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बेनज़ीर की हत्या से सबक

विवेक वर्मा
बुध, 29 दिसम्बर 2021   |   5 मिनट में पढ़ें

 2007 में पाकिस्तानी तालिबान द्वारा बेनज़ीर की हत्या उदारवादी मूल्यों वाली महिलाओं के प्रति गहरी घृणा दर्शाती है। पाकिस्तान में महिला राजनेताओं के लिए जगह कम होती जा रही है क्योंकि मध्यकालीन मानसिकता वाले अभिजात्य वर्ग के शासक सत्ता के उच्च पदों पर काबिज हैं। क्या बेनजीर भुट्टो की हत्या से शुरू हुआ पाकिस्तान का तालिबानीकरण अब पूरा हो गया है? क्या दुनिया कि लिए इसमें कोई सबक निहित है?

एक राजनेता होने की समस्या

बेनजीर भुट्टो पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बनने वाली पहली महिला थीं। वह सिंध के एक सामंती वंश से आई थी। उनके पिता, जुल्फिकार अली भुट्टो, पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) के संस्थापक थे जो बांग्लादेश के अलग होने के बाद पाकिस्तान के प्रधान मंत्री बने। पाकिस्तान की सत्ता के साथ उनका कार्यकाल अल्पकालिक था। 1977 में तख्तापलट के बाद बागडोर संभालने वाले जनरल जिया-उल-हक ने उन्हें फांसी पर लटका दिया। 1988 में जनरल जिया की रहस्यमयी हत्या और अमेरिका की पहल के परिणामस्वरूप पाकिस्तान में लोकतंत्र बहाल हुआ। 1980 के दशक की शुरुआत से अपनी हत्या होने तक पीपीपी की सह-अध्यक्ष बेनजीर को पाकिस्तानी राजनीतिक परिदृश्य में बाध्य होकर उतरना पड़ा। ऑक्सफोर्ड और हार्वर्ड में उनकी शिक्षा ने उन्हें पाकिस्तानी सेना के व्हिस्की पीने वाले जनरलों के बीच स्वीकृति प्राप्त करने में मदद की। जनरल जिया द्वारा आयातित विचारधारा सेना के उच्च पदों पर पूरी तरह से प्रवेश नहीं कर पाई थी। फिर भी, महिलाद्वेषी जनरलों के साथ मतभेदों के कारण, वह प्रधान मंत्री के रूप में अपने दोनों कार्यकाल कभी भी पूरे नहीं कर सकीं। उनके पति, आसिफ अली जरदारी, जिन्हें ‘मिस्टर टेन परसेंट’ के नाम से जाना जाता था, के भ्रष्टाचारों के परिणामस्वरूप 1997 में उन्हें देश से निकाल दिया गया और वह दुबई में शरण लेने को बाध्य हुए।

घर वापसी की चुनौतियाँ

2007 पाकिस्तानी इतिहास में एक और महत्वपूर्ण वर्ष था। इस दौरान पाकिस्तानी सेना की सत्ता पर पकड़ ढीली होती देखी गयी। लाल मस्जिद पर जनरल मुशर्रफ की असफल ऑपरेशन सर्चलाइट और पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश इफ्तिखार मोहम्मद चौधरी के साथ उनके मतभेदों के कारण जल्द ही पाकिस्तान में लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को फिर से बहाल करने के लिए शोरगुल होने लगा। मुशर्रफ, जिन्होंने अक्टूबर 1999 के तख्तापलट के बाद पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज (पीएमएलएन) के प्रमुख नवाज शरीफ को सत्ता से बेदखल कर दिया था, के पास पीपीपी और पीएमएलएन के नेताओं को चुनाव लड़ने के लिए बुलाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था। इसी पृष्ठभूमि में बेनजीर ने एक दशक के निर्वासन के बाद स्वदेश लौटने का फैसला किया।

दस वर्षों के अपने निर्वासन के दौरान, बेनज़ीर यह महसूस करने में विफल रही कि पाकिस्तानी समाज एक कट्टरपंथी समाज में बदल गया है। 9/11 की घटना और आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक युद्ध के हिस्से के रूप में अफगानिस्तान से तालिबान सरकार को बाहर करने में मुशर्रफ की भूमिका ने दो कट्टरपंथी ताकतों को उकसा दिया। इसने पाकिस्तानी समाज के भीतर अमेरिका और उसके सहयोगी बलों के खिलाफ एक प्रतिक्रिया का नेतृत्व किया। उदारवादी महिलाओं के खिलाफ तालिबानी विचारधारा ने पाकिस्तान में देवबंदी और अहल-ए-हदीस मदरसों में अपनी जड़ें जमा ली थीं। बरेलवी मौलवी भी अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने और अपने अनुयायियों पर पकड़ बनाए रखने के लिए इस वैचारिक प्रतिस्पर्धा में शामिल हुए। इसलिए, जब बेनज़ीर 18 अक्टूबर 2007 को कराची के जिन्ना अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पहुंचीं, तो आत्मघाती बम विस्फोट के प्रयास से उनका स्वागत किया गया। उस विस्फोट में 139 से अधिक लोग मारे गए और लगभग 450 घायल हो गए, लेकिन बेनजीर बच गईं । दो महीने बाद, 27 दिसंबर 2007 को, बिलाल नाम के एक 15 वर्षीय लड़के ने उनकी हत्या कर दी।

षडयंत्र का रहस्य और विफल जांच

पाकिस्तान थ्योरी के अनुसार, पाकिस्तानी सरकार ने हत्या को अंजाम देने के लिए तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के प्रमुख बैतुल्ला महसूद को जिम्मेदार ठहराया। हालांकि महसूद ने अपनी संलिप्तता से इनकार किया, वह 2009 में अमेरिकी ड्रोन हमले में मारा गया। बेनजीर को अल-कायदा, तालिबान और स्थानीय जिहादी तत्वों से निरंतर खतरा बना हुआ था। भुट्टो की हत्या का रहस्य अभी उजागर नहीं हो पाया है। उनके पति आसिफ अली जरदारी के पांच वर्षों का कार्यकाल भी सच्चाई को सामने लाने में विफल रहा। 2013 में एक आत्मघाती हमलावर द्वारा उनके वरिष्ठ सहयोगी बिलाल शेख की हत्या के बाद रहस्‍य और गहरा गया। शेख ही बेनजीर भुट्टो की सुरक्षा के प्रभारी थे जब वह निर्वासन के बाद पाकिस्तान लौटी थीं। जांचकर्ताओं ने निचले स्तर के गुर्गों पर ध्यान केंद्रित किया। 2013 में, पाकिस्तानी अदालत ने भुट्टो की हत्या के लिए मुशर्रफ पर आरोप लगाया। लेकिन पाकिस्तानी सेना ने अपने पूर्व सेना प्रमुख को देश छोड़ने के लिए सुरक्षित मार्ग प्रदान किया।

आसिफ अली जरदारी के नेतृत्व वाली पीपीपी सरकार ने संयुक्त राष्ट्र की टीम से हत्या की जांच करने का अनुरोध किया। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, यदि पर्याप्त सुरक्षा उपाय किए जाते, तो भुट्टो की हत्या को रोका जा सकता था। रिपोर्ट ने इस विफलता के लिए मुशर्रफ के प्रशासन को जिम्मेदार ठहराया। इसके अलावा, तत्काल जांच में विफलता, उनके शव की ऑटोप्सी की अनुमति देने से इनकार और जांच टीम के लिए अपर्याप्त सबूत जैसे मुद्दे एक समन्वित योजना और निष्पादन की ओर संकेत करते हैं। संयुक्त राष्ट्र की टीम ने संदिग्धों का नाम नहीं लिया और इसकी जिम्मेदारी पाकिस्तानी अदालत को सौंप कर जांच समाप्त कर दी।

एक अन्य साजिश परिकल्पना के अनुसार इस घटना को अंजाम देने में अल-कायदा भी आरोपों के घेरे में है। इसमें कहा गया है कि उन्होंने पाकिस्तानी तालिबान को हमले को अंजाम देने के लिए निर्देश दिया, संभवत: बागी खुफिया एजेंटों के समर्थन से, जबकि स्थानीय पुलिस को मामले की लीपा-पोती के लिए साथ मिलाकर रखा गया था। एक दशक बाद, टीटीपी ने 2007 में बेनजीर को मारने की जिम्मेदारी ली। कारण बताया गया कि वह ‘मुजाहिदीन’ के खिलाफ अमेरिका को सहयोग कर रही थी। आतंकी समूह की किताब ‘इंकलाब महसूद दक्षिण वजीरिस्तान- ब्रिटिश राज से अमेरिकी साम्राज्यवाद तक’ में यह विवरण दर्ज है।

दुनिया के लिए सबक

बेनज़ीर भुट्टो को अपनी राजनीतिक प्रवृत्ति को महसूस करने में विफलता की कीमत चुकानी पड़ी। वह जानती थीं कि 2007 का पाकिस्तान 1997 से अलग था। 9/11 की घटना और अफगानिस्तान में अमेरिकी हस्तक्षेप ने पाकिस्तान में कट्टरपंथी ताकतों को एकजुट कर दिया था। अमेरिका और उसके पश्चिमी सहयोगियों के प्रति लोगों का मोहभंग स्पष्ट था। तालिबानी विचारधारा मजबूत हो गयी थी, और समाज में उदार महिलाओं को घृणा की दृष्टि से देखा जाता था। दुर्भाग्य से, अमेरिका के साथ बेनज़ीर की निकटता और उनके उदारवादी मूल्य उनके दुश्मन बन गए। उनकी हत्या से पता चलता है कि कट्टरपंथी विचारधारा ने पाकिस्तानी समाज में गहरी जड़ें जमा ली है। हाल ही में 20 दिसंबर 2021 को संपन्न इस्लामिक देशों के संगठन (ओआईसी) शिखर सम्मेलन में प्रधान मंत्री इमरान खान को महिलाओं के अधिकारों पर तालिबान का बचाव करते देखा गया। यह पाकिस्तान में शक्तिसंपन्न अभिजात वर्ग की मानसिकता को दर्शाता है। अफसोस की बात है कि पाकिस्तानी सेना और राजनीतिक-कट्टरपंथी संगठन कभी भी महिलाओं को अपने देश का नेतृत्व करना पसंद नहीं करेंगे। बेनजीर की हत्या संभवत: पाकिस्तान में मरियम शरीफ जैसी महत्वाकांक्षी महिलाओं को अपनी महत्वाकांक्षा को दफनाने का संदेश देने के लिए थी। मध्यकालीन मानसिकता अगर एक बार अभिजात वर्ग के शासकों के दिमाग में प्रवेश कर जाती है, तो समाज का पतन निश्चित हो जाता है। पाकिस्तान में उभरती हुई कट्टरपंथी विचारधारा और इसके संभावित परिणामों पर दुनिया को कड़ी नजर रखने की जरूरत है।

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लेखक
विवेक वर्मा सेंटर फॉर लैंड वारफेयर स्टडीज (सीएलएडब्ल्यूएस), नई दिल्ली के पूर्व उप निदेशक हैं और उन्होंने “Non-Contact Warfare: An Appraisal of China’s Military Capability” पुस्तक लिखी है।

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