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कैलाश पर्वत श्रृंखला में कार्यवाही का एक वर्ष: भारत के सामरिक संकल्प का प्रदर्शन

लेफ्टिनेंट जनरल विनोद भाटिया (सेवानिवृत्त)
सोम, 30 अगस्त 2021   |   5 मिनट में पढ़ें

कैलाश  पर्वत श्रृंखला में कार्यवाही  का एक वर्ष: भारत के सामरिक संकल्प का प्रदर्शन

लेफ्टिनेंट जनरल विनोद भाटिया (सेवानिवृत्त)

भारत ने  29/30 अगस्त की रात को सामरिक परिचालन और सामरिक आश्चर्य  के साथ  पैंगोंग त्सो के दक्षिणी छोर  पर  कैलाश पर्वत श्रृंखला की महत्वपूर्ण  पहाड़ियों पर कब्जा कर लिया। यद्यपि इस सामरिक कार्रवाई ने भारत और भारतीय सशस्त्र बलों के रणनीतिक संकल्प को प्रदर्शित किया तथा चीन को  यह संकेत दिया कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी)  की यथास्थिति को बदलना दोतरफा मार्ग है। अब एक वर्ष पश्चात, भारत द्वारा ‘क्विड प्रो क्वो’ (क्यूपीक्यू) जैसे को तैसा कार्रवाई के परिणामों की समीक्षा करने का समय आ गया है।

पीएलए ने विगत वर्ष मई / जून में ‘यथास्थिति’ को बदलते हुए,  आगे की तैनाती के सभी  मानदंडों को  तोड़ दिया और इसके साथ साथ   गलवान  घाटी में हिंसक घटनाओं से एलएसी पर चार दशकों के शांतिपूर्ण वातावरण को भी भंग कर दिया। चीन ने  स्थापित पांच समझौतों का उल्लंघन करते  हुए  निर्धारित मानदंडों और प्रथाओं की अवहेलना की। यद्यपि  भारतीय सेना ने  आश्चर्यजनक रूप से तुरंत  अपनी प्रतिक्रिया दी, तथा नियंत्रण रेखा पर समान आनुपातिक तैनाती सुनिश्चित की और  आगे घुसपैठ को रोका।

हालाँकि पीएलए ने पहले ही एलएसी के भारतीय हिस्सों, मुख्य रूप से नॉर्थ बैंक पैंगोंग त्सो, गलवान, गोगरा / हॉट स्प्रिंग और डेपसांग के कुछ क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया था। दुर्भाग्य से, एलएसी के संबंध में परस्पर कोई सहमति नहीं है,  अभी भी आम धारणा  यह है कि दिल्ली और बीजिंग दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों के बीच  22 दौर की वार्ता के बावजूद भी कोई  हल नही निकल पाया है।

भारत की ‘नो ब्लिंकिंग नो ब्रिंकमैनशिप’ की रणनीति ने एलएसी के मुद्दों को सफलतापूर्वक हल करने में योगदान दिया, यद्यपि  पीएलए की वर्ष  2020 की घुसपैठ अलग थी। एक अभूतपूर्व कदम में, पीएलए  के सैनिकों ने 15/16 जून को नोकदार  शस्त्रो को नियोजित करके गालवान में भारतीय सैनिकों पर हमला किया जबकी इस छेत्र में हथियार ना ले जाने के बारे पहले से ही समझोता था । कर्नल संतोष बाबू और उनकी यूनिट   द्वारा पीएलए को हताहत करने के प्रतिशोध ने  यह सुनिश्चित कर दिया कि अब  कोई और ‘गलवान’ नहीं होगा । अगर कर्नल बाबू और उनके साथियो ने उस क्रूरता का प्रभावी ढंग से उत्तर नहीं दिया होता, तो संभव है कि आज हमने और भी कई गलवान देखे होते। यह मान लेना तर्कसंगत है कि पीएलए  इकाईयों को  नियंत्रण रेखा पर  उपयोग करने के लिए नुकीले और अन्य हथियार  जारी किए गए होंगे।

गालवान के पश्चात भी एक सकारात्मक दृष्टिकोण  वाली,कोर कमांडर स्तर की वार्ता जारी रही, 14 जुलाई 2020 को चुशुल में भारत के साथ चौथे दौर की वार्ता हुई।यद्यपि, भारत बिना किसी  तैयारी के बातचीत नहीं कर रहा था, जैसा कि पीएलए ने किया था।  भारत की स्थिति  स्पष्ट थी, और अप्रैल 2020 तक ‘स्टेटस क्यू स्टै” (यथा स्थिति)’ स्थापित करने के लिए थी।

गलवान के पश्चात् पैंगोंग त्सो के उत्तरी तट पर स्थिति संवेदनशील और तनावपूर्ण थी क्योंकि दुनिया की दो सबसे बड़ी सेनाएं एक-दूसरे के आमने सामने  थीं। यहा पर संभावना एक तीव्र और कठोर कार्यवाही करने की दिशा में ले जाती है जो चीन और भारत दोनों नहीं चाहते । इस पर सैन्य और राजनयिक स्तर की वार्ताओ का कोई  परिणाम नहीं निकला।

एक त्वरित कार्रवाई में, भारत ने कैलाश  श्रृंखला की महत्वपूर्ण पहडियो पर कब्जा कर लिया, और मोल्दो में पीएलए गैरीसन और स्पैंगगुर गैप  पर हावी हो गया। इसने चीन  को एक रणनीतिक संकल्प का संकेत दिया और  दिखा दिया कि भारत के पास न केवल चीन का सामना करने का बल है अपितु उसके पास 3488 किलोमीटर लंबी भारत-चीन सीमा पर ‘यथास्थिति’ को बदलने की राजनीतिक-सैन्य इच्छाशक्ति भी  है।

यह दोहराने की आवश्यकता नहीं है कि भारतीय सेना एलएसी के साथ-साथ अन्य रक्षात्मक  चौकियों पर भी पूर्णतः तैनात है,। यह  सेना दुनिया में सबसे कठिन युद्ध, तथा विशेष रूप से अधिक ऊंचाई वाले स्थानों पर युद्ध के  समृद्ध बलों में से एक है।  पर्वत शृंखलाओ पर कब्जा करने का ऑपरेशन सुनियोजित था और  इसे तीव्र गति से अंजाम दिया गया, जिससे चीन  हतप्रभ रह गया। भारत दवारा विशेष रूप से गुरिल्ला युद्ध और संभावित परिणामी परिणामों में प्रशिक्षित तिब्बतियों का एक बल ‘स्पेशल फ्रंटियर फोर्स’ (एसएफएफ) की नियुक्ति का उदेस्य  चीन को यहा जबाब देना  था। चीन के लिए तिब्बत और तिब्बती   चिंता के मुख्य विषय हैं।

क्यूपीक्यू कार्रवाई गेम चेंजर थी जिसने भारत को सापेक्ष आत्म बल  से बातचीत करने का लाभ दिया। इसका असर 21 सितंबर 2020 को हुई छठे दौर की वार्ता में स्पष्ट दिखाई दिया।  एक  अनिच्छुक चीन जिसने भारत को कैलाश रेंज पर कब्जा की गई श्रंृखलाओ को खाली करने के लिए कहा था।  ‘बातचीत जारी रखने और  शीघ्रातिशीघ्र  एक निष्पक्ष,   उचित और पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान पर पहुंचने’ के लिए सहमत हो गया।

यह भारत द्वारा प्रदर्शित रणनीतिक संकल्प है जिसके परिणामस्वरूप अंततः फरवरी 2021 में पैंगोंग त्सो के उत्तरी तट से वापसी हुई, जो  संघर्ष का सबसे संवेदनशील  स्थल था। इसे शुरुआती रूप से  टकराव के अन्य बिंदुओं से अलग होने की प्रस्तावना के रूप में देखा गया था। इस महीने की शुरुआत तक  सेनाओ की कोई अन्य वापसी न होने के कारण, कैलाश रेंज को खाली करने के संबंध में  भारत की अत्यधिकआलोचना हुई, । कई लोगों ने महसूस किया कि भारत ने लाभ  का अवसर खो दिया है और अत्यधिक मात्रा में  दे कर  बहुत कम हासिल किया है।

यह समझने की आवश्यकता है कि कैलाश रेंज पर तैनाती सहित प्रत्येक क्यूपीक्यू विकल्प के समय और स्थान का एक सीमित मूल्य है। भारत ने पहले कैलाश रेंज पर कब्जा करने और  पैंगोंग त्सो  के लिए  इसे खाली करने  में एक रणनीतिक संकल्प और लचीला रुख अपना कर अपने उद्देश्यों को प्राप्त किया। आलोचकों को यह ध्यान देने की आवश्यकता है कि 1979 के वियतनाम के बाद यह पहली बार है कि चीन जमीन पर या समुद्र  क्षेत्र में विरोधियों के क्षेत्रों पर कब्जा करने के पश्चात् पीछे हटा  है।

3488 किलोमीटर लंबी भारत-चीन सीमा में कई ‘कैलाश पर्वतमालाये’ हैं जिन पर भारत आवश्यकता पड़ने पर कब्जा कर सकता है। भारत का उद्देश्य और इरादा एलएसी पर ‘पूर्व स्थिति’ सुनिश्चित करना है। चुनौती निश्चित रूप से देपसांग मैदानों और राकी नाले में है जहा कथित रूप से  पीएलए का कब्जा है। चीन के साथ    धैर्य  की आवश्यकता है तथा जैसा कि भारत ने चीन को आश्चर्यचकित करते हुए एक रणनीतिक संकल्प का प्रदर्शन किया है,  निकट  भविष्य में ‘स्थिति यथावत’ रखने की संभावना अधिक  प्रबल है।

दिल्ली और बीजिंग दोनों  देशों की राजनीतिक, कूटनीतिक और अधिक महत्वपूर्ण सैन्य स्तरों पर वार्ता के माध्यम से टकराव के अन्य  बिंदुओं के संबंध में बातचीत जारी हैं। हालांकि गलवान के बाद    अन्य  कोई कब्जा नहीं हुआ है, तथापि भारत  को अपने सशस्त्र बलों को अत्यधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है, विशेष रूप से कामेंग सेक्टर यानी तवांग और डोकाला/डोकलाम (सिक्किम/पश्चिमी भूटान)  क्षेत्र में,  जो सामरिक महत्व के कारण  अधिक संवेदनशील है। डोकलाम पठार में  शक्तिशाली चीन को एक छोटे लेकिन गर्वित राष्ट्र भूटान का सामना करना है। यह क्षेत्र भारत के लिए रणनीतिक चिंता का विषय है। डोकलाम  तथा  ‘सिलीगुड़ी कॉरिडोर’ को  चीनी कब्जे का खतरा है  यह क्षेत्र भारत संघ के उत्तर  पूर्व के आठ राज्यों  को भू -भाग  से देश के मुख्य भाग से जोड़ता है ।

एक ओर  जहां परमाणु हथियार संपन्न  दोनों देश एलएसी पर 15 मास पुराने गतिरोध को बातचीत के जरिए हल करना चाहते हैं, वहीं भारत को चीन के आक्रामक व्यवहार को रोकने के लिए अपनी रणनीति की समीक्षा और उसमे संशोधन करने की आवश्यकता है। भारत ‘डिफेंड, डोमिनेट एंड डिटर’ (प्रतिरक्षा, प्रभुत्व एवं भय दिखा कर)की एक 3 डी रणनीति विकसित  कर सकता है और  उस्का अभ्यास कर सकता है। संक्षेप में एलएसी के साथ ‘डिफेंड’, हिंद महासागर क्षेत्र पर ‘डोमिनेट’, विशेष रूप से सी लाइन्स ऑफ कम्युनिकेशन,  और सभी डोमेन में तालमेल  द्वारा चीन के आक्रामक व्यवहार को ‘डिफेंड’ करें,।

अफगानिस्तान की स्थिति के कारण भारत का ध्यान  उस प्राथमिक खतरे से नहीं हटना चाहिए जो उसे चीन  से  है। चीन सुन त्ज़ु की उक्ति का पालन करता है “अराजकता के बीच हमेशा एक अवसर होता है”। चीन द्वारा 2020 की आगे की तैनाती भी उस अवधि में की  गई जब कोविड  अपने चरम पर था और भारत का ध्यान दुनिया भर के देशों को दवा और राहत की  सामग्री की आपूर्ति करने पर था।

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लेखक
लेफ्टिनेंट जनरल विनोद भाटिया, पीवीएसएम, एवीएसएम, एसएम (सेवानिवृत्त) पूर्व महानिदेशक सैन्य ऑपरेशन (डीजीएमओ) हैं और सीईएनजेओडब्ल्यूएस-द सेंटर फॉर ज्वाइंट वारफेयर स्टडीज के निदेशक हैं। तीनों सेनाओं के आधिकारिक थिंक टैंक हैं।

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POST COMMENTS (1)

सुनील कुमार नेगी

अगस्त 30, 2021
चीन हमें सामरिक दृष्टि से अपने पडोसियों/आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों के साथ उलझा कर कमजोर रखने का है। साथ ही समय समय पर अपनी इच्छा अनुसार अलग अलग सैक्टर में घुस कर हमारी प्रतिक्रिया व तैयारी की जाँच पड़ताल करता है। इसे केवल सीमा रेखा के निरधारण न होना कहकर किनारे करना ठीक नहीं है, यह देश की संप्रभुता, स्वाभिमान व अखंडता का विषय है। हमें भी चीन के विरुद्ध मजबूत सहयोगियों की पहचान कर रणनीति तैयार करनी होगी। कैलाश पर्वत शिखरों की भान्ति चीन की कमजोर नसों की पहचान कर त्वरित कार्यवाही की रणनीति तैयार रखनी होगी। और सबसे अधिक आवश्यक है कि हम इन रणनीतियों का समय समय पर वास्तविक परीक्षण करें, सुधार व संशोधन करें। हमारी सामरिक तैयारियों का केन्द्र चीन हो, नजदीक भविष्य में वास्तविक चुनौती पूरब से है।

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