तालिबान के संदर्भ में भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा की समीक्षा
कर्नल शिवदान सिंह
तालिबान के कब्जे के बाद पूरे विश्व के प्रमुख देश इस सत्ता परिवर्तन को गंभीरता से लेते हुए यहां से नियंत्रित होने वाले नारको और हिंसक आतंकवाद के प्रति सजग हो गए हैं। क्योंकि पूरे विश्व मैं अफीम की खेती सबसे ज्यादा अफगानिस्तान में होती है जिसे तालिबानड्रग्स में बदल कर पूरी दुनिया में नारको टेररिज्म के रूप में सप्लाई करते हैं। पूरा विश्व अच्छी तरह जानता है कि किस प्रकार 2001 में तालिबान के संरक्षण में अलकायदा के आतंकियों ने अमेरिका के विश्व व्यापार केंद्र पर हमला किया था जिसके बाद अमेरिका को वहां पर अपनी सेनाएं भेजनी पड़ी जिनके द्वारा तालिबान को सत्ता से बेदखल किया गया और अफगानिस्तान में साधारण जन जीवन बहाल किया गया। इसको देखते हुए विश्व के हर भाग में और खासकर दक्षिण एशिया में ड्रग्स और आतंकवाद एक बार फिर बढ़ेगा, और इस क्षेत्र के देशों की राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में पड़ेगी। हर देश की राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रमुख भाग बाहरी तथा आंतरिक सुरक्षा होती है। बाहरी सुरक्षा में राजनीतिक और राजनीयक स्तर पर संबंधित देशों के साथ संबंध बनाए जाते हैं जिनके द्वारा संबंधित देशों को विश्वास में लेकर कदम उठाए जा सके। इसी क्रम में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से अफगानिस्तान की स्थिति परविचार विमर्श किया है। और विदेश मंत्री एस जयशंकर अन्य देशों के संपर्क में है जिससे अफगानिस्तान में तालिबान शासन के बारे में कोई कदम उठाया जा सके।
देश की बाहरी सुरक्षा में सीमाओं की सुरक्षा भी उतनी महत्वपूर्ण है। इसी क्रम में देश की रक्षा सेनाओं के प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने 25 अगस्त को दक्षिण चीन सागर में चीन के विरुद्ध बने 4 देशों भारत जापान और अमेरिका तथा ऑस्ट्रेलिया के नौसैनिक गठबंधन कवाड़ के प्रमुख अमेरिका के एडमिरल जान अकीविनो से मुलाकात की और इसमें अफगानिस्तान के हालातों पर विचार विमर्श किया। इसमें तालिबानियों की कार्यप्रणाली और आतंकवादी संगठनों जैसे अलकायदा जैसे मोहम्मद इत्यादि के साथ संबंधों की भी विस्तार से चर्चा हुई। एड्मिरल ने विस्तार से बताया कि किस प्रकार इन आतंकी संगठन ने मिलकर पूरे 20 साल अमेरिकी सेना से अफगानिस्तान मे युद्ध किया जिसमें अमेरिका के 2800 सैनिक मारे गए और 30000 घायल हुए। आखिर में अमेरिकी जनता की मांग पर उसकी सेनाओं को अफगानिस्तान से जाना पड़ा जिसके बाद तालिबान ने अफगानी सेना को परास्त करते हुए उनसे अमेरिका के द्वारा दिए हुए हत्यारों को छीन लिया। इन हथियारों में लड़ाकू हेलीकॉप्टर, नाइट विजन डिवाइस, असाल्ट राइफल, मिसाइल ड्रोन इत्यादि शामिल है। इसके साथ साथ तालिबानी विचारधारा के बहुत से अफगानी सैनिकों ने तालिबान संगठन में प्रवेश कर लिया है। इस प्रकार तालिबान पहले से भी ज्यादा शक्तिशाली और मजबूत स्थिति में आ गया है।
तालिबान जो स्वयं एक आतंकी गट संगठन है वह अन्य आतंकी संगठनों को उसी प्रकार अभी भी संरक्षण प्रदान कर रहा है इन संगठनों में भारत के विरुद्ध लश्कर-ए-तैयबा जैसे मोहम्मद भी हैं। अब यह संगठन जो पहले से ही कश्मीर में सक्रिय थे जिन पर भारतीय सेना ने लगाम लगा दी थी अब दोबारा तालिबान और पाकिस्तान की आईएसआई के संरक्षण में कश्मीर में अपनी हरकतों में तेजी लाएंगे। जनरल रावत ने बताया कि भारत लंबे समय से अफगानिस्तान में स्थिति के बारे में विचार कर रहा था और स्थिति से निपटने के लिए भारतीय सेना पाकिस्तान सीमा पर जल थल और वायु में पूरी चौकसी से तैनात है। उन्होंने आगे बताया कि अब यह 80 के दशक का भारत नहीं है, जब पाकिस्तान से आतंकवादी पंजाब और जम्मू कश्मीर में खुली सीमाओं से आसानी से पहुंच कर आतंकी हरकत करते थे। अब मैदानी सीमाओं को पूरा कटीले तारों से बंद कर दिया गया है तथा इनके साथ इलेक्ट्रॉनिक संसाधनों से हर समय चौकसी रखी जा रही है। इसी के साथ पाकिस्तान से हथियार पहुंचने के प्रमुख स्रोत कश्मीर से पाकिस्तान के साथ चल रहा सीमा व्यापार भी बंद कर दिया गया है क्योंकि ज्यादातर इस व्यापार की गाड़ियों में पाकिस्तान की आईएसआई आतंकियों तक हथियार और गोला बारूद पहुंचा रही थी। सैनिक दृष्टि से अफगानिस्तान की सीमाओं के आसपास दबदबा बनाने के लिए भारतीय सेना कजाकिस्तान की सेना के साथ एक संयुक्त सुरक्षा अभ्यास 31 अगस्त से 14 सितंबर तक कजाकिस्तान में ही करेगी। इस मीटिंग में जन रावत ने वार्ड देशों से तालिबान के खतरे के बारे में एक साझा रणनीति बनाने का भी आह्वान किया। क्योंकि तालिबान के साथ चीन अफगानिस्तान में खनिज पदार्थों के लालच और अपनी साझा आर्थिक गलियारा योजना के कारण अपनी सहानुभूति प्रकट कर रहा है। इसको देखते हुए चीन को दक्षिण चीन सागर में घेरने के साथ-साथ तालिबान के मुद्दे पर भी घेरने की आवश्यकता है।
राष्ट्रीय सुरक्षा का दूसरा प्रमुख पहलू है आंतरिक सुरक्षा इसके लिए पूरे देश की जनता को विश्वास में लेने के लिए 26 अगस्त को प्रधानमंत्री ने लोकसभा में राजनीतिक दलों के प्रमुखों को विचार विमर्श के लिए बुलाया। जिसमें पहले विदेश मंत्री ने नेताओं को अफगानिस्तान की ताजा स्थिति के बारे में अवगत कराया और बताया कि किस प्रकार मुश्किलों के साथ वहां पर फंसे भारतीय नागरिकों को वहां से निकाला जा रहा है और बताया कि किस प्रकार इसमें पाकिस्तान सीमा की अड़चन पैदा कर रहा है। इसके पश्चात प्रधानमंत्री ने इन नेताओं से तालिबान के संबंध में नीति अपनाने के बारे में सुझाव मांगे। जिनके बारे में सभी नेताओं ने एक आवाज में सरकार के साथ अपनी सहमति प्रकट की जिससे भारत की सरकार अपना अगला कदम देश के विश्वास के साथ उठा सके।
80 के दशक में पाकिस्तान की आईएसआई भारत में पंजाब और कश्मीर में इसलिए सफल हो पाई थी क्योंकि पंजाब में खालिस्तानी कट्टरपंथियों ने वहां के धर्म स्थलों को आतंकियों का अड्डा बना दिया था। इसी प्रकार कश्मीर में मुस्लिम कट्टरपंथियों ने इन आतंकियों को शरण दी तथा इनकी हरकत की हरकतों में मदद की। इसी क्रम में पाकिस्तान की आईएसआई ने देश की पार्लियामेंट तथा मुंबई में आतंकी हमले करा कर देश के सांप्रदायिक सौहार्द को बिगड़ कर देश में अनिश्चितता और आतंक का माहौल पैदा करने की कोशिश की। यह पाकिस्तान का भारत के विरुद्ध परोक्ष युद्ध था। जिसमें उसे अन्य युद्ध की तरह मुंह की खानी पड़ी। परंतु अब भारत 2021 का भारत है जिसमें यहां का पर हर निवासी पाकिस्तान कि आतंकवाद को संरक्षण देने की नीति के द्वारा उसके दिवालिया बनने की कहानी को जान गया है। इसलिए अब भारत का हर निवासी पाकिस्तान की कट्टरपंथ की नीतियों की आड़ में की जाने वाली हरकतों को पहचान गया है। इसलिए अब भारत में पाकिस्तान की धार्मिक कट्टरपंथ की आड़ में आतंकवाद और सामाजिक सौहार्द बिगाड़ने की चालें सफल नहीं होंगी। इसी संदर्भ में पाकिस्तान से लगने वाली सारी सीमाएं भारतीय सेनाओं ने सील कर दी हैं जिससे वहां के आतंकी भारत में ना प्रवेश कर सकें ।
उपरोक्त स्थिति को देखते हुए भारत के मुस्लिम धर्मगुरुओं ने स्वयं देश में कट्टरवादीता के विरुद्ध मुहिम चलाने का ऐलान कर दिया है। धार्मिक कट्टरता के विरुद्ध चलेगा राष्ट्रवादी अभियान इस शीर्षक से लखनऊ में 24 अगस्त को एक सम्मेलन में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ऑफ इंडिया की राष्ट्रीय कार्यसमिति ने धार्मिक कट्टरता के विरुद्ध राष्ट्रव्यापी जागरूकता अभियान चलाने और केंद्रीय वक्फ बोर्ड में संशोधन के बारे में भी चर्चा की। इसके महासचिव डॉ मोहित अहमद ने कहा कि पुराना मुस्लिम लॉ बोर्ड वहाबी विचारधारा के कारण हर जगह फेल हुआ। अब सूफी विचारधारा को अपनाकर भारत का मुस्लिम समाज विश्व के मुस्लिमों के लिए एक उदाहरण बनेगा। जिसमें हर देशवासी केवल भारतीयता के नाम से जाना जाएगा जैसा कि ज्यादातर पश्चिमी देशों और अमेरिका में देखा जाता है।
80 के दशक से अब तक पाकिस्तान भारत के साथ परोक्ष युद्ध आतंकवाद और प्रोपेगेंडा के द्वारा लड़ रहा था जिसमें वह बांग्लादेश की तरह भारत के पंजाब और जम्मू-कश्मीर प्रांत को भारत से अलग करना चाहता था। परंतु भारत की मजबूत सरकारों और देशवासियों ने पाकिस्तान के इस युद्ध में और युद्धों की भांति उसे करारी हार दी है। जिसके परिणाम स्वरूप आज पाकिस्तान दिवालिया हो कर भुखमरी के कगार पर पहुंच चुका है और अब तालिबान को और शक्तिशाली बनाने के बाद यही तालिबानी पाकिस्तान में भी दखल देना शुरू कर देंगे। इस प्रकार जल्दी ही पाकिस्तान में बलूचिस्तान और सिंध अलग होकर पाकिस्तान एक बार फिर 1971 की तरह टुकड़े टुकड़े हो जाएगा। अभी-अभी तालिबान के एक बड़े नेता ने विस्तार से बताया है कि किस प्रकार पाकिस्तान तालिबान का दूसरा घर है और किस प्रकार पाकिस्तान ने तालिबान की हर कदम पर मदद की है। इस सब को देखते हुए भारत को संयुक्त राष्ट्र के आतंकवाद को रोकने के लिए पाकिस्तान के विरुद्ध जांच कर रहे एफएटीएफ के सामने इन तथ्यों को प्रस्तुत करना चाहिए। जिससे शीघ्र अति शीघ्र पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र संघ की काली सूची में आ जाए जिसके बाद उसे अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से आर्थिक सहायता मिलनी बंद हो जाएगी। इसके साथ साथ संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव के द्वारा विश्व के ज्यादातर देश पाकिस्तान का बहिष्कार कर देंगे। इस प्रकार पाकिस्तान को आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए एक करारा सबक मिल जाएगाजिसके बाद हो सकता है वह आतंकवाद को बढ़ावा देना बंद कर दे इस प्रकार दक्षिण एशिया के साथ-साथ पूरे विश्व को आतंकवाद से मुक्ति मिल सकती है।
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S M Dwivedi