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नया साल लेकिन चीन की रणनीति वही पुरानी

लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन (सेवानिवृत्त)
रवि, 09 जनवरी 2022   |   6 मिनट में पढ़ें

2022 की शुरुआत वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर होने वाली कुछ घटनाओं के साथ हुई। लंबे अंतराल के बाद कुछ जगहों पर मिठाइयों का आदान-प्रदान हुआ। सद्भावना संदेशों के साथ तनाव मुक्ति की दिशा में अच्छे इरादे के साथ किया गया प्रयास था, जो एक दिन से अधिक टिक भी नहीं सका। इसके तुरंत बाद पीएलए ने अपने मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स में चीनी ध्वज के साथ गलवान घाटी में पीएलए की उपस्थिति दर्शाती कुछ तस्वीरें प्रकाशित की। यह ध्वज वैसा ही था जिसे कभी बीजिंग के तियानमेन स्क्वायर पर फहराया गया था। इस चित्र के साथ में दिया गया कठोर संदेश, राष्ट्र की एक इंच जमीन भी नहीं गंवाने के बारे में था।

बाद में पता चला कि ये तस्वीरें वर्तमान सर्दियों के मौसम से बहुत पहले की थीं, और उन्हें सैन्य क्षेत्र से बहुत पीछे शूट किया गया था। ये जून 2020 की झड़पों के दृश्यों के आसपास कहीं की भी नहीं थीं। पीएलए का इरादा स्पष्ट रूप से यह प्रोजेक्ट करना था कि पूरी गलवान घाटी उसके नियंत्रण में है। जबसे राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने चीन की महत्वाकांक्षाओं को गति देने की कोशिश की है तबसे चीन में राष्ट्रवादी जुनून को बढ़ावा देने के लिए ऐसा किया जा रहा है।

इसके साथ ही यह खबर आई कि अक्टूबर 2021 से एक नया पुल निर्माणाधीन था, जो पैंगोंग त्सो झील के सबसे संकरे क्षेत्र पर 134 मीटर के अंतर को पाटेगा, जो चीनी कब्जे वाले क्षेत्र के पीछे की ओर है। यह पुल झील के उत्तर और दक्षिण किनारे को एलएसी के करीब एक स्थान पर जोड़ेगा। इस तरह यह स्पैंगुर क्षेत्र में पीएलए की सुरक्षा के लिए अधिक निकट होगा जहां मोल्डो बैरक स्थित है।

मोल्डो पूर्वी लद्दाख में तैनात पीएलए फोर्स का मुख्यालय है। अब तक, दक्षिण तट से मोल्डो से उत्तर की ओर यात्रा करने के लिए पीएलए को रुडोक की दिशा में पूर्व में एक लंबा रास्ता तय कर यू टर्न करना पड़ता था और फिर उत्तरी तट के साथ खुर्नक फोर्ट, सिरिजाप और फिंगर्स कॉम्प्लेक्स की यात्रा करनी पड़ती थी। यह लगभग 180 किलोमीटर की दूरी थी जिसे तय करने में वाहनों को 10-12 घंटे लग सकते थे। पुल के साथ-साथ दक्षिणी तट पर रुडोक से मोल्डो तक नई सड़कों की एक श्रृंखला का निर्माण किया जा रहा है जो किसी भी भारतीय तैनाती से आसानी से दिखाई नहीं दे सकते। उपग्रह से प्राप्त चित्रों से निश्चित रूप से इस सड़क पर की सभी गतिविधियों का पता चल जायेगा।

पीएलए यह सब क्यों कर रही है? सबसे पहले, इसने एलएसी पर तैनाती के संबंध में एक सिद्धांत का पालन किया और कई वर्षों तक मूल रूप से सीमा रक्षकों का उपयोग किया। भारतीय सेना की ओर से किसी भी क्षेत्र पर कब्जा करने के लिए आगे बढ़ने की उम्मीद कभी नहीं थी, भले ही भारत ने अक्साई चीन में चीन के कब्जे वाले सभी क्षेत्रों पर दावा किया हो।

बुनियादी ढांचा जिसमें सड़कें, भंडारण, हेलीपैड और स्थायी सुरक्षा शामिल हैं, सभी न्यूनतम थे, पीएलए ने खतरे की धारणाओं के आधार पर इसकी सराहना ही की। लेकिन अप्रैल 2020 के बाद, चीजें बदल गई हैं, पीएलए ने महामारी के शुरुआती चरणों में भारत को मजबूर करने और इसे बैकफुट पर लाने के प्रयास के तहत लगभग 50,000 सैनिकों को तैनात किया है।

मैंने पहले इस प्लेटफॉर्म पर कई लेखों में चीन की वास्तविक मंशा का उल्लेख किया है। वह भारत के तेजी से बढ़ते सामरिक विश्वास से चिंतित था। वह भारत को एक बड़ा संदेश देने और गतिरोध में फंसाने के लिए भारत की उत्तरी सीमा पर खतरे उत्पन्न करना चाहता था। उसने शायद यह महसूस किया था कि भारत में संकट उत्पन्न कर उसे इंडो पैसिफिक में उभरते रणनीतिक समीकरणों को समर्थन देने से रोक सकेगा। भारतीय समुद्री क्षमता में वृद्धि को रोकना इस महाद्वीपीय गतिरोध का अप्रत्यक्ष उद्देश्य था क्योंकि इंडो पैसिफिक में जो समीकरण बन रहे हैं, वे वर्तमान और भविष्य की समुद्री क्षमता पर आधारित हैं।

भारत ने प्रतिक्रियास्वरूप अधिक क्षमता के साथ 50,000 सैनिकों की तैनाती कर दी। बुनियादी ढांचे के उन्नयन और निर्माण की शुरुआत के साथ पीएलए की धमकी के आगे झुकने से इनकार ने चीन को चौंका दिया। पीएलए ने एलएसी पर सैनिकों की तैनाती और पुनर्नियोजन के साथ या स्थितियों के जवाब में रक्षात्मक लड़ाई की संभावना की कल्पना भी नहीं की थी। इसने डराने-धमकाने के साथ सीमित संघर्षों की संभावना का अनुमान लगाया था।

तीन कार्रवाइयों ने आने वाली घटनाओं के बारे में पीएलए की धारणा को बदल दिया। पहला, अत्यंत कठिन इलाके और अपर्याप्त बुनियादी ढांचे के बावजूद भारत द्वारा तेजी से तैनाती किया जाना। दूसरा, आक्रामक तत्वों की मात्रा। पूर्वी लद्दाख की समतल खुली ऊँची-ऊँची घाटियों पर दुश्मनों के प्रयासों को बेअसर करने के लिए, रक्षात्मक लड़ाइयों के लिए यंत्रीकृत बलों की आवश्यकता होती है। हालाँकि, जब उनकी संख्या रक्षात्मक लड़ाइयों की इष्टतम आवश्यकता से अधिक हो जाती है तो संदेश स्पष्ट हो जाता है; इन बलों के आक्रामक तैनाती पर भी विचार किया जा रहा है।

1996 में यहां एक एकल यंत्रीकृत सेना की इकाई मौजूद थी। मध्यम टैंकों और इन्फैंट्री कॉम्बैट व्हीकल्स (ICVs) की संख्या में काफी बदलाव आया है। तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण कैलाश रेंज में क्विड प्रो क्वो (क्यूपीक्यू) ऑपरेशन था, जिसमें भारतीय सेना ने 29-30 अगस्त 2020 को एलएसी के हमारे हिस्से में सात महत्वपूर्ण ऊंचाइयों पर कब्जा कर लिया था।

पीएलए ने हमें इस कब्जे को खाली करने के लिए डराने-धमकाने का भी प्रयास किया, लेकिन किसी भी जवाबी कार्रवाई को अंजाम देने के लिए उनके पास बल की तत्काल पर्य़ाप्त उपलब्धता नहीं थी (पहाड़ों में काउंटर अटैक ऑपरेशन आसान नहीं होता है, वहां हमलावर को कई गुना श्रेष्ठ होना चाहिए)।

नए पुल के निर्माण के बाद अब जो होगा वह यह है कि पीएलए कम समय में पैंगोंग त्सो के उत्तर से दक्षिण में या इसके विपरीत भी तैनाती कर सकता है।  मेरा तर्क यह है कि मोल्डो की गहराई में बहुत अधिक सैनिकों की तैनाती संभव नहीं है, इसलिए 50,000 सैनिकों के समग्र आंकड़े को बदले बिना दक्षिण में त्वरित तैनाती के लिए उत्तर में रिजर्व रखा जा सकता है।

कई विश्लेषक और पर्यवेक्षक इस बात को लेकर चिंता व्यक्त कर रहे हैं कि पुल के निर्माण से पीएलए त्वरित प्रतिक्रिया कर सकेगा। इस बात का अफसोस हो रहा है कि भारत ने कैलाश की चोटियों को खाली कर पीएलए को एक फायदा पहुंचा दिया है। यह सही हो सकता है, लेकिन इसे पीएलए के उत्तरी तट से कब्जे छोड़ने के सापेक्ष में देखा जाना चाहिए।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि हमें देपसांग और हॉट स्प्रिंग में पीएलए के कब्जे वाले क्षेत्रों को शामिल करते हुए एक बड़े एक्सचेंज पैकेज की मांग करनी चाहिए थी, लेकिन बातचीत की भी स्पष्ट सीमाएं होती हैं। एक अधिक सकारात्मक अवलोकन जो विश्लेषकों की नजरों से बच गया है वह है कि पहली बार पीएलए आक्रामक होने के बजाय रक्षात्मक तरीके अपना रही है।

बड़ी संख्या में भारतीय मशीनों, विशेष बलों और रोटरी विंग संसाधनों की उपस्थिति पीएलए कमांडरों को चिंतित कर रही है। कैलाश रेंज में जो कुछ हुआ उसके मद्देनजर पीएलए को यह समझ में आ गया है कि किसी भी तरह से  डराने-धमकाने और जबरदस्ती करने की स्थिति में भारतीय सेना अब बैठकर बचाव नहीं करेगी। उनके पास संसाधन, क्षमता और पेशावर रवैया है जिसके साथ वे बहुत कम समय सीमा में आक्रामक प्रतिक्रिया कर सकते हैं। इसलिए पीएलए द्वारा उन आकस्मिकताओं को कवर करने के लिए उपाय किए जा रहे हैं जिन्हें पहले नहीं किया गया था। पीएलए यदि अपनी हर खामियों को दूर करने के लिए कुछ हजार और सैनिकों को तैनात नहीं करना चाहता है तो उसे दक्षिण तट और स्पैंगुर और मोल्डो में तेज प्रतिक्रिया की आवश्यकता है।

रक्षात्मक मानसिकता के संकेत तब दिखने लगते हैं जब कमांडर खोए हुए क्षेत्र को पुनः प्राप्त करने के बारे में अधिक चिंतित होते हैं। नए पुल का विशिष्ट लाभ यह है कि यदि किसी संभावित भारतीय कदम के लिए क्यूपीक्यू कार्रवाई या किसी अन्य सक्रिय उपाय के लिए पीएलए के पास प्रारंभिक खुफिया जानकारी उपलब्ध है तो वह दक्षिण तट पर समय पर पर्याप्त रूप से सुदृढ़ हो सकेगा।

अगर हमें कभी भी कैलाश रेंज पर कब्जा करना है या पीएलए को रक्षात्मक रखने के लिए कोई अन्य कार्रवाई करनी है, तो हमें उसकी भनक भी नहीं लगने देनी होगी। उन्होंने जिस प्रकार की तैनाती की है, उसके साथ दोनों पक्षों को बड़े आश्चर्य में डालने की बहुत कम गुंजाइश है। इसका मतलब यह भी है कि दोनों तरफ विश्वास की कमी, जो और बढ़ती हुई प्रतीत होती है, सैनिकों की ताकत को किसी भी पक्ष से कम नहीं किया जा सकता। हम निकट भविष्य के लिए नो वार नो पीस (न युद्ध न शांति) के बीच फंसे रहने वाले हैं।

नए साल में चीन से मिली सूचना के अनुसार वह गलवान में हमारे पक्ष के कुछ स्थलों को नक्शे और आधिकारिक चीनी रिकॉर्ड में फिर से नामकरण कर रहे हैं। यह स्वीकृत एलएसी के न होने से बनी सीमा की अनिश्चितता का फायदा उठाकर सीमा से लगे 600 से अधिक गांवों को संदिग्ध तरीके से बसाने के लिए उठाए जा रहे कदमों से पहले हुआ था। यह विशिष्ट कार्टोग्राफिक आक्रामकता है, जिसे चीन एक रणनीति प्रचलित ‘सलामी-स्लाइसिंग’ के तहत करता है।

यह स्पष्ट होता जा रहा है कि चीन ‘तीन युद्ध’ रणनीति को अक्षरश: लागू करना चाहता है, जिसे उसने 2003 में ‘सूचनात्मक परिस्थितियों में युद्ध’ के दस साल के लंबे अध्ययन के बाद विकसित किया था, जो कि 1990 के पहले खाड़ी युद्ध के बाद हुआ था।

मीडिया और मनोवैज्ञानिक युद्ध इसके नियमित प्रयासों का एक हिस्सा हैं, हालांकि कई बार ये हाथ-पैर तो मारते हैं लेकिन उससे चीन को कोई फायदा नहीं होता। साइबर युद्ध का भी विकास हो रहा है और भारत में इसका परीक्षण समय-समय पर किया जाता रहा है। तीसरी रणनीति, कानूनी युद्ध और कार्टोग्राफिक आक्रमण है, ठीक उसी तरह जैसे दक्षिण चीन सागर में किया गया था। चीन इन सभी गतिविधियों को लागू करने और उसके प्रभावों का विश्लेषण करने में जल्दबाजी नहीं करता। पारंपरिक युद्ध क्षेत्र के माध्यम से पीएलए की अपनी मुख्य ताकत को जबरदस्ती और प्रतिरोध मोड में जारी रखेगा।

भारत की प्रतिक्रिया भी उपयुक्त रही है, लेकिन गैर-संपर्क मोर्चे पर हमें और अभिनव होना पड़ेगा। साइबर, सूचना और कानूनी मोर्चों पर सैद्धांतिक परीक्षा और रणनीति के माध्यम से और आक्रामक होने की आवश्यकता है। मालिकाना हक न होने के कारण यह लंबे समय से अटका हुआ है। अगले सीडीएस और उनके सहायक कर्मचारियों के लिए यह तैयार किया गया कार्य है। इसे ठोस और पूरी तरह से व्यावहारिक रूप से किया जाना चाहिए जिसे जमीनी तौर पर लागू किया जा सके।

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लेखक
लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन (सेवानिवृत्त), पीवीएसएम, यूवाईएसएम, एवीएसएम, एसएम, वीएसएम, भारतीय सेना के श्रीनगर कोर के पूर्व कमांडर रहे हैं। वह रेडिकल इस्लाम के इर्द-गिर्द घूमने वाले मुद्दों पर विशेष जोर देने के साथ एशिया और मध्य पूर्व में अंतर-राष्ट्रीय और आंतरिक संघर्षों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। वह कश्मीर केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं और रणनीतिक मामलों और नेतृत्व के इर्द-गिर्द घूमने वाले विविध विषयों पर भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों में बड़े पैमाने पर बोलते हैं।

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