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तालिबान टाइगर पर सवार पाकिस्तान

लेफ्टिनेंट जनरल विनोद भाटिया (सेवानिवृत्त)
रवि, 05 सितम्बर 2021   |   6 मिनट में पढ़ें

वो जो बाघ की सवारी करता है, वह उस पर से उतरने से डरता है” – चीनी कहावत

राज्य के प्रति उत्तरदायित्व और पश्चिमीकृत सामाजिक व्यवहार के स्वीकृत वेस्टफेलियन संप्रभुत्व वाले अंतरराष्ट्रीय जगत को, गैर-राज्य संस्थाओं के साथ जुड़े और अंतरराष्टीय जगत में राजनैतिक अव्यवस्था की स्थिति पैदा करने के लिए प्रायोजित संशोधनवादी राज्यों के उदय से खतरा है। बड़े भौगोलिक क्षेत्रों पर कब्जा करने वाले अराजकतावादी समूहों के समर्थक अंतरराष्ट्रीय कट्टरवाद द्वारा वैश्विक स्थिति को अस्थिर  करने पर अधिक बल दिया गया है, खासकर अफपाक क्षेत्र में।

इन घटनाओं का वर्णन इतिहास में अंकित है। केवल पिछले चार दशकों में   अपराधियों ने विभिन्न रूपों और मात्राओ में परिणाम प्राप्त किये । इराक, सीरिया, मिस्र, क्रीमिया, पाकिस्तान या अफगानिस्तान  अनाकार संरचना वाले सभी की भौगोलिक संस्थाओं पर अराजकतावादी वैचारिक समूहों ने कब्जा कर लिया  जो  अब उनके वैचारिक और सामाजिक प्रयोगों के लिए  पेट्रि डिश (रुचिकर) बन गए हैं।

यद्यपि इराक/सीरिया में स्थापित खलीफा का उदय अभी वर्तमान में ही हुआ है परन्तु इसने आने वाली घटनाओं की एक झलक दिखा दी है। इसने  मैकियावेलियन पाकिस्तान में  विश्व शक्तियों के संकल्प और प्रतिक्रियाओ कोअधिक महत्वपूर्ण रूप से उजागर किया, जहां आसपास के क्षेत्र में पूरी तरह से सुसज्जित धार्मिक प्रयोगशाला है जिसे अनेक लक्ष्यों को पूरा करने के लिए  गुप्त रूप से  सक्रिय बनाया  गया ।

पाकिस्तान द्वारा अपने आंगन में  पाले जा रहे  सर्प के परिपेक्ष्य में संभावित उद्देश्यों की जाँच करनी भी अनिवार्य है जिसमें डूरैंड रेखा के पार फैलने की क्षमता है। यद्यपि,  पाकिस्तान के लोगों के लिए तालिबान शासित अफगानिस्तान से होने वाले रणनीतिक और आर्थिक लाभ, पाकिस्तान नियंत्रित अफगनिस्तांन से कहीं अधिक होंगे, क्योंकि पाकिस्तान उस मुहावरे वाले  बाघ से उतरने नहीं पायेगा।

पाकिस्तान द्वारा रचित एक बड़ा खेल

पाकिस्तान  दो-राष्ट्रिय सिद्धांत के आधार पर  बनाया गया था जो आज तक मान्यता और पहचान के लिए संघर्ष कर रहा है । उपमहाद्वीप के मुसलमानों के लिए एक बेहतर राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक राष्ट्र का वादा अभी भी  साकार होना शेष है, विशेष रूप से भारत की तुलना में। इससे पाकिस्तान के अस्तित्व पर  ही सवाल खड़ा हो जाता है।  वह संस्थान,  जो अपने शासन को उचित ठहराने के लिए खुद को दुनिया की “इस्लामी विचारधारा” के रक्षक के रूप में स्थापित करना चाहता है, वह अपने ही नागरिकों का सामाजिक हित करने में विफल रहा। तालिबान को आंतरिक रूप से और  अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बढ़ावा देना पाकिस्तान की अदृश्य सरकार  और सेना की इस्लामी साख को पुष्ट करता है।

पाकिस्तानी सेना प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से देश पर शासन करती है,  आर्थिक मामलों में प्रमुख स्थान बनाए रखते हुए रक्षा और विदेश नीतियों पर उनका पूर्ण अधिकार है। पाकिस्तानी सेना की घरेलू सत्ता को, एक ओर कट्टरपंथी राजनीतिक दलों और दूसरी ओर आईएसआई द्वारा बनाए एवं पोषित किए गए कई आतंकवादी संगठनों से  प्रत्यक्ष रूप से खतरा है।

खादिम रिज़वी के नेतृत्व वाली तहरीक-ए-लब्बैक समर्थकों की नाकेबंदी ने पाकिस्तानी सेना को राजनीतिक समर्थन और उत्साह की याद दिलाई, जो फ्रिन्ज़ समूहों द्वारा इन अशिक्षित कटरपंथियो के माध्यम से जनता के बीच उत्पन्न किया जा सकता है। पाकिस्तान प्रतिष्ठान स्वयं को एक धार्मिक इकाई के रूप में चित्रित करना चाहता है, जो अमेरिका के नेतृत्व वाले जीडब्ल्यूओटी से अलग होने की मांग कर रहे है, तथा तालिबान द्वारा अफगानिस्तान के अधिग्रहण का खुला समर्थन  कर रहा है।

इसके विपरीत, पाकिस्तानी सेना इस बात से अवगत है कि उसे आर्थिक रूप से बेहतर भारत के विरुद्ध हथियारों की होड़ को नियंत्रित करने के साथ-साथ पाकिस्तान की पस्त अर्थव्यवस्था को बचाए रखने के लिए अमेरिकी अनुदान की आवश्यकता है। अफगानिस्तान से अमेरिका के पूर्ण विघटन के कारण अमेरिकी सेना (ओवरलैंड लॉजिस्टिक्स) से नकद राशि के प्रवाह के साथ-साथ विदेश विभाग/खुफिया एजेंसियों से महत्वपूर्ण परोक्ष धन भी रुक जाएगा। इसके अतिरिक्त पाकिस्तान पर अमेरिका की निर्भरता कम होने से भारत पाकिस्तान द्वारा संचालित आतंकवादी समूहों पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव बढ़ाने में सक्षम हो जायेगा। अतः पाकिस्तान के लिए आवश्यक है कि वह संयुक्त राज्य अमेरिका को अपने “क्षितिज के ऊपर” प्रतिपक्षी आतंकवादी अभियानों के माध्यम से अफगानिस्तान में  ही व्यस्त रखे।

अब जबकि तालिबान 2.0 को नया और अच्छा घोषित कर दिया गया है,   आईएसआई  के साथ मध्यस्थ के रूप एक नया दुश्मन आईएसआईएस-के (काबुल एयरपोर्ट ब्लास्ट) के रूप में सामने आया है जो नकदी और प्रभाव के लिए दोनों में परस्पर दूरी बढ़ाएगा।    जमीनी क्षमता  के आभाव में अमेरिकी सेना को इस अज्ञात आतंकवादी संगठन का मुकाबला करने के लिए फिर से आईएसआई का सहारा लेना होगा, जिस पर विस्फोट के कुछ घंटो के बाद से ही लेख प्रकाशित हो रहे हैं।

चीन के सीपीईसी निवेश को पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में सभी रोगों के लिए रामबाण औषधि के रूप में प्रचारित किया जाता है। यद्यपि परियोजनाओं की बड़े पैमाने पर अव्यवहार्यता और बलूचिस्तान एवं खैबर पख्तूनख्वा में, जहां चीनी नागरिको को निशाना बनाया जा रहा है, अनिश्चित सुरक्षा परिस्थितियों के कारण पैसा समाप्त हो गया है। पाकिस्तान को तालिबान के विभिन्न गुटों पर नियंत्रण द्वारा अफगानिस्तान की पर्याप्त खनिज संपदा का दोहन करने की उम्मीद  है, जिसमें चीन एक स्थायी ग्राहक है।

इसके अतिरिक्त, अफगानिस्तान से निकासी के दौरान अराजकता के कारण अमेरिकी सेना की स्थिति से सार्वजनिक रूप से आनंदित होकर, पाकिस्तान अपने नए स्वामी, चीन से क्षमायाचना कर रहा है, जो वैश्विक प्रभुत्व के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ शक्ति युद्ध कर रहा है। चीन अब अमेरिका द्वारा खाली किए गए बगराम बेस पर कथित रूप से पाकिस्तान द्वारा नियंत्रित तालिबान से नियंत्रण प्राप्त करने का इच्छुक है।

रोग का निदान

पाकिस्तान लंबे समय से अफगानिस्तान पर प्रभुत्व के कारण भारत के विरुद्ध रणनीतिक विवाद को आगे बढ़ाता रहा है। यद्यपि बिना  किसी सामरिक औचित्य के इसे भारत-पाक प्रतिद्वंद्विता में एक सतत चाल के रूप में माना जा रहा है। बुनियादी ढांचे और शैक्षिक छात्रवृत्ति में भारतीय निवेश ने अफगानिस्तान के लोगों की सद्भावना अर्जित की परंतु वह  इसके लाभ से वंचित रहा क्योंकि इसमें सामीप्य के साथ-साथ धार्मिक और जातीय संबद्धता का  अभाव था।

पाकिस्तान नियंत्रित तालिबान पाकिस्तान की रणनीतिक प्रासंगिकता को बढाता है, क्योंकि काबुल (तालिबान) की ओर जाने वाली अधिकांश सड़कें रावलपिंडी से होकर जाती हैं। विश्व द्वारा अफगानिस्तान में हस्तक्षेप किये जाने में पाकिस्तान की प्रेरणा उन्हें दलदल में डाल कर उनकी रणनीतिक प्रासंगिकता के कारण उत्पन्न अस्थिरता से घरेलू, राजनीतिक और आर्थिक मजबूरी बनी हुई है।

काबुल हवाई अड्डे पर अमेरिकी सैन्य कर्मियों को निशाना बनाये जाने सहित अन्य आतंकवादी हमले, यह सुनिश्चित करते हैं कि अमेरिका अफगानिस्तान में निवेशित रहे। बाइडन प्रशासन कैच 22 की स्थिति में है-परंतु कट्टर समर्थकों के कारण राजनीतिक रूप से पूरी तरह से वापसी के लिए प्रतिबद्ध है। 20 साल के संघर्ष के बाद तालिबान को सत्ता देने का औचित्य और  इस औचित्य को प्रोजेक्ट करने के लिए, अमेरिकी सूचना युद्ध की मशीनरी “एक सुधरा हुआ तालिबान” को वैध बनाने का प्रयास कर रही है, जिसकी एक स्वीकार्य छवि पेश करने के लिए उसे आईएसआई द्वारा निर्देशित किया जाएगा। इसके अतिरिक्त, तालिबान को देश के भीतर अधिक हिंसक समूहों को बनाये रखने के लिए उपयुक्त मूल्य प्रदान किया जाएगा, जिससे यूएस की गृह भूमि की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। दूसरी ओर, आईएसआई पश्चिमी दुनिया के लिए नए खतरे पैदा करता रहेगा ताकि नकदी का प्रवाह बना रहे।

पूरे जुए में चीन की भूमिका विशेष रूप से दिलचस्प है, जो एक द्वि-ध्रुवीय दुनिया में वैश्विक वर्चस्व  की तलाश में अमेरिका को चुनौती देती है। हालाँकि चीन  संवेदनशील और कमजोर शिनजियांग के कारण अफगानिस्तान में सैन्य हस्तक्षेप से परहेज करेगा, लेकिन साथ ही साथ वह ‘रिश्वत और ब्लैकमेल’ की अपनी आजमाई और परखी हुई नीति को भी अपना सकता है। चीन के लिए एक अधिक अनुकूल विरोधी के साथ वैश्विक शक्ति की अपनी खोज शुरू करना अधिक विवेकपूर्ण होगा। वह सामरिक गलियारे और दुर्लभ मिट्टी के खनन सहित अफगानिस्तान में अपने हितों को सुरक्षित करने के लिए पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों का लाभ भी उठाएगा।

यद्यपि घरेलू स्तर पर पाकिस्तानी सेना और आईएसआई को अनुशासित रहना होगा। अफगानिस्तान के मुसलमानों की पूर्ण शक्ति पाकिस्तान में  मुस्लिमों की आकांक्षाओं को जन्म देगी। अर्थात, शरीयत कानून लागू करना, जो तालिबान नियंत्रित अफगानिस्तान में है, न्यायपालिका के साथ धार्मिक अदालतें पाकिस्तान के कट्टरपंथी गरीबों के लिए तार्किक होंगे।

तालिबान एक विचारधारा आधारित संगठन के रूप में टीटीपी का समर्थन करेगा। अफगानिस्तान में पश्तूनों के सत्ता में होने से, पंजाबियों के प्रभुत्व और अत्याचार के खिलाफ लड़ने के लिए ट्रांस डूरंड पश्तून बहुल क्षेत्रों (पश्तूनिस्तान या पश्तूनख्वा) के एकीकरण की आकांक्षाओं को बढ़ावा मिलेगा। पाकिस्तान ने पिछले दो दशकों से  ‘खरगोशों के साथ बाघों और शिकारी कुत्तों के साथ शिकार करो” का सफ़लता पूर्वक पालन’ किया है।

हालांकि, पाकिस्तान के लिए चुनौती मुहावरे वाले बाघ को खदेड़ने की होगी। पाकिस्तान को ऐसा अनुभव हो सकता है कि वह तालिबान को नियंत्रित अथवा अपने वश में कर लेगा, परंतु वास्तविकता यह है कि तालिबान एक अत्यंत कट्टरपंथी आतंकवादी संगठन है और यह पूरी तरह से एक अलग प्रकार का है। एक अधिक कट्टरपंथी पाकिस्तान के आह्वान से एक अस्थिर पड़ोसी द्वारा प्रेरित आंतरिक उथल-पुथल की संभावना है। यद्यपि पाकिस्तान ने निकट भविष्य में सामरिक प्रासंगिकता प्राप्त कर ली है, परंतु पाकिस्तान के लोग इस मध्य अवधि में बहुत अधिक खो देंगे, क्योंकि विभिन्न आतंकवादी संगठन जीत का स्वाद चखने के बाद  अब और अधिक उत्साहित हो गए हैं। इस क्षेत्र में कट्टरपंथ और जिहाद के आह्वान बढ़ेंगे और  इससे  पाकिस्तान  सर्वाधिक प्रभावित होगा।

पाकिस्तान के लिए ‘तालिबान टाइगर’ की सवारी करना एक रोमांचक अनुभव हो सकता है, लेकिन इसकी कीमत और परिणाम देश को अराजकता की ओर ले जा सकती है। जैसा कि कहा भी गया है कि आप बाघ की सवारी कर सकते हैं, लेकिन चुनौती यह है कि  कब और कैसे उतरना है।

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लेखक
लेफ्टिनेंट जनरल विनोद भाटिया, पीवीएसएम, एवीएसएम, एसएम (सेवानिवृत्त) पूर्व महानिदेशक सैन्य ऑपरेशन (डीजीएमओ) हैं और सीईएनजेओडब्ल्यूएस-द सेंटर फॉर ज्वाइंट वारफेयर स्टडीज के निदेशक हैं। तीनों सेनाओं के आधिकारिक थिंक टैंक हैं।

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