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Geopolitics & National Security
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सक्षम व सुदृढ़़ होती भारतीय नौ सेना

डॉ सुरेंद्र कुमार मिश्र
सोम, 22 नवम्बर 2021   |   7 मिनट में पढ़ें

यह बात निर्विवाद रूप से सत्य है कि भारत चीन सम्बन्ध इस समय बेहद खराब दौर से गुजर रहे हैं। अनेक कूटनीतिक तथा रणनीतिक प्रयासों के बावजूद भारत व चीन के बीच तनाव बना रहना अत्यन्त चिंतनीय विषय है। इस संदर्भ में भारतीय विदेश मंत्री एस. जय शंकर स्पष्ट रूप से कहा कि ‘‘बीजिंग ने समझौतों का उल्लंघन करते हुये कुछ ऐसी गतिविधियां की, जिनके पीछे उसके पास अब तक कोई विश्वसनीय स्पष्टकीरण नहीं है, जिस पर भरोसा किया जा सके। ये इस बारे में संकेत देता है कि यह गम्भीरता से विचार किया जाना चाहिये कि वे हमारे सम्बन्धों को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं, लेकिन इसका जवाब उन्हें देना है। एक ओर जहां भू-सीमा क्षेत्र में अपनी विस्तारवादी, विध्वंशक, उग्रवादी व घातक गतिविधियां जारी किये हुये है वहां दूसरी ओर समुद्री सीमा क्षेत्र में भी अपनी चहलकदमी करते हुये पाकिस्तान की नौ सेना को अपना सबसे उन्नत युद्धपोत दिया है, क्योंकि अरब सागर हिन्द महासागर में अपने सहयोगी की नौ सेना को मजबूत करना चाहता है। हाल ही के वर्षों में इस क्षेत्र में चीन ने अपनी नौसैनिक उपस्थिति बड़ी तेजी से बढ़ाई है। यही कारण है कि भारतीय नौ सेना को अब और अधिक सजग और सतर्क निगाहें रखनी होंगी।

भारतीय नौ सेना दुनिया की सातवीं सबसे सक्षम व सशक्त नौ सेना है। समुद्री सीमाओं की सुरक्षा एवं सतर्कता हेतु नौ सेना की अहम भूमिका होती है। हिन्द महासागर क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता और दुनिया के प्रमुख देशों की बढ़ती निरन्तर रुचि के कारण हमारी नौ सेना का आधुनिकीकरण किये जाने की महती आवश्यकता है। नित बदलते वैश्विक व क्षेत्रीय सुरक्षा परिदृश्य एवं उभरती चुनौतियों का सामना करने के लिए भारतीय नौ सेना का सक्षम, सुदृढ़ एवं आत्मनिर्भर होना बेहद जरूरी है। इस समय हिन्द महासागर क्षेत्र विश्व का सर्वाधिक संवेदनशील क्षेत्र बन चुका है, चूंकि यह विश्व का तीसरा सबसे बड़ा एवं सामरिक व आर्थिक दृष्टिकोण से अत्यन्त महत्वपूर्ण महासागर है। इसकी समुद्री सीमा एशिया आस्ट्रेलिया एवं अफ्रीका जैसे महाद्वीपों का स्पर्श कर रही है। इसके साथ ही मलक्का जल डमरू मध्य तथा स्वेज नहर के बीच से यह क्रमशः प्रशान्त महासागर के तीन महाद्वीपों को छू रहा है। तीसरी दुनिया के अधिकांश देश इसके तट पर या इसके भीतरी प्रदेश में स्थित है। विश्व के अधिकतम महत्वपूर्ण व्यापारिक मार्ग हिन्द महासागर से होकर गुजर रहे हैं।

चीन ने अपने सामरिक, आर्थिक एवं व्यापारिक हितों को सुरक्षित व संरक्षित रखने के लिए हिन्द महासागर में पानी के अन्दर ड्रोन का पूरा बेड़ा तैनात किया हुआ है, जो महीनों तक अन्दर रहकर कार्य कर सकता है। यह अण्डर ग्राउण्ड ड्रोन (सी विंग ग्लाइडर) अनक्रूड अण्डरवाटर व्हीकल (यू.यू.वी.) श्रेणी के हैं। यह ड्रोन लम्बे समय तक तथा लम्बी दूरी तक निगरानी करने में सक्षम है, जिनके द्वारा लगातार सूचनायें व समुद्री आंकड़े एकत्रित कर रहे हैं यह चीनी नौ सेना के लिए खुफिया जानकारी जुटा रहे हैं। इसके साथ ही हिन्द प्रशान्त क्षेत्र में दुनिया रणनीतिक ठिकानों की दौड़ देख रही है। हाल में चीन ने पाकिस्तान को अपना सबसे बड़ा और सर्वाधिक उन्नत तुगरिल श्रेणी का युद्धपोत दिया है, क्योंकि अरब व हिन्द महासागर में अपने सहयोगी की नौ सेना को मजबूत करना चाहता है। नौ सेना विशेषज्ञ अलफ्रेड महान ने उन्नीसवीं सदी के आरम्भ में कहा था कि – ‘‘जो भी देश हिन्द महासागर को नियन्त्रित करेगा, वह एशिया पर अपना वर्चस्व स्थापित करेगा, यह महासागर सात समुद्रों की कुंजी है। 21वीं शताब्दी में विश्व का भाग्य निर्धारण इसकी समुद्री सतहों पर होगा।’’

वर्तमान सुरक्षा परिदृश्य एवं उभरती हुई चुनौतियों का सामना करने के लिए भारतीय नौ सेना को सशक्त, सक्षम व सुदृढ़ बनाने के लिए अब विशेष ध्यान दिया जा रहा है। ‘आत्मनिर्भर भारत’ और भारतीय नौ सेना की ‘मेक इन इण्डिया’ पहल के अन्तर्गत प्रमुख परियोजना शुरू हो चुकी है। वर्तमान मे विभिन्न भारतीय जलयान कारखानों (शिपयार्ड) में 39 नौ सैनिक जलपोतों और पनडुब्बियों का निर्माण किया जा रहा है, जिनमें भारत की सामुद्रिक शक्ति को विशेष बढ़ावा की आशा की जा रही है। अब हमारा देश प्रत्येक प्रकार के युद्धपोत बनाने में महारत हासिल कर चुका है, इसके साथ ही संभावनायें यह भी है कि अब हम अहम निर्माण स्थल के रूप में दूसरे देशों को अपनी ओर आकर्षित कर सकेंगे। विगत अगस्त माह में देश में बने भारतीय तटरक्षक बल के जलयान ‘आईसीजीएस विग्रह’ अपनी श्रेणी का सातवां और अन्तिम गश्ती जलयान को कमीशन किया गया। समुद्री सैन्य शक्ति में वृद्धि के लिए रक्षा मंत्रालय ने 43000 करोड़ रुपये की लागत से अति आधुनिक पनडुब्बी निर्माण परियोजना को भी हरी झण्डी दे दी गयी है। परियोजना नौ सेना के ‘पी-75’ प्रोजेक्ट के तहत रणनीतिक साझेदारी की प्रथम परियोजना है, फ्रान्स के सहयेाग से देश में ही ‘प्रोजेक्ट-75’ के तहत बनायी चौथी स्कोर्पिन पनडुब्बी ‘बेला’ नौ सेना को सौंप दी गयी। इस परियोजना के तहत स्कोर्पिन डिजाइन की छः पनडुब्बी भी बनायी जा रही है।

देश के प्रथम स्वदेशी विमान वाहक (आईएसी) नवीन ‘विक्रान्त’ को समुद्री परीक्षणों की श्रृंखला की कसौटी में कसा जा रहा है। वास्तव में यह विमान वाहन पोत एक ‘तैरता हुआ द्वीप’ है। इसमें विमान को छोटे रनवे से उड़ान भरने और लैंडिंग के लिए आवश्यक समस्त सुविधायें व प्रणालियां एक साथ उपलब्ध हैं। यह जलयान 262 मीटर लम्बा, 62 मीटर चौड़ा, 59 मीटर ऊंचा, 23000 से अधिक कैबिन, 1700 लोगों के रहने की क्षमता, 52 किमी. प्रति घण्टा अधिकतम गति तथा 33 किमी. प्रति घण्टा सामान्य गति है। इस विमान वाहक युद्धपोत में 30 लड़ाकू विमान और हेलीकाप्टर तैनात किये जा सकते हैं। इसमें महिला अधिकारियों के लिए लिंग संवेदनशील आवास स्थान है। मशीनरी संचालन, जहाज नेवीगेशन और उत्तरजीविता हेतु उच्च स्तर के स्वचालन वाले जहाज को फिक्सड विंग और रोटरी विमानों के वर्गीकरण को समायोजित करने के लिए डिजायन किया गया है।

भारतीय नौ सेना के सातवें युद्धपोत (फ्रिगेट) ‘तुशिल’ का रूस में जलावतरण किया गया। उल्लेखनीय है कि भारत व रूस सरकार ने अक्टूबर 2016 में पी 1135.6 चार अतिरिक्त जलयान बनाने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किये थे, जिसके तहत दो युद्धपोत (फ्रिगेट) का निर्माण रूस में और दो का भारत में किया जाना था। यह युद्धपोत ‘लो राडार’ से बचने और समुद्र में होने वाली आवाज (शोर) से पकड़ में आने से बचने के लिए स्टील्थ प्रौद्योगिकी से सम्पन्न है। वास्तव में यह जलयान आधुनिक उपकरणों जैसे-सतह से सतह में मार करने वाले प्रक्षेपास्त्रों (एस.एस.एम.), सोनार प्रणाली, सतह पर निगरानी वाले राडार, आधुनिक संचार प्रणली और पनडुब्बी रोधी युद्ध प्रणाली के साथ ही सतह से हवा में मार करने वाले प्रक्षेपास्त्रों (एस.ए.एम.) तथा गन माइण्ट्स से लैस है। इसके साथ ही 163 मीटर लम्बा, 7400 टन भार वाला अधिकतम 30 किमी. (नाट्स) प्रतिघण्टा तथा 75 प्रतिशत स्वेदशी उपकरणों से निर्मित प्रथम स्टील्थ-गाइडेट मिसाइल (नियंत्रित प्रक्षेपास्त्र) विध्वंसक (डिस्ट्रोयर) जलयान भारतीय समुद्री सुरक्षा हेतु नौ सेना को सौंपा गया।

आत्म निर्भर भारत के लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ने को विशेष रूप से दृष्टि में रखते हुए रक्षा खरीद परिषद (डी.ए.सी.) ने भी नौ सेना के लिए 12 लाइट यूटिलिटी हेलीकाप्टरों की खरीद सहित सशस्त्र सेनाओं के लिए लगभग आठ हजार करोड़ रुपये के साजो-सामान की खरीद के प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी। हिन्दुस्तान एयरोनाटिक्स लिमिटेड (एच.ए.एल.) इन हेलीकाप्टरों का निर्माण करेगा, जबकि लाइनक्स यू-2 फायर कन्ट्रोल सिस्टम की खरीद भारत इलेक्ट्रानिक्स लिमिटेड से की जायेगी, जिसके जरिये नौ सेना के युद्धपोतों की डिटेक्शन और ट्रैकिंग प्रणाली मजबूत होगी। इसके साथ ही डोनियर एयरक्राफ्ट का मिड-लाइफ अपग्रेडेशन भी होगा। इससे हमारी नौ सेना का सैन्य क्षमता के साथ ही तटवर्ती सर्विलांस को मजबूती मिलेगी। भारत हैवी इलेक्ट्रानिक्स लिमिटेड (भेल) द्वारा नौ सेना की जरूरत के आधार पर लक्ष्य के हिसाब से सुपर रैपिड गन माउण्ट की आपूर्ति की जायेगी।

रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डी.आर.डी.ओ.) ने शत्रु के द्वारा लिये गये प्रक्षेपास्त्रों के हमलों से नौ सेना के जलयानों की सुरक्षा हेतु एक अति आधुनिक प्रौद्योगिकी ‘एडवान्स्ड चॉफ टेक्नोलॉजी’ विकसित की है। इसमें भारतीय नौ सेना की गुणवत्ता सम्बन्धी अनिवार्यता को पूरा करते हुए इस महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकी के तीन प्रारूपों- कम दूरी के चॉफ रॉकेट (एस.आर.सी.आर.) मध्यम दूरी के चॉफ रॉकेट (एम.आर.सी.आर.) तथा लम्बी दूरी के चॉफ रॉकेट (एल.आर.सी.आर.) को स्वदेश में विकसित किया है। वास्तव में यह एक ऐसी इलेक्ट्रानिक प्रौद्योगिकी है, जिसका दुश्मन की राडार से नौ सेना के जलयानों की सुरक्षा हेतु विश्व भर में प्रयोग किया जाता है। यह तकनीक शत्रु के हमलों को धोखा देने के काम आती है। अर्थात दुश्मन के द्वारा हवाई हमला, प्रक्षेपास्त्र या रॉकेट छोड़ा जाता है,  तो यह तकनीकी उसकी स्थिति का रुख मोड़ देती है या उसे लक्ष्य से पूर्व ही उसका विस्फोट करा देती है। इससे दुश्मन का हथियार लक्ष्य विहीन व निरर्थक हो जाता है। जलयानों में चॉफ मैटेरियल से लैस रॉकेट तैनात रखे जाते है जो किसी भी प्रकार के मिसाइल हमले का अन्देशा होने पर उसे चला दिया जाता है। रॉकेट से छूटे चॉफ मैटेरियल का धुंआ दुश्मन की मिसाइल को निशाने से भटका देता है। भारतीय नौ सेना की अपनी यौद्धिक क्षमता वृद्धि हेतु परमाणु  हमला करने में सक्षम है। छः पनडुब्बियों सहित 24 नई पनडुब्बी खरीदने की योजना है।

हमारी नौ सेना को उसका पहला प्रोजेक्ट-15 स्टेल्थ गाइडेड मिसाइल विध्वंसक (डिस्ट्रॉयर) युद्धपोत प्राप्त हो गया है, जिससे दुश्मन के पसीने आ जायेंगे। इस युद्धपोत में हमारे देश में बनी सबसे शक्तिशाली ‘ब्रह्मोस’ और ‘बराक’ प्रक्षेपास्त्र तैनात है। इस शक्तिशाली विध्वंस युद्धपोत का नाम ‘आई.एन.एस. विशाखापट्टनम’ दिया गया है। यह पहला स्वदेशी प्रोजेक्ट-15 स्टील्थ निर्देशित प्रक्षेपास्त्र सम्पन्न विध्वंस जलपोत है। निःसन्देह यह विध्वंसक युद्धपोत भारतीय नौ सेना की शक्ति ही नहीं बढ़ायेगा, बल्कि आत्मनिर्भर भारत को लेकर चलाये जा रहे अभियान को भी आगे ले जायेगा। अति आधुनिक तकनीक एवं घातक हथियारों से सज्जित इस युद्धपोत में 312 कर्मियों की रहने की व्यवस्था है। इस युद्धपोत के निर्माण में प्रयोग हुए कठोर स्टील का निर्माण देश में ही किया गया है। 164 मीटर लम्बे इस युद्धपोत का सभी उपकरण व हथियारों सहित कुल भार 7500 टन है। इसके साथ ही भारत अब स्वदेशी शिपयार्डों में चार लैंडिंग प्लेटफॉर्म्स डॉक्स (एल.पी.डी.) के निर्माण की तैयारी भी कर चुका है। निःसन्देह यह शुभ संकेत हैं।

हिन्द महासागर एवं हिन्द प्रशान्त क्षेत्र एक लम्बी अवधि से भू-कूटनीतिक, भू-राजनैतिक, भू-आर्थिक एवं भू-रणनीतिक रूप से विश्व की शक्तियों के मध्य संघर्ष का एक बड़ा केन्द्र बन चुका है। इसके साथ ही चीन की विस्तारवादी सोच तथा विशेष रूप से दक्षिण एशिया क्षेत्र में निरन्तर बढ़ती महत्वाकांक्षा को विशेष रूप से ध्यान में रखते हुए भारत की समुद्री सुरक्षा के सन्दर्भ में सक्षम, सुदृढ़, सतर्क एवं शक्ति सम्पन्न नौ सेना स्थापित करना अत्यन्त ही महत्वपूर्ण हो गया है। इसमें सर्वाधिक प्रशंसनीय बात यह है कि अब हम ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘मेक इन इण्डिया’ अभियान के तहत सामरिक मामलों में भी सक्षम हो रहे हैं। आज जिस स्थिति में आत्मनिर्भरता के साथ आगे बढ़ रहे हैं, निःसन्देह वर्ष 2030 तक भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी नौ शक्ति बन जाये तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। जैसा कि ‘आइ.एम.एस. विशाखापट्टनम’ विध्वंसक युद्धपोत के नौ सेना में शामिल हो जाने में उन्नत युद्धपोतों के आकार व निर्माण की क्षमता वाले राष्ट्रों के एक विशिष्ट समूह के बीच भारत अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है। स्मरणीय रहे कि विगत पांच वर्षों में भारत का रक्षा निर्यात 33 प्रतिशत तक बढ़ा है और अब भारत 75 से अधिक देशों को सैन्य उपकरणों का निर्यात कर रहा है।

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लेखक
डॉ सुरेंद्र कुमार मिश्र डिफेंस स्टडीज में पीएचडी हैं और इनका हरियाणा के विभिन्न गवर्नमेंट कालेजों में शिक्षण का अनुभव रहा है। वह जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी जोधपुर के विजिटिंग फेलो हैं। ‘रक्षा अनुसंधान’ और ‘टनर’ नामक डिफेंस स्टउीज रिसर्च जरनल से जुड़े हैं। 15 सालों का किताबों के संपादन का अनुभव है और करीब 35 सालों से देश के विभिन्न समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में लिख रहे हैं। डिफेंस मॉनिटर पत्रिका नई दिल्ली के संपादकीय सलाहकार हैं। उन्हें देश की रक्षा व सुरक्षा पर हिंदी में उल्लेखनीय किताब लिखने के लिए भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय से वर्ष 2000, 2006 और 2011 में प्रथम, तृतीय व द्वितीय पुरस्कार मिल चुका है। इन्होंने पांच रिसर्च प्रोजेक्ट पूरे किए हैं, इनकी 47 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं और 300 से अधिक रिसर्च पेपर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय जरनल में छप चुके हैं।

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