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कश्मीर: नकारात्मक बदलाव लौट आया

लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन (सेवानिवृत्त)
रवि, 28 नवम्बर 2021   |   6 मिनट में पढ़ें

उग्रवाद या आतंकी अभियानों को बेअसर करने के लिए किए जाने वाले काउंटर ऑपरेशनों की कुछ अलग ही विशेषताएँ होती है। विशेष रूप से भारतीय संदर्भ में यह अधिक है। मेरे काउंटर इंसर्जेंसी एंड काउंटर टेररिज्म (सीआई/सीटी) के अनुभव से यह विश्वास उत्पन्न हो गया है कि सुरक्षा बलों (एसएफ) की गलती करने की प्रवृत्ति, उन्हें सौपी गई जिम्मेदारी के क्षेत्र में मौजूद आतंकवादियों की क्षमता के अनुपात में होती है।

जब क्षमता अधिक होती है, तो संचालन की जिम्मेदारी अनिवार्य रूप से बहुत नीचे क्रम से दी जाती है। प्रतिक्रिया के लिए गतिशीलता अति आवश्यक है;  उस स्थिति में किसी आदेश का इंतजार नहीं किया जा सकता। ऑपरेशन के दौरान किसी भी तरह की अन्य गलती को नजरअंदाज किया जा सकता है। जब कई ऑपरेशन चल रहे हों, तो वास्तव में मिस्ड एनकाउंटर या भागे हुए आतंकवादियों पर कोई भी सवाल नहीं उठाया जाता है।

हालांकि, जैसे-जैसे आतंकवादियों की ताकत कम होती जाती है, सुरक्षाबलों के प्रयास बढ़ जाते है और नेतृत्व स्वयं द्वारा निर्मित भ्रम की स्थिति में आ जाता है  और परिणाम प्राप्त करने का जुनून और अधिक बलवान हो जाता है। यह ‘लास्ट माइल’ सिंड्रोम है जहां यह धारणा बन जाती है कि आतंकी गढ़ को तोड़ने और स्थायी स्थिरता बनाने के लिए एक आखिरी प्रयास की जरूरत है। बाद की  स्थिति हालांकि भ्रमित करने वाली बनी रहती है परंत जब कोई विरोधी छद्म युद्ध  प्रायोजित कर रहा हो और घुसपैठ की संभावना बनी हुई हो,  फिर भले ही सतर्कता  अपने चरम पर हो तो यह भ्रमित करने वाली स्थिति लंबे समय तक नहीं रहती l  इससे स्थानीय लोगों को आतंकवादी रैंकों में भर्ती करने की प्रेरणा मिलती है। दूसरे शब्दों में, ‘आतंकवाद के गणित’  के अध्ययन से यह सबक मिलता है  कि कुछ वर्षों के अंतराल में समय-समय पर होने वाले प्रत्येक सत्र की समीक्षा करते हुए, इन  ऑपरेशंस के दौरान आतंकवादी ताकत से निपटने की स्थितियों की जानकारी नहीं होती। कार्रवाई या प्रतिक्रिया में बदलाव (सर्पिल) प्राय मौजूद रहता है।

हाल ही में हुई हैदरपोरा मुठभेड़ और उससे पहले पिछले 30 वर्षों में हुई ऐसी कई घटनाएँ इसके उद्धाहरण हैं। वर्तमान में इसकी मजिस्ट्रेट जांच चल रही है, इसलिए किसी भी पक्ष, एसएफ या प्रभावित परिवारों के दावों की वैधता पर टिप्पणी करना  उचित नहीं होगा। हमारे लिए अधिक महत्वपूर्ण है कि इस मुठभेड़ को ऊपर वर्णन किये गए बिंदुओं के संदर्भ में ही देखें।

लेकिन उससे पहले हैदरपोरा मुठभेड़ के बारे में एक संक्षिप्त विवरण देना जरूरी है।  अभी हाल ही में कुछ समय से कश्मीर में अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है और इसके माध्यम से यह पीर पंजाल के दक्षिण के क्षेत्रों से ध्यान हटाने का पाकिस्तानी प्रयास था। यह निश्चित था कि एसएफ अधिक ठोस परिणामों और फिर से उभरती आतंकवादी क्षमता को बेअसर करने के लिए दबाव में आएगा। पाकिस्तान अलगाववाद के प्रति आकर्षण को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर  रहा था और हमें इसे तत्काल खत्म करना था।

निश्चित रूप से इससे आतंकवादियों के शवों की संख्या बढ़ेगी और ओवर ग्राउंड वर्कर्स (OGWs) की अधिक गिरफ्तारियां होगी।  बाद वाली स्थिति छद्म युद्ध परिदृश्य का एक अनिवार्य हिस्सा हैं। ये क्रियाएं अपरिहार्य और वैध हैं लेकिन एक ऐसा तरीका होना चाहिए जो हमें सभी विरोधियों के समान नुकसान का लाभ प्रदान करे। एसएफ ऑपरेशन हमेशा से मजबूत रहे हैं और हाल के वर्षों में घेराबंदी और खोज करने  के बजाय खुफिया जानकारी के आधार पर अधिक निर्भर हैं। हालांकि,  ऐसा लगता है कि हैदरपौरा मे चीजें गड़बड़ा गईं थी।

यह लक्ष्य पंथा चौक से हवाईअड्डा क्रॉसिंग पर सड़क मार्ग से पहुंचने से पहले श्रीनगर बाईपास के दक्षिण में एक हाई प्रोफाइल क्षेत्र है। यहां हुर्रियत नेता सैयद अली शाह गिलानी का काफी नाम है। पिछले हफ्ते एक बहुमंजिला इमारत में  सुरक्षा बलों के संयुक्त अभियान में चार लोग मारे गए थे। ये मुदासिर गुल, एक युवा दंत चिकित्सक, आरिफ मोहम्मद, एक कथित हाइब्रिड आतंकवादी, अल्ताफ भट, बहुमंजिला इमारत का मालिक और हैदर, एक पाकिस्तानी आतंकवादी था।

हालांकि घटनाओं के क्रम का कोई महत्व नहीं है, लेकिन अगर आधिकारिक हलकों   को इसका श्रेय दिया जाता है तो ऐसा लगता है ओजीडब्ल्यू और आतंकवादियों द्वारा कुछ राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों को अंजाम दिया जा रहा था जिसकी संख्या अनिर्धारित थी। एक ऑपरेशन किया गया और परिणाम उपरोक्त के अनुसार ही थे। निर्धारित मानदंडों के आधार पर पिछले तीन वर्षो या उससे भी अधिक समय से, मारे गए लोगों के शव उनके परिजनों को नहीं सौंपे गए थे। उन्हें उत्तरी कश्मीर में अंजान स्थानों पर कब्रों में दफनाया गया ताकि इससे युवा पीढ़ी को तथाकथित शहादत की कोई प्रेरणा न मिले।

बहुत जल्द ही उनके परिवारों और अन्य लोगों ने इसे गलत तरीके से की गयी हत्याओं और बुनियादी मानवाधिकारों के उल्लंघन के रूप में बताते हुए इस का जोरदार विरोध किया। यह सब टेलीविजन चैनलों के माध्यम से प्रसारित हुआ। जो लोग कश्मीर से भली भाँति परिचित हैं, वे इस बात की पुष्टि करेंगे कि यह विरोध प्रदर्शन तब होते हैं, जब गलत या गलत तरीके से हुई इन हत्याओं के आरोपों को मूर्खतापूर्ण माना जाता है। आदेश मिलने पर पुलिस ने कथित ओजीडब्ल्यू के दो शवों को निकाला और दफनाने के लिए उनके परिवारों को सौंप दिया।

उपरोक्त सभी बातों में कुछ भी गलत नहीं है। जब तक कि मजिस्ट्रेट जांच में कुछ गैरकानूनी साबित न हो जाए। सीई/सीटी क्षेत्रों का संचालन ग्रे जोन में होता है और सर्वोत्तम खुफिया जानकारी गलत साबित हो सकती है। इस विरोधाभास की स्थिति को कोई कैसे संभालता है। ‘हाइब्रिड’ आतंकवादियों की एक नई नस्ल की मदद से अल्पसंख्यकों के खिलाफ हमलों को अंजाम देकर फायदा चाहने वाले विरोधी,  ‘फिरनों’ में बंदूक तानने वाले पुराने लोग नहीं हैं,  परंतु पिस्तौल और हथगोले के साथ जीन पहने युवाओं को एसएफ के ‘ उतावले संचालन’ में और अधिक गलतियाँ करने के लिए भड़काया जाता है। उस समय भली भाँति तैयार की गयी संचार रणनीति के माध्यम से अलगाववाद की गलतियों को लाभ में परिवर्तित किया जा सकता है। यह ‘सर्पिल’ है।

इसकी शुरुआत आतंकवादी ताकत में कमी, ओजीडब्ल्यू और अलगाववादी गतिविधि पर नियंत्रण, सड़क पर विरोध प्रदर्शनों पर रोक लगाने और लोगों तक सकारात्मक पहुंच के अथक अभियानों के माध्यम से होती है जो स्थानीय भर्ती की ताकत को कम करती है। तब विरोधी जनता को प्रेरित करने के लिए प्रायोजित आतंकी कृत्यों की योजना बनायेगा और उनका संचालन करेगा। एसएफ किसी भी बदलाव के बिना ऊर्जावान संचालन करता है; लाक्षणिक रूप से वे समय की आवश्यकता के अनुसार इनका संचालन करने के बजाय इसे युद्ध की दिशा में खींच लेते हैं। गलतियाँ होती हैं; सावधानीपूर्वक तैयार की गई रणनीति को बीच में लटकाने के लिए एक या दो गलतियां ही पर्याप्त हैं। यह आपके लिए ‘सर्पिल’ है और यह  आउटरीच और नागरिक कार्रवाई के सभी लाभों को कुछ वर्षो में समाप्त कर देता है।

‘सर्पिल सिंड्रोम’ पर काबू पाने के तरीके हैं। पहला और सबसे महत्वपूर्ण यह स्वीकार करना है कि परिवर्तन आवश्यक है। ऑपरेशन पुराने तरीकों से नहीं चलाया जा सकता। दूसरा ‘कमांड एंड कंट्रोल’ के तरीकों में बदलाव करना है। आतंकवादी ताकत अधिक होने पर तेजी से आगे बढ़ने वाले सीआई/सीटी ऑपरेशन में प्रबंधन का  सूक्ष्म सिद्धांत लागू नहीं हो सकता,  यह समय की आवश्यकता है। गलतियों की गुंजाइश को कम करना होगा और इसके लिए संचालन को निष्पादन के लिए मंजूरी देने के स्तर को ऊपर उठाना होगा। वह दौर चला गया जब हम हमेशा सीआई/सीटी संचालन को युवा अधिकारी के डोमेन के रूप में मानते थे। पीछे से ऊर्जा की अभी भी उतनी ही जरूरत है, जितनी युवा नेतृत्व कौशल की।

हालाँकि, खुफिया जानकारी हासिल करने में जल्दबाजी करने का निर्णय थोड़ा कम होता है क्योंकि अनुमोदन प्राधिकारी अपेक्षाकृत उच्च कमांडर हो जाता है। सेना के मामले में मैं डिवीजन कमांडर के स्तर के अधिकारी की सिफारिश करूंगा। मैं उन विरोधियों को महसूस कर सकता हूं जो अनुशंसित सीआई/सीटी संचालन में   अनावश्यक प्रतिबंध के रूप में इसकी निंदा करेंगे। हालांकि, आतंकवादी हत्याओं में निश्चित सफलता मिलने की कम संभावनाओं के मुकाबले गलतियों की अपेक्षाकृत कम संभावना का लाभ स्पष्ट रूप से सामने आता है। आतंकवादी ताकत के 200 के आसपास होने के साथ, हम आतंकवाद में शामिल होने के इच्छुक युवाओं का   समूह बनाने के लिए इस अलगाव को बर्दाश्त नहीं कर सकते।

अंत में, सीआई/सीटी ऑपरेशन स्वभाव से प्रमुख होते हैं और अच्छे सैनिकों के लिए प्राकृतिक आक्रमण को रोकना मुश्किल होता है। इस पहल को रोकने के लिए एक सचेत प्रयास नहीं बल्कि बुद्धिमत्ता से प्रतिक्रिया देने की ललक वातावरण को  शांत करेगी। मारे गए आतंकवादी उनकी ताकत में कमी कर सकते हैं लेकिन इसके पुनरुत्थान की संभावना बहुत कम होगी।

कमांडरों को सीआई/सीटी संचालन के प्रत्येक चरण की विभिन्न गतिशीलताओं को क्रम बद्ध तरीके से समझाने की जरूरत है। एसएफ में एकता के महत्व और समय के प्रति पर्याप्त संवेदनशीलता के साथ-साथ संचालन की अवधारणा का समर्थन ही संतुलन बनाए रखता है और इससे अतीत की नकारात्मक घटनाओं की पुनरावृत्ति  नहीं होगी जो अक्सर कश्मीरी नागरिकों को प्रभावित करती हैं।

अंतिम लक्ष्य पर, टूटे हुए अहंकार को अलग रखना होगा और उच्च अधिकारियों का उद्देश्य केंद्रीय स्तर पर होना चाहिए। 5 अगस्त 2019 की सफलता को मजबूत बनाने के लिए हमें संचालन की उस धारणा के प्रति प्रतिबद्ध रहने की जरूरत है जो संख्या की कमी पर नही बल्कि आदेश और स्थायित्व को प्राथमिकता दे।

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लेखक
लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन (सेवानिवृत्त), पीवीएसएम, यूवाईएसएम, एवीएसएम, एसएम, वीएसएम, भारतीय सेना के श्रीनगर कोर के पूर्व कमांडर रहे हैं। वह रेडिकल इस्लाम के इर्द-गिर्द घूमने वाले मुद्दों पर विशेष जोर देने के साथ एशिया और मध्य पूर्व में अंतर-राष्ट्रीय और आंतरिक संघर्षों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। वह कश्मीर केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं और रणनीतिक मामलों और नेतृत्व के इर्द-गिर्द घूमने वाले विविध विषयों पर भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों में बड़े पैमाने पर बोलते हैं।

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