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नशे और आतंक की जुगलबंदी

बिनय कुमार सिंह
बुध, 13 अक्टूबर 2021   |   7 मिनट में पढ़ें

कुछ फिल्मी सितारों के बच्चों को मुंबई से गोवा जाने वाले क्रूज पर मुफ्त टिकट क्यों दिया गया? यह  मूल रूप से इसके ग्राहकों को एकजुट करने और ड्रग्स का परिवेश बनाने की एक कार्य प्रणाली हैl  इसका उपभोग करने वाले नार्को व्यापारी नहीं हैं, लेकिन वे कमोबेश इसके शिकार अवश्य हैं। यह व्यापार अंतरराष्ट्रीय रैकेट के रूप में शुरू होकर दुनिया भर के स्थानीय आपूर्तिकर्ताओं पर समाप्त होता है।

जिहाद के लिए इस्तेमाल किए जा रहे नार्को धन का प्रचलन चार दशकों से भी ज्यादा पुराना है। 1980 में, इस्लामिक मुजाहिदीन समूहों ने सोवियत संघ के खिलाफ जिहाद के लिए इस नार्को फंड का इस्तेमाल किया था और अब करीब चार दशक बाद वर्ष 2021 में केरल के एक पादरी ने इस शब्द का इस्तेमाल कियाl नशीले पदार्थ और आतंकवाद के बीच गठजोड़ पूरी तरह से एक राजनीतिक अवधारणा है, जो ‘काफिरों’ के खिलाफ तथाकथित ‘पवित्र युद्ध’ को सही ठहराती है।

जब 1977 में बैंकिंग के माध्यम से ड्रग्स और आतंकवाद को सुगम बनाया गया था

यह मामला टेरर फंडिंग और नशीले पदार्थों के व्यापार का एकदम सटीक मिश्रण था। आगा हसन आबेदी नाम के एक पाकिस्तानी ने बैंक ऑफ क्रेडिट एंड कॉमर्स इंटरनेशनल (बीसीसीआई) की स्थापना की। अमरीकी एजेंसी ने इस बैंक की पहचान आतंकवादियों और जासूसों से लेकर ड्रग का व्यापार करने वाले और तानाशाही गैर कानूनी ग्राहकों के बैंक के रूप में की थी। इस अवधि के दौरान आतंकवादी समूहों को धन दुबई से पंजाब के रास्ते भेजा जाता थाl

यह भी कहा जाता है कि श्री मनमोहन सिंह ने आरबीआई गवर्नर के रूप में भारत में बीसीसीआई को  ऑपरेटिंग लाइसेंस देने के फैसले का विरोध किया था। बाद में, श्री मनमोहन सिंह ने इस बैंक को संचालित करने के लिए लाइसेंस प्रदान कर दिया।

बीसीसीआई को 1977 में एक प्रतिनिधि कार्यालय शाखा खोलने की अनुमति दी गई थी और 1979 में  इसे एक पूर्ण शाखा खोलने की अनुमति मिली। बाद में 1980 में तत्कालीन अल्पसंख्यक सरकार के प्रमुख द्वारा इसे रद्द कर दिया गया था। 1983 में एक बार फिर से इसे सहमति मिल गयी। इसके चालू होने के कुछ वर्षों के बाद ही बीसीसीआई अमेरिकी डीईए के ऑपरेशन सी-चेस के बाद ढह गया। लेकिन नुकसान पहले ही हो चुका था – इसके उद्देश्य की पूर्ति हो गयी थी। बीसीसीआई के अवैध लेन-देन की सूचना न केवल भारतीय खुफिया एजेंसियों के पास बल्कि विदेशों की यूएस ड्रग एन्फोर्समेंट एजेंसी (डीईए) और रॉयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस को भी थी।

अधिकारी एक पुराने मामले को याद करते हैं जब यह बैंक सबसे पहले उनके संज्ञान में आया था। 1983 में प्रवर्तन निदेशालय और सीबीआई की एक जांच से पता चला कि कैसे बीसीसीआई, लंदन ने ब्रिटिश फर्म, कायद इंटरनेशनल को रक्षा उत्पादन विभाग के माध्यम से 50,000 राइफल (.303 कैलिबर) का निर्यात करने के लिए धन मुहैया करवाया। राइफलें पंजाब के चरमपंथियों और अफगान मुजाहिदीन तक पहुँच गयीl बाद में,  1991  मे अमेरिकी डीईए के ऑपरेशन सी-चेस के बाद  बीसीसीआई का पतन हो गया।

भारत में ड्रग बैंक बीसीसीआई का संचालन और इसके निर्बाध कामकाज की अनुमति प्राप्त करना इस बात को साबित करता है कि विदेशी शक्तियों के निर्देश पर काम करने वाली एक पूर्ण टीम काम कर रही थी, जिसकी भारतीय राजनीति और नौकरशाही में उच्चतम स्तर की पैठ थी। आतंकियों को फंडिंग के अलावा, बीसीसीआई  ने 70 के दशक में भारत में ड्रग फाइनेंशियल नेटवर्क भी स्थापित किया।

ईएफएसएएस रिपोर्ट:

नवंबर 2017 में ‘यूरोपियन फाउंडेशन फॉर साउथ एशियन स्टडीज, एम्स्टर्डम’ द्वारा “नार्को-जिहाद – हराम मनी फॉर ए हलाल कॉज?” शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई थी। यह एक विस्तृत अध्ययन है कि  नार्को- जिहाद की शुरुआत आतंकवादी संगठनों के एक पाखंडी तर्क से होती है, जो  अपने कथित पवित्र कारण के लिए अपवित्र साधनों से स्थानीय आबादी की धार्मिकता का दुरुपयोग करते हैं। अवैध (नशीले पदार्थों और काफिरों) दोहरा नकारात्मक रूप इन चरमपंथी समूहों द्वारा किए गए नार्को-जिहाद के प्रचार को सही नहीं ठहरा सकता। दशकों के रक्तपात, युद्ध, निर्दोष लोगों की हत्या और मादक द्रव्यों के सेवन को केवल एक गणितीय समीकरण तक सीमित नहीं किया जा सकता।

अफगानिस्तान में तालिबान और नार्को व्यापार

आजकल अफगानिस्तान दुनिया भर में मादक पदार्थों की तस्करी का केंद्र है, दुनिया की 90% से अधिक अफीम और हेरोइन की आपूर्ति इस देश से होती है।

अफगानिस्तान बहुत कम प्राकृतिक संसाधनों वाला देश है, कृषि योग्य भूमि 12% से कम है, जबकि इसकी 80% ग्रामीण आबादी गरीबी में रहती है। केवल 23% अफ़गानों के पास पीने का शुद्ध पानी है, और केवल 6% के पास बिजली की सुविधा है। इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि अफीम संयंत्र ने ग्रामीण आबादी को रोजगार और आय के अन्य मार्ग प्रदान किए हैं।

जब तालिबान ने ड्रग्स पर प्रतिबंध लगाया

ईएफएसएएस रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया कि, 2000-2001 में, तालिबान सरकार ने अपने नेता मुल्ला मोहम्मद उमर के नेतृत्व में और संयुक्त राष्ट्र के सहयोग से एक फतवा या एक धार्मिक फरमान लागू किया, जिसमें अफीम की खेती पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया। साथ ही यह घोषणा की कि अफीम की खेती मौलिक इस्लामी परंपरा का उल्लंघन है।

यह अब तक के सबसे प्रभावी ड्रग-विरोधी अभियान के रूप में सामने आया। अफगानिस्तान में अफीम का उत्पादन लगभग 99% घट गया, जो उस समय दुनिया की हेरोइन की आपूर्ति का लगभग तीन चौथाई था। हालाँकि, प्रतिबंध केवल एक संक्षिप्त अवधि के लिए प्रभावी था और अगले वर्ष से किसानों ने व्यापक आधार पर अफीम की रोपाई शुरू कर दी।

कई लोगों ने तालिबान की मंशा पर सवाल उठाया। तालिबान ने उस समय खेती पर रोक लगाने का फैसला क्यों किया?  इसका सबसे स्पष्ट उत्तर था कि यह राजनीतिक दोगलापन था। अफीम प्रतिबंध इसकी वैधता प्राप्त करने की एक कला थी, क्योंकि इससे पहले केवल तीन देशों, अर्थात् पाकिस्तान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात ने ही तालिबान शासन को आधिकारिक तौर पर वैध माना था।

इसके अलावा, यह बाजार में हेरफेर का एक रूप था क्योंकि अफीम के मूल्य में उस साल बहुत अधिक वृद्धि हुई थी। तालिबान ने भले ही अफीम की खेती बंद कर दी हो, लेकिन उन्होंने नशीली दवाओं को रखने या उनकी बिक्री पर रोक नहीं लगाई थी। हालांकि तालिबान ने इस बात पर जोर    दिया कि प्रतिबंध धार्मिक सिद्धांतों में निहित है परंतु, गुप्त स्थानों पर स्टोर किये गए अफीम के विशाल भंडार और चौगुनी कीमतों के कारण होने वाले अत्यधिक लाभ से पता चलता है कि दिखावे की इस सुविधाजनक रणनीति के पीछे वास्तविक उद्देश्य क्या था।

इस्लामिक दुनिया भी कम प्रभावित नहीं

अफगानिस्तान नेशनल ड्रग यूज के 2015 के सर्वेक्षण में पाया गया कि लगभग 2.9 मिलियन अफगानी ड्रग्स का इस्तेमाल करते हैं, जो उनकी आबादी का 11% है।

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार ईरान विश्व में सबसे ज्यादा व्यसन यानि सेवन संकटों वाले देशों में से एक है। ईरान की जेल में बंद 1,70,000 लोगों में से लगभग 68,000 मादक पदार्थों की तस्करी के लिए और  32000 लोग इसका व्यसन यानि सेवन करने के जुर्म में बंद हैं।

पाकिस्तान में ड्रग्स के नशे के कारण रोजाना 700 लोग अपनी जान गंवाते हैl पाकिस्तान में नशीली दवाओं के उपयोग की वर्ष 2013 की सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, नारकोटिक्स कंट्रोल डिवीजन, पाकिस्तान सांख्यिकी ब्यूरो और संयुक्त राष्ट्र के संयुक्त शोध के अनुसार पाकिस्तान में 7.6 मिलियन ड्रग एडिक्ट हैं: जिसमे 78% पुरुष और 22% महिलाएं है। इन नशेड़ियों की संख्या प्रति वर्ष 40,000 की दर से बढ़ रही हैं जो पाकिस्तान को दुनिया के नशीली दवाओं का उपयोग करने वाले देशों में शीर्ष पर रखती हैं।

भारत पर प्रभाव

फरवरी 2019 में, भारत सरकार ने देश में नशीली दवाओं के दुरुपयोग की सीमा, पैटर्न और प्रवृत्ति पर एक प्रमुख रिपोर्ट पेश की। आइए नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट के कुछ प्रमुख निष्कर्षों पर एक नज़र डालते हैं, जिसका शीर्षक “भारत में पदार्थ के उपयोग का परिमाण” है। भारत में लगभग 2.6 करोड़ लोग ओपीओइड का उपयोग किया करते है और 60 लाख से अधिक लोग  ओपीओइड के विकारों से पीड़ित हैं। सबसे ज्यादा उपयोग में आने वाला नशा हेरोइन हैl जिसके बाद फार्मास्युटिकल ओपिओइड और अफीम आते हैं। उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, महाराष्ट्र, राजस्थान, आंध्र प्रदेश और गुजरात में ओपियोइड से आधे से ज्यादा लोग पीड़ित हैं।

तालिबान और मैक्सिकन ड्रग उत्पादन संघ:

4 सितम्बर 2021 को डी डब्ल्यू.कॉम में प्रकाशित एक रिपोर्ट जिसका शीर्षक, “क्या तालिबान मेक्सिको के ड्रग कार्टेल के साथ गठबंधन कर सकता है?” था,  उसमें उल्लेख किया गया है कि, “अफगानिस्तान और मेक्सिको विश्व मानचित्र पर एक दूसरे से भले ही दूर दिखाई दें और प्रमुख ऐतिहासिक, सामाजिक और धार्मिक रूप से अलग हो, लेकिन तालिबान और मैक्सिकन कार्टेल इस तथ्य पर एकजुट हैं कि वे दोनों मादक पदार्थों की तस्करी पर आर्थिक रूप से निर्भर हैं और अपनी राजनीतिक शक्ति को बढ़ाने और उस क्षेत्र पर नियंत्रण के विस्तार के लिए अत्यधिक हिंसा करते हैं।”

भारत सरकार और उसके कार्य

भारत सरकार पहले से ही अपने संघीय ड्रग कानून प्रवर्तन और खुफिया एजेंसी- नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) को, अतिरिक्त 3689 नए पदों, कैनाइन स्क्वॉड, साइबर और खुफिया इकाइयों और संगठन के लिए एक समर्पित अभियोजन विंग के निर्माण के साथ नया रूप देने की योजना बना  रही है। आज की तारीख में एनसीबी किसी बड़ी स्थिति को संभालने के लिए सीमित जनशक्ति वाली एक छोटी इकाई है।

राजस्व खुफिया निदेशालय (डीआरआई) भी एक सक्षम संगठन है, जिसमें सर्वोत्तम खुफिया और जांच क्षमताएं हैं। खुफियागिरी के अन्य स्रोतों में, सीमा शुल्क विदेशी खुफिया नेटवर्क (सीओआईएन) भी उनकी मदद करता है। लेकिन डीआरआई को भी सुधार की जरूरत है और उसे धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) जैसी शक्तियां दी जानी चाहिए। जब ड्रग से निपटने की बात आती है तो अमेरिकी डीईए इसका सबसे अच्छा उदाहरण है।

संबंधित राज्य पुलिस बलों सहित सभी एजेंसियों को अब अपना दृष्टिकोण बदलना होगा और नार्को तस्करी को आतंकवादी गतिविधियों से अलग नहीं माना जाय​​। यदि कोई भी व्यक्ति इन उच्च श्रेणी की नारको में लिप्त पाया जाता है, तो मृत्युदंड दिये जाने के प्रावधान सहित ड्रग्स से निपटने के लिए कड़े कानूनों की तत्काल आवश्यकता है।

इस शक्तिशाली और अच्छी तरह से स्थापित उद्योग के खिलाफ कार्यवाही शुरू करने के लिए, काउंटर-मादक और आतंकवाद विरोधी रणनीतियों को मिलकर साथ-साथ चलना होगा। ‘नार्को-जिहाद’ की अवधारणा-धर्म के नाम पर हिंसा के कृत्यों का विरोधाभासी और बेतुका औचित्य, जो नशीले पदार्थों के अवैध व्यापार के राजस्व से पोषित होता है – इसमें शामिल सभी पक्षों द्वारा पूरी तरह से निंदा की जानी चाहिए।

अफगानिस्तान में मादक द्रव्यों के व्यापार के क्षेत्रीय और वैश्विक सुरक्षा स्तर, विशेष रूप से भारत पर स्पष्ट और अस्थिर करने वाला प्रभाव है। पड़ोसी देशों के नागरिकों में बढ़ती नशीली दवाओं की लत यह दर्शाती है कि कैसे नार्को-तस्करी उद्योग इस क्षेत्र में आर्थिक स्थिरता और राजनीतिक स्थिति को खराब करता है। तेजी से बढ़ती ड्रग अर्थव्यवस्था, जो इस्लामी आतंकवादी समूहों द्वारा  संचालित है, उसने  इस उपमहाद्वीप को हिंसाग्रस्त बंजर भूमि में बदल दिया है।

तालिबान के साथ जुड़कर नार्को-व्यापार की अनदेखी करने वाली कोई भी नीति अफगानिस्तान को स्थिर करने में निराधार और अस्थायी होगी, क्योंकि ड्रग अर्थव्यवस्था इस क्षेत्र में आतंकवाद के लिए धन के मुख्य स्रोतों में से एक है। आतंकवाद विरोधी और मादक द्रव्य विरोधी रणनीतियों को साथ-साथ चलना होगा क्योंकि मादक पदार्थों की तस्करी और आतंकवाद के कारण तथा इसकी गतिशीलता आंतरिक रूप से आपस में जुड़े हुए हैं।

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लेखक
बिनय कुमार सिंह एक लेखक और स्तंभकार हैं। उन्होंने 'ब्लीडिंग इंडिया-फोर एग्रेसर्स-थाउजेंड कट्स' किताब लिखी है।
वह नियमित रूप से विभिन्न राष्ट्रीय और विदेशी प्रकाशनों में आंतरिक सुरक्षा पर योगदान देता है।

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