पिछले सप्ताह के अंत में इंडिया टुडे कॉन्क्लेव को संबोधित करते हुए, सेना प्रमुख जनरल नरवने ने कहा कि अफगानिस्तान के स्थिर हो जाने के बाद अफगान आतंकवादियों को कश्मीर में भेजे जाने की संभावना है। उन्होंने कहा कि सेना इस स्थिति के लिए तैयार है और उसके घुसपैठ रोधी और आतंकवाद रोधी बल भी इसके लिए तैयार हैं। सेना के अन्य वरिष्ठ पदाधिकारियों ने भी ऐसी भावना व्यक्त की है। सीडीएस जनरल रावत ने एक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा, कि “अफगानिस्तान की किसी भी गतिविधि से हम उसी तरह बाहर निकल जायेंगे, जिस तरह से हम आतंकवाद से निपट रहे हैं। श्रीनगर में जीओसी 15 कोर के जनरल पांडे ने एक प्रेस वार्ता में कहा, कि ‘इस बात की संभावना है कि अमेरिकी सेना का अफगानिस्तान से चले जाना आतंकवादियों को कश्मीर कश्मीर की ओर बढ़ाने को प्रेरित कर सकती है।’
आतंकियों को तालिबन से मदद की उम्मीद
पाक आतंकवादी समूह के नेताओं ने कश्मीर पर तालिबान के समर्थन की उम्मीद करनी शुरू कर दी है। हिजबुल मुजाहिदीन के प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन ने तालिबान को बधाई दी और उनसे अनुरोध करते हुए कहा कि ‘मैं अल्लाह से प्रार्थना करता हूं कि आप अफगानिस्तान के इस्लामी अमीरात को मजबूत करें ताकि वे भारत के खिलाफ कश्मीरियों का समर्थन कर सकें।’ जैश के नेता मसूद अजार के कंधार का दौरा करने की सूचना भी मिली थी, जिसमें उन्होंने तालिबान के नेताओं से मुलाकात की और उनसे कश्मीर पर समर्थन का अनुरोध किया। वे जानते हैं कि अकेले वे कश्मीर में किसी प्रकार की सेंध नही लगा पाएंगे ।
पाकिस्तान भी लगाए बैठा उम्मीद
पाक सरकार को भी कुछ ऐसी ही उम्मीद है। इमरान खान की पीटीआई प्रवक्ता नीलम इरशाद शेख ने पाक टीवी पर एक चर्चा के दौरान बताया कि, ‘तालिबान ने कहा है कि वे हमारे साथ हैं और वे कश्मीर में हमारी मदद करेंगे।’ एंकर द्वारा यह चेतावनी देने के बाद कि आप अपनी टिप्पणियों के प्रति सावधान रहें, वो अपने शब्दों पर कायम रही। दक्षिण एशियाई संस्थान की पाकिस्तानी राजनीतिक विशेषज्ञ आयशा सिद्दीका के अनुसार, ‘काबुल में जीत के बाद जेईएम ने फिर से कश्मीर के बारे में बात करना शुरू कर दिया है।’ काबुल में हक्कानी के नेतृत्व वाली सरकार के गठन के बाद से भारतीय संपत्ति, अफगानिस्तान में वाणिज्य दूतावास और अन्य दूतावासों को निशाना बनाने के उत्तरदायी शासकों में विश्वास जोर पकड़ रहा है।
अफगान पर बढ़ता वैश्विक दबाव
इस समय अफगान सरकार पर वैश्विक दबाव बढ़ रहा है। जब तक वे आतंकवादी समूहों को शामिल ना करने के अपने इरादे के बारे में वैश्विक समुदाय को आश्वस्त नहीं करते, तब तक उन्हें न तो मान्यता दी जाएगी और न ही वित्तीय सहायता जारी होगी, और इसके फलस्वरूप देश में अशांति का वातावरण रहेगा। तालिबान ने पिछले सप्ताह के अंत में अमेरिका के साथ अपनी पहली बातचीत में इस बात पर बल दिया कि अफगान सरकार को अस्थिर करने से यह क्षेत्र प्रभावित हो सकता है। उन्होंने आगे कहा कि वे किसी भी आतंकवादी समूह का समर्थन कभी नहीं करेंगे, हालांकि उनकी इस बात पर किसी को विश्वास नहीं है। नए तालिबानी नेतृत्व को पहचानने और उसके साथ बातचीत करने के लिए वैश्विक समुदाय पाकिस्तान की दलीलें नहीं सुन रहा।
अफगानिस्तान के प्रति एक साझा रणनीति तैयार करने के लिए ज्यादातर देश भारत के संपर्क में हैं। इस संबंध में की गयी टिप्पणियों में नवीनतम टिप्पणी अमेरिकी विदेश मंत्री वेंडी शेरमेन की थीं, जिन्होंने अपनी भारत यात्रा के दौरान कहा था, ‘अमेरिका अफगानिस्तान में व्यापक आतंकवाद की संभावना के संबंध में भारत की चिंताओं की अत्यधिक सराहना करता है। आतंकवाद को रोकने के लिए हम दोनों देशों का साथ मिलकर काम करने का एक लंबा इतिहास रहा है।’ पाकिस्तान के लिए उन्होंने कहा कि, ‘तालिबान के प्रति अपने दृष्टिकोण में हम सभी को एकमत होना होगा। हम सभी को यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि हमारे पास भारत सहित अन्य सभी देशों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की आवश्यक क्षमताएं हैं। इसलिए मैं सचिव (एंटनी) ब्लिंकन की (पाकिस्तान के साथ) बातचीत को आगे बढ़ाते हुए इस बारे में बहुत खास वार्ता करने जा रहा हूँ ।’
ऐसे में तालिबान के नेतृत्व वाली अफगान सरकार क्या कर सकती थी। हालांकि यह आधिकारिक तौर पर कश्मीर पर पाकिस्तान की कार्रवाई का समर्थन नहीं कर सकती , लेकिन आईएसआई या पाक आतंकवादी समूहों को आईईडी बनाने के लिए अपने लड़ाकू दस्ते देने या विस्फोटक विशेषज्ञों की भर्ती के बारे में अपनी आंखें मूंद लेगा, इससे पाक आतंकी समूहों की ताकत में इजाफा होगा।
पाकिस्तान की सहायता करने के लिए उन्हें अपने आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों और उनके आतंकी समूहों के मुखिया को पूर्वी अफगान में शिफ्ट करने की अनुमति दे सकते हैं l इससे पाक को कई फायदे होंगे। सबसे पहला लाभ यह होगा कि प्रशिक्षण शिविर किसी तीसरे देश में होंगे और यदि भारत बालाकोट की तरह की कोई कार्यवाही करता है तो इसका असर अफगानिस्तान पर पड़ेगा जो आधिकारिक तौर पर भारत विरोधी रुख होगा। ऐसी कार्यवाही से भारत-अफगान संबंधों को नुकसान होगा और पाकिस्तान को फायदा होगा। दूसरे, पाकिस्तान अपनी धरती पर प्रशिक्षण शिविरों की उपस्थिति से इनकार करके एफएटीएफ जैसे वैश्विक मंचों पर शर्मिंदगी से बच सकता है। तीसरा, फ़ायदा यह होगा कि आतंकवादी समूह किसी तीसरे देश में हैं, इसलिए पाकिस्तान उन पर नियंत्रण से इनकार कर सकता है। इससे भारत-अफगान संबंधों मे तनाव होगा। यदि भारत अफगानिस्तान को शिविर स्थलों की जानकारी देता है तो उन शिविरों को आसानी से दूसरी जगह शिफ्ट किया जा सकता है क्योंकि अधिकांश शिविर अस्थायी ढांचे के हैं।
तालिबान द्वारा पूर्व अफगान बलों से हथियाए गए छोटे हथियारों का विशाल संग्रह पाकिस्तान पहले ही हासिल कर चुका है। इन छोटे हथियारों को नाइट साइट्स, स्नाइपरस्कोप आदि के साथ पाकिस्तान ले जाया गया है। ये कश्मीर में सक्रिय आतंकवादियों की क्षमताओं को बढ़ा सकते हैं। इनमें से कुछ को ड्रोन के सहारे घाटी में उतारा जा सकता है या घुसपैठियों अथवा ड्रग कोरियर से तस्करी करके लाया जा सकता है। आने वाले समय में सुरक्षा बलों के लिए यह चिंता का विषय होगा।
बदल चुका है भारत भी
पाकिस्तान भले ही तालिबान की जीत की खुशी मना रहा हो और कश्मीर का सपना देख रहा हो, लेकिन 1990 के दशक में जब तालिबान 1.0 सत्ता में था, तब से लेकर अब तक भारतीय पक्ष में बहुत अधिक बदलाव आया है। इलेक्ट्रॉनिक और ड्रोन निगरानी द्वारा समर्थित एक मजबूत कैलिब्रेटेड और लगातार हो रही घुसपैठ विरोधी ग्रिड के साथ एक मजबूत सीमा बाड़ ने भारतीय सीमा प्रबंधन को अति आधुनिक बना दिया है। घुसपैठ पर अंकुश लगा पाना इतना सरल नहीं है, सफलता के अवसर बहुत कम है। राष्ट्रीय राइफल्स, जो भारतीय उग्रवाद विरोधी अभियानों की रीढ़ है, उसने अपने ऑपरेटिंग ग्रिड के साथ खुद को एक बहुत ही शक्तिशाली बल के रूप में स्थापित किया है।
जम्मू-कश्मीर पुलिस प्रभावशाली खुफिया नेटवर्क के साथ एक मजबूत ताकत के रूप में विकसित हुई है। जिसके परिणामस्वरूप सफल मुठभेड़ हुई है। हुर्रियत, जो मुठभेड़ों में पकड़े गए आतंकवादियों के समर्थन में हिंसा करने के लिए पैसा देता था, अब असहाय है। हवाला के जरिए पैसा नहीं पहुँच पाने से आतंकवादियों को दिए जाने वाला समर्थन और हिंसा खत्म हो गई है। स्थानीय आबादी ने शांति महसूस की और वे आतंकवाद विरोधी बन गए। कश्मीर में संचालन करना और इस मानव खुफिया नेटवर्क से बच कर अफगानों और पाक आतंकवादियों की घुसपैठ अब मुश्किल है।
यदि पाकिस्तान घुसपैठ करने के लिए संघर्ष विराम का उल्लंघन करता है तो अब भारत की पाकिस्तान के खिलाफ कड़ी जवाबी कार्रवाई करने की नीति है। और यदि अफगान आतंकवादियों की पहचान हो जाती है तो इस सूचना के आधार पर भारत यह दावा करके पाकिस्तान को बदनाम कर सकता है कि इस देश के पास कश्मीर हासिल करने की क्षमता का अभाव है इसलिए वह तालिबान का समर्थन मांग रहा है।
अफगानिस्तान में तालिबान का समर्थन करने के लिए पाकिस्तान पहले से ही वैश्विक प्रतिक्रिया का सामना कर रहा है। यदि पाकिस्तान उन्हें कश्मीर में साथ लाने का प्रयास करता है तो वह और अधिक अलग-थलग पड़ जायेगा। भारत आतंकवाद का समर्थन करने के लिए विश्व निकायों को पाकिस्तान के खिलाफ कर सकता है। इसका असर पाकिस्तान पर बहुत अधिक पड़ेगा, जो पहले से ही आर्थिक पतन के कगार पर है।
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