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हमने पर्यावरण को नहीं बचाया तो मानवता भी नहीं बचेगी: प्रो. सीआर बाबू

भाषा एवं चाणक्य फोरम
रवि, 14 नवम्बर 2021   |   3 मिनट में पढ़ें

नयी दिल्ली, 14 नवंबर (भाषा) : दिल्ली-एनसीआर (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) में प्रदूषण का कहर कोई नयी बात नहीं है। सरकारें इस स्थिति में बदलाव लाने और प्रभावी कदम उठाने का दावा करती हैं तो अदालतें यहां के प्रदूषण को लेकर गंभीर टिप्पणियां करती हैं लेकिन हर साल हालात जस के तस ही रहते हैं। इसी मसले पर जाने माने पर्यावरणविद और केंद्र की पर्यावरण संबंधी विभिन्न समितियों के सदस्य रहे प्रोफेसर सी आर बाबू से पेश हैं ‘भाषा के पांच सवाल’ और उनके जवाब।

सवाल: दिवाली के पहले और उसके बाद राष्ट्रीय राजधानी में प्रदूषण को लेकर हर साल हाय तौबा मचती है और फिर यह कभी न खत्म होने वाले संकट के रूप में सामने आ जाता है। क्या कहेंगे आप?

जवाब: वायु प्रदूषण, खासकर दिल्ली में मानव जीवन के लिए एक खतरा बन गया है। यह सिर्फ दिवाली के दिन पटाखे छोड़ने की वजह से नहीं है। ठंड के मौसम में वातावरण में वायु प्रदूषक बहुत अधिक होते हैं। दिल्ली की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यहां का तापमान कम होने से वायु प्रदूषण बढ़ता है। ठंडी हवा भारी हो जाती है तथा वह जमीन के आसपास ही रहती है। इससे प्रदूषण खतरनाक रूप ले लेता है और लोगों को सांस लेने में कठिनाई से लेकर कई अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार निर्माण कार्य की गतिविधियों से उड़ने वाली धूल हैं। इसके बाद गाड़ियों से होने वाले प्रदूषण का नंबर आता है। इनसे प्रदूषण तो बढ़ता है लेकिन इसे कम करने के उपाय कम होते हैं। विकास के नाम पर हम पेड़ों व जंगलों को उजाड़ रहे हैं। हमें अपने पर्यावरण को बचाने के लिए एक अच्छी रणनीति की आवश्यकता है।

सवाल: दिवाली और पराली को इस स्थिति के लिए आप कितना जिम्मेदार मानते हैं?

जवाब: जी हां। कुछ राज्यों में पराली जलाने से हमारी समस्या बढ़ती है लेकिन इसके लिए सबसे पहले आपको अपने घर को सुधारना पड़ेगा। आप गाड़ियों से नित्य होने वाले प्रदूषण को कम नहीं कर पा रहे हैं। निर्माण कार्यों से होने वाले नुकसान से पर्यावरण को बचाने के लिए आप कुछ नहीं कर रहे हैं। अदालत के आदेशों और राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) के आदेशों के बावजूद लोग प्रदूषण के प्रभावों को समझ नहीं रहे हैं। पर्यावरण को बचाने के पूरे कार्यक्रमों में जन सहभागिता चाहिए। लोगों को जागरूक करना होगा और उनकी सोच में बदलाव लाना होगा।

सवाल: हाल ही में यमुना में भी भारी प्रदूषण देखने को मिला। छठ पूजा पर महिलाओं ने यमुना के प्रदूषित जल में डुबकी लगाई और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इसकी चर्चा हुई। आप क्या कहेंगे?

जवाब: यमुना तो मर चुकी है। एनजीटी का आदेश है लेकिन इसके बावजूद लोगों ने वहां डुबकी लगाई। इसके लिए लोग तो दोषी हैं ही साथ ही इसके लिए सरकारें भी दोषी हैं। वह पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए विकास योजनाएं क्यों नहीं बनाती? लोगों को अनिवार्य रूप से शिक्षित और जागरूक करना होगा। साथ ही सरकारों को पर्यावरण की सेहत को ध्यान में रखते हुए विकास योजनाओं को अमली जामा पहनाना होगा। पर्यावरण की चुनौतियां बहुत हैं। हम अगर इसे नहीं बचाएंगे तो आने वाली पीढियां हमें कोसेंगी। विकास कार्यों के साथ भी पर्यावरण को बचाया जा सकता है।

सवाल: इस दिशा में सरकारों के प्रयासों को आप कैसे देखते हैं?

जवाब: वह प्रयास कहां कर रहे हैं? बस ‘लिप सर्विस’ (बयानबाजी ) हो रही है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री को ही ले लीजिए। उन्होंने नर्मदा नदी की परिक्रमा की और कई पेड़ भी लगाए। जाइए और पता कीजिए उन पेड़ों की क्या स्थिति है? क्या वह जीवित भी हैं? यह तो सिर्फ एक उदाहरण है। ऐसे कई और भी उदाहरण हैं। सरकारों को इस दिशा में गंभीरता से प्रयास करने होंगे। ‘लिप सर्विस’ से काम नहीं चलेगा।

सवाल: आपके हिसाब से इसका स्थायी समाधान क्या होना चाहिए?

जवाब: सबसे पहले तो हमें पर्यावरण की चुनौतियों को सामने लाना होगा और लोगों को इसके गंभीर खतरों से अवगत कराना होगा। उन्हें शिक्षित करना होगा। उन्हें बताना होगा कि यदि हमने पर्यावरण को नहीं बचाया तो मानवता भी नहीं बचेगी। सरकार को इस विषय को प्राथमिकता से लेना होगा। इसे मुख्य धारा का विषय बनाने के साथ इसे अध्ययन का विषय बनाना होगा। एक सामाजिक बदलाव की बहुत जरूरत है।

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