• 04 October, 2024
Foreign Affairs, Geopolitics & National Security
MENU

पाकिस्तान के निशाने पर पंजाब: भारतीय आंतरिक सुरक्षा की ज्वलंत समस्या का अंतर्राष्ट्रीय संबंध

लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन (सेवानिवृत्त)
रवि, 26 दिसम्बर 2021   |   5 मिनट में पढ़ें

मैंने  काफी समय से पंजाब की राजनीति को गंभीरता से नहीं लिया है। हालांकि जब वहां उग्रवाद और आतंकवाद जोरों पर था उन दिनों में वहां सेवा के बुनियादी ज्ञान और अनुभव से मेरा वर्तमान विचार यह है कि राज्य को सुनियोजित तरीके से विदेश प्रायोजित छद्म संघर्ष के अधीन किया जा रहा है, जिससे हम काफी परिचित हैं; इसमें अंतरराष्ट्रीय दांव-पेंच भी हैं। अगर मैं इस तरह का बयान देता हूं तो मुझे इसे सही भी सिद्ध करना चाहिए, और इसके लिए मुझे चालीस साल पीछे जाना होगा।

पाकिस्तान के लिए, 1971 की घटनाओं के लिए भारत के खिलाफ प्रतिशोध एक जुनून था और है। अस्सी के दशक में पंजाब में संकट की शुरुआत पाकिस्तान द्वारा नहीं की गई थी, लेकिन आंतरिक रूप से शुरू होने और विभिन्न कारणों से हालात बिगड़ने के बाद उसने आग में घी डालने का काम किया। यह एक तैयार स्थिति थी, जिसमें पाकिस्तान को ज्यादा ऊर्जा खर्च नहीं करनी पड़ी। भारत के सीमावर्ती और कृषि समृद्ध राज्य, जिसके नागरिकों की सशस्त्र बलों में भारी उपस्थिति हो, को अलगाववादी प्रवृत्ति जैसी स्थिति में जाने की अनुमति नहीं दी जा सकती थी। भारत ने पंजाब को उस स्थिति से उबारने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया लेकिन इसमें दस साल लग गये और इस बीच सामाजिक अशांति ने पंजाब को तहस-नहस कर दिया। कई पर्यवेक्षक पूछते हैं कि पाकिस्तान अचानक क्यों पीछे हट गया और उसने पंजाब में जो अलगाववादी बीज बोए थे, उसको आगे क्यों नहीं बढ़ाया। इसका उत्तर काफी सरल है; पाकिस्तान हमेशा से जानता था कि पंजाब को जीता नहीं जा सकता, उसके लोग अंतर की गहराई से भारतीय हैं। अस्सी के दशक में पाकिस्तान ने वहां जो किया वह एक उपद्रव था; और इसने भारत को वह स्वाद चखाया जो पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर में चख चुका है। 1988-89 के बाद उसने इसमें कोई समय बर्बाद नहीं किया, क्योंकि शीत युद्ध के बाद एक नई स्थिति पैदा हुई थी।

दो वर्षों 1990-91 में उसने पंजाब और जम्मू-कश्मीर में नए सिरे से शुरू किए गए छद्म युद्ध को आगे बढ़ाने की कोशिश की। उसका इरादा उन गलतियों का फायदा उठाने का था जिसे संवेदनशील माना जाता था। ये दोनों राज्य सीमा से सटे थे और सांस्कृतिक रूप से भी वह उनके बारे में परिचित था। इन दो वर्षों में उसने महसूस किया कि अपने इरादे को फलीभूत करना कोई आसान कदम नहीं था। अफगानिस्तान पर पूर्ण नियंत्रण नहीं होने के कारण भारत के दो सीमावर्ती राज्यों में आतंक, कट्टरपंथी विचारधारा और नेटवर्क के निर्माण के माध्यम से हिंसक छद्म युद्ध करना उसकी क्षमता से परे था; उसे यह डर था कि दोनों में ही यह काम नहीं हो पायेगा। फिर उसे अपनी प्राथमिकता-जम्मू-कश्मीर पर ध्यान केंद्रित करने के लिए पंजाब से पीछे हटने के लिए विवश होना पड़ा। फिर भी वे पूरी तरह पंजाब से पीछे नहीं हटे और परदे के पीछे रहकर सक्रिय रहे। मुझे संदेह है कि उनके स्लीपर एजेंट हमेशा पंजाब में बने रहे। हालांकि पंजाब में आतंकवाद को उनके अपने बहादुर लोगों ने पराजित किया था। जम्मू-कश्मीर में अवसर मिलने के बाद पाकिस्तान ने अपनी रणनीति को पंजाब में एक हद से आगे नहीं बढ़ाया।

भारत के खिलाफ बदला लेने की पाकिस्तान की रणनीति छद्म हिंसा के माध्यम से और समावेशी सूफी विचारधारा से अस्पष्टतावादी और कई प्रमुख इस्लामी राष्ट्रों के अनुरूप विचारधारा में बदलाव के जरिये जम्मू-कश्मीर को हथियाने की थी। इसके लिए पाकिस्तान ने 30 वर्षों से निरंतर अभियान चलाया है, समयानुसार प्रासंगिक होने के लिए इसमें पीढ़ीगत परिवर्तन भी किया है। पिछले कुछ वर्षों में पाकिस्तान के लिए समस्या और भी विकट हो गई है। भारतीय सहिष्णुता की सीमा का लंघन करने पर भारतीय प्रतिक्रिया रूपी तलवार उसके सिर पर लटक रही है। अनुच्छेद 370 में संशोधन और 5 अगस्त 2019 को लिए गये अन्य फैसलों ने जम्मू-कश्मीर पर भारत की पकड़ को और मजबूत कर दिया है। एक सफल छद्म युद्ध लड़ना और पुरानी रणनीति का पालन करना पाकिस्तान के लिए एक बड़ी चुनौती बन गयी है। इस प्रकार पाकिस्तान की रणनीति में बदलाव अनिवार्य था।

यहां तक कि पाकिस्तान जब 2,000 के दशक की शुरुआत में जम्मू-कश्मीर में छद्म युद्ध कर रहा था, तब उसने गैर-संपर्क रणनीति के तहत पंजाब में एक और मोर्चा खोल दिया, वह था पंजाब के युवाओं को नशीले पदार्थों का आदी बनाना। पंजाब में नशा जंगल की आग की तरह इस हद तक फैल गया कि यह बात प्रतिष्ठित हो गयी कि सेना और पुलिस में पुरुषों की भर्ती के लिए पर्याप्त रूप से सक्षम पुरुष भी उपलब्ध नहीं थे। पाकिस्तान ने पंजाब की सीमा से लगे जम्मू क्षेत्र में भी अशांति फैलाने का प्रयास किया (यह सहस्राब्दी के पहले दशक के बाद कम हो गया था), घुसपैठ की कुछ घटनाएं, 2016 का पठानकोट आतंकी हमला और सांबा और कठुआ के आसपास की घटनाएं पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंक के प्रसार की पुष्टि करती हैं। ड्रोन के माध्यम से जम्मू और पंजाब दोनों सीमावर्ती जिलों में हथियारों की खेप गिराना शुरू कर दिया। जासूसी करनी शुरू कर दी। यहां तक कि हमले भी किये। उसी समय कनाडा, ब्रिटेन और अन्य जगहों पर सिख अलगाववादी तत्व सक्रिय हो गए। पंजाब में भी आपराधिक नेटवर्क सक्रिय हो गये। पाकिस्तान की चाल स्पष्ट थी। वह जानता है कि इस तरह की बल तैनाती से जम्मू-कश्मीर में एक सफल आंदोलन संभव नहीं हो सकता है; जम्मू-कश्मीर और पंजाब में भारतीय सुरक्षा बलों को जमीनी स्तर पर फैलाने की जरूरत होगी। पाकिस्तान के लिए, दो भारतीय सीमावर्ती राज्यों में उथल-पुथल की स्थिति में रखते हुए काम करने की बेहतर स्थिति है। चीन को भी पाकिस्तान की आवश्यकता है, हालांकि ऐसी रणनीति का कोई अंतिम लक्ष्य नहीं है। यदि भारत के खिलाफ चीन का समर्थन भी पाकिस्तान को मिलता है तो उसके लिए किसी भी संभावित भारतीय पारंपरिक प्रतिक्रिया का मुकाबला आसान हो जायेगा। अब अफगानिस्तान के साथ एक अलग स्थिति हो गयी है। इस क्षेत्र में चीन की निर्भरता पाकिस्तानी मार्गदर्शन पर बहुत अधिक है, पश्चिमी सीमा पर पाकिस्तान की सेना अपेक्षाकृत अधिक स्वतंत्र है। 1989 की तरह एक अंतरराष्ट्रीय स्थिति अस्तित्व में आ रही है। अतीत की स्थिति पर विचार करते हुए पाकिस्तान घटनाओं के संभावित प्रगति के प्रति आकर्षित हो रहा है।

अल्पसंख्यकों जैसे संवेदनशील तत्वों की हत्या के माध्यम से जम्मू-कश्मीर में फिर से तनाव उत्पन्न करने के प्रयास पंजाब में अराजकता फैलाने के जानबूझकर किए गए प्रयास हो सकते हैं। आगामी चुनाव, राजनीतिक अनिश्चितता और अस्थिरता, अलगाववाद, सामाजिक और राजनीतिक उथल-पुथल की फिर से शुरुआत के लिए अनुकूल स्थितियां पैदा कर रही हैं। पश्चिमी देशों में अलगाववादियों का अस्तित्व और उन देशों द्वारा उनकी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए कोई प्रयास नहीं करने से अलगाववादियों के बीच आशा की किरण जलती रहती है। सोशल मीडिया और बढ़ी हुई संचार सुविधाओं ने उनके विचारों को फैलाने के साथ-साथ वित्तीय सुविधा को भी पहले से कहीं अधिक सरल बना दिया है।

तो क्या भारत इन परिस्थितियों के परिणामस्वरूप होने वाली अराजकता का इंतजार कर रहा है। एक राष्ट्र के रूप में हम अलगाववाद, छद्म युद्ध, संघर्ष आदि से निपटने में बेहद अनुभवी होने के नाते, हमें अपने सहिष्णुता के स्तर को कम करने की आवश्यकता है, जैसा कि हाल के वर्षों में किया गया है। निष्क्रियता से विरोधी में विश्वास पैदा होता है। कोई भी युद्ध की वकालत नहीं कर रहा है। जो आवश्यक है वह है संकल्प। प्रतिक्रिया के लिए प्रतिबद्ध होना और उसका प्रदर्शन करना। उत्तर में खतरे ने हमारे आत्मविश्वास को डगमगाने और हम पर हावी होने का प्रयास किया है। एक कमजोर पाकिस्तान हमसे मुकाबले को आश्वस्त है। प्रमुख अंतरराष्ट्रीय नेताओं द्वारा नई दिल्ली की हालिया यात्राओं ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में भारत की स्थिति को मान्यता दी है। नई दिल्ली में भी अफगानिस्तान पर पुनर्विचार जारी है और इसकी पहल धीमी होने पर भी उचित है। इस पर और अधिक आम सहमति की आवश्यकता है।

कभी-कभी आम जनता के लिए यह कल्पना करना बहुत कठिन होता है कि पंजाब कैसे जम्मू-कश्मीर से जुड़ा है, और फिर दोनों अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा और भारत की अफगानिस्तान नीति यहां तक कि उत्तरी सीमाओं पर खतरे से कैसे जुड़े हैं। भारत की भू-रणनीतिक स्थिति इसके लिए जिम्मेदार है। हालांकि सभी नकारात्मक नहीं है। रणनीतिक संकल्प का प्रदर्शन, बहुपक्षीय परामर्श, आर्थिक पुनरुद्धार और आंतरिक स्थिरता भारत को अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में सबसे महत्वपूर्ण स्थिति में ला सकती है। और हमने यह चर्चा पंजाब के साथ शुरू की, जहां एक पूर्व सैनिक, जो अब राजनेता है, की बुद्धिमत्ता के खिलाफ एक छोटे राजनेता की महत्वाकांक्षाओं के कारण राजनीतिक अव्यवस्था पैदा हो गयी है।

****************************************


लेखक
लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन (सेवानिवृत्त), पीवीएसएम, यूवाईएसएम, एवीएसएम, एसएम, वीएसएम, भारतीय सेना के श्रीनगर कोर के पूर्व कमांडर रहे हैं। वह रेडिकल इस्लाम के इर्द-गिर्द घूमने वाले मुद्दों पर विशेष जोर देने के साथ एशिया और मध्य पूर्व में अंतर-राष्ट्रीय और आंतरिक संघर्षों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। वह कश्मीर केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं और रणनीतिक मामलों और नेतृत्व के इर्द-गिर्द घूमने वाले विविध विषयों पर भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों में बड़े पैमाने पर बोलते हैं।

अस्वीकरण

इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और चाणक्य फोरम के विचारों को नहीं दर्शाते हैं। इस लेख में दी गई सभी जानकारी के लिए केवल लेखक जिम्मेदार हैं, जिसमें समयबद्धता, पूर्णता, सटीकता, उपयुक्तता या उसमें संदर्भित जानकारी की वैधता शामिल है। www.chanakyaforum.com इसके लिए कोई जिम्मेदारी नहीं लेता है।


चाणक्य फोरम आपके लिए प्रस्तुत है। हमारे चैनल से जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें (@ChanakyaForum) और नई सूचनाओं और लेखों से अपडेट रहें।

जरूरी

हम आपको दुनिया भर से बेहतरीन लेख और अपडेट मुहैया कराने के लिए चौबीस घंटे काम करते हैं। आप निर्बाध पढ़ सकें, यह सुनिश्चित करने के लिए पूरी टीम अथक प्रयास करती है। लेकिन इन सब पर पैसा खर्च होता है। कृपया हमारा समर्थन करें ताकि हम वही करते रहें जो हम सबसे अच्छा करते हैं। पढ़ने का आनंद लें

सहयोग करें
Or
9289230333
Or

POST COMMENTS (0)

Leave a Comment