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पाकिस्तान को कश्मीर पर कभी नहीं मिल सकता दुनिया का समर्थन

मेजर जनरल हर्ष कक्कड़ (रि॰)
मंगल, 28 दिसम्बर 2021   |   5 मिनट में पढ़ें

किसी देश को वैश्विक पटल पर आवाज उठाने के लिए उसे आर्थिक रूप से व्यवहार्य होना चाहिए और साथ ही उसे वैश्विक मानदंडों का पालन करते हुए आतंकवादियों को अपने देश में मेहमानों की तरह खातिरदारी नहीं करनी चाहिए। पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था उजागर हो गय़ी है, वह कर्ज के दलदल में फंस गया है। वह चीन, सऊदी अरब और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के अनुदान और नशीली दवाओं की आमदनी पर चल रहा है। इसके अलावा, वह भारत और अफगानिस्तान को प्रभावित करने वाले आतंकवादियों का समर्थक बना हुआ है। आतंकवाद के समर्थन पर अंकुश लगाने में विफल रहने के कारण वह एफएटीएफ की काली सूची में बरकरार है। फिर भी वह हर मंच पर कश्मीर के मुद्दे को उठाना चाहता है, भले ही वह मंच अन्य मुद्दों पर चर्चा करने के लिए ही क्यों न हो। उसे लगातार दरकिनार किया जाता रहा है, फिर भी वह अपने एजेंडे पर कायम है।

हाल ही में अफगानिस्तान को समर्थन देने पर चर्चा के लिए बुलाई गई ओआईसी देशों के विदेश मंत्रियों के शिखर सम्मेलन में प्रधान मंत्री इमरान खान ने कश्मीर के मुद्दे को उठाया, जबकि ओआईसी द्वारा इसका उल्लेख नहीं करने के लिए चेतावनी भी दी गयी थी। उसने फिलिस्तीन और कश्मीर को जोड़कर उस चेतावनी को दरकिनार करने का प्रयास किया। उन्होंने उल्लेख किया कि दोनों क्षेत्र ‘अपने लोकतांत्रिक और मानवाधिकारों के बारे में मुस्लिम दुनिया की एकीकृत प्रतिक्रिया देखना चाहते हैं।’ सऊदी विदेश मंत्री के साथ अपनी बैठक में, पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल बाजवा ने उल्लेख किया कि क्षेत्रीय शांति और स्थिरता के लिए ‘कश्मीर मुद्दे का समाधान महत्वपूर्ण है।’ इन बयानों को किसी भी अन्य सदस्य देशों का समर्थन नहीं मिला और न ही पाकिस्तान के बाहर किसी भी मीडिया नेटवर्क में इसकी रिपोर्ट प्रकाशित की गयी, जिससे स्पष्ट है कि पाकिस्तान को इस मुद्दे पर बिलकुल समर्थन नहीं मिला।

वर्षों से पाकिस्तान कश्मीर पर एक विशेष ओआईसी सत्र बुलाने का प्रयास कर रहा है, लेकिन ओआईसी का प्रमुख देश सऊदी अरब ने इसे हमेशा खारिज कर दिया है। एसएम कुरैशी ने अपनी पहल पर एक सत्र बुलाने की धमकी भी दी थी, लेकिन उन्हें पता था कि उनकी बातों का समर्थन करने वाला कोई नहीं मिलेगा। यहां तक कि वर्तमान ओआईसी शिखर सम्मेलन में 57 में से केवल 27 सदस्य ही शामिल हुए। वर्तमान वैश्विक परिवेश में समर्थन तब मिलता है जब समर्थन चाहने वाले राष्ट्र के पास बदले में देने के लिए कुछ होता है। उइगरों से दुर्व्यवहार के लिए किसी भी मुस्लिम राष्ट्र द्वारा चीन की कभी भी आलोचना नहीं की गई, केवल उसके साथ आर्थिक संबंधों के कारण। पाकिस्तान, एक ऐसा राष्ट्र बना हुआ है, जिसे एक वैश्विक अछूत माना जाता है, बाहरी मदद के बिना वह अपनी आर्थिक जरूरतों को पूरा करने में भी असमर्थ है, उसके पास देने के लिए कुछ भी नहीं है। इसलिए, इसकी आवाज सुनने वाला विश्व में कोई नहीं है।

Pakistan hosts the 17th extraordinary session of the Organisation of Islamic Cooperation (OIC) Council of Foreign Ministers, in Islamabad.

मुस्लिम दुनिया में पाकिस्तान के पास एकमात्र सकारात्मक बात यह है कि वह एकमात्र परमाणु सक्षम इस्लामी देश है। कुछ समय पहले तक उसने इसका लाभ उठाया, अब और नहीं।

ओआईसी के भीतर भी, राष्ट्र का कार्य धार्मिक आधार पर नहीं बल्कि राष्ट्रीय हित में होता है। उइगर मुद्दे को न उठाना इसका एक उदाहरण है। इसने चीन को अपने देश में मुस्लिम अल्पसंख्यकों के खिलाफ कार्रवाई करने की खुली छूट दे दी है। सीरिया और लीबिया सहित पश्चिम एशिया में अधिकांश अशांति का नेतृत्व मुस्लिम देशों के पिट्ठू करते हैं। अफगानिस्तान के पड़ोसियों के अलावा ओआईसी के एक भी सदस्य ने किसी भी शरणार्थी को स्वीकार नहीं किया है। यूरोपीय देशों पर उन्हें स्वीकार करने का दबाव बना हुआ है।

ओआईसी के कुछ सदस्यों ने अफगानिस्तान से निपटने के लिए अमेरिका के कार्यों की आलोचना की, लेकिन उन्होंने कभी भी तालिबान को वैश्विक मांगों के अनुसार अपना रुख बदलने के लिए मजबूर करने का प्रयास नहीं किया। इज़राइल और पश्चिम एशिया के मुस्लिम राष्ट्रों के बीच के विवाद और ईरान के खतरे के संदर्भ में ओआईसी की अवधारणा परिवर्तित होती रहती है। ओआईसी के देश उन लोगों का समर्थन करेंगे जिनसे उनको लाभ है, बजाय इसके कि वे धार्मिक आधार पर समर्थन करें, जो कि पाकिस्तान चाहता है। इसलिए, फिलिस्तीन और कश्मीर अब उनके एजेंडा पर हावी नहीं हैं। ओआईसी के भीतर धर्म की जगह वास्तविकता महत्वपूर्ण हो गयी है।

पाकिस्तान की तुलना में भारत के पास देने के लिए बहुत कुछ है। इसकी बढ़ती अर्थव्यवस्था और विशाल बाजार इसे एक आकर्षक गंतव्य बनाता है। बिना धार्मिक पूर्वाग्रह के कोविड महामारी के दौरान चिकित्सा सहायता और टीकों के प्रावधान के साथ-साथ आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को वित्तीय सहायता, ने भारत की स्थिति को विश्व में सम्मानजनक कर दिया है। तेल समृद्ध मध्य पूर्व के देश पाकिस्तान (जिसे वे बचाए रखने के लिए धन देने के लिए मजबूर हैं) का समर्थन करने की बजाय भारत में निवेश करना पसंद करेंगे। एक तरफ जहां अफ्रीका में भारत की मौजूदगी बढ़ रही है वहीं पाकिस्तान का समर्थन कम होता जा रहा है। कश्मीर के मुद्दे पर समर्थन के लिए उसके आह्वान को कोई समर्थक नहीं मिल रहा।

पाकिस्तान को यह महसूस करना चाहिए था कि कश्मीर पर भारत का रुख विश्व स्तर पर स्वीकार्य है। वह इस मुद्दे पर बातचीत के लिए अपनी अनिच्छा कभी नहीं बताई, लेकिन इस बात पर भी जोर दिया है कि आतंकवाद के वर्चस्व वाले माहौल में ऐसा कभी नहीं होगा। पाकिस्तान के लिए यह दुविधा की स्थिति है। यदि वह अपने आतंकवादी समूहों पर अंकुश लगाता है, तो उसके देश में आंतरिक उथल-पुथल का खतरा है क्योंकि इन समूहों को दशकों से बढ़ावा दिया गया है। यदि वह उनका समर्थन जारी रखता है, तो सहयोगी देशों का भी समर्थन खो देगा। इसके अलावा, उसे यह डर भी है कि आतंकवाद पर अंकुश लगाने और वार्ता की धीमी प्रगति से कश्मीर में सामान्य स्थिति हो सकती है और स्थानीय आबादी की मानसिकता में बदलाव आ सकता है। हवाला चैनलों के अवरुद्ध होने और हुर्रियत के अपने समर्थन आधार खोने के बाद वह स्थानीय आबादी से प्राप्त सीमित समर्थन को भी खोने का जोखिम नहीं उठा सकता।

इसलिए कश्मीर मुद्दे को जिंदा रखने के लिए बेताब पाकिस्तान हर मौके पर इसे उठाता रहता है। संयुक्त राष्ट्र के मंचों पर वह कश्मीर मुद्दे को भारत के खिलाफ दुर्भावना से उठाता रहता है। पाकिस्तान का दौरा करने वाले प्रत्येक गणमान्य व्यक्ति के साथ इसकी चर्चा की जाती है, हालांकि यात्रा के अंत में जारी किए गए संयुक्त बयान में इसका कोई उल्लेख नहीं मिलता है, जिसका अर्थ स्पष्ट है कि इस मुद्दे पर ठोस समर्थन नहीं मिला। भारत पर दबाव बढ़ाने की उम्मीद में, पाकिस्तान पश्चिमी देशों में अपने मूल के राजनेताओं पर दबाव बनाता है कि वे अपनी संसद में इस मुद्दे को उठायें।

कश्मीर का मुद्दा पाकिस्तान को एक कवर-अप भी प्रदान करता है। वह बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा में अपने आंतरिक नरसंहार के कुकृत्यों को छिपाने के लिए इसका उपयोग करता है। बलूच और पश्तून आबादी को प्रतिदिन हत्या, बलात्कार, मारपीट कर गायब कर देने जैसी वारदातों का सामना करना पड़ता है। महिलाओं और बच्चों के मानवाधिकारों के संदर्भ में अफगानिस्तान से और उइगरों के संदर्भ में चीन से सवाल करने वाले वैश्विक समुदाय को इन क्षेत्रों की आबादी के साथ पाकिस्तान के दुर्व्यवहार पर सवाल करना चाहिए।

पाकिस्तान यह तर्क देता है कि यह उसका आंतरिक मामला है और विरोध करने वाले भारत समर्थित आतंकवादी हैं। यह कश्मीर जैसा ही एक राज्य है, जहां मामला आंतरिक है, और आतंकवादियों को पाकिस्तान का समर्थन प्राप्त है। पाकिस्तान को उसके ही देश में मानवता के खिलाफ कार्रवाई के लिए जवाबदेह बनाने के लिए भारत को पहल करनी चाहिए। वैश्विक समुदाय को इसे संयुक्त राष्ट्र के मंचों पर उठाने के लिए राजी करना चाहिए, जिससे पाक को अपना दृष्टिकोण बदलने के लिए मजबूर होना पड़े।

पाकिस्तान के साथ कूटनीतिक संबंध निभाना और रक्षात्मक रणनीति अपनाना कोई समाधान नहीं है। उसे बैकफुट पर लाने के लिए उसी की भाषा में उसे जवाब दिया जाना चाहिए। पाकिस्तान के भीतर दबे हुए अल्पसंख्यकों और वहां की निरीह क्षेत्रीय आबादी को न्याय दिलाने के लिए भारत को नेतृत्व देना चाहिए।

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लेखक
मेजर जनरल हर्ष कक्कड़, रक्षा प्रबंधन कॉलेज, सिकंदराबाद में सामरिक अध्ययन विभाग के प्रमुख थे।
वह टोरंटो में कैनेडियन फोर्स कॉलेज में राष्ट्रीय सुरक्षा अध्ययन पाठ्यक्रम के पूर्व छात्र हैं। जनरल कक्कड़ 
बड़े पैमाने पर समाचार पत्रों, पत्रिकाओं और ऑनलाइन न्यूज़लेटर्स के लिए लिखते हैं। उनके लेखों में 
अंतरराष्ट्रीय संबंधों, रणनीतिक खतरों (दक्षिण एशिया पर जोर देने के साथ सैन्य और गैर-सैन्य दोनों), 
रक्षा योजना और क्षमता निर्माण, राष्ट्रीय सुरक्षा और राजनीतिक-सैन्य सहयोग शामिल हैं।

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