शायद कई दशकों बाद इस वर्ष घाटी के सभी स्कूलों में स्वतंत्रता दिवस समारोह मनाया गया और ऐतिहासिक लाल चौक पर तिरंगा लहरा उठा। हर जिले में राष्ट्रीय ध्वज फहराया गया, वाहन रैलियां हुईं और प्रतिभागियों ने गर्व से भारतीय तिरंगा प्रदर्शित किया। श्रीनगर कोर के जीओसी ने बिना किसी सुरक्षा के शोपियां के बटपुरा चौक का दौरा किया और लोगों से मुलाकात की दीपावली की मिठाईयाँ बाँटी गयी। कश्मीर में मंदिरो की घंटियां सुनाई दे रही हैं और जो मंदिर दशकों से बंद थे, वे फिर से खुल रहे हैं।
पर्यटक स्थानीय गाइडों के साथ श्रीनगर शहर की यात्रा कर रहे हैं, बिना किसी तरह की चिंता के झेलम के पुलों को पार करते हुए इस शहर की आवाज़, स्वाद और खुशबू का आनंद ले रहे हैं। कुछ साल पहले तक यह संभव नहीं था। इस समय घाटी के अधिकांश पर्यटन स्थल खचाखच भरे हैं। डल झील और श्रीनगर का पर्यटन अपने पुराने आकर्षण में लौट आया है। कश्मीर भारत के नंबर एक पर्यटन स्थल के अपने स्थान पर लौट रहा है। यह बदलता कश्मीर है।
इसके साथ ही, घाटी के कुछ हिस्सों में सुरक्षा बलों और आतंकवादियों के बीच मुठभेड़ हुई है और भय एवं अनिश्चितता की भावना पैदा करने के लिए आतंकवादियों द्वारा बेगुनाहों की हत्या भी की जा रही है। घाटी से पलायन के दावे गलत साबित हो रहे हैं। आम कश्मीरी नागरिक इन हत्याओं का विरोध करके अपनी धार्मिक और अन्य क्षेत्रीय बाधाओं से ऊपर उठकर शांति की इच्छा प्रदर्शित कर रहे हैं।
पाकिस्तान के आतंकवाद के फरमान और उसे खत्म करने के लिए सक्रिय सुरक्षा बलों की कार्यवाही में कुछ स्थानीय लोग फंस गए। कई कश्मीरियों ने बताया कि उन्हें केवल बिना रुकावट के चौकियों की भारी जाँच के बिना कभी भी और कही भी जाने की आज़ादी चाहिए। अतः नफरत और रोष की वकालत करने वाले आतंकवादियों, राष्ट्र-विरोधी गुटों और राजनेताओं का समर्थन कम हो गया है।
चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत ने टाइम्स नाउ समिट में कहा, ‘वही स्थानीय लोग अब आतंकवादियों के बारे में जानकारी मुहैया करा रहे हैं। वास्तव में, हमारी जानकारी के अनुसार स्थानीय लोग अब कह रहे हैं कि हम आतंकवादियों को मार डालेंगे, यह एक बहुत ही सकारात्मक संकेत है, ‘वह एक बदलते कश्मीर का संकेत दे रहे हैं और यह गलत नहीं है। रावत ने कहा कि यह बदलाव आतंकवादियों के हथियारों के डर को कम करने के कारण हुआ है। हड़ताल के आह्वान को काफी हद तक नजरअंदाज किया जा रहा है। इन आँपरेशनों की सफलता स्थानीय खुफिया जानकारी के कारण ही संभव हुई है। आतंकवादियों को भगाने के लिए मुठभेड़ स्थलों पर पथराव करने की कोई खबर नहीं है। फिर भी, पाकिस्तान के विदेश मंत्री कुरैशी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि भारत कश्मीर में ‘दिल और दिमाग की जंग हार रहा है’।
कश्मीर में यह बदलाव तब और अधिक स्पष्ट हो गया, जब पाकिस्तान के स्वतंत्रता दिवस पर झंडा फहराये जाने, बंद करने और काला दिवस मनाये जाने का एक भी मामला सामने नहीं आया। छीटपुट संस्थाओं और इलाके में भारत-पाक क्रिकेट मैच के दौरान पाकिस्तान टीम के लिए जयकारा किसी भी तरह के धार्मिक रुख को व्यक्त नहीं कर रहा। देश के बाकी हिस्सों से भी ऐसी जानकारी सामने आई हैं। कश्मीर के राजनीतिक दलों ने केंद्र सरकार से पाकिस्तान के साथ बातचीत करने की मांग करना लगभग बंद कर दिया है। उन्होंने महसूस किया कि स्थानीय लोगों की मानसिकता में यह बदलाव टकराव की बजाय सहयोग की भावना की वजह से ही आया है।
कश्मीर जहां सामान्य स्थितियों की ओर बढ़ रहा है, वहीं पीओके के निवासी रोष और हताशा का प्रदर्शन कर रहे हैं। 26 अक्टूबर को कश्मीर में पाक की घुसपेठ को चिह्नित करते हुए भारत द्वारा ब्लैक डे मनाये जाने के दौरान इस पूरे क्षेत्र से विरोध प्रदर्शनों की खबरें सामने आयी। इन विरोध प्रदर्शनों की वजह वहाँ के स्थानीय लोगों के पास बुनियादी सुविधाओं की कमी है और पाक सेना उनकी जमीन पर कब्जा करना जारी रखे हुए है।
वैश्विक समुदाय की कश्मीर मुद्दे पर अब कोई रुचि नहीं है। समय के साथ भारत ने इस तथ्य को सफलतापूर्वक स्थापित कर दिया कि कश्मीर एक द्विपक्षीय मामला है और इसमें भारत कोई हस्तक्षेप नहीं चाहता। अब कोई भी देश धारा 370 का उल्लेख नहीं कर रहा और न ही कोई देश कश्मीर में लगाए गए प्रतिबंधों पर चर्चा कर रहा है। भारत की बढ़ती हुई आर्थिक और कूटनीतिक ताकत ने यह सुनिश्चित कर दिया है कि अब दुनिया कश्मीर को भारतीय नजरिए से देख रही है पाकिस्तान के हो हल्ला के नजरिये से नहीं। इसके साथ ही, भारत ने पाकिस्तान की छवि को आतंकवाद के समर्थक के रूप में बड़ी सावधानी से तैयार किया है, एक ऐसा देश जिसने ओसामा बिन लादेन को 10 वर्षों तक राजकीय अतिथि के रूप में रखा और अफगानिस्तान की वर्तमान स्थिति के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार है।
पाक सेना की एलओसी पर कुछ प्रायोजित यात्राओं या ओआईसी अथवा तुर्की की टिप्पणियों को अब नजरअंदाज कर दिया जाता है। पाकिस्तान के समर्थक रहे सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात अब कश्मीर का मुद्दा नहीं उठा रहे। पाकिस्तान की मांग के बावजूद, सऊदी अरब ने कश्मीर पर विशेष ओआईसी सत्र आयोजित नहीं किया है। बल्कि इसके विपरीत, उन्होंने पाकिस्तान को सलाह दी कि यदि उन्हें आर्थिक सहायता चाहिए तो वह भारत के प्रति अपनी नीति को बदलें। भारत ने संयुक्त राष्ट्र में पाक की टिप्पणियों का प्रतिवाद केवल इस तथ्य पर जोर देने के लिए किया कि वर्तमान गड़बड़ियों के लिए पाकिस्तान जिम्मेदार हैl यह मुद्दा द्विपक्षीय है जो संयुक्त राष्ट्र के अद्यादेश से परे है।
पाक में ऐसा कोई राजनेता नहीं है, जिसे भारत इन लंबित मुद्दों को हल करने की वार्ता में शामिल करना चाहेगा। भारत के नेतृत्व और इसकी राजनीतिक पृष्ठभूमि के लिए इमरान और कुरैशी की घटिया, तर्कहीन और अपमानजनक टिप्पणियों के परिणामस्वरूप भारत द्वारा पाक की उपेक्षा की गई है। इमरान इस बात से आहत हैं कि बातचीत के लिए कई बार निमंत्रण देने के बावजूद भारतीय नेतृत्व ने जवाब देने की जहमत तक नहीं उठाई। युद्धविराम की शुरुआत करने वाले जनरल बाजवा के पास वार्ता के नेतृत्व की कोई आधिकारिक स्थिति नहीं है। अतः अगले पाक चुनाव या सरकार में बदलाव होने तक यह गतिरोध जारी रहने की संभावना है। बदलाव की संभावना पाकिस्तान में हमेशा ही बनी रहती है। अफवाहें हैं कि नवाज शरीफ की पार्टी अगली सरकार बना सकती है और बातचीत के रास्ते खोल सकती है।
तब तक, पाकिस्तान के पास कश्मीर के मुद्दे को वैश्विक बनाये रखने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। वह जानता है कि सेना से कोई समाधान संभव नहीं है। इसलिए, यह कश्मीर में आतंकवादियों को धकेलने का प्रयास करता रहेगा और समर्थन की कमी से वाकिफ होने के बावजूद भी ओआईसी समेत अन्य सभी मंचों पर कश्मीर का मुद्दा उठाता रहेगाl ऐसा वह वैश्विक समुदाय नहीं बल्कि अपनी जनता के लिए करेगा।
भारत को, पाकिस्तान को वित्तीय जांच के दायरे में रखते हुए इसे वैश्विक निकायों के सामने आतंकवाद और आतंकवादियों के पर्याय के रूप में चित्रित करने की अपनी वर्तमान गतिविधियों को बनाए रखने की आवश्यकता है। साथ ही, इसे इस्लामाबाद में एक परिपक्व सरकार के आने का धैर्यपूर्वक इंतजार करते हुए पाक सेना के साथ संचार चैनल खुले रखने होंगे।
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पुनीत सहाय