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संयुक्त राष्ट्र महासभा में इमरान खान का विचारहीन, नीरस और कटु आलोचक रूप

सुशांत सरीन
गुरु, 30 सितम्बर 2021   |   5 मिनट में पढ़ें

इमरान खान के समर्थकों (जिसमें आज्ञाकारी सेवानिवृत्त पाकिस्तानी जनरल, राजनयिक और ‘सेवारत’ पत्रकार शामिल हैं) द्वारा यह कल्पना की जा सकती है कि तालिबान खान के वैश्विक मंच पर बोलने से दुनिया थम जाती है, जबकि वास्तविकता यह है कि मुट्ठी भर लोग ही है जो पाकिस्तान पर नजर रखते हैं। बाकी पूरी दुनिया में कोई उनकी तनिक भी परवाह नहीं करता। पाकिस्तान एक अच्छा क्षेत्रीय खिलाड़ी हो सकता है, जिसे मैडलिन अलब्राइट ने परमाणु हथियारों के कब्जे, अफगानिस्तान और आतंकवाद में इसकी भागीदारी होने के कारण ‘एक अंतरराष्ट्रीय माइग्रेन’ कहा है।

दूसरे शब्दों में, पाकिस्तान की यूएसपी, इसका कोई सकारात्मक गुण अथवा योगदान नहीं अपितु इसका शांति भंग करने वाला रूप है। यह मुद्दा केवल बात करने के लिए ही नहीं है,  परंतु दुनिया में कितने ही लोग इन्हें सुनने के लिए पराग्वे, पनामा, बुर्किना फासो या माली के राष्ट्रपति को सुनने की तरह प्रतीक्षा करते हैं। और फिर भी, वे यदि मानते हैं कि दुनिया उनके महान नेता के इर्द-गिर्द घूमती है, तो इस विकार को दूर करने के लिए कोई कुछ नहीं कर सकता।

परंतु इसका एक अन्य कारण यह भी हैं कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री का भाषण बहुत उबाऊ  होता है। पाकिस्तान में रुचि रखने वाला कोई भी व्यक्ति जानता है कि उनका भाषण व्यर्थ की बातों, जिसे पाकिस्तानी वर्षो से दोहरा रहे हैं-अफगानिस्तान, कश्मीर, भारत, इस्लामोफोबिया से भरा होगा। शैली परिवर्तित हो सकती है, प्राथमिकता का क्रम बदल सकता है, लेकिन मूल विषय वही रहता है। पाकिस्तान के मुंह से कभी भी कुछ नया या ताजा नहीं निकलता।

इसे ऐसे भी समझा जा सकता है, कि पाकिस्तानी नेताओं के पास अपने देश में या विश्व के बाकी हिस्सों में अपने सकारात्मक योगदान को दिखाने के नाम पर कुछ और नहीं है। दूसरा, किसी भी नागरिक के लिए ‘चयनित’ नेता, विशेष रूप से इमरान खान जैसे किसी व्यक्ति द्वारा कही गयी कोई भी बात वास्तव में मायने नहीं रखती क्योंकि किसी भी महत्वपूर्ण बात पर पाकिस्तान के साथ चर्चा और फैसला लेने के किसी भी मुद्दे पर निर्णय पाकिस्तानी सेना ही किया जाता है। इसलिए इमरान एक शो ब्वॉय है, जिसका इस्तेमाल  पुराने जमाने की सार्वजनिक मुद्राओं के  रूप में किया जाता है या सेना के गुड कैप के स्थान पर बैड- केप दिखाने के लिए प्रयोग में लाया जाता है। इमरान के साथ ऐसा ही है क्योंकि वह घर की गैलरी में खेल सकता है और राजनीतिक रूप से लोकप्रिय पद ग्रहण कर सकता है इससे ज्यादा नहीं।

सही शब्दों में इमरान खान का भाषण उनकी रिक्तता, अशिष्टता और निंदनीय व्यक्तित्व का प्रतीक था। इमरान खान के पहले से रिकॉर्ड किए गए भाषण में वास्तविक रुचि का एकमात्र बिंदु यह था कि वह काफी दुबला लग रहे थे। बोटॉक्स उपचार और बालों का काला रंग उतना अच्छा काम नहीं कर रहा था। जो सबसे ज्यादा आश्चर्य जनक था शायद नहीं भी था कि इस बार उन्होंने पूर्व लिखित भाषण पढ़ा। वो अपने मुह फट्ट होने के लिए बदनाम हैं और इस प्रक्रिया में अपने आप को मूर्ख बना लेते हैं और अपने देश को शर्मिंदा करते हैं। ‘जर्मनी और जापान एक सीमा साझा करते हैं’, ‘हक्कानी’ एक अफगान जनजाति हैं, और ऐसे कई और रत्न इनके मुख से आए हैं। इस बार उनके विचारकों-रावलपिंडी के जनरलों और शायद उनके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मोईद यूसुफ-ने उन्हें एक लिखित भाषण    पढ़ने के लिए  इस लिए कहा ताकि वह गलती ना कर पाए ।

इस बार तो अपने ‘चुनिंदा’ प्रधान मंत्री इमरान खान के कारण पाकिस्तान की स्थिति और अधिक हास्यास्पद हुई जब उन्होंने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के दावरा सोवियत संघ से लड़ने वाले अफगान मुजाहिदीन की तुलना अमेरिका के संस्थापकों से की। दरअसल, रीगन ने निकारागुआ में कॉन्ट्रा विद्रोहियों के लिए यह बात कही थी।

इमरान खान और उनके साथियों की ‘वैकल्पिक तथ्यों’ को बढ़ावा देने की प्रवृत्ति-या उनका  स्पष्ट झूठ-संयुक्त राष्ट्र के लिए कोई नई बात नहीं है। संयुक्त राष्ट्र में एक पूर्व पाकिस्तानी राजदूत मलीहा लोधी ने एक सीरियाई लड़की की तस्वीर प्रदर्शित की और इसे कश्मीर की लड़की के रूप में प्रसारित करने की कोशिश की। इमरान खान भी अपने स्वयं के तथ्यों को इसमें जोड़ देते है। उनमें से अधिकांश भारतीय केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर में कथित मानवाधिकारों के उल्लंघन पर एक निरर्थक ‘डोजियर’ पर आधारित होते हैं, जिसे उन्होंने कुछ दिन पहले  तैयार किया होता है। पाकिस्तानियों के साथ समस्या यह है कि वे फर्जी खबरें फैलाते हैं और जब दुनिया में कोई भी उनके द्वारा बेचे जा रहे कपट को नहीं खरीदता, तो वे विलाप करने लगते हैं कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय उनके ‘तथ्यों’ की परवाह नहीं करता।

उदाहरण के लिए इमरान खान ने उपमहाद्वीप के मूल तालिबान समर्थित सैयद अली गिलानी को दफनाने की शिकायत की, जो कश्मीर को एक इस्लामिक राज्य बनाना चाहता था और जिसने कश्मीर की सड़कों पर युवतियों पर तेजाब फेंकने का बचाव किया था।  जो एक ऐसे देश से आता है जहाँ एक पूर्व प्रधान मंत्री-जुल्फिकार भुट्टो को गुप्त रूप से दफन कर दिया था। जिसे एक सैन्य तानाशाह द्वारा फांसी दी गई थी। पाकिस्तान में ही  जल्दबाजी में एक सम्माननीय बलूच नेता-अकबर बुगती-को दफन कर दिया था, जिसे एक अन्य सैन्य तानाशाह ने मरवा दिया था। ऐसे में इमरान खान द्वारा गिलानी को दफन  किये जाने के बारे में बात करना कहाँ तक उचित है। जिसे पूरी तरह से इस्लामी रीति-रिवाजों के अनुसार दफनाया गया था, उनका परिवार यह सब भव्यता के बिना ही करना चाहता था। भारतीय सुरक्षा बलों द्वारा नष्ट किए गए “पूरे पड़ोस और गांवों” के बारे में जानना भी दिलचस्प होगा।

संयोग से, यह पाकिस्तान है जिसने खैबर पख्तूनख्वा के पश्तून इलाकों में बहु विकल्पी भू -नीति अपनाई, जिससे पाकिस्तान सेना द्वारा पूरे के पूरे कस्बों को सपाट बना दिया गया  था। कश्मीर पर कम से कम 900,000 मजबूत सुरक्षा बलों की जानकारी हास्यास्पद है। हर दो साल में पाकिस्तान इस आंकड़े में 1,00,000 जोड़ देता है। एक या दो वर्ष और प्रतीक्षा  करो, और यह आंकड़ा एक मिलियन तक पहुंच जाएगा।

अंत में, इमरान खान द्वारा भारत को शामिल करने के लिए रखी गई शर्तो-केंद्र शासित प्रदेश में संवैधानिक सुधारों को उलटना और जनसांख्यिकीय परिवर्तनों को रोकना-को भारत द्वारा उसी तरह से खारिज किया जाएगा, जिसके वे हकदार हैं। वास्तव में, पाकिस्तान से उलझने से कुछ हासिल नहीं होगा, निश्चित रूप से भारत की संप्रभुता और सुरक्षा की कीमत पर तो ऐसा बिल्कुल नहीं करना चाहिए।

अफगानिस्तान पर, इमरान खान ने पाकिस्तानी मंशा को आगे बढ़ाने का प्रयास किया कि अब तालिबान की प्रॉक्सी के रूप में उस देश पर कब्जे से  पाकिस्तान के साहस और उसकी जीत की कीमत अब दुनिया को चुकानी होगी। उन्होंने इसके लिए अमेरिका को जिम्मेदार ठहराया और वस्तुतः सभी पश्तूनों को तालिबान समर्थक करार कर दिया। ऐसा उस समय  हुआ जब वह खुद तालिबान खान के उपनाम का आनंद ले रहा है, एक ऐसा उपनाम जो उसने तालिबान ब्रांड के प्रति ‘न्याय’ के लिए अपनी प्रशंसा के कारण अर्जित किया है-  जिसमे लोगों के अंगों को काटना, लोगों को सार्वजनिक रूप से फांसी देना, महिलाओं के साथ चैटेल की तरह व्यवहार करना और उन्हें बंद रखना, उन्हें शिक्षा से वंचित करना आदि  शामिल है। यहां तक ​​कि पुरुषों ने महिलाओं के पहनावे पर दोष लगाकर बलात्कार और छेड़छाड़ को सही ठहराया है। तालिबान के लिए एक वकील के रूप में कार्य करते हुए-अब  तालिबान के राजदूत के रूप में उन्होंने अनुरोध किया कि तालिबान को मजबूत और स्थिर किया जाना चाहिए।

उन्होंने तालिबान द्वारा किए गए सभी वादों को याद किया, लेकिन यह उल्लेख करना भूल गये कि तालिबान के सत्ता पर कब्ज़ा करने के बाद इनमें से तालिबन ने प्रत्येक वादे का खुले तौर पर उल्लंघन किया गया है। कोई समावेशी सरकार नहीं है, महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया जा रहा है, प्रतिशोध के कारण हत्याएं बड़े पैमाने पर हो रही हैं, मानवाधिकारों के उल्लंघन की रिपोर्ट प्रतिदिन आ रही है, और तालिबान नियंत्रित अफगानिस्तान में आतंकवादी समूह सुरक्षित रूप से रह रहे है। लेकिन फिर भी इमरान चाहते हैं कि तालिबान को ‘प्रोत्साहन’ दिया जाए (पढ़ें उन्हें पैसे दें) वरना आतंकवाद एक बार फिर जड़ जमा लेगा। अच्छा अंदाजा लगाया? आतंकवाद को एक राज्य मिल गया है और पाकिस्तान ने उसे हासिल करने में मदद की है। वही पाकिस्तान अब चाहता है कि दुनिया तालिबान की जबरन वसूली के आगे झुक जाए जो अन्यथा इस क्षेत्र और उसके बाहर आतंकवाद फैलाएगा।

यूएनजीए में, इमरान खान ने अपना पीड़ित कार्ड खेलने और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को धोखा देने की कोशिश की। लेकिन आश्चर्य तब होगा जब इमरान खान द्वारा बेचे जाने वाले कपट  को दुनिया  खरीदेगी। तथ्य यह है कि पाकिस्तान ने तालिबान की एजेंसी का उपयोग करके अफगानिस्तान में एक सैन्य समाधान थोपने की दिशा में काम किया है। अब जब पाकिस्तान द्वारा अफगानिस्तान में बोई गई बुराई  को काटने का समय आया है, तो वह एक और मुफ्त में इसका लाभ लेना चाहता है। ऐसा होने वाला नहीं है, यहाँ तक कि  इमरान खान के भाषण ने अब शायद उन देशों को भी क्रोधित करना शुरू कर दिया है, जिनकी मदद की उन्हें और रावलपिंडी में उनके आकाओं को सख्त जरूरत है।

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लेखक
सुशांत सरीन आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो हैं और चाणक्य फोरम में सलाहकार संपादक हैं। वह पाकिस्तान और आतंकवाद विषयों के विशेषज्ञ हैं। उनके प्रकाशित कार्यों में बलूचिस्तान : फारगॉटेन वॉर, फॉरसेकेन पीपल (2017), कॉरिडोर कैलकुलस : चाइना-पाकिस्तान इकोनोमिक कोरिडोर और चीन का पाकिस्तान में निवेश कंप्रेडर मॉडल (2016) शामिल है।

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