अपनी आर्टिलरी प्रोफाइल को आधुनिक बनाने की दिशा में, भारतीय सेना (IA) ने 1999 के कारगिल युद्ध के बाद फील्ड आर्टिलरी रेशनलाइजेशन प्लान (FARP) शुरू किया, जिसमें आर्टिलरी हथियार प्रणाली के तहत 3000 हथियारों की खरीद/विकास को सुव्यवस्थित करने की योजना थी। धनुष 155 मिमी/45 कैलिबर हॉवित्जर 1580 टोड आर्टिलरी गन का हिस्सा है, जिसे भारतीय आर्टिलरी के ‘मध्यमीकरण’ की दिशा में FARP के तहत विकसित/खरीदा जाना है, जिसमें भारतीय सेना की इन्वेंट्री में सभी आर्टिलरी गन के कैलिबर को मानकीकृत कर 155 मिमी किया जाएगा। इससे गोला बारूद का मानकीकरण, बेहतर रखरखाव और प्रभावी कुशल लॉजिस्टिक्स की सुविधा होगी। धनुष 155/45 कैलिबर हॉवित्जर भारत की पहली स्वदेशी लंबी दूरी की आर्टिलरी हथियार प्रणाली है और इसे गन कैरिज फैक्ट्री (जीसीएफ) जबलपुर द्वारा निर्मित किया जा रहा है, जो अब एक सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम (PSU) एडवांस्ड वीपन्स एंड इक्विपमेंट इंडिया लिमिटेड (AWEIL) है, जिसे 2021 में ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड (OFB) के पुनर्गठन और निगमीकरण के तहत स्थापित किया गया था।
डिजाइन विकास और परीक्षण मूल्यांकन
धनुष होवित्जर 155mm/39 कैलिबर फील्ड होवित्जर (FH) 77B का एक उन्नत संस्करण है, जिसे मेसर्स AB बोफोर्स, स्वीडन द्वारा निर्मित किया गया है, जिसे ‘मेक इन इंडिया’ पहल के तहत AWEIL द्वारा DRDO, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड और अन्य निजी फर्म के तकनीकी सहयोग से विकसित किया गया है। उपयोगकर्ता मूल्यांकन और इंटरफ़ेस भारतीय सेना के जीसीएफ जबलपुर ओर वीपन्स डेवलपमेंट एंड एक्जीक्यूशन टीम द्वारा किया गया है।
1980 के दशक में बोफोर्स तोपों के लिए इस अनुबंध में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण (टीओटी) शामिल था। ओएफबी को मेसर्स एबी बोफोर्स (प्रौद्योगिकी प्रदाता [टीपी]) ने सभी टीओटी दस्तावेज दिये थे, लेकिन विशेषज्ञता का हस्तांतरण नहीं हुआ था, क्योंकि भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण टीपी के साथ सभी सौदे 1987 में निलंबित कर दिए गए थे। इसके कारण टीपी हासिल करना ओएफबी या आईए के लिए दुर्गम हो गया, क्योंकि उक्त प्रतिबंध जून 1999 में कारगिल युद्ध तक लागू रहा। कारगिल युद्ध में बोफोर्स गन की तीव्र कार्रवाई को देखते हुए इसके पुर्जों को हासिल करने का दबाव बढ़ा जिसके बाद प्रतिबंध को हटाया गया।
2000 के दशक के उत्तरार्ध में, भारतीय सेना ने FARP की समय-सीमा को पूरा करने के लिए वैश्विक बाजार में शेल्फ़ (AOTS) के अधिग्रहण का निर्णय लिया, जो फलीभूत नहीं हुआ। फलस्वरूप IA स्वदेशी उत्पादन के लिए प्रेरित हुआ, जिससे धनुष कार्यक्रम की अवधारणा हुई। लगभग 2010-11 में स्वदेशी 105/37 कैलिबर भारतीय/लाइट फील्ड गन व अन्य पुराने हथियार प्रणालियों और FH 77B को परिवर्तित करने की योजना बनी। धनुष कार्यक्रम को तब महत्वपूर्ण प्रोत्साहन मिला जब तत्कालीन महानिदेशक वित्तीय योजना और भविष्य के तोपखाने के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल अंजन मुखर्जी ने बोफोर्स टीओटी दस्तावेजों से प्राप्त विशेषज्ञता के साथ धनुष गन के विकास की कल्पना की। ब्रिटिश बीएई सिस्टम्स, जिसने मेसर्स एबी बोफोर्स की हॉवित्जर मैन्युफैक्चरिंग यूनिट का अधिग्रहण किया, ने भारत को टीओटी विशेषज्ञता प्रदान करने की पेशकश की, जो कि बोफोर्स सौदे के हिस्से के रूप में भारत को मिलने वंचित रह गई थी।
टीओटी दस्तावेजों ने तकनीकी जानकारी प्रदान की, लेकिन धनुष के विकास में धातु विज्ञान, असेंबली लाइन और दो दशक पुराने टीओटी और आर्टिलरी हथियार में आधुनिक वैश्विक तकनीकी प्रगति के बीच तकनीकी अंतर को पाटने के लिए आवश्यक संयोजन एक चुनौती थी।
सिस्टम टीओटी दस्तावेजों/विशेषज्ञता पर आधारित डिजाइन विकास 2013 तक जारी रहा और 2014 में ओएफबी द्वारा पहले प्रोटोटाइप का अनावरण किया गया। उसी वर्ष भारतीय सेना द्वारा संरचनात्मक मूल्यांकन परीक्षण शुरू किए गए। डेजर्ट एंड हाई एल्टीट्यूड (HA) में फायरिंग ट्रायल, क्वालिटी एश्योरेंस ट्रायल, मेंटेनेंसबिलिटी ट्रायल (यह मूल्यांकन करने के लिए कि हथियार प्रणाली कितनी जल्दी और आसानी से विफल होने के बाद सेवा योग्य स्थिति में वापस आ सकती है) और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक कम्पैटिबिलिटी ट्रायल (पता लगाने के लिए) सहित उपयोगकर्ता परीक्षण, विद्युत/इलेक्ट्रॉनिक प्रणालियों/उप-प्रणालियों की प्रतिकूल विद्युतचुंबकीय वातावरण में संतोषजनक ढंग से कार्य करने की क्षमता) 2016 में पूरी की गई। आईए को जीएस मूल्यांकन परीक्षणों के लिए जुलाई 2016 में छह धनुष हॉवित्जर प्रदान किए गए, जिसमें उत्पादन की पहली तीन बंदूकें थीं जिनको लेवल फायरिंग प्रोटोटाइप पोखरण/बबीना फील्ड रेंज में डेजर्ट परीक्षण किया गया।शेष तीन को अक्टूबर और दिसंबर 2016 के बीच दिया गया जिनको लेह सेक्टर में एचए/शीतकालीन परीक्षण किया गया। परीक्षणों के अंतिम चरण में +45ºC से -15ºC के तापमान पर लगभग 5000 राउंड फायर किए गए थे। प्रत्येक गन द्वारा 1600 किमी से अधिक की दूरी को लॉग किया गया (किसी भी गन सिस्टम पर किए गए सबसे कठोर उपयोगकर्ता परीक्षणों को चिह्नित करते हुए) ये परीक्षण जून 2018 में पूरा हुए।
डिफेंस एक्विजिशन काउंसिल (डीएसी) द्वारा 414 धनुष की मंजूरी के बाद, रक्षा मंत्रालय ने मार्च 2013 में लगभग 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर की अनुबंध लागत पर परीक्षणों की मंजूरी के अधीन, 114 तोपों के लिए एक आदेश दिया। रक्षा मंत्रालय द्वारा निर्धारित डिलीवरी शेड्यूल में अनुबंध पर हस्ताक्षर करने के 18 महीनों के भीतर पहले 18 तोपों की डिलीवरी अनिवार्य कर दी गई थी। अन्य 36 तोपों की आपूर्ति आगामी 12 महीनों में की जानी थी, शेष 60 तोप जून 2020 तक वितरित की जानी थीं। हालांकि, विकास प्रक्रिया में विभिन्न बाधाओं के कारण, इन समयसीमा को पूरा नहीं किया जा सका।
परीक्षणों के पूरा होने और उसमें उठाए गए अवलोकनों के सुधार के बाद जीसीएफ जबलपुर को अंततः फरवरी 2019 में 114 धनुष तोपों के निर्माण के लिए एमओडी/आईए से थोक उत्पादन मंजूरी (बीपीसी) प्राप्त हुई । इसके तुरंत बाद थोक उत्पादन शुरू हुआ और छह धनुष के पहले बैच को अप्रैल 2019 में IA को सौंप दिया गया, शेष बंदूकें आगामी तीन वर्षों में IA को सौंपने के लिए निर्धारित हैं। हथियार प्रणाली में स्वदेशी सामग्री- पहले प्रोटोटाइप में लगभग 80% (सहायक पावर यूनिट [एपीयू] से कम, जो पहले 24 तोपों और दृष्टि प्रणाली के लिए आयात होगी)। बाद के डिलीवरी बैचों में इसे लगभग 91% तक बढ़ाया जाना था, एक भारतीय फर्म, फोर्स मोटर्स ने एक स्वदेशी पावर पैक विकसित किया। वर्तमान संशोधित डिलीवरी शेड्यूल के तहत AWEIL को धनुष के साथ-साथ शारंग गन के 300 पीस आईए के पास मौजूद 130 मिमी तोपों से 155 मिमी की बंदूक में रोल-आउट को पूरा करने के लिए अपनी उत्पादन क्षमता को बढ़ाना था।
वर्तमान कार्यक्रम के तहत पहली आर्टिलरी रेजिमेंट के 2020 के अंत तक सभी 18 तोपों से लैस होने की उम्मीद थी, उस समय तक 20 तोपों (दो रिजर्व सहित) को रोल आउट किया जाना था। हालांकि, उत्पादन में देरी और आईए द्वारा कुछ संरचनात्मक टिप्पणियों ने आज तक डिलीवरी को केवल 12 पीस तक ही सीमित रखा है। इस वित्त वर्ष में पहली रेजीमेंट को पूरी तरह से लैस करने की संभावना है।
विकास प्रक्रिया में बाधाएं
किसी भी हथियार प्रणाली के लिए पूर्व-प्रेरण परीक्षणों से गुजरने के लिए कुछ कार्यात्मक अपर्याप्तता का अनुभव करना सामान्य है, कुछ विशिष्ट घटनाओं ने धनुष के विकास और वितरण रोडमैप को प्रभावित किया, जिसे नीचे स्पष्ट किया गया है।
धनुष कैसे तुलना करता है?
जैसा कि उल्लेख किया गया है, धनुष FH 77B बोफोर्स गन का उन्नत संस्करण है। धनुष FH 77B की तकनीक को बरकरार रखते हुए कई विकास ने धनुष को एक अधिक घातक और लचीला हथियार प्रणाली में बदल दिया है, लंबी बैरल/चैम्बर मात्रा के साथ, इसे लंबी दूरी और फायर की उच्च दर प्रदान करता है। FH 77B पर इनमें से कुछ सुधार, धनुष, FH 77B और पाकिस्तान सेना द्वारा उपयोग किया जानेवाला पैंथर 155mm टोड होवित्जर (शुरुआत में तुर्की से आयात किया गया और बाद में हेवी इंटस्ट्रीज टक्सीला [HIT] में निर्मित) की बुनियादी विशेषताओं की तुलनात्मक तालिका नीचे स्पष्ट की गयी है।
नोट:- पाकिस्तान एचआईटी में एक स्वदेशी 155 मिमी गन का भी निर्माण कर रहा है, जिसका वर्तमान में परीक्षण चल रहा है, जिसके लिए फिलहाल में कोई डेटा उपलब्ध नहीं है।
भविष्य परिप्रेक्ष्य
फिलहाल AWEIL के तत्वावधान में पुष्टिकरण फायरिंग परीक्षण चल रहे हैं, ताकि उत्पादन शुरू करने से पहले शेल स्थिरता के साथ-साथ हाइड्रोलिक सिस्टम, गन माउंटिंग और साइटिंग सिस्टम में कुछ ऑबंजर्वेशन का उन्मूलन किया जा सके। उत्पादन लाइन के पुन: सक्रिय होने पर धनुष को उपरोक्त शारंग गन के साथ शामिल किया जाएगा और यह उन्नत टोड आर्टिलरी गन सिस्टम (एटीएजीएस) से पहले होगा, जो डीआरडीओ, टाटा पावर स्ट्रेटेजिक इंजीनियरिंग डिवीजन और कल्याणी समूह द्वारा संयुक्त रूप से विकसित 155 मिमी / 52 कैलिबर गन है, जिसने अभी-अभी HA परीक्षण पूरा किया है। ये हथियार प्रणालियां निश्चित रूप से यूएस एम777 अल्ट्रा-लाइटवेट हॉवित्जर और के-9 वज्र सेल्फ प्रोपेल्ड (ट्रैक्ड) आर्टिलरी सिस्टम की पूरक होंगी, जिन्हें परिचालन के लिए शामिल किया गया है।
डेफएक्सपो 2018 के दौरान आयुध निर्माणी बोर्ड (ओएफबी) द्वारा धनुष के माउंटेड गन सिस्टम (एमजीएस) संस्करण को प्रदर्शित किया गया था। एमजीएस को भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड द्वारा लाइसेंस के तहत निर्मित 8×8 टाट्रा ट्रक पर लगाया गया है। एडब्ल्यूईआईएल ने एक प्रोटोटाइप 155 मिमी/ 52 कैलिबर जो धनुष संस्करण 155/45 कैलिबर संस्करण के समान मॉड्यूलर मूल संरचना पर आधारित है, में मामूली संशोधन के साथ विकसित किया है, जो अधिकतम 42 किमी की सीमा प्राप्त करने में सक्षम होंगे।
उपरोक्त के अलावा, रक्षा मंत्रालय ने अब 400 Autonomous Towed Howitzer Ordnance System (ATHOS) 155mm/52 कैलिबर गन के लिए इजरायल के Elbit सिस्टम्स द्वारा निर्मित एक अधिग्रहण अनुबंध के पुनरुद्धार पर विचार किया है, जिसके तहत 1,180 तोपों के स्वदेशी निर्माण के संभावित फॉलो-ऑन अनुबंध के तहत टीओटी के साथ एक संयुक्त उद्यम होगा। भारतीय सेना का प्रस्ताव सितंबर 2019 में स्थगित होने के समय तक अनुमोदन के एक उन्नत चरण में था, जब यह स्पष्ट होने लगा कि धनुष सहित स्वदेशी तोप विकास कार्यक्रम FARP आवश्यकताओं को पूरा करेंगे। हालांकि, धनुष तोप की धीमी आपूर्ति और गलवान संघर्ष जैसी घटनाओं से राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए आसन्न खतरों ने तत्काल परिचालन आवश्यकता के आधार पर इस निर्णय को उत्प्रेरित किया है। प्रस्ताव को अब कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (सीसीएस) के समक्ष सदन में मंजूरी का इंतजार है, अगर इसे पारित माना जाता है।
निष्कर्ष
यह सच है कि धनुष होवित्जर को विकास के दौरान शुरुआती समस्याओं का सामना करना पड़ा है, भारतीय तोपखाने के लिए 400+ तोप (52 कैलिबर संस्करण के आगे की किश्तों सहित) की प्राप्ति इष्टतम परिचालन क्षमता के लिए अनिवार्य होगी। यह अधिग्रहण लगभग पूरी तरह से स्वदेशी प्रयास से हासिल किया जाएगा। इसलिए यह वैश्विक एओटीएस की अनिश्चितताओं से काफी हद तक सुरक्षित है। इस फ्रंटलाइन हथियार प्रणाली के स्वदेशी उत्पादन में तेजी लाने से दो फ्रंट वार युद्ध के दौरान भारत की क्षमता निश्चित रूप से बढ़ जायेगी।
*************************************************************
इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और चाणक्य फोरम के विचारों को नहीं दर्शाते हैं। इस लेख में दी गई सभी जानकारी के लिए केवल लेखक जिम्मेदार हैं, जिसमें समयबद्धता, पूर्णता, सटीकता, उपयुक्तता या उसमें संदर्भित जानकारी की वैधता शामिल है। www.chanakyaforum.com इसके लिए कोई जिम्मेदारी नहीं लेता है।
हम आपको दुनिया भर से बेहतरीन लेख और अपडेट मुहैया कराने के लिए चौबीस घंटे काम करते हैं। आप निर्बाध पढ़ सकें, यह सुनिश्चित करने के लिए पूरी टीम अथक प्रयास करती है। लेकिन इन सब पर पैसा खर्च होता है। कृपया हमारा समर्थन करें ताकि हम वही करते रहें जो हम सबसे अच्छा करते हैं। पढ़ने का आनंद लें
सहयोग करें
POST COMMENTS (0)