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क्‍या भारत-अमेरिका संबंधों की प्‍लेन आपात लैडिंग कर रही है?

लेविना
गुरु, 23 दिसम्बर 2021   |   6 मिनट में पढ़ें

दो दिग्गज अमेरिका और रूस, यूक्रेन में फिर से आमने-सामने हैं, और भारत सावधानीपूर्वक अपने दोनों सहयोगियों के साथ दोस्ती की राह पर चल रहा है। संभवतः, 2016 के बाद से भारत को संयुक्त राज्य अमेरिका का “प्रमुख रक्षा भागीदार” और बाद में 2018 में सामरिक व्यापार प्राधिकरण की ओर से भारत को टियर 1 का दर्जा मिला, जिसने इसे अमेरिका से लाइसेंस मुक्त सैन्य प्रौद्योगिकियों तक पहुंचने में सुविधा प्रदान की। भारत-अमरीका संबंध हमेशा से सी-सॉ की तरह उतार-चढ़ाव भरा रहा है-कभी ऊपर आता है तो कभी फिर नीचे चला जाता है।

दिसंबर के पहले सप्ताह में रूसी राष्ट्रपति पुतिन की भारत यात्रा के बाद, भारत-अमेरिका संबंधों में गिरावट की दिशा में एक हलचल सी पैदा हुई थी। तो आइए हम हालिया घटनाओं के माध्यम से यह समझें कि दोनों सहयोगी किस दिशा में अग्रसर हैं।

आशावादी दृष्टिकोण – बाहों में भाई!

  • एसओएसयूएस—द फिशहुक!

2015 में 10 सदस्यीय आसियान देशों की बैठक के बाद, भारत के तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने फैसला किया कि यह उचित समय है जब भारत हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) और दक्षिण चीन सागर में एक बड़ी भूमिका निभाए। जल्द ही क्वाड हुआ! भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान को इसमें शामिल करने के लिए अमेरिका बहुत उत्सुक था।

क्वाड के साथ, भारत भी एसओएसयूएस दीवार का हिस्सा बन गया। एसओएसयूएस का अर्थ है ध्वनि निगरानी सेंसर श्रृंखला, जो जापान के करीब से निकलती है और अब अंडमान-निकोबार द्वीप समूह को छू चुकी है। यह भारत को अंडमान सागर और गहरे दक्षिण चीन सागर में घूमने वाली चीनी पनडुब्बियों के खिलाफ एक काउंटर-वॉल बनाने का लाभ देता है। इससे भारत को चीनी घुसपैठ के खिलाफ अपनी भूमि सीमाओं और तटीय क्षेत्रों को मजबूत करने में मदद मिलेगी।

  • हथियारों का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता: अमेरिका ने भारत को 22 अरब डॉलर मूल्य के परिवहन विमान, हेलीकॉप्टर, मिसाइल और असंख्य अन्य रक्षा उपकरण बेचे हैं और 10 अरब डॉलर के सौदों पर अभी भी बातचीत चल रही है। पी81 पोसीडॉन, एमक्यू-9 प्रीडेटर-बी ड्रोन, सी-130J, आपाची, चिनूक, आदि कुछ अमेरिका की संस्थाएं हैं जो अक्सर भारत में सुर्खियां बटोरती हैं। यह भी एक मुख्य कारण है कि अमेरिका या भारत संबंधों में खटास उत्पन्न होते देखना पसंद नहीं करेंगे।
  • साइबर सहयोग: भारत साइबर आक्रामक और रक्षात्मक अभ्यास (साइबर ऑफेंसिव एंड डिफेंसिव एक्सरसाइज, सीओडीई)में शामिल होने का इच्छुक है और अमेरिका इस विचार का समर्थन करता है। कुछ समय पहले, जनरल बिपिन रावत, जो एक दूरदर्शी व्यक्ति थे, ने वर्जीनिया में यूएस साइबर कमांड का दौरा किया था, और ऐसा करने वाले वे भारत के पहले वरिष्ठ अधिकारी थे। भारत की रक्षा साइबर एजेंसी डीसीए भी अमेरिका के साथ साइबर सहयोग से अपनी प्रभावशीलता बढ़ाने में सक्षम होगी। सीओडीई द्विवार्षिक साइबर अभ्यास आयोजित करता है। 2019 में आयोजित इस तरह के पिछले अभ्यास में, 10 देशों ने भाग लिया था, और इसकी मेजबानी ताइवान ने की थी।
  • यूएसएसओसीओएमका अनुकरण : अमेरिकी स्पेशल ऑपरेशंस कमांड के पास अमेरिकी सशस्त्र बलों, सेना, मरीन कॉर्प्स, नेवी, एयरफोर्स के विभिन्न विशेष ऑपरेशन कमांड की देखरेख की जिम्मेदारी है। यूएसएसओसीओएम आतंकवादी नेटवर्क के खिलाफ वैश्विक अभियानों को अंजाम देने के साथ-साथ अपरंपरागत युद्ध में भी मददगार है। यूएसएसओसीओएम फ्लोरिडा में भारत कर्नल या लेफ्टिनेंट कर्नल रैंक के एक संपर्क अधिकारी को भेजेगा। भारत विभिन्न विशेष ऑपरेशन घटकों के समन्वय का अनुकरण करना चाहता है, यद्यपि उसे आतंकवादियों से निपटने के लिए अमेरिका की यात्रा नहीं करनी पड़ेगी, क्योंकि भारत के तो सीमा के पार ही आतंकवादियों के कारखाने हैं।
  • एसएसए- भारत और अमेरिका जल्द ही अंतरिक्ष स्थित जागरूकता (स्पेस सिचुएशनल अवेयरनेस, एसएसए) समझौते पर हस्ताक्षर करेंगे, जिससे भारत को अंतरिक्ष मलबे के बारे में जानकारी हासिल करने में मदद मिलेगी और वह अपने उपग्रहों को टक्कर से बचा सकेगा। यह इसरो और भारत के रक्षा उपग्रहों के कार्यों को बढ़ावा देगा।

Spaceacademy.net . के माध्यम से

उपरोक्त कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें भारत-अमेरिका सहयोग करने के लिए तत्पर हैं। हम अन्य अवसरों को नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं जब भारत-अमेरिका अतीत में बेहतरीन एक अच्छा प्रदर्शन करने के लिए साथ आए थे।

निराशावादी दृष्टिकोण – अमेरिका किसी का मित्र नहीं है

  • डॉलर को कमतर करना: एक बात जो वास्तव में अमेरिका को परेशान करती है, वह यह है कि जब कोई डॉलर को नजरअंदाज करता है, क्योंकि इससे उनकी मुद्रा पर असर पड़ता है। इस वर्ष वार्षिक शिखर सम्मेलन के बाद, जब रूसी राष्ट्रपति पुतिन भारत में थे, दोनों देशों ने घोषणा की कि वे द्विपक्षीय हथियारों के सौदों के लिए राष्ट्रीय मुद्राओं, रुपये और रूबल का उपयोग करेंगे। रूस कुछ समय से हरे रंग के बिलों को खत्म करने का सुझाव दे रहा था, क्योंकि2014 में क्रीमिया के कब्जे के बाद वह अमेरिका और उसके सहयोगियों के प्रतिबंधों को झेल चुका है। राष्ट्रीय मुद्राओं पर बातचीत 2018 की शुरुआत में शुरू हुई थी लेकिन अचानक उसे लागू करना दोनों देशों के लिए महंगा साबित होता। यह निर्णय तब हुआ जब भारत को 2021 में अपना S-400 मिल गया है।
  • एस-400 सौदा: यह लंबे समय से भारत और अमेरिका के बीच विवाद का विषय रहा है। अमेरिका ने भारत पर प्रतिबंधों (सीएएटीएसए, काउंटरिंग अमेरिकाज एडवर्सरीज थ्रू सैंक्शन्स एक्ट) की तलवार लटकाने का फैसला किया है। हालांकि कई लोग मानते हैं, यह उतना नहीं कर सकता, जितना कि उम्मीद की जा सकती है- जैसा कि नाटो सदस्य तुर्की ने रूस से एस-400 बैटरी खरीदने के बाद खुद को नुकसान पहुंचाए बिना इस तूफान से निकलने में कामयाबी हासिल की थी। इसेF-35 कार्यक्रम से हटा दिया गया था लेकिन तुर्की को बहुत कड़ी कार्रवाई का सामना नहीं करना पड़ा।
  • अमेरिका मानवाधिकारों के मुद्दे को “सक्रिय रूप से उठाएगा”: अमेरिका द्वारा भारते के लिए नामित राजदूत एरिक गार्सेटी के एक बयान ने कुछ दिनों पहले सभी का ध्यान खींचा था। यह उस गोलमेज चर्चा की याद दिलाता है जो एंटनी ब्लिंकन द्वारा7 नागरिक समाजों के प्रतिनिधियों के साथ 370 (कश्मीर), किसानों के विरोध, सीएए (नागरिकता संशोधन अधिनियम), मीडिया पर प्रतिबंध और पेगासस निगरानी पर चर्चा के अन्य विषयों पर आयोजित की गई थी। यह बैठक उस समय हुई जब एंटनी ब्लिंकन इस वर्ष जुलाई में भारत में थे। ब्लिंकन की इस बैठक ने भारत के विदेश मंत्री डॉ एस जयशंकर ने चर्चित बयान दिया था कि “ऐतिहासिक रूप से किए गए सही-गलत निर्णय के लिए सभी का नैतिक दायित्व बनता है”।
  • यूएनएससी जलवायु परिवर्तन वोट: हाल ही में भारत और रूस ने एक प्रस्ताव के खिलाफ नकारात्मक मतदान किया, जिसने यूएनएससी (संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद) को जलवायु संबंधी मुद्दों पर विचार-विमर्श करने की अनुमति दी होगी। अमेरिकी चिंता में ईजाफा करते हुए भारत उन “कुछ” के बारे में मुखर था जो अपने कार्यों के लिए जवाबदेह ठहराया जाना नहीं चाहते। यह अमेरिका में कई लोगों को अच्छा नहीं लगा।

भारत का यूएनएससी में उत्तर का लिंक

  • अफगानिस्तान भूलः अमेरिका ने2018 के बाद से तालिबान के साथ दोहा में अलग-अलग मौकों पर बंद कमरे में हुई बातचीत से सभी को दूर रखा। अफगानिस्तान में अपने भारी निवेश के कारण भारत ऐसा करने के लिए अमेरिका से नाराज था। कई मौकों पर जनरल बिपिन रावत ने कहा कि भारत ने अफगानिस्तान में तालिबान के उदय की आशंका जताई थी, और इसके बारे में अमेरिका को चेतावनी दी थी, हालांकि भारत की सलाह को नहीं माना गया। अमेरिका की गलती सभी के सामने आ गयी, जब अमेरिकी सेना के अफगानिस्तान छोड़ने के कुछ ही हफ्तों के भीतर एक लोकतंत्र, अफगानिस्तान को आतंकवादियों को सौंप दिया। अफगानिस्तान में भारत का तीन अरब डॉलर का निवेश अब खतरे में है।

यह एक और उदाहरण था जब निःसंदेह यह साबित हो गया कि अमेरिका किसी का मित्र नहीं है।

  • एनजीओ फंडिंग: यह एक सर्वविदित तथ्य है कि अमेरिका दुनिया के विभिन्न हिस्सों में एनजीओ के माध्यम से अपने पासा खेलना पसंद करता है। भारत ने हाल ही में हजारों एनजीओ के लाइसेंस रद्द कर दिए हैं, फिर भी इस साल की शुरुआत में राज्यसभा में यह पता चला कि भारत में एनजीओ के लिए फंडिंग में अमेरिका अभी भी सबसे ऊपर है, और2016 और 2020 के बीच अमेरिका ने लगभग 19000 करोड़ रुपये का योगदान विभिन्न एनजीओ को दिया था।

बहुत पहले राष्ट्रपति जो बाइडेन की अच्छी दोस्त, हिलेरी क्लिंटन ने एनजीओ की आड़ में कई विशेषज्ञ टीमों को मोदी के खिलाफ गुजरात में गड़े मुर्दे उखाड़ने के लिए भेजा था। लेकिन तब ओबामा ने घावों को कुरेदने नहीं दिया और तत्परता से सुधारात्मक उपाय किया।

विदेश नीति–ग्रे जोन

अमेरिका और भारत के संबंध समय-समय पर इस तरह के उतार-चढ़ाव का सामना करते हैं, जो दोनों देशों के संबंधों के बंधन को थोड़ा कठिन बना देता है। लेकिन यह दुनिया के लगभग हर दूसरे देश के लिए सच है। एक तरफ रूस और चीन के बीच क्षेत्रीय विवाद हैं तो दूसरी तरफ अमेरिका के खिलाफ वे एक दूसरे का समर्थन करते हैं।

तुर्की ने एक बार रूसी लड़ाकू जेट को मार गिराया, फिर भी रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन को तख्तापलट और उनकी जान पर संकट के बारे में सचेत किया। यूएई और कतर अतीत में आतंकवाद के लिए एक-दूसरे को इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (आईसीजे) में घसीटते रहे हैं, फिर भी आज दोनों देश अतीत को भूल कर आगे बढ़ने के लिए तैयार हैं। यदि देश हित में काम करता है तो प्रत्येक देश को अपने सहयोगियों की छोटी-छोटी गलतियों से मुंह मोड़ने के लिए तैयार रहना पड़ता है।

उल्लेखनीय है कि एक देश के रूप में भारत एक जीवंत अर्थव्यवस्था और एक मुखर राष्ट्र बन गया है, जो अपनी क्षमता को दिखाने के लिए तैयार है। दुनिया का कोई भी देश आज उस विशाल अर्थव्यवस्था को ठुकराने का जोखिम नहीं उठा सकता, जैसा कि भारत उभर रहा है। इसलिए, भारत अपने कार्यों के पक्ष में साहसिक बयान देने के लिए तैयार है और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपने अलग-अलग विचारों को व्यक्त करने में संकोच नहीं करता।

यहां एयर चीफ मार्शल विवेक राम चौधरी का हालिया भाषण उल्लेखनीय है। उनके शब्द हमें भविष्य के बारे में चेतावनी देते हैं, जहां दिग्गज देश हमारे खिलाफ खड़े हो सकते हैं। हमें ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए खुद को उन्नत दृष्टिकोण के लिए तैयार करना चाहिए।

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लेखक
लेखक सामरिक मामलों और रक्षा के एक प्रसिद्ध विश्लेषक हैं। उन्हें कई विषयों पर सामग्री निर्माण में विशेषज्ञता हासिल है। उन्हें ट्विटर पर @LevinaNeythiri पर फॉलो किया जा सकता है।

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