“जो एयरोस्पेस को नियंत्रित करता है वह पृथ्वी ग्रह को नियंत्रित करेगा” यह 1950 के दशक तक भली भाँति प्रचलित था। बड़ी शक्तियों ने एयरोस्पेस पर अधिक धन खर्च करना शुरू कर दिया। वायु मार्ग सैन्य प्रभावों को गति, सीमा, सटीकता और घातकता प्रदान करता है। वायु शक्ति और सभी प्रकार के अन्य युद्धों का भविष्य आपस में जुड़ा हुआ है। सभी प्रकार के सफल परिचालनों के लिए अभी भी श्रेष्ठ वायु मार्ग एक पूर्व-आवश्यकता है। वायु मार्ग से सभी प्रकार के युद्ध परिणाम प्रभावित होने लगे हैं और भारत-पाकिस्तान, अरब-इजरायल फ़ॉकलैंड, कोसोवो, इराक, अफगानिस्तान, कई अन्य युद्धों में इसने प्रमुख भूमिका निभाई है। चीन ने एयरोस्पेस संपत्तियों में भारी निवेश किया है।
अभी हाल ही में लद्दाख में भारत-चीन विवाद के समय भारतीय वायु सेना के परिवहन बेड़े ने अपेक्षाकृत दूर के क्षेत्रों में उड़ान भरकर बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हेलीकॉप्टर अंतर घाटी और पहाड़ी चोटी पर सक्रिय रहे और उपग्रह तथा यूएवी खुफिया, निगरानी के साथ साथ टोही (आईएसआर) भी करते रहे हैं। लड़ाकू और हमलावर हेलीकॉप्टर सभी आक्रामक अभियानों के लिए तैयार हैं। आईएएफ़ के सी-130 ने पैरा ड्रॉप के अभ्यास मिशन में अपना बल दिखाया।
भारतीय वायुसेना की वर्तमान स्थिति
आईएएफ के पास 32 लड़ाकू स्क्वाड्रन हैं। इनमें मोटे तौर पर दो राफेल, 12 एसयू 30-एमकेआई, चार मिग-21 बाइसन, मिग-29 और मिराज-2000 के तीन-तीन और छः-जगुआर और एलसीए के दो विमान शामिल हैं। भारतीय वायु सेना में राफेल लड़ाकू विमानों के शामिल होने से चीन के जे-10, जे-11 और एस यू-27 फाइटर जेट्स पर हवाई श्रेष्ठता बनाए रखने में भारत सक्षम होगा। बहुत लंबी दूरी की उल्का और मिका की अधिक दृश्य सीमा ( बीवीआर) के कारण हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलों से लैस, राफेल लड़ाकू विमान चीनी हवाई क्षेत्र के लिए खतरनाक सिद्ध हो सकते है। सुखोई, सुखोई एसयू-30, एमकेआई वायु सेना के श्रेष्ठ सेनानी के रूप में कार्य करते हैं, जिसमें हवा से जमीन पर हमला करने की क्षमता होती है। 11 सी-17 और सी-130-, 17 आई एल-76, और 100 से अधिक उन्नत एएन-32 के साथ साथ भारतीय वायु सेना के पास कार्गो और ट्रूप लिफ्ट की क्षमता भी है। इसी तरह 15 बोइंग चिनूक हेवी-लिफ्ट और 22 अपाचे एएच-64ई अटैक हेलीकॉप्टरों के शामिल होने के बाद, अब,पहले से ही विद्यमान 240 एमआई-17 श्रृंखला के मध्यम-लिफ्ट हेलीकॉप्टर और लगभग 100 एएलएच वेरिएंट के छोटे चेतक/चीता भारतीय वायुसेना में शामिल है। आईएएफ के पास केवल तीन बड़े अवक्स विमान और डीआरडीओ द्वारा विकसित दो स्वदेशी एइडब्ल्यूएंडसी विमान हैं। आईएएफ़ के पास केवल छह आईएल-78 फ्लाइट रिफ्यूलिंग एयरक्राफ्ट (एफआरए) हैं। ये दो बेड़े भारत जैसे महाद्वीपीय आकार के देश के लिए अत्यधिक अपर्याप्त हैं, जिसे हिंद महासागर क्षेत्र को भी कवर करना है।
भारत के पास पूरी तरह से कवर और एकीकृत वायु रक्षा (एडी) रडार फुट-प्रिंट है। आईएएफ द्वारा एसएएम-3, एसएएम पेचोरा और एसएएम 8 ओएसए- एके जैसी सतह से हवा में मार करने वाली कुछ मिसाइल प्रणालियों का संचालन भी अभी जारी है। बड़ी संख्या में स्वदेशी आकाश के एडी सिस्टम में शामिल होने और नवंबर 2021 तक रूस से पांच एस-400 सिस्टम आने से एडी कवरेज सशक्त हो जायेगा। चीनी सीमा को और अधिक कवर करने के लिए अधिक प्रणालियों को शामिल करने की आवश्यकता होगी। भारतीय वायु सेना के पास एमआईसीए, उल्का, एस्ट्रा, स्कालप, ब्रह्मोस और हैमर सहित हवाई हथियारों की एक महत्वपूर्ण सूची है।
भविष्य में यह प्रणाली मानव रहित होगी। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस समर्थित ऑटोनॉमस सिस्टम स्वतंत्र रूप से या एक दूसरे के साथ समूह में अथवा मानवयुक्त विमान के साथ एक टीम के रूप में उड़ान भरेंगे। भारतीय वायु सेना के पास पर्याप्त मात्रा में यूएवी हैं। अब वर्तमान में इसे स्वदेशी रूप से विकसित या अधिगृहित किया जा रहा है।
वायु क्षेत्र का सामरिक प्रभाव
वायु शक्ति स्वाभाविक रूप से सामरिक प्रकृति की है और आक्रामक रूप में इसका सर्वोत्तम उपयोग है। यह पारंपरिक निरोधक है। विभिन्न स्प्रेड आउट लक्ष्यों के विरुद्ध हवाई अभियानों को एक साथ निष्पादित किया जा सकता है। यह पिन बिंदु सटीकता के साथ गतिज और गैर-गतिज दोनों विकल्प प्रदान कर सकता है। सटीक वायु हथियारों ने द्रव्यमान के अर्थ को फिर से परिभाषित किया है। जो हवा को नियंत्रित करता है व साथ ही सतह को भी नियंत्रित कर सकता है। वायुसेना जमीनी बलों के परिणामों और कार्यों को प्रभावित करती है। प्रौद्योगिकी और वायु शक्ति पूरी तरह से और संयुक्त रूप से आपस में संबंधित हैं। भारतीय वायु सेना भारत की वायु रक्षा का उत्तरदायी है। आईएएफ के काउंटर एयर मिशन को बलो द्वारा भारत की रक्षा सुनिश्चित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। आईएएफ की एयरलिफ्ट रणनीतिक पहुंच इसके रणनीतिक प्रभावों को बढ़ाता है। वायु शक्ति में स्विंग-रोल क्षमताओं का फायदा उठाने की क्षमता है। जब आप कहते हैं कि राफेल एक ओमनी रोल फाइटर है, तो इसका मतलब है कि यह एक ही मिशन में कई प्रकार के कार्य कर सकता है। नेट-केंद्रित युद्ध में निर्णय-श्रेष्ठता के लिए आईएसआर और भी अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। वायु शक्ति इसके लिए सबसे उपयुक्त है।
बढ़ता हुआ पीएलएएएफ
चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी एयर फ़ोर्स (PLAAF) के पास लड़ाकू विमानों और उन्नत वायु रक्षा प्रणालियों का विशाल बेड़ा है। इसके लगभग 1700 लड़ाकू/बमवर्षक विमानों में से 800 से अधिक चौथी पीढ़ी के हैं। प्लाफ के पास पहले से ही लगभग 40 पांचवीं पीढ़ी के जे-20 लड़ाकू विमान हैं और 2027 तक इनमें 200 और शामिल करने का लक्ष्य है। इस बीच, एफसी-31/जे-31 के विकास में तेजी लाई जा रही है। प्लाफ के पास 120 एच-6 बॉम्बर वैरिएंट के साथ साथ एक रणनीतिक बमवर्षक बेड़ा भी है, प्रत्येक में छह क्रूज मिसाइलें हैं। उनके पास अवाक्स और फ्रा की अपेक्षाकृत बड़ी संख्या है। चीन के पास सतह से सतह पर मार करने वाली एक विशाल मिसाइल बल के साथ बढ़त है। चीन की सबसे बड़ी ताकत उसका स्वदेशी विमान उद्योग है जो सभी प्रकार के विमान और उन्नत हेलीकॉप्टरों का उत्पादन करता है। चीन के पास स्वदेश निर्मित यूएवी बेड़ा है। उनके पास महत्वपूर्ण समुद्री वायु शक्ति भी है, जिसमें पीएलए नेवी (पीएलएएन) के दो ऑपरेशनल एयरक्राफ्ट कैरियर और लगभग 600 एयरक्राफ्ट हैं। ड्रॉइंग बोर्ड पर दो बड़े वाहक हैं तथा दो और निर्माणाधीन हैं। अतः चीन के पास महत्वपूर्ण वायु शक्ति है।
भारतीय वायु सेना की वैश्विक पहुंच
भारतीय वायु सेना के लंबी दूरी के फ्रा और अवाक्स विमानों की फारस की खाड़ी से मलक्का सागर मध्य तक पहुंच है। इनमें से अधिकांश का अधिग्रहण किया जा रहा है। दक्षिणी प्रायद्वीप अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह में हवाई क्षेत्रों को बढ़ाया जा रहा है। यह इन-फ्लाइट ईंधन भरने के साथ-साथ पहुंच में भी इजाफा करेगा। लक्षद्वीप के द्वीपों को भी रणनीतिक रूप से विकसित किया जा रहा है। आईएएफ दुनिया की प्रमुख वायु सेनाओं के साथ मिलकर नियमित अभ्यास कर रही है और अंतःक्रियाशीलता बढ़ा रही है।
संयुक्त संचालन
सतही और उप-सतही बलों के अभियान को सफल बनाने के लिए, हवाई क्षेत्र के प्रभुत्व की पूर्व अपेक्षा है।आईएएफ को इसे सुनिश्चित करना होगा। हवाई मार्ग और हेलिकॉप्टरों द्वारा साधन उपलब्ध कराये जायेंगे जो पहाड़ी क्षेत्रों में भेज पाना बहुत कठिन होता है। हवाई जहाजों और हेलिकोप्टरों के ग्राउंड अटैक सामरिक युद्ध में अंतर लाएंगे। परिवहन और हेलीकॉप्टर बेड़े रसद सहायता प्रदान करेंगे जो पहाड़ी क्षेत्रों में महत्वपूर्ण है। भारतीय वायु सेना के पास समुद्री हमले की बड़ी क्षमता है।
चीन की तुलना में हमारी परिचालन क्षमताएं
भारतीय वायु सेना लगभग 25 हवाई क्षेत्रों से चीन के खिलाफ किसी भी प्रकार की कार्यवाही के लिए सक्षम है। चीन के पास पूर्वी लद्दाख के करीब तीन और तिब्बत में लगभग आठ हवाई क्षेत्र हैं। वे बुनियादी ढांचे को उन्नत करने की कोशिश कर रहा हैं लेकिन बहुत अधिक ऊंचाई से इसमें रुकावट आ रही है। आईएएफ बड़ी संख्या में मिशन लॉन्च करने में सक्षम है। लंबे समय तक, भारत की सैन्य संपत्ति और बुनियादी ढांचा पाकिस्तान सीमा पर केंद्रित था। अब यह ध्यान बुनियादी ढांचे के निर्माण और संपत्ति दोनों में बड़ी तेजी से बदल रहा है। सीमा सड़कों और कनेक्टिविटी में सुधार किया जा रहा है, भारतीय वायु सेना ने चीन सीमा के पास अपने उन्नत लैंडिंग ग्राउंड (एएल जी) को अपग्रेड किया है। सभी हवाई क्षेत्रों को शक्तिशाली विमान और उपकरण मिल रहे हैं। आईएएफ के पास अब चीन का सामना करने के लिए बड़ी संख्या में एसयू-30 एमके स्क्वाड्रन हैं। साथ ही पूर्वी क्षेत्र में राफेल, सी-130 जे, चिनूक और अपाचे हेलीकॉप्टर जैसे नए अधिग्रहण भी हैं। यही बात वायु रक्षा प्रणालियों और हथियारों पर भी लागू होती है।
महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों में भारत को मास्टर होना चाहिए
भारत को गेम-चेंजर प्रौद्योगिकियों में और अधिक निवेश करने की आवश्यकता है। इनमें साइबर और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, मानव रहित प्रणाली, हाइपरसोनिक तथा अन्य शामिल हैं। हाइपरसोनिक उड़ानों और हथियारों को शामिल करना मुश्किल होगा। वे बड़े लक्ष्यों के विरुद्ध बल गुणक के रूप में कार्य करेंगे। डायरेक्टेड एनर्जी हथियारों में एक्शन अधिक होता है। लेज़र आने वाले समय में मिसाइल इलेक्ट्रॉनिक्स को जला सकता हैं या इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल सेंसर को अस्त-व्यस्त कर सकता है। भारत को शक्तिशाली बनने के लिए, विमान के इंजन और एईएसए रडार प्रौद्योगिकियों में भी महारत हासिल करनी होगी। उच्च तकनीक को अपनाने के लिए संयुक्त उद्यम सबसे अच्छा मार्गहै। हमें लंबी दूरी के हथियारों की जरूरत है, जिसमें लगभग 400 किलोमीटर की रेंज वाली हवाई मिसाइलें तथा हवा से प्रक्षेपित क्रूज मिसाइलें भी शामिल हो। तथा उनकी मारक क्षमता लगभग 1,500 किलोमीटर तक हो।
भविष्य का मार्ग
भारतीय वायुसेना वर्ष 2038 तक 42 स्क्वाड्रन तक पहुंच सकती है, बशर्ते स्वदेशी एलसीए वेरिएंट का विकास हो, और उन्नत मध्यम लड़ाकू विमानों (एएमसीए) में तेजी आए। भारतीय वायु सेना को अभी भी बड़े तथा मध्यम लड़ाकू विमानों के लगभग छह स्क्वाड्रन खरीदने की आवश्यकता होगी। साथ ही 8 बड़े और 10 छोटे अवाक्स, कम से कम 12 फ्रा विमानों का भी लक्ष्य रखना चाहिए। ये संख्या वर्ष 2030 से पहले हासिल की जानी होगी। उस समय तक आईएएफ के पास यूकाव् सिस्टम का एक बड़ा बेड़ा हो जाना चाहिए, जिसमें डीआरडीओ द्वारा स्वदेशी रूप से विकसित यूएवी भी शामिल है। भारतीय वायु सेना के पास ब्रह्मोस और एस्ट्रा मिसाइलों के नवीनतम संस्करणों सहित लंबी दूरी की हवाई मिसाइलों की एक बड़ी संख्या भी होनी चाहिए।
भारत को सतह से सतह पर मार करने वाली चीनी मिसाइल (एसएसएम) के संभावित किसी बड़े हमले से भी अपना बचाव करना होगा। हमें एस-400 और आयरन डोम श्रेणी की वायु रक्षा एसएएम प्रणालियों की आवश्यकता है। भारत कई स्वदेशी वायु रक्षा प्रणालियों पर काम कर रहा है, जिनमें से कुछ पर इजरायल के साथ संयुक्त रूप से भी कार्य किया जा रहा है। एसएसएम और क्रूज मिसाइलों सहित बड़े गोला-बारूद और मिसाइलों का भंडारण करना आवश्यक है। भारत का मिसाइल कार्यक्रम अच्छा है। पृथ्वी, अग्नि, ब्रह्मोस, आकाश और अस्त्र मिसाइलें सफल हैं, और इसके आधुनिक बनाने में तेजी लानी होगी। इलेक्ट्रॉनिक और साइबर युद्ध क्षमता महत्वपूर्ण होने जा रही है। इस क्षेत्र में अभी और काम करने की जरूरत है।
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