स्वदेशी विमान वाहक: भारतीय नौसेना का वास्तविक वरुण
ब्रिगेडिएर अरविंद धनंजयन (सेवानिवृत्त)
हाल ही में विश्लेषकों और नौसेना के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा विमान वाहक (एयरक्राफ्ट कैरियर) के पक्ष में और खिलाफ कुछ लेख लिखे गए हैं जो वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में इसके निर्माण और रखरखाव पर होनेवाली लागत और उपयोगिता के संदर्भ में हैं। इस लेख का उद्देश्य यह बताना है कि भारत के विमानवाहक और स्वदेशी विमान वाहक कार्यक्रम (आईएसीपी) की पृष्ठभूमि में देश में विमान वाहक आधारित नौसेना बेड़े की आवश्यकताएं क्या हैं। क्या हमारा स्वदेशी विमान वाहक (आईएसी) भारत की क्षेत्रीय समुद्री सुरक्षा आवश्यकताओं को पूरा करता है।
भारत को विमान वाहक आधारित बेड़े (ACBF) की आवश्यकता क्यों है?
एसीबीएफ की आवश्यकता (या अनावश्यकता) को कम करने के लिए, भारत की समुद्री सुरक्षा गणना को संक्षेप में निरीक्षण करना या समझना आवश्यक है। भौगोलिक स्थिति के अनुसार, भारत कम से कम 10 मध्य पूर्वी, दक्षिण एशियाई और दक्षिण पूर्व एशियाई समुद्र तटों के साथ जल साझा करता है और इसका एक विशिष्ट विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) है। होर्मुज के जलडमरूमध्य से लेकर मलक्का जलडमरूमध्य तक भारत के समीपस्थ समुद्र तक कई तरीके से पहुंचना संभव है। फलस्वरूप भारत के समुद्री क्षेत्र तक देश या विदेशी ताकतें शत्रुतापूर्ण कार्यों को अंजाम दे सकती हैं। भारत को इस तरह के शत्रुतापूर्ण कृत्यों को रोकने या विफल करने के लिए, अपनी समुद्री शक्ति को सक्षम बनाने और नौसेना प्रोफ़ाइल को मजबूत बनाना जरूरी है। भारत हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) के शिखर पर स्थित है और कई ऐसे द्वीप क्षेत्रों के निकट है जिनका उपयोग अन्य राष्ट्रों द्वारा उन्नत रणनीतिक ठिकानों के रूप में किया जा सकता है। इसके साथ ही अफ्रीका, मध्य-पूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया से निकलने वाली सी लाइन्स ऑफ कम्युनिकेशन (एसएलओसी) को भी यह जोड़ता है, जो भारत की ऊर्जा और व्यापार आवश्यकताओं के लिए महत्वपूर्ण हैं। इसे किसी भी कार्रवाई से बचाना भारत की आवश्यकता है।
भारत की नौसेना की रूपरेखा तैयार करने के पीछे एक अन्य महत्वपूर्ण कारक है, भारत-प्रशांत क्षेत्र में समुद्री शक्ति के रूप में भारत की भूमिका। आईओआर/दक्षिणपूर्व एशिया और ओशिनिया के तटों से घिरे समुद्र में एक सुरक्षा प्रदाता के रूप में भारत की गणना होती है। क्षेत्रीय समुद्री शक्तियों को ध्यान में रखते हुए, हमारे पश्चिमी पड़ोसी, जो भले ही संख्यात्मक रूप से कमजोर नौसेना वाले हैं, फिर भी भारतीय मुख्य भूमि से निकटता के कारण गंभीर समुद्री खतरा पैदा कर सकते हैं। भारत की समुद्री सीमाओं और एसएलओसी को उससे भी अधिक खतरा चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी (पीएलएएन) से है जिनके पास भारत को चुनौती देने के लिए गुणात्मक और मात्रात्मक दोनों ही दृष्टि से अधिक संसाधन है।
हमारा बढ़ता क्षेत्रीय कद क्षेत्रीय स्थिरता को नुकसान पहुंचाने के किसी भी प्रयास को हतोत्साहित करने के लिए बहु-आयामी होगा और एक ‘सुरक्षा संतुलन’ के रूप में कार्य करने की भारतीय क्षमता को बढ़ाएगा। अंडमान और निकोबार और लक्षद्वीप द्वीप समूहों को ‘आउट-एट सी’ संचालन के लिए अकल्पनीय नौसेना वाहक के रूप में विकसित करने के पीछे भी तर्क हैं, इस क्षेत्र में भारत की समुद्री भूमिका के लिए नौसेना और वायु शक्ति की मजबूती की आवश्यकता होगी क्योंकि इस युद्धक्षेत्र में कहीं से भी खतरा हो सकता है। क्षेत्रीय युद्धक्षेत्र में उपरोक्त कारक समुद्र में हमारी क्षमता को बढ़ाने के लिए कई एसीबीएफ की निर्विवाद आवश्यकता को रेखांकित करते हैं!
भारत की एसी प्रोफाइल
स्वतंत्रता के बाद के दशकों में बहुआयामी क्षमताओं वाली नौसेना की आवश्यकता महसूस की गई। इसके साथ ही भारत ने मार्च 1961 में आईएनएस विक्रांत (पहले यूके का एचएमएस हरक्यूलिस) को भारतीय नौसेना (आईएन) में शामिल कर एयरक्राफ्ट कैरियर की दिशा में अपना प्रयास शुरू किया। यह एयरक्राफ्ट कैरियर 210 मीटर लंबा, 16,000 टन लाइट एसी ( जो पूर्ण फ्लीट कैरियर और छोटे एस्कॉर्ट कैरियर के बीच का था) जिसे 1957 में भारत ने अपूर्ण अवस्था में खरीदा था। इसमें में स्की-जंप था और 23 फिक्स्ड / रोटरी विंग एयरक्राफ्ट तक ले जाया जा सकता था। एयरक्राफ्ट कैरियर को 1971 में पूर्वी बेड़े में लाया गया जिसने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान की नौसेना नाकाबंदी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 36 से अधिक वर्षों तक सेवा देने के बाद जनवरी 1997 में इसका संचालन बंद कर दिया गया था।
भारत का दूसरा एयरक्राफ्ट कैरिय़र 226.5 मीटर लंबा, 22,000 टन, 1959 विंटेज लाइट एसी एचएमएस हर्मीज़ था, जिसका संचालन यूके ने 1984 में बंद कर दिया था। भारत ने मई 1987 में इसे खरीद कर आईएनएस विराट के रूप में चालू कर दिया। इस एयरक्राफ्ट कैरिय़र (एसी) में शॉर्ट टेक-ऑफ की सुविधा थी। इसमें स्की-जंप के साथ आरेस्टेड रिकवरी (STOBAR) की डिजाइन थी। इसमें 26 फिक्स्ड / रोटरी विंग विमान तक ले जाया जा सकता था। 2014 में आईएनएस विक्रमादित्य के शामिल होने तक पश्चिमी बेड़े में इसने भारतीय नौसेना के प्रमुख युद्धपोत के रूप में कार्य किया। आईएनएस विराट को मार्च 2017 में सेवा से हटा दिया गया। लगभग 30 वर्षों तक भारतीय नौसेना को सेवा देनेवाला यह में अंतिम ब्रिटिश निर्मित पोत और दुनिया का सबसे पुराना एयरक्राफ्ट कैरियर था।
भारत का तीसरा एसी 284 मीटर लंबा आईएनएस विक्रमादित्य है। यह 42,000 से 45,000 टन वर्ग का संशोधित एसी है, जिसे 1987 में सोवियत नौसेना द्वारा कमीशन किया गया था (शुरुआत में इसे बाकू और बाद में इसका नाम बदलकर एडमिरल गोर्शकोव रखा गया)। 1996 में रूसी नौसेना द्वारा सेवामुक्त किए जाने के बाद इसे जनवरी 2004 में भारत ने 2.35 बिलियन अमेरिकी डॉलर की लागत से खरीदा। नवंबर 2013 में इसे आईएनएस विक्रमादित्य के रूप में कमीशन किया गया था और औपचारिक रूप से जून 2014 में भारतीय नौसेना में शामिल किया गया था। यह 26 मिग सहित 36 विमान 29के मल्टी-रोल फाइटर्स और 10 कामोव एयरबॉर्न पूर्व चेतावनी और नियंत्रण (AEW&C)/सबमरीन रोधी युद्ध (ASW) हेलीकॉप्टर वहन करता है। यह एसी वर्तमान में नौसेना के पश्चिमी बेड़े का प्रमुख पोत है।
आईएसीपी
‘आत्मनिर्भर भारत’ की व्यापकता को साबित करने के लिए आईएसीपी एयरक्राफ्ट कैरियर के स्वदेशी उत्पादन की दिशा में एक बहुप्रतीक्षित और स्वागत योग्य कदम है, जो भारत को उन विशेष राष्ट्रों उच्च श्रेणी में शामिल करता है। IACP को जनवरी 2003 में औपचारिक तौर पर सरकारी स्वीकृति मिली।
आईएसी-1. आईएसीपी की आधारशिला आईएसी-1 है, आईएनएस विक्रांत की 1971 के युद्ध में मजबूत भागीदारी की 50वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में इस एयरक्राफ्ट कैरियर का नाम भी आईएनएस विक्रांत रखा गया है। IAC-1 को भारतीय नौसेना के डाइरेक्टरेट ऑफ नेवल डिजाइन (डीएनडी) द्वारा डिजाइन किया गया है और इसका निर्माण सरकारी स्वामित्व वाली कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड (सीएसएल) द्वारा किया गया है। आईएनएस विक्रांत के निर्माण की प्रक्रिया 1999 में प्रारंभिक डिजाइन कार्य के साथ शुरू हुई और अगस्त 2013 में इसको लॉन्च किया गया। बेसिन परीक्षण दिसंबर 2020 में पूरे हुए और पहला समुद्री परीक्षण 04 से 08 अगस्त 2021 तक चला। सरकार ने एसी को स्वतंत्रता दिवस 2022 पर राष्ट्र को समर्पित करने का संकल्प लिया है। पहले समुद्री परीक्षण के समय परियोजना पर कुल लागत लगभग 2.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर हुआ। एसी में 80% तक स्वदेशी सामग्री है जिसमें डीआरडीओ और स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड द्वारा विकसित बॉडी के लिए एंटी-रस्ट स्टील और रूसी सहयोग के साथ टाटा पावर स्ट्रेटेजिक इंजीनियरिंग डिवीजन द्वारा कॉम्बैट मैनेजमेंट सिस्टम (सीएमएस) शामिल है। कुछ असेंबली के लिए इटली की फर्मों द्वारा तकनीकी परामर्श प्रदान किया गया है, जबकि विमानन परिसर रूस के नेवस्कॉय डिजाइन ब्यूरो द्वारा डिजाइन किया गया है।
यह एयरक्राफ्ट कैरियर (एसी) 262 मीटर लंबा/62 मीटर चौड़ा है जिसमें 45,000 टन लोड विस्थापन है। इसमें स्की-जंप के साथ STOBAR कॉन्फ़िगरेशन है। एसी में 30 विमान होंगे, जिनमें 24 से 25 मिग-29के लड़ाकू विमान और 10 कामोव केए-31 एईडब्ल्यूएंडसी/वेस्टलैंड सी किंग एएसडब्ल्यू हेलीकॉप्टर हैं। यह लॉकहीड मार्टिन एमएच-60 आर सीहॉक मल्टी-रोल हेलीकॉप्टर और समुद्री टोही और तटीय सुरक्षा एएलएच (एमआरसीएस) को समायोजित करने में भी सक्षम होगा, जिसे पहले के एक लेख @ चाणक्य फोरम https://chanakyaforum.com/an-indian-helicopter-story/ में वर्णन किया गया है। नौसेना का दृढ़ विश्वास है कि यह एसी हवाई संचालन के सभी पहलुओं को अभूतपूर्व क्षमता प्रदान करेगा।
आईएनएस विक्रांत का पहला समुद्री परीक्षण: स्रोत- चाणक्य फोरम
आईएसी-2. भारत का दूसरा स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर (IAC-2) (आईएनएस- विशाल) है जो अपने पूर्ववर्ती से बड़ा होगा, जिसमें 65,000 टन तक का विस्थापन होगा। इस एसी को सीएसएल में भी बनाने की योजना है और इसमें कैटापल्ट असिस्टेड टेक-ऑफ बट अरेस्ट रिकवरी (कैटोबार) कॉन्फ़िगरेशन इलेक्ट्रोमैग्नेटिक एयरक्राफ्ट लॉन्च सिस्टम (ईएमएएलएस) सहित नई डिजाइन के साथ सुविधाओं को शामिल किया जाएगा, जो वर्तमान में अमेरिकी नौसेना के एसी में उपयोग किया जाता है। यह अधिक से अधिक परिचालन लचीलापन प्रदान करता है। एसटीओबीओआर कॉन्फिगरेशन के विपरीत फिक्स्ड विंग विमान में किसी भी बड़े डिजाइन परिवर्तन की आवश्यकता नहीं है। ईएमएएलएस बड़े विमानों के साथ-साथ मानव रहित लड़ाकू हवाई वाहनों (यूसीएवी) का भी संचालन करेगा। फ्लैट-टॉप एसी में लगभग 50 फिक्स्ड और रोटरी विंग एयरक्राफ्ट होंगे। इसकी योजना/निर्माण प्रक्रिया को शुरू करने के लिए रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) द्वारा 30 करोड़ की राशि प्रारंभ में आवंटित की गयी। डीएनडी ने 2012 में एसी को डिजाइन करना शुरू किया। यह अगले दशक में या तो नौसेना के तीसरे एसी या आईएनएस विक्रमादित्य के प्रतिस्थापन के रूप में नौसेना को अपनी सेवाएं देना शुरू करेगा।
कैरियर आधारित नौसेना के रूप में आईएन की स्थिति क्या है?
दुनिया भर के 11 देशों में आज एयरक्राफ्ट कैरियर या तो चालू है या निर्माणाधीन हैं। भारत सहित तीन एशियाई राष्ट्रों में एसी आधारित नौसेनाएं हैं, जबकि जापान और दक्षिण कोरिया इस विशिष्ट क्लब में शामिल होने की योजना बना रहे हैं। इनमें से केवल चीन मात्रात्मक रूप से भारत से आगे है, जिसके पास दो एसी सेवा में हैं और 2 निर्माणाधीन हैं, जबकि भारत का क्रमशः 1 सेवा में और 1 निर्माणाधीन है। यह तथ्य और ऊपरोक्त भू-रणनीति, भारत और चीन के एसी प्रोफाइल की तुलना करने योग्य है।
चीन वर्तमान में टाइप 001 लियाओनिंग और टाइप 001ए (002) शेंडोंग एसी संचालित करता है। लिओनिंग एक स्की-जंप और STOBAR कॉन्फ़िगरेशन के साथ 43000 टन वर्ग की सोवियत कुज़नेत्सोव क्लास का एसी है, जो स्वयं के एसी के समान है। इस कैरियर को 1998 में यूक्रेन से खरीदा गया था, सितंबर 2012 में इसे इसे INS विक्रमादित्य की तरह नवीनीकृत कर पीएलएएन में कमीशन किया गया था । लिओनिंग कथित तौर पर 24 J-15 चौथी पीढ़ी के लड़ाकू विमानों, छह ASW और चार AEW&C हेलीकॉप्टरों और 2 बचाव हेलीकाप्टरों सहित 36 विमानों को वहन करता है। इसकी वायु संचालन क्षमता लगभग INS विक्रमादित्य / INS विक्रांत के समान और आईएनएस विशाल से कम होगी। लिओनिंग का STOBAR स्की-जंप कॉन्फ़िगरेशन J-15 फाइटर के साथ महत्वपूर्ण प्रदर्शन कर सकता है, जिनका अधिकतम वजन क्षमता 33000 किलोग्राम है, जो मिग 29K से लगभग 11000 किलोग्राम अधिक है। यह लड़ाकू विमान कैटोबार-ईएमएएलएस कॉन्फ़िगरेशन के साथ INS विशाल की तुलना में कमतर है। आईएनएस विक्रांत की परिचालन सीमा 15000 किमी होगी, जो लिओनिंग के दोगुने से अधिक होगी!
दिसंबर 2019 में कमीशन किया गया चीन का स्वदेशी शेडोंग एसी, स्टोबार कॉन्फ़िगरेशन के साथ, आईएनएस विक्रांत पर थोड़ा भारी पड़ता है। इसकी लंबाई 315 मीटर, 65,000 टन का विस्थापन, 25000 किमी की सीमा और 44 से 48 विमानों की वहन क्षमता है। हालांकि, आईएनएस विशाल में इससे अधिक क्षमता होगी। फरवरी 2017 से निर्माणाधीन चीनी टाइप 003 एसी, 85,000 टन के विस्थापन के साथ कैटोबार-ईएमएएलएस कॉन्फ़िगरेशन के साथ आईएनएस विशाल के समान काफी बड़ा होगा। इस एसी को आईएनएस विक्रांत के समान समय सीमा में लॉन्च किए जाने की संभावना है। टाइप 004 एसी (निर्माण कथित तौर पर दिसंबर 2017 में शुरू हुआ) में परमाणु प्रणोदन की सुविधा होगी जिसे इस दशक के अंत तक चालू होने की संभावना है। इस कैरियर पर 5वीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान जे-15 और जे-31 वहन किये जाने की संभावना है।
लिओनिंग / शेंडोंग एसी: Source-nationalinterest.org/Pinterest
निष्कर्ष
भारत और चीन दोनों के एयरक्राफ्ट कैरियर कार्यक्रमों के मामले में ड्राइंग बोर्ड और तैनाती के बीच हमेशा अंतर होगा, यह स्पष्ट है कि एक ‘अनुकूल समुद्री स्थिति’ को प्रभावित करने की क्षमता को बनाए रखने के लिए एक प्रतिवर्ती एयरक्राफ्ट प्रोफाइल की आवश्यकता होनी चाहिए। चीन के आधिपत्य और विस्तारवादी समुद्री दृष्टिकोण को दक्षिण चीन सागर के घटनाक्रमों ने बार-बार परिलक्षित किया है। आईओआर में भारत के समुद्री प्रांगण में प्रवेश की कोशिश की गयी है। संभावित खतरे की प्रतिकूल परिस्थितियों के मद्देनजर यह स्पष्ट है कि प्रायद्वीप में भारत के समुद्री हितों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एयरक्राफ्ट कैरियर का होना जरूरी है। आईओआर में महत्वपूर्ण युद्धक्षेत्र पर समुद्री नियंत्रण को प्रभावित करने के लिए पर्याप्त एयरक्राफ्ट कैरियर का होना अपरिहार्य है और इसका परिचालन ऐसी मजबूरी होगी, जिसे अभी या निकट भविष्य में नज़रअंदाज़ नहीं किया जाना चाहिए ।
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