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हिट लिस्ट में प्रवासी कामगार : चुप रहने वाले कश्मीरियों को अब बोलना होगा!

मुदासिर दार
रवि, 24 अक्टूबर 2021   |   5 मिनट में पढ़ें

स्वर्ग के समान पहाड़ों और झरनों, मंत्रमुग्ध करने वाले जल निकायों और मोहक घाटी के खूबसूरत नजारों के अलावा कश्मीर दुनिया भर में अपनी मेहमान नवाज़ी के लिए भी जाना जाता है। सुंदरता केवल मुगल गार्डनो में ही नहीं है, बल्कि भाईचारे और दोस्ताना माहौल में एक साथ रहने की वजह से यह क्षेत्र दूसरों से अलग है। यहाँ के लोग नेक दिल हैं, जो न केवल चेहरे से बल्कि दिल से भी खूबसूरत हैं। घाटी के लोग बहुत केयरिंग हैं और वे अपने मेहमानों का बहुत अच्छे से ख्याल रखते हैं।

पिछले कुछ दशकों में फैली अराजकता और अनिश्चितता के माहौल के बावजूद, कश्मीरी दुनिया के कोने-कोने से या भारतीय राज्यों से यहां आने वाले महमानों का स्वागत करना कभी नहीं भूलते। संघर्ष की वजह से उभरने वाली कठिन परिस्थितियों के दौरान सभी बाधाओं को पार करते हुए, मेहमानों की सेवा करने की हमारी परंपरा कभी खत्म नहीं हुई है। हम हर तरह से अपने  मेहमानों की आवाभगत और स्वागत करते हैं। हमारे पास इस बात के बहुत से उदाहरण हैं। चाहे वो 2014 की बाढ़ हो, बंद हो, कर्फ्यू हो या फिर कोविड-19 की वजह से होने वाले लॉकडाउन के दौरान, कश्मीरी लोगों ने भाई चारे और अतिथि सत्कार की परंपरा को हमेशा बरकरार रखा। उन्होंने अपने मेहमानों को आराम पहुँचाने के लिए अपनी सुविधा का त्याग किया है। यहां के लोग हर पर्यटक या गैर-स्थानीय मजदूर को अपना मेहमान मानते हैं और हर संभव तरीके से उनकी सेवा करने का प्रयास करते हैं।

हाल ही में गैर-स्थानीय प्रवासियों की निर्दोश हत्याओं ने हम सभी को निराश किया है। इसने हमें बाहरी रूप से ही नहीं बल्कि आंतरिक रूप से भी बुरी तरह से झकझोर दिया है। जब मुश्किल से गुजारा करने वाले गैर-स्थानीय गरीब रेहड़ी-पटरी वालों और मजदूरों को अपने घरों से सैकड़ों किलोमीटर दूर मार दिया जाता हैं, तो दर्द होता है। एक निहत्था नागरिक अपनी आजीविका कमाने के लिए बिहार, राजस्थान और उत्तर प्रदेश या किसी अन्य भारतीय राज्य से आता है; उन्हें गोलियों का निशाना बनाने की घटना ने कश्मीरी समाज को हिला कर रख दिया है। अज्ञात बंदूकधारियों द्वारा मारे जाने के डर से गैर-स्थानीय कार्यकर्ताओं के झुंडों में घाटी छोड़ने के दृश्यों को देखकर हम में से हर कोई बहुत दुखी है।

Indian migrant workers wait inside a railway station to board trains to their home states, on outskirts of Srinagar.

पृथ्वी पर कोई भी धर्म इन सब की अनुमति नहीं देता। इन हत्याओं के पीछे वे वास्तविक कायर हैं ,जिन्हें इस घाटी ने कभी देखा ही नहीं है। अब समय आ गया है कि हम अपने घरों से बाहर निकलें और इनका विरोध शुरू करें, और अपने हिंदू भाइयों और बहनों द्वारा मूकदर्शक बने रहने के दोष से अपने आप को बचाएं। अगर हम इस पलायन के खिलाफ आवाज नहीं उठाएंगे तो हम खुद को कभी माफ नहीं कर पाएंगे।

इन गैर स्थानीय मजदूरों को यहाँ से जाने देना हमारे समाज के लिए चिंताजनक है। अगर इस सब को रोका नहीं गया, तो दशकों से चली आ रही तमाम अव्यवस्थाओं के बावजूद हम जिस आपसी तालमेल को देख रहे थे, वह निश्चित रूप से समाप्त हो जाएगा। समय की मांग है कि हम बाहर आएं और इन नृशंस और निर्दोश हत्याओं की हर संभव निंदा करें और उनके लिए अपने घरों के दरवाजे खोल दे। ये प्रवासी मजदूर हमारे समाज का अहम हिस्सा हैं। इस समय हम उन्हें जाने नहीं दे सकते। हमारा आर्थिक, सामाजिक, कृषि, ढांचागत समर्थन और यहां तक ​​कि घरेलू कार्यबल भी उनसे ही मिलता है। वे यहां अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए हैं, और हमेशा की तरह यह हमारा कर्तव्य बन जाता है कि हम बेसहारा और उत्पीड़ितों के लिए खड़े हों।

मुझे याद है कुछ दिन पहले जब मैं घर पर था,  तो मुझे एक गैर-स्थानीय प्रवासी मजदूर का फोन आया, जो मेरे गांव में काम करता था। कुछ दिनों के लिए मैंने उसे आश्रय दिया था, क्योंकि वह आदमी इन हत्याओं की वजह से काफी डरा हुआ था। मैं उसे घर ले आया। अगले दिन उसके पास आधार कार्ड जमा करने के लिए संबंधित पुलिस स्टेशन से फोन आया, जैसे ही वह थाने से वापस आया उसने कहा कि वह कल जा रहा है। मैंने पूछा, क्या हुआ, उसकी आँखों से आँसू बहने लगे और मैं अपनी भावनाओं को नियंत्रित नहीं कर सका और उसे गले लगा लिया और अगले दिन उस आदमी को अलविदा कह दिया। यह आदमी  मुझसे केवल एक ही सवाल कर रहा था, “हमें क्यों और किन कारणों से मारा जा रहा है”। वह पिछले 15 सालों से यहां है, लेकिन आज जो कुछ उसने देखा था उसे पहले कभी नहीं देखा।

हमें इन गैर-स्थानीय मजदूरों को उस क्षेत्र से कड़वे  अनुभवों के साथ नहीं जाने देना चाहिए, जो दुनिया भर में अपनी मेहमान नवाज़ी के लिए जाना जाता है। सहानुभूति दिखाकर और उन्हें जगह देकर हमें उन्हें यह महसूस कराना चाहिए कि वे उसी जगह पर हैं जहां वे एक या दो या तीन साल पहले थे। इसकी वजह से प्रवासी कामगारों के साथ हमारे रिश्ते खत्म नहीं होंगे।

इस पलायन को रोकने और उनके लिए अपने द्वार खोलने की जिम्मेदारी हमारी है। इस घाटी का एक आम नागरिक कम से कम इन हत्याओं की निंदा और विरोध तो कर ही सकता है। हमारे धर्मगुरुओं और मदरसों को उन्हें यहाँ से जाने से रोकने के लिए आगे आना  होगा और उन्हें दिखा देना चाहिए कि हम उनके जीवन की परवाह करते हैं और वे हमारे समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

जब 2019 में पुलवामा हमले के दौरान सीआरपीएफ के 40 जवानों की जान गयी थी, उसके बाद कुछ कश्मीरियों को देश के किसी अन्य हिस्से से जाने के लिए कहा जा रहा था, ऐसे समय में हिंदू और सिख भाईयों ने कश्मीरियों लिए जो किया वो हम सब ने देखा है। विशेष रूप से सिख भाइयों ने अपने गुरुद्वारे खोल दिये और हजारों कश्मीरियों को आश्रय दिया। साथ ही अन्य जरूरी चीजें मुहईया कराके उनकी मदद की थी। यहां तक ​​कि उन्होंने खालसा सहायता से कश्मीरी छात्रों को घाटी में वापस लाने में भी मदद की।

इस महत्वपूर्ण मोड़ पर हमें और हमारे धार्मिक संगठनों को इन प्रवासी मजदूरों को आतंकी गतिविधियों से उसी तरह बचाने की जरूरत है, जिस तरह से उन्होंने पुलवामा हमले के बाद वर्ष 2019 में हमारी मदद की और हमारे लोगों की रक्षा की। इस महत्वपूर्ण समय में मेरा धर्म मुझे इन लोगों की रक्षा करना सिखाता है और मेरे प्यारे पैगंबर मोहम्मद ने मुझे “दूसरों की सुरक्षा” करना सिखाया है और यही इस्लाम  है।

इन लोगों को हमारी उतनी ही जरूरत है जितनी हमें इनकी जरूरत है। अतीत में  भी इनकी  इतनी ही जरूरत थी। साथ ही, हमें कुछ मीडिया घरानों द्वारा हर कश्मीरी पर आरोप  लगाये जाने, उन्हे दोषी ठहराने और कश्मीर के लोगों को लेबल करने के आंदोलन की निंदा  करनी चाहिए और उसका बहिष्कार करना चाहिए। कोई भी मानवीय हृदय उन ज्ञात या ‘अज्ञात’ के साथ नहीं खड़ा होता, जो शांतिप्रिय और बेसहारा नागरिकों को निशाना बनाते हैं।

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लेखक
लेखक दक्षिण कश्मीर मे एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं और mudasidariust@gmail com  पर इनसे   संपर्क किया जा सकता है।

अस्वीकरण

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