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MR-SAM से भारतीय एयर डिफेंस का क्षमतावर्धन

ब्रिगेडियर अरविंद धनंजयन (सेवानिवृत्त), सलाहकार संपादक रक्षा
सोम, 20 सितम्बर 2021   |   8 मिनट में पढ़ें

मध्यम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल (एमआरएसएएम) की पहली सुपुर्दगी के साथ ही भारत के एयर डिफेंस (एडी) शस्त्रागार की क्षमता में उस समय उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गयी, जब एयर फोर्स स्टेशन जैसलमेर, राजस्थान में इस वर्ष 09 सितंबर को माननीय रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने वायु सेना प्रमुख को इसे सौंपा।

एमआरएसएएम रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) और इज़राइल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज (IAI) के बीच एक संयुक्त उद्यम (JV) की छत्रछाया में एक दशक से अधिक की साझेदारी का परिणाम है और सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल (एसएएम) सिस्टम के साथ भारत के सात दशकों के प्रयास का साक्षी है।

भारत में एसएएम की गाथा

भारत में एसएएम के आगमन की प्रमुख घटनाएं निम्नवत हैं-

एसएएम विकसित करने का भारत का प्रयास 1962 में प्रारम्भ प्रोजेक्ट इंडिगो के साथ शुरू हुआ, जो भारत और स्विट्जरलैंड के बीच एक इंटरमीडिएट रेंज (आईआर) एसएएम विकसित करने के लिए संयुक्त उद्यम के रूप में था। प्रोजेक्ट इंडिगो को मिली आंशिक सफलता के कारण इसे बाद में बंद कर दिया गया। साथ ही अपनी एयर डिफेंस क्षमता को बढ़ाने के लिए, सोवियत एसए-2 के 1950 के दशक में विकसित एक मध्यम से उच्च ऊंचाई वाले एसएएम सिस्टम के तीन स्क्वाड्रन की खरीद की गई। इससे 1972 में शुरू रक्षा अनुसंधान और विकास प्रयोगशाला (डीआरडीएल) की देखरेख में शुरू प्रोजेक्ट डेविल की अवधारणा मिली, जिसका लक्ष्य सोवियत एसए-2 की उपयुक्त रूप से रिवर्स इंजीनियरिंग द्वारा शॉर्ट रेंज (एसआर) एसएएम का उत्पादन करना था। इसके तहत मिसाइल परीक्षण, विकास और डिजाइन के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे का निर्माण किया गया। हालांकि, इस परियोजना की मियाद अल्पकालिक रही जिसे 1980 में रद्द कर दिया गया। इसके पीछे 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में इस एसएएम सिस्टम का अपेक्षा से कम प्रदर्शन रहा, साथ ही स्वामित्व पर भी आंतरिक विवाद उत्पन्न होना भी अन्य कारणों में से एक था। हालांकि इससे प्राप्त तकनीकी विशेषज्ञता बेकार नहीं गयी और बाद में भारत के एकीकृत निर्देशित मिसाइल कार्यक्रम (आईजीएमडीपी) में काम आयी। उसी वर्ष, भारतीय वायु सेना (आईएएफ) ने भारत सरकार को सोवियत संघ से ठोस-ईंधन वाले पिकोरा एसएएम सिस्टम को हासिल करने के लिए मना लिया। पिकोरा को निम्न-से-मध्यम ऊंचाई पर एयर डिफेंस प्रदान करने के लिए डिज़ाइन किया गया था और इस प्रकार यह SA-2 सिस्टम का पूरक बना।

  • 27 जुलाई 1983 :  डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के नेतृत्व में भारत ने आईजीएमडीपी को लॉन्च करने की घोषणा की, जिसमें एक निम्न-स्तरीय एसएएम (एलएलएसएएम) त्रिशूल और एक एमआरएसएएम आकाश सहित पांच मिसाइलों को डीआरडीएल द्वारा विकसित किया गया। आईजीएमडीपी की शुरुआत के महज दो साल बाद 16 सितंबर 1985 को त्रिशूल एलएलएसएएम का पहला परीक्षण श्रीहरिकोटा से किया गया। आकाश एमआरएसएएम की पहली परीक्षण उड़ान 1990 में की गई।
  • जनवरी 2000 : डीआरडीओ ने घोषणा की कि आकाश एमआरएसएएम के लिए विकसित रैमजेट प्रौद्योगिकी और मार्गदर्शन प्रणाली भविष्य की मिसाइल प्रणालियों के विकास का आधार तैयार करेगी।
  • फरवरी 2001 : भारत और इज़राइल ने भारतीय नौसेना (आईएन) के लिए सात बराक-1 शिप प्वाइंट डिफेंस मिसाइल सिस्टम खरीदने के लिए 270 मिलियन डॉलर के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए। बराक-1, एक 10 किमी रेंज इंटरसेप्टर एसएएम है जिसमें एक साथ दो लक्ष्यों को भेदने की क्षमता है, को एयरक्राफ्ट कैरियर विराट, राजपूत क्लास डिस्ट्रॉयर और बाद में प्रत्येक निर्माणाधीन पी-17 ए स्टेल्थ फ्रिगेट्स पर तैनात किया जाना था। जो बाद में त्रिशूल एलएलएसएएम के विकास में देरी के कारण आवश्यक हो गया। बाद में उसे बराक 8 एसएएम द्वारा वर्टिकल लॉन्च सिस्टम के साथ प्रतिस्थापित किया गया।
  • सितंबर 2001 : त्रिशूल और आकाश एसएएम सिस्टम दोनों ने निर्देशित उड़ान परीक्षण चरण में प्रवेश किया।
  • 23 जुलाई 2003 : भारत के तत्कालीन रक्षा मंत्री श्री जॉर्ज फर्नांडीस ने कहा कि त्रिशूल एसएएम सिस्टम से जुड़े तकनीकी मुद्दों को हल करने में डीआरडीओ द्वारा हो रहे विलंब को देखते हुए, तीनों सेनाओं को इमरजेंसी परिचालन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अधिग्रहण के लिए विदेशी एसएएम सिस्टम की पहचान करने की छूट है।
  • 2005 : आकाश एसएएम के एक साथ इंगेजमेंट मोड का प्रदर्शन किया गया, जिसमें दो एसएएम ने दो तेजी से बढ़ते हवाई लक्ष्यों को सफलतापूर्वक रोक दिया।
  • फरवरी 2006 : भारत और इज़राइल ने बराक-नेक्स्ट जेनरेशन (एनजी) शिपबोर्न एसएएम विकसित करने के लिए एक संयुक्त उद्यम पर हस्ताक्षर किए, जो उपरोक्त बराक-1 एसएएम से विकसित हुआ है। जुलाई 2007 में, इसी सहयोग के तहत एमआरएसएएम परियोजना शुरू हुई। दोनों एसएएम बराक-8 के नाम से जाने गये।
  • जुलाई 2007 : सुरक्षा संबंधी कैबिनेट समिति (सीसीएस) ने एसएएम प्रणाली के निर्माण के लिए आईएआई और डीआरडीओ के बीच संयुक्त उद्यम की शुरुआत के लिए औपचारिक मंजूरी दी।
  • फरवरी 2008 : भारत सरकार ने लंबे समय तक विकास में देरी होने के कारण त्रिशूल एलएलएसएएम कार्यक्रम
  • 27 फरवरी 2009 : भारत सरकार ने डीआरडीओ के साथ एमआरएसएएम को संयुक्त रूप से विकसित करने के लिए आईएआई के साथ एक संयुक्त उद्यम पर हस्ताक्षर किया।
  • नवंबर 2009 : इज़राइल ने भारत को उन्नत बराक-8 एसएएम एडी सिस्टम की आपूर्ति के लिए 8000 करोड़ रुपये के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए।
  • 03 मार्च 2012 : आकाश एसएएम को आधिकारिक तौर पर भारतीय वायुसेना में शामिल किया गया। जून 2012 में, 25 किमी की स्ट्राइक रेंज के साथ आकाश सैम के IAF संस्करण का चांदीपुर के एकीकृत परीक्षण रेंज (ITR) से पैंतरेबाज़ी लक्ष्यों पर सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया।
  • मई 2015 : आईए के लिए दो रेजिमेंटों के अधिग्रहण की योजना के आधार पर, आकाश एसएएम का आईए संस्करण शामिल किया गया।
  • 01 सितंबर 2015 : रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) ने भारतीय वायुसेना के लिए आकाश एसएएम के अतिरिक्त सात (कुल 15 के लिए ऑर्डर) स्क्वाड्रनों के अधिग्रहण को मंजूरी दी।
  • दिसंबर 2015 : आईएनएस कोलकाता से बराक-8 एसएएम (नौसेना संस्करण) का सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया।
  • 30 जून 2016 : बराक-8 (MRSAM) के जमीन आधारित संस्करण का पहली बार आईटीआर चांदीपुर से सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया।
  • सितंबर 2016 : आकाश-एनजी (न्यू जेनरेशन) एसएएम के विकास को ₹470 करोड़ के वित्त पोषण के साथ मंजूरी दी गयी।
  • मई 2019 : आकाश 1S, का भीतरी लक्ष्यों का सटीक पता लगाने के लिए, 60 किलो के वारहेड के साथ 30 किमी के दायरे में सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया था।
  • 2020 : 13 नवंबर को आईटीआर चांदीपुर से क्विक रिएक्शन एसएएम (क्यूआरएसएएम) की पहली टेस्ट फायरिंग की गई। क्यूआरएसएएम को डीआरडीओ, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) और भारत डायनेमिक्स लिमिटेड (बीडीएल) द्वारा संयुक्त रूप से विकसित किया जा रहा है। इसकी रेंज 3 से 30 किमी है और इसे बख्तरबंद स्तंभों को हवाई व्यवहार से बचाने के लिए डिज़ाइन किया गया है। एक महीने बाद, 23 दिसंबर को, आईटीआर चांदीपुर से कंपलीट फायर यूनिट के साथ एमआरएसएएम का पहला प्रक्षेपण किया गया। मिसाइल ने उच्च गति वाले मानव रहित हवाई लक्ष्य को नष्ट करने में सफलता पायी। संपूर्ण फायर यूनिट आर्किटेक्चर ने डिलीवरी योग्य प्रणाली में अपनी प्रभावकारिता स्थापित की। सीसीएस ने 30 दिसंबर को कुछ आसियान देशों, यूएई और बेलारूस के अनुरोधों के आधार पर आकाश एसएएम के निर्यात को मंजूरी दी।
  • 2021 : 22 फरवरी को, DRDO ने वर्टिकल लॉन्च सिस्टम और अधिकतम/न्यूनतम रेंज की प्रभावकारिता का परीक्षण करने के लिए दो VL-SRSAM को पहली बार लॉन्च किया। दोनों मिसाइलों ने सफलतापूर्वक अपना लक्ष्य भेद किया। आईएआई ने एक महीने बाद 150 किमी रेंज के साथ बराक-8 ईआर एसएएम का सफलतापूर्वक परीक्षण किया। 23 जुलाई 2021 को डीआरडीओ ने आकाश-एनजी एसएएम की तीसरी परीक्षण फायरिंग सफलतापूर्वक पूरी की और 09 सितंबर को एमआरएसएएम की पहली डिलीवरी योग्य फायरिंग यूनिट भारतीय वायुसेना को सौंप दी गई।

एसएएम के क्षेत्र में भारत में कई विकास कार्य हो रहे हैं, इस लेख का उद्देश्य केवल एमआरएसएएम की मुख्य विशेषताओं को बताना है। प्रचलित/विकासाधीन अन्य एसएएम प्रणालियों का मुख्य विवरण भी नीचे दी गई तालिका में स्पष्ट किया गया है।

एमआरएसएएम

एमआरएसएएम बराक-8 एसएएम का भूमि आधारित संस्करण है (नौसेना संस्करण लॉन्ग रेंज {एलआर} एसएएम है, जिसे नौसेना के मध्यम से लंबी दूरी के एयर डिफेंस के 50 किमी से अधिक के अंतराल को भरने के लिए शामिल किया गया है) जिसे आईएआई और डीआरडीओ के संयुक्त उद्यम जो 2007 में शुरू हुआ था के तहत संयुक्त रूप से विकसित किया गया है। एमआरएसएएम का दायरा 70 किमी है, जो मध्यम श्रेणी के एयर डिफेंस इंटरसेप्टर अंतर को भरती है। मिसाइल में करीब 70% स्वदेशी सामग्री है। यह एक सुपरसोनिक इंटरसेप्टर है, जो मैक 2 तक की गति में सक्षम है, 24 घंटे सक्षम है और सभी मौसमों में एक साथ कई लक्ष्यों को निशाना बना सकता है। एमआरएसएएम लड़ाकू विमान, यूएवी, हेलीकॉप्टर, गाइडेड/अनगाइडेड मूनिशन और क्रूज मिसाइल के खतरों के खिलाफ एयर डिफेंस प्रदान करता है। शुरू में, हथियार को नौसेना के लिए पोत-जनित मिसाइल प्रणाली के रूप में विकसित किया गया था, जो बाद में भूमि आधारित एमआरएसएएम एयर डिफेंस सिस्टम में विकसित हुआ। एमआरएसएएम प्रणाली को स्ट्राइक संरचनाओं के मद्देनजर एरिया एयर डिफेंस या संवेदनशील क्षेत्रों के एयर डिफेंस के लिए नियोजित किए जाने की संभावना है (जिसमें क्यूआरएसएएम होगा। वायुसेना ने MRSAM की तीन/पांच रेजिमेंटों का ऑर्डर दिया है, जबकि IAF को 9 स्क्वाड्रन का अधिग्रहण करना है, जिसकी अनुमानित प्रारंभिक लागत क्रमशः 16,800 करोड़ रुपये और 10,000 करोड़ रुपये है। आईएन के सात जहाजों को एलआरएसएएम एडी सिस्टम से लैस करने के लिए 2018 में बीईएल के साथ 2600 करोड़ रुपये की प्रारंभिक राशि का अनुबंध किया गया था। 2019 में, आईएआई ने एसएएम और इसकी उपप्रणालियों के रखरखाव के लिए कोचीन शिपयार्ड और नौसेना के साथ 6,800 करोड़ रुपये के समझौते पर हस्ताक्षर किए।

सिस्टम आर्किटेक्चर : प्रत्येक एमआरएसएएम सिस्टम (फायर यूनिट) नेटवर्क-केंद्रित है और इसमें एक कमांड पोस्ट या कॉम्बैट मैनेजमेंट सिस्टम (सीएमएस), एक मल्टी-फंक्शन सर्विलांस एंड थ्रेट अलर्ट ट्रैकिंग रडार (एमएफएसटीएआर), एसएएम और तीन मोबाइल लॉन्चर शामिल होते हैं। मोबाइल लॉन्चर का उपयोग दो स्टैक में रखे आठ कनस्तरीकृत मिसाइलों के परिवहन, खड़ा करने और लॉन्च करने के लिए किया जाता है। यह मिसाइलों को वर्टिकल फायरिंग पोजीशन से सिंगल या रिपल फायरिंग मोड में फायर कर सकता है। सीएमएस ट्रैकिंग रडार का उपयोग करके खतरे की पहचान करने और उसे ट्रैक करता है। लक्ष्य और लॉन्चर के बीच की दूरी की गणना करते हुए यह सिस्टम मित्र या दुश्मन की पहचान (आईएफएफ) करता है। लक्ष्य की सूचना मोबाइल लॉन्चर को प्रेषित की जाती है। मिसाइल रीलोडर व्हीकल (आरवी), फील्ड सर्विस व्हीकल (एफएसवी) और रडार/सीएमएस के लिए मोबाइल पावर सिस्टम (एमपीएस) भी इस सिस्टम का हिस्सा हैं।

एमआरएसएएम सिस्टम आर्किटेक्चर: स्रोत- military-today.com

गाइडेंस, वारहेड और प्रोपल्सन : एमआरएसएएम एक परमाणु सक्षम एसएएम है जिसकी लंबाई 4.5 मीटर और वजन 276 किलोग्राम है। यह एक उन्नत सक्रिय रडार रेडियो फ्रीक्वेंसी (आरएफ) सीकर, उन्नत घूर्णन चरणबद्ध ऐरे रडार और दो-तरफा डेटा लिंक से लैस है। मिसाइल के सामने वाले हिस्से में स्थित आरएफ सीकर का उपयोग सभी मौसमों में गतिमान लक्ष्यों का पता लगाने के लिए किया जाता है। चरणबद्ध ऐरे रडार एक उच्च-रिज़ॉल्यूशन हवा की स्थिति बताता है, जबकि दो-तरफा डेटा लिंक का उपयोग मिसाइल को मिडकोर्स मार्गदर्शन और लक्ष्य की के लिए किया जाता है। मिसाइल का विस्फोटक वारहेड एक आत्म-विनाश फ्यूज को माउंट करता है जो हवाई लक्ष्यों के खिलाफ उच्च घातकता की संभावना प्रदान करता है। एमआरएसएएम डीआरडीओ द्वारा विकसित एक दोहरी-पल्स ठोस ईंधन प्रणोदन प्रणाली से लैस है और दिशात्मक परिवर्तनों के लिए थर्स्ट-वेक्टर नियंत्रण करता है।

भारतीय उद्योग की भागीदारी : एमआरएसएएम सिस्टम के लिए बीडीएल निर्माता और लीड इंटीग्रेटर है और एमआरएसएएम और एलआरएसएएम दोनों के निर्माण के लिए हैदराबाद में एक नई उत्पादन सुविधा स्थापित की है। बताया जाता है कि इस केंद्र में एक वर्ष में 100 मिसाइलों का उत्पादन करने की क्षमता है। रीसर्च सेंटर इमारत (आरसीआई), एक डीआरडीओ प्रयोगशाला है जो अन्य क्षेत्रों के साथ-साथ एवियोनिक्स और मिशन सॉफ्टवेयर में विशेषज्ञता रखती है, इसने डीआरडीओ की ओर से एमआरएसएएम में संयुक्त विकास किया है। डीआरडीओ के साथ अनुबंध के तहत, टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड ने एमआरएसएएम के लिए सीएमएस का डिजाइन और निर्माण किया है और एलएंडटी के सहयोग से मोबाइल लॉन्चर का निर्माण कर रहा है। कल्याणी राफेल एडवांस्ड सिस्टम्स (केआरएएस), कल्याणी ग्रुप और राफेल एडवांस्ड डिफेंस सिस्टम्स का एक संयुक्त उद्यम है जिसे बीडीएल द्वारा अंतिम एकीकरण के लिए मिसाइल किट का उत्पादन और आपूर्ति करने के लिए अनुबंधित किया गया है। एमआरएसएएम के विकास में शामिल अन्य फर्मों/डीपीएसयू में बीईएल, एल्टा सिस्टम्स इज़राइल और अन्य निजी विक्रेता शामिल हैं।

निष्कर्ष

भारत के सशस्त्र बलों के उपयोग में लाये जानेवाले उपकरणों का विदेशों पर अत्यधिक निर्भरता के युग से स्वदेशीकरण और आत्मनिर्भरता में प्रवेश करने के लिए और हमारे सशस्त्र बलों की क्षमता को अत्याधुनिक बनाने की आवश्यकता के तहत, स्थापित विदेशी रक्षा उपकरण निर्माताओं के साथ संयुक्त उद्यमों में प्रवेश करना कभी-कभी, आवश्यक हो जाता है। ऐसा जब अपरिहार्य होगा, जब  अत्याधुनिक रक्षा समाधान के लिए हमें बढ़ती स्वदेशी सामग्री के साथ इसका उपयोग करना होगा। एमआरएसएएम हमारे रक्षा बलों को हथियार से लैस करने में पूर्ण आत्मनिर्भरता प्राप्त करने की दिशा में मध्यवर्ती कदम का एक उपयुक्त उदाहरण है।

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लेखक
ब्रिगेडियर अरविंद धनंजयन (सेवानिवृत्त) एक आपरेशनल ब्रिगेड की कमान संभाल चुके हैं और एक प्रमुख प्रशिक्षण केंद्र के ब्रिगेेडयर प्रभारी रहे हैं। उनका भारतीय प्रशिक्षण दल के सदस्य के रूप में दक्षिण अफ्रीका के बोत्सवाना में विदेश में प्रतिनियुक्ति का अनुभव रहा है और विदेशों में रक्षा बलों विश्वसनीय सलाहकार के रूप में उनका व्यापक अनुभव रहा है। वह हथियार प्रणालियों के तकनीकी पहलुओं और सामरिक इस्तेमाल का व्यापक अनुभव रखते हैं।

अस्वीकरण

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