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भारतीय महाद्विपीय समुद्री कूटनीति के नए आयाम

प्रोफेसर हरवीर शर्मा
सोम, 18 अक्टूबर 2021   |   5 मिनट में पढ़ें

-भारत की सर्वांगीण सुरक्षा ढांचे को विकसित करने के लिए कंटीनेंटल स्ट्रेटेजी के साथ कंटीनेंटल मेरीटाइम स्ट्रेटेजी भी विकसित करनी होगी।

मध्य एशिया में बढ़ती भारत की साख, शक्ति और आर्थिक केंद्र बिंदु पर दुनिया की नजर है। इसके साथ ही दुनिया के तमाम देशों, विशेष तौर पर चीन के लिए व्यवसायिक महत्व रखने वाले हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की मजबूत स्थिति से कोई अनजान नहीं है। इसीलिए चीन के साथ दुनिया भर की नजर इस ओर है। अब तक प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से दूसरे देश अपने हित साधते रहे हैं लेकिन अब भारत इस स्थिति में है कि वह आमने-सामने बैठकर अपने हित की बात रख रहा है। इन सबके बीच बेहद जरूरी है सुरक्षा। आंतरिक और बाहरी भी। भारत को अपनी भू-रणनीति और रक्षा रणनीति को नार्थ ईस्ट और नार्थ वेस्ट यानी उत्तर पूर्व और उत्तर पश्चिम, दोनों क्षेत्रों को ध्यान में रखते हुए बनाने की जरूरत है। भारत के सर्वांगीण सुरक्षा ढांचे को विकसित करने के लिए कंटीनेंटल स्ट्रेटेजी के साथ ही कंटीनेंटल मेरीटाइम स्ट्रेटेजी भी विकिसत करनी होगी।

भू-राजनीति की योजनाओं में भू-रणनीति और भू-आर्थिक दृष्टिकोण को प्रममुखता से देखना चाहिए। वर्तमान में हर देश अपने आर्थिक हितों को देखते हुए ही रणनीतियां बनाते हैं। हिमालयी क्षेत्र की भू-राजनीति में चीन और पाकिस्तान का बड़ा योगदान है। इनका नेक्सस आगे भी रहेगा। चीन पाकिस्तान की मदद करता रहेगा। यह उसके हित में है। चीन अफगानिस्तान में भी अपना हित देख रहा है। अफगानिस्तान का वाखन कोेरिडोर चीन के सिंकियान क्षेत्र को मध्य एशिया और पीओके से जोड़ता है। भविष्य में वाखान कोरिडोर कलह का केंद्र बिंदु बनेगा लेकिन वर्तमान में चीन अपनी बढ़त देख रहा है। इधर नेपाल और भूटान के प्रति भारत हमेशा जिम्मेदार रहा है। नेपाल के राजनैतिक बदलावों का फायदा उठाकर चीन वहां प्रवेश कर गया। कुछ ऐसा ही चीन भूटान में भी करने की कोशिश कर रहा है जिसका परिणाम डोकलाम के रूप में देखने को मिला। चीन भारत को चौतरफा घेरने की कोशिश कर रहा है। भारत की ओर से जवाबी कार्यवाही की जा रही है और श्रीलंका, म्यांमार, मालदीव के जरिए जवाब भी दे रहे हैं, लेकिन इन्हें मजबूती प्रदान करने में समय लगेगा। भारतीय नीति इरान को साथ लेकर ही चलने की रही है। थोड़े मनमुटाव भले हैं लेकिन भारत और इरान साथ बने रहेंगे।

भारत को खुद से खुद को मजबूत करना होगा। किसी भी निर्भर रहने के स्थान पर नार्थ ईस्ट और नार्थ वेस्ट क्षेत्र के साथ ही हिंद महासागर को सुरक्षित करने की जरूरत है। आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते भारत के कदमों को और मजबूती प्रदान करने में भविष्य को ध्यान में रखते हुए भू-राजनीतिक योजनाओं की अहम भूमिका होगी। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बनते-बिगड़ते रिश्ते हमेशा अपने लाभ के लिए होते हैं। मजबूत राष्ट्र भी अपना हित देखकर ही समर्थन करते हैं। इसलिए हमें अपनी गलतियों से सीखने की जरूरत है, पर हमने नहीं सीखा और एक बाद कई ब्लंडर करते गए।

वर्ष 1962 हिमालयन ब्लंडर था। जनरल करियप्पा के सुझाव के बाद भी प्रधानमंत्री नेहरू ने, ‘हमें योजना बनानी है, आपको कार्य करना है, ये हमारा काम है आपका काम नहीं है’ कहकर उनकी बात नहीं सुनी। चीन ने हमला किया। परिणाम सामने है। सबक नहीं ले सके। वर्ष 1965 में वही ब्लंडर दोबारा हुआ। पाकिस्तान को अमेरिका का समर्थन मिला। रूस से भारत की मदद की। इससे लड़ाई बराबरी की हुई लेकिन तासककंद समझौते में हमसे भू-राजनैतिक भूल हो गई। हाजीपीर दर्रा को वापस देना पड़ा जो पुंछ से उरी को मिलाता है।तासकंद रूस का खेल था और इसका एक मात्र प्रमाण प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का वापस न लौटना था। यह हमारे कांटीनेंटल स्ट्रेटेजी का फेल्योर था। तासकंद एग्रीमेंट रूस के दबाव में हुआ। दरअसल रूस खुंजराब दर्रा से रास्ता बनाकर हिंद महासागर में एंट्री चाहता था। पर उसे कोई मदद नहीं मिली। इसका फायदा चीन ने उठाया और रास्ता बना लिया। 1966 में तासकंद समझौता हुआ और 1967 में चीन ने रास्ता बना लिया। खुंदराब से गिलगित होते हुए हिंद महासागर से जुड़ गया।

अमेरिका का विएतनाम गोरिल्ला वारफेयर में परास्त होना बुरी हार साबित हुई। इसके बाद अमेरिकी सेक्रेटरी आफ स्टेट डा. हेनरी किसिंजर ने निर्णय लिया किसाम्यवादी शक्तियों के खिलाफ नपातुला और लचीला रिस्पांस करेंगे।स्ट्रेटेजी आफ कंटेनमेंट केअंतर्गतवामपंथी विचार धारा को अलग रखने के लिए अमेरिका ने दक्षिण में व्हेल यानी हिंद महासागर से नार्थ के बियर यानी रूस को अलग रखने की रणनीति बनाई थी। अमेरिका रूस को रोकने के लिए टर्की, इरान और पाकिस्तान को बढ़ावा देने लगा। समर्थन दिया। 40 फीसद खर्च इन्हीं देशों में किया। हथियार दिए, मजबूत किया।

एक बार फिर वर्ष 1971 में पाकिस्तान से यद्ध हुआ। अमेरिका ने पाकिस्तान की मदद की। 94 हजार सैनिक हमारे कब्जे में थे। पाकिस्तान से कुछ भी करवा सकतेे थे। मेरी नार्दर्न कमांड के जीओसी-इन-सी लेे. जनरल पीएस भगत विक्क्टोरिया क्रॉस, से बात हई थी। एग्रीमेंट के समय उन्होंने पीओके को लेने सुझाव दिया था लेकिन उनकी बात नहीं मानी गई। उनसे अच्छा रणनीतिकार उस समय कोई नहीं था। उनकी योग्यता होने के बावजूद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें सेना प्रमुख नहीं बनाया। उनका सुझाव मानते तो पीओके की समस्या का निदान हो चुका होता। वर्ष 1971 में अमेरिका की पालिसी थी कि पाकिस्तान से बांग्लादेश को अलग कर दिया जाए और भारत से नार्थ ईस्ट को अलग कर दिया जाए। तभी उसने पाकिस्तान की मदद की। सिलिगुड़ी कोरिडोर महत्वपूर्ण है। भारत से इसका ध्यान रखा जिससे उनकी योजना कामयाब नहीं हो सकी। बहरहाल 1979 में सिक्किम को भारत से जोड़ना अच्छा कदम था। जिससे चीन की ओर से संभावित समस्याओं को कुछ हद तक कम किया जा सका।

भारत को इस दिशा में कुछ महत्वपूर्ण कार्य करने की जरूरत है। इनमें भू-युद्ध कौशल विकसित करना, भू-आर्थिक सोच विकसित करना और भू-राजनीतिक योजना को विकसित करना अहम है। मजबूत सेना और विशेष तौर पर नौसेना इसमें मददगार साबित होगी जो हमारे पास है भी। इस कड़ी में दक्षिण चीन सागर में चीन के बढ़ते प्रभाव को कम करना, दक्षिण-पूर्वी एशियाई देशों का समर्थन लेना, आस्ट्रेलिया की मदद से चीन के बढ़ते समुद्री प्रभाव को रोकना अहम है । इसमें जापान की भी अहम भूमिका होगी कयोंकि जापान हमेशा से चीन का विरोधी रहा है और जापान की कूटनीति भारत को विकसित करने के लिए प्रयत्नशील रही है। अमेरिका भी भारत की मदद से चीन के प्रभाव को रोकने में अहम भूमिका निभा सकता है।

विश्वव्यापी दृष्टिकोण से हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की भू-सामरिक स्थिति अधिक महत्व रखती है। एफ्रो एशियन क्षेत्र में संतुलन बनाए रखने में भारत का अहम योगदान है। अफ्रीका, साउथ अमेरिका, आस्ट्रेलिया और नार्थ ईस्ट के बीच भारतीय भौगोलिक स्थिति संतुलन बनाए रखने में सक्षम है। भारत लगातार मजबूत हो रहा है। भारत का क्षेत्र, जनसंख्या, अर्थव्यवस्था, भारतीय नौसेना सुपर पावर की बराबरी करती हैं। ब्रिक्स में भारत अहम स्थान रखता है। यहां की पालिसी में मजबूत भारतीय दखल है। अब भारत का नजरिया नए संबंध बनाने पर है। बहुत से छोटे देशों की जिम्मेदारी भी भारत ले रहा है। भारत अब भू-राजनीति के साथ भू-सामरिक नजरिया भी रखता है। भारत की विश्वव्यापी सोच, क्षेत्रीय स्तर पर ममुद्री रास्तों को विकसित करना हमारी भू-रणनीति को मजबूत बनाते हैं जो बेहतर भू-राजनीति में मददगार साबित होंगे।

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लेखक
प्रोफेसर हरवीर शर्मा एक भू-रणनीतिकार हैं। उनके पास "कश्मीर घाटी का एक भू-रणनीतिक मूल्यांकन" पर पीएचडी की डिग्री है, जिसे रक्षा मंत्रालय द्वारा काफी सराहा गया था। उन्हें "द हिमालयन जियो-पॉलिटिक्स" पर डी-लिट से सम्मानित किया गया था। पूर्व में, प्रोफेसर और प्रमुख, रक्षा अध्ययन विभाग, एमडी विश्वविद्यालय, रोहतक, हरियाणा और रक्षा अध्ययन, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, दिल्ली में एमेरिटस प्रोफेसर भी रहे। वह पेरिस, चेक गणराज्य और रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल अफेयर्स, लंदन में फैलो रहे। प्रोफेसर शर्मा "भारत की सुरक्षा समस्या" सहित पाँच पुस्तकों के लेखक हैं।

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POST COMMENTS (2)

Rajendrasingh Chauhan

अक्टूबर 19, 2021
आप का यह मत बहुत ही सही है

INDIAN FAUZI

अक्टूबर 18, 2021
good sir ji

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