड देश इसमें भाग लेंगे ।
पूर्वी नौसेना बेड़े के 4 जहाजों का एक भारतीय टास्क फोर्स पहले से ही दक्षिण चीन सागर (एससीएस) और पश्चिमी प्रशांत में दो माह की यात्रा पर है जहां मालाबार है। इस समूह में गाइडेड-मिसाइल– विध्वंसक रणविजय, गाइडेड-मिसाइल– फ्रिगेट शिवालिक, एंटी-सबमरीन– कार्वेट कदमत और गाइडेड-मिसाइल कार्वेट कोरा शामिल हैं।
मालाबार के अतिरिक्त, वे वियतनाम, फिलीपींस, सिंगापुर (SIMBEX), इंडोनेशिया (समुद्र शक्ति) और ऑस्ट्रेलिया (AUS-INDEX) की नौसेनाओं के साथ द्विपक्षीय अभ्यास करेंगे। मालाबार 21 के लिए गुआम जाने से पूर्व बेड़े के जहाजो ने ब्रुनेई का भी दौरा किया।
सभी क्वाड देशों ने हाल ही में (2-6 अगस्त) ईएएस, आसियान+1 मंत्रिस्तरीय बैठकों के साथ-साथ आसियान क्षेत्रीय फोरम (एआरएफ) की बैठक में भी भाग लिया , जो क्षेत्रीय सुरक्षा के ढाँचे का एक मुख्य मंच है।
क्वाड मानता है कि इंडो-पैसिफिक में, विशेष रूप से एससीएस में, यह शत्रु देश चीन और तटस्थ आसियान सदस्य देशों का सामना करने का जोखिम नहीं उठा सकता । उनका बफर अब तक की तुलना में अधिक प्रतिक्रियापूर्ण होगा । आसियान के प्रति अमेरिकी नीति के पुनरोद्धार को इसी संदर्भ में देखा जा सकता है।
एससीएस और इंडो-पैसिफिक क्वाड के साथ बढ़ते संबंधों को देख रहे हैं। वे इसमे और अधिक आसियान सदस्य देशों को शामिल कर रहे है। इस तथ्य पर ध्यान देना होगा कि चीन एससीएस पर अपने नियंत्रण के संबंध में सुनिश्चित है और अपना ध्यान ताइवान पर केंद्रित कर रहा है। चीन ताइवान के एडीआईजेड का नियमित रूप से उल्लंघन कर रहा है और उसने अपने दोनों विमानवाहक पोतों को ताइवान के चारों ओर पूर्ण युद्ध समूहों के साथ तैनात कर दिया है। चीनी एससीएस में अपने कब्जे वाले द्वीप क्षेत्रों का उपयोग मिसाइलों और विमानों की बढ़ी हुई क्षमता के साथ कर रहा है। वर्तमान में, चीन के पास इन द्वीप समूहों पर एक विमानवाहक पोत के साथ एक समय में अधिक से अधिक विमान तैनात करने की क्षमता है।
इसलिए, अमेरिका और उसके सहयोगियों ने महसूस किया कि इन द्वीपों पर स्थित चीनी ताकत से निपटने के लिए एक एकल युद्ध समूह (सीबीजी) अपर्याप्त होगा। हिंद-प्रशांत में कम से कम दो सीबीजी की आवश्यकता होगी। योकोसुका से जहाज यूएसएस रीगन के नेतृत्व वाले सीबीजी को अफगानिस्तान से अपने नागरिकों को निकालने में मदद के लिए तैनात किया गया था जो अब जल्द ही वापस लौट आयेगा। इसने 5वें फ्लीट के यूएसएस ड्वाइट डी आइजनहावर और इसके सीबीजी का समर्थन किया, जो अप्रैल 2021 से इस क्षेत्र में हैं। यूएसएस थियोडोर रूजवेल्ट के नेतृत्व में सीबीजी भी एससीएस में वापस आ गया है। यदि इंडो-पैसिफिक कमांड को अधिक प्रभावी बनाना है तो उसे लगातार 2 सीबीजी तैनात करने की आवश्यकता है। यूके सीबीजी की यात्रा को इस संदर्भ में आंशिक रूप से ही देखा जा सकता है।
एक अन्य उल्लेखनीय बिंदु यह है कि अमेरिका अफगानिस्तान से बाहर निकलकर पश्चिम एशिया में अपनी भागीदारी कम कर सकता है। अफगानिस्तान से बाहर निकलने से एससीएस और इंडो-पैसिफिक को सेंटकॉम के अंतर्गत आवधिक सीबीजी तैनाती जारी रखने के लिए अधिक छूट मिल सकती है।
अमेरिका इस बात से अवगत है कि आसियान संयुक्त अभ्यास मे उन्हें फिर से शामिल करने की कार्यवाही धीमी है। पहला आसियान-अमेरिका समुद्री अभ्यास सितंबर 2019 में थाईलैंड के सट्टाहिप नौसैनिक अड्डे पर किया गया था। यह सिंगापुर से होकर ब्रुनेई में संपन्न हुआ। सभी 10 आसियान सदस्य देशों और अमेरिका का प्रतिनिधित्व करने वाले लगभग 1000 लोगों ने दक्षिण पूर्व एशिया में समुद्री सुरक्षा और स्थिरता के लिए एक संयुक्त प्रतिबद्धता को बढ़ावा दिया। इसमें कंबोडिया और लाओस जैसे चीनी सहयोगियों सहित सभी आसियान देश शामिल थे। हालांकि यह 2017 और 2018 में एडीएमएम-यूएस बैठक में एक प्रस्ताव का परिणाम था, लेकिन चीन के प्रति संवेदनशीलता और आसियान सदस्यों के मध्य सहमति की कमी के कारण इसकी पुनरावृत्ति नहीं हो पायी। 2018 के चीन-आसियान अभ्यास की भी पुनरावृत्ति नहीं हुई।
अमेरिकी रक्षा सचिव ऑस्टिन ने हाल ही में जिन तीन आसियान देशों का दौरा किया, उनका निस्संदेह रणनीतिक महत्व है। उदाहरण के लिए, सिंगापुर, यूएस 7वें बेड़े के लिए एक प्रमुख बंदरगाह है, जो सैन्य विमानों और जहाजों के लिए वितीय सहायता प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। वियतनाम और फिलीपींस दक्षिण चीन सागर में अपने-अपने क्षेत्रीय मुद्दों पर सीधे चीन का सामना करते हैं।
इस तरह के प्रयासों के माध्यम से, अमेरिका ने आसियान के अलग-अलग देशों के साथ अपने संबंधों को बढ़ाया है। अप्रैल 2021 में, फिलीपींस और अमेरिका ने वर्ष 1991 के पश्चात् अप्रैल 2021 में 36वां बालिकटन अभ्यास किया। अब इसका एक इंडो-पैसिफिक आयाम है। इसका आयोजन महामारी के बावजूद कम भागीदारी, टेबलटॉप एक्सचेंज, प्रशिक्षण, वास्तविक समय सुरक्षा, प्रशिक्षण और अन्य समान गतिविधियों के साथ किया गया।
सचिव ऑस्टिन की फिलीपींस यात्रा का एक महत्वपूर्ण परिणाम विज़िटिंग फोर्सेस समझौते को निरस्त करने का निर्णय था, जो सैन्य ठिकानों के लिए यूएस फिलीपींस व्यवस्था का आधार था।
यूएस-इंडोनेशिया गरुड़ शील्ड अभ्यास एक दशक से भी अधिक समय से हो रहा एक अन्य वार्षिक अभ्यास है। अगस्त में आयोजित, इसने कालीमंतन, सुलावेसी और सुमात्रा सहित इंडोनेशिया के बड़े बाहरी द्वीपों को कवर किया। एक पखवाड़े में इसमें उभयचर, विशेष बल और हवाई इकाइयां शामिल हुई। जून 2021 में, इंडोनेशियाई और यूएस मरीन ने शहरी स्थलों की घटनाओ पर ध्यान केंद्रित करते हुए संयुक्त अभ्यास किया और अमेरिका द्वारा इस वर्ष के अंत में एक और अभ्यास किये जाने का कार्यक्रम है। अमेरिका और इंडोनेशिया मलक्का जलडमरूमध्य के पास और सिंगापुर के करीब एक द्वीप पर एक छोटे से शहर बाटम में एक संयुक्त समुद्री प्रशिक्षण केंद्र का निर्माण कर रहे हैं। अमेरिका एक स्वतंत्र और खुले इंडो-पैसिफिक (एफओआईपी) क्षेत्र के समर्थन में यूएस-इंडोनेशिया- एक बड़ी रक्षा भागीदारी और सहयोग को मजबूत करने का प्रयास कर रहा है।
थाईलैंड आसियान से बातचीत मे अमेरिकी दुविधा में है। कई दशकों तक, थाईलैंड और अमेरिका के हित पारस्परिक जुड़े हुए थे, क्योंकि थाईलैंड ने अमेरिका को इस क्षेत्र में चीनी और वियतनामी प्रभाव के विरुद्ध समर्थन के रूप में देखा था। थाईलैंड, अब अपनी लोकतांत्रिक पहचान खो चुका है, उसका सैन्य शासन चीन को शामिल करने का अधिक इच्छुक है। अपने घरेलू मुद्दों और चीन के साथ सामंजस्य के कारण, थाईलैंड का अमेरिका के साथ कोई रणनीतिक हित नहीं है।इसकी मुख्य चुनौती लोकतंत्र है, चीन नहीं। 2014 में तख्तापलट के बाद अमेरिका ने थाईलैंड को हथियारों की खरीद के लिए प्रदान किये जाने वाला वित्तपोषण कम कर दिया ।
लोकतांत्रिक अधिकारों, आर्थिक सहायता और निकटता की यह दुविधा अमेरिका को आसियान के साथ अपने सम्बन्धों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर करती है। इस प्रकार, थाईलैंड और फिलीपींस जैसे पारंपरिक सहयोगी द्विपक्षीय हो जाते हैं,जबकि पुराना दुश्मन वियतनाम इसका एक रणनीतिक भागीदार बन जाता है।
जुलाई 2021 के दौरान, ऑस्ट्रेलिया और जापान ने आठ अन्य देशों के साथ ऑस्ट्रेलिया के आसपास संयुक्त अभ्यास किया। यह ऑस्ट्रेलिया-अमेरिका, तावीज़ सेबर अभ्यास से पूर्व किया गया । बाद में इसमें जापान, ब्रिटेन, कनाडा, दक्षिण कोरिया और न्यूजीलैंड शामिल हो गए। भारत, इंडोनेशिया, जर्मनी और फ्रांस ने अपने पर्यवेक्षक भेजे। यह संयुक्त अभ्यास एफओआईपी को और अधिक सशक्त करेगा।
अमेरिका के लिए अपनी सुरक्षा आवश्यकताओं को आउटसोर्स करने की पारंपरिक आसियान नीति को मुख्य रूप से तब चुनौती मिली जब चीन अधिक आक्रामक हो गया था और ओबामा प्रशासन में एशिया पर अमेरिका का वर्चस्व स्थापित नहीं हो पाया था । ट्रंप के कार्यकाल में आसियान अमेरिका की प्राथमिकता नहीं था। बिडेन प्रशासन में, इंडो पैसिफिक और क्वाड की प्राथमिकता बहुत अधिक है।
अतः त्रि-आयामी नीति के अनुसार चीन मुख्य कारक है और आसियान ने इसे विशेष रूप से आर्थिक क्षेत्र में समायोजित किया है। अमेरिका आसियान और अन्य चुनिंदा सदस्य देशों के साथ फिर से जुड़ना चाहता है। इसके लिए चीन अपने प्रतिस्पर्धियों के साथ संबंध बड़ाने के लिए क्षेत्रीय ढाँचे को वरीयता प्रदान करेगा ।
चीन की ओर आसियान का झुकाव बड़ी तेज़ी से बड़ रहा है। अब उस क्षेत्र में,विशेष रूप से सुरक्षा और कार्यात्मक क्षेत्र में संतुलन बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। निस्संदेह ऐसा करने के लिए आसियान के सदस्य देशों को भी भूमिका निभानी होगी।
आसियान के प्रति सर्वसम्मति अब लुप्त हो रही है। जब कंबोडिया वर्ष 2022 में अध्यक्ष पद सभालेगा तो ऐसी संभावना है कि वह चीन समर्थक भूमिका निभायेगा जैसा उसने 2012 में किया था । इसलिए, आसियान को शामिल करना, इसकी केंद्रीयता की प्रशंसा करना और इसे न छोड़ना, नीति का एक हिस्सा है।
अमेरिका और अन्य क्वाड सदस्यों की नीति का तीसरा पहलू स्पष्ट रूप से उन इच्छुक आसियान सदस्य देशों के साथ जुड़ना है जिनके पास अधिक रणनीतिक मूल्य है। इसमें सिंगापुर, इंडोनेशिया, वियतनाम और फिलीपींस मुख्य हैं। थाईलैंड, मलेशिया,और म्यांमार, अपनी आंतरिक स्थितियों के कारण आगे नहीं बड़ रहे। सदस्य देशों की ऐसी ‘आसियान प्लस’ नीतियां छोटे कदम हैं।
मेरे विचार में विशिष्ट सदस्य देशों के आपसी संपर्क के इस प्रयास ने महामारी से लड़ने जैसी घटनाओ के प्रति उनके सुरक्षात्मक और कार्यात्मक समर्थन में वृद्धि की है। इसे अमेरिका और उसके क्वाड पार्टनर्स द्वारा और अधिक उद्वेग से देखा जा सकता है। इन उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए, आसियान देशों के साथ अमेरिका, यूरोपीय संघ के देशों और यूके की रक्षा भागीदारी का निश्चित रूप से अधिक महत्व है।
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References
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Shailendra