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Geopolitics & National Security
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क्वाड में भारत को सुरक्षा नहीं, मिला उससे भी ज्यादा

कंवल सिब्बल
शनि, 16 अक्टूबर 2021   |   6 मिनट में पढ़ें

रणनीतिक हलको में यह बहस हो रही है कि क्वाड से भारत के सुरक्षा हितों की रक्षा होती है या नही। ऑस्ट्रेलिया-यूके-यूएस (एयूकेयूएस) रक्षा समझौते की घोषणा के बाद से इसकी उपयोगिता पर और सवाल उठाये जा रहे हैं। क्वाड के प्रति हमारा दृष्टिकोण हमेशा सुरक्षा से परे रहा है,  बावजूद इसके कि इसे “चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता” के रूप में तैयार किया गया है।

चीन के दक्षिण चीन सागर और हिंद महासागर में समुद्री विस्तार को देखते हुए क्वाड देशों की समुद्री सुरक्षा मुख्य चिंता की बात रही है। दक्षिण चीन और पूर्वी चीन सागर में चीन के क्षेत्रीय दावे हमेशा से ही रहे हैं। हिंद महासागर में चीन की रणनीति बंदरगाहों पर क्षेत्रीय नियंत्रण करना रही है।

चीन के नौसैनिक विस्तार की गति अभूतपूर्व है, जिसमें परमाणु और पारंपरिक पनडुब्बियां और विमान वाहक शामिल हैं। चीन को अगर अपनी राजनीतिक शक्ति का प्रयोग करना   है और समुद्र में संचार की अपनी लाइनों की रक्षा करनी है तो वो अपनी नौसैनिक शक्ति पश्चिमी प्रशांत तक सीमित नहीं रख सकता। वह उसे हिंद महासागर और उससे भी आगे तक फैलाना चाहेगा। हिंद महासागर में बड़े पैमाने पर प्रवेश करने से पहले चीन को पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में विशाल अमेरिकी नौसैनिक शक्ति का मुकाबला करना होगा। जापान की नौसेना पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में पूरक बल है। ऑस्ट्रेलिया की नौसैनिक क्षमता अभी सीमित है, आकस समझौते के तहत अमेरिकी परमाणु पनडुब्बियों को शामिल करने के साथ ही वह रक्षात्मक और आक्रामक क्षमता हासिल कर लेगी।

भारत की नौसैनिक शक्ति हिंद महासागर में बहुत महत्व रखती है, जो समुद्र में चीन के विस्तारवाद के खिलाफ एक कवच के रूप में कार्य करती है। ऐसा संचार के समुद्री मार्गों पर भारत के भौगोलिक प्रभुत्व के कारण भी है। यूएस-इंडिया मालाबार अभ्यास अपने शुरू के द्विपक्षीय ढांचे से बाहर आ गया है और अब अलग-अलग चरणों में जापान और ऑस्ट्रेलिया को शामिल करके एक संयुक्त क्वाड अभ्यास बन गया है। अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया और चीन के बीच आपसी संबंधों के अन्य कारणों, विशेष रूप से आर्थिक कारणों,  से  भारत के मन में चीन के साथ टकराव या मेलजोल रखने के बारे में दुविधा हैं, अन्य तीनों देश अपने हितों में लगे है, परंतु समुद्री सुरक्षा उनके और भारत के बीच एक जरूरी कारक बना रहेगा। यदि चीन अमेरिकी नौसेना को पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र से बाहर  करने में सफल हो जाता है, तो इसका अर्थ वास्तव में चीन के आधिपत्य को स्वीकार करना और अमेरिकी वैश्विक शक्ति की वापसी होगी, इसके सभी परिणामों का असर भारत और एशिया पर पड़ेगा।

क्वाड को समुद्री सुरक्षा मामलों पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत नहीं है, हालांकि अमेरिकी उप विदेश मंत्री वेंडी शेरमेन ने अपनी हालिया यात्रा के दौरान नई दिल्ली में टिप्पणी की थी कि क्वाड “गैर-रक्षा” के दायरे में आता है। गैर-सैन्य व्यवस्था” और विदेश विभाग के एक अधिकारी ने क्वाड की अनौपचारिक व्यवस्था पर बोल कर वास्तविकता को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया है।

यह सही है कि सुरक्षा पर अधिक जोर देने से राजनयिक गतिशीलता सीमित हो जाती है, विशेष रूप से आसियान देशों की दृष्टि में, जो अमेरिका और चीन के बीच प्रत्यक्ष मुकाबले से कतराते हैं। क्वाड प्लस में चीन के खिलाफ समुद्री रक्षा के लिए इंडोनेशिया और वियतनाम जैसे प्रमुख आसियान देशों को शामिल करने का विचार है, क्योंकि ये देश भारत-प्रशांत चोक पॉइंट्स- मलक्का, लोम्बोक और सुंडा के उस जलमार्ग के माध्यम है, जो चीनी परमाणु और अन्य पनडुब्बियों के हिंद महासागर में प्रवेश के दौरान आसियान देशों के अंतरिक्ष से होकर गुजरता है।

एक व्यापक क्वाड एजेंडा जिसमें महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों और सामग्रियों, भरोसेमंद आपूर्ति श्रृंखला, बुनियादी ढांचे, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई), क्वांटम कंप्यूटिंग, साइबर मुद्दों जैसे गैर-सैन्य क्षेत्रों में सहयोग शामिल है,  ये कोविड महामारी का मुकाबला करने, वैक्सीन उत्पादन और जलवायु परिवर्तन के मुद्दों पर भी साथ जुड़ सकते हैं ।  आसियान देश इसे चीन के खिलाफ देखे बिना केवल मुद्दों के आधार पर सहयोग करेंगे।   इसीलिए क्वाड देश भारत और प्रशांत महासागरों के बीच एक सेतु के रूप में आसियान की  केन्द्रियता पर जोर दे रहे हैं, जैसा कि प्रधान मंत्री मोदी ने भी कहा।

इसीलिए, भारत ने शुरू से ही, क्वाड के एक व्यापक एजेंडे पर जोर दिया है, जिसमें मानवीय सहायता और आपदा राहत, समुद्री डकैती, मानव तस्करी, अनियंत्रित मछली पकड़ने के अलावा विश्वसनीय आपूर्ति श्रृंखला, महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों आदि मुद्दे शामिल हैं। पहले वर्चुअल क्वाड शिखर सम्मेलन में भारत-प्रशांत क्षेत्र में कोविड के लिए वैक्सीन उत्पादन, एआई, क्वांटम कंप्यूटिंग, 5जी एटीएम एल, और जलवायु परिवर्तन जैसी महत्वपूर्ण तकनीकों पर तीन कार्य समूह बनाए गये हैं।

सितंबर में दूसरे शिखर सम्मेलन में पूर्वी चीन और दक्षिण चीन सागर सहित एक स्वतंत्र, खुले, नियम-आधारित समुद्री व्यवस्था के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया गया, जो अंतरराष्ट्रीय कानून में निहित है और केवल यूएनसीएलओएस और प्रशांत द्वीप की सुरक्षा  के लिए है। शिखर सम्मेलन में एक बड़े एजेंडे को महत्व दिया गया। इस के लिए क्वाड कोविड में सहयोग करने के लिए एक वैक्सीन विशेषज्ञ समूह बनायेगा और वैक्सीन की सरल और सुरक्षित आपूर्ति  के लिए भारत के विचारों को महत्व  देगा।

इस सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन के लिए भारत की चेतावनी पर भी ध्यान दिया गया। जिसमें वैश्विक शून्य उत्सर्जन “2050 तक के लक्ष्य का निर्धारण, राष्ट्रीय परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए” होना चाहिए। शिखर सम्मेलन में आपदाओं को रोकने के लिए बुनियादी ढांचे के गठबंधन को मजबूत करने का समर्थन भी किया गया, जो एक भारतीय पहल है। स्वच्छ हाइड्रोजन साझेदारी स्थापित की गई है। साथ ही महत्वपूर्ण और उभरती प्रौद्योगिकियों के विकास, उनके लोकतांत्रिक उपयोग और मानवाधिकारों के सम्मान की मांग की गयी ।

इसके अलावा  महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों और सामग्रियों की सुरक्षित आपूर्ति और इसमें  लचीलापन, अर्ध-कंडक्टर आपूर्ति श्रृंखला, सुरक्षित 5जी और 5जी नेटवर्क के लिए भरोसेमंद  विक्रेताओं को बढ़ावा देना होगा। ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि तकनीकी मानकों के विकास में सहयोग के लिए एक संपर्क समूह का गठन किया गया है। टिकाऊ बुनियादी ढांचे के विकास, पारदर्शी उधार प्रथाओं, ऋण स्थिरता आदि को बढ़ावा देने के लिए नई क्वाड इंफ्रास्ट्रक्चर साझेदारी के हिस्से के रूप में एक समन्वय समूह  की स्थापना की  गयी।

एक वरिष्ठ साइबर दल साइबरस्पेस में नए सहयोग का पता लगाएगा। प्रमुख अमेरिकी विश्वविद्यालयों में एसटीईएम अध्ययन के लिए प्रत्येक देश के 100 स्नातकों को शामिल करते हुए एक नया क्वाड फैलोशिप कार्यक्रम तैयार किया गया है।

इस एजेंडा में, लगभग पूरी तरह से, स्पष्ट चीनी आयाम है। चीन विश्वसनीय लोगों द्वारा महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों और सामग्रियों की आपूर्ति श्रृंखला को नियंत्रित करने की रणनीति बना कर, भरोसेमंद 5जी प्रौद्योगिकियों के विकास, मानकों के विकास में सहयोग पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। विकसित की जाने वाली वैकल्पिक तकनीकों को इसके निर्देशों के अनुकूल होना चाहिए, साथ ही बुनियादी ढांचे में बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का विरोध करना, चीन की वैक्सीन कूटनीति और इसके साइबर खतरों के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित करनी होगी।

भारत के हित, सुरक्षा के अलावा प्रौद्योगिकी और आर्थिक सहयोग करने में हैं। भारत को अपना विकास करने, अर्थव्यवस्था को आधुनिक बनाने, महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों में वैश्विक आपूर्ति का हिस्सा बनने, पर्यावरण के अनुकूल प्रौद्योगिकियों के विकास में  शामिल होने, साइबर हमलों से खुद को बचाने की आवश्यकता है- इन सभी उद्देश्यों को क्वाड के भीतर अधिक आपसी सहयोग से आगे बढ़ाया जा सकता है।

इसलिए हमें सुरक्षा के सीमित रूप के बजाय इसे बड़े स्वरूप में देखना चाहिए जो महत्वपूर्ण है। हमें व्यापक रूप से मजबूत होने की जरूरत है, केवल सैन्य भूमिका और क्षमता के मामले में नही। भारत, कभी भी किसी सैन्य गठबंधन का हिस्सा नहीं बनना चाहता, क्योंकि यह हमें हमारे मजबूत भागीदारों द्वारा लिए जाने वाले निर्णयों का बंधक बना देगा जो हमारे हित में नहीं हैं, जबकि वे, अपने स्वयं के हितों के विरुद्ध कार्य नहीं करेंगे।

हमारे क्वाड पार्टनर भी भारत की सुरक्षा और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा की जिम्मेदारी नहीं लेना चाहेंगे, क्योंकि अगर वो ऐसा करते हैं तो इसका मतलब होगा कि चीन और पाकिस्तान के साथ हमारे संघर्षों में उनके द्वारा सैन्य रूप से शामिल होना। हमारी  जमीनी चुनौतियों का सामना हमें खुद ही करना होगा। क्वाड देशों का उद्देश्य चीन के साथ वास्तविक सैन्य संघर्ष  नहीं है। इसका उद्देश्य रक्षात्मक है- जो चीन की विघटनकारी महत्वाकांक्षाओं पर अंकुश लगाना है। इसका उद्देश्य सामूहिक रूप से हेजिंग रणनीतियों को आगे बढ़ाना है। हालांकि अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के मामले में आपसी रक्षा संधियों से उत्पन्न होने वाली मजबूरियाँ हैं।

भारत, हालांकि, सुरक्षा क्षेत्र के बोझ को साझा करने के खिलाफ नहीं है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अपने संबोधन के दौरान, जब भारत इस परिषद की अध्यक्षता कर रहा  है, वह  खुद को हिंद महासागर में एक वास्तविक सुरक्षा प्रदाता के रूप में देखता है। हिंद महासागर में भारत की भूमिका समुद्री सुरक्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि कोई अन्य क्वाड सदस्य , यहां तक ​​कि अमेरिका भी जिसकी प्राथमिक चुनौती प्रशांत क्षेत्र में है, इस बोझ को नहीं उठा सकता। इंडो-पैसिफिक समुद्री क्षेत्र में एक मजबूत क्वाड, चीन से हमारी धरती की चुनौतियों में सहायक होगा, क्योंकि बाद में चीन को इस स्थिति से अपने “दो मोर्चो पर” निपटना  होगा।

आकस का उद्देश्य हमारे हितों के विरुद्ध नहीं है। ऑस्ट्रेलिया प्रशांत और भारतीय महासागरों  में चीन का मुकाबला करने के लिए अत्यधिक उन्नत समुद्री क्षमता हासिल कर लेगा। हमें इस नए समझौते से कोई आपत्ति नहीं है। वेंडी शेरमेन ने नई दिल्ली में कहा कि क्वाड और आकस एक पहेली के  गैर-प्रतिस्पर्धी दो भाग हैं।

अगर भारत अमेरिका के साथ गठबंधन किए बिना अपने रक्षा संबंधों को मजबूत कर रहा है, तो हमारे लिए गठबंधन के दो सदस्यों द्वारा अपने सैन्य संबंधों को मजबूत करने पर सवाल उठाने का कोई कारण नहीं है। अमेरिका, निश्चित रूप से, लेकिन ऑस्ट्रेलिया और यूके भी, चीन की शक्ति का मुकाबला करने के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं, उस देश के साथ उनके बड़े वाणिज्यिक संबंधों को देखते हुए आर्थिक लागत कितनी भी हो।

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लेखक
कंवल सिब्बल एक प्रतिष्ठित राजनयिक हैं जो भारत सरकार के विदेश सचिव के रूप में सेवानिवृत्त हुए हैं। 2017 में भारत सरकार ने उन्हें सार्वजनिक मामलों के क्षेत्र में उनकी विशिष्ट सेवाओं के लिए पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया।

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