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पाकिस्तान के सिर पर लटकी एफएटीएफ की तलवार

सुशांत सरीन
बुध, 27 अक्टूबर 2021   |   5 मिनट में पढ़ें

21 अक्टूबर को पेरिस में संपन्न हुई फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) प्लेनरी से किसी को आश्चर्य नहीं हुआ। पाकिस्तान को उम्मीद थी कि उसे ‘बढ़ी हुई निगरानी के क्षेत्राधिकार’ या ग्रे लिस्ट से बाहर कर दिया जाएगा, लेकिन साथ ही यह भी उम्मीद थी कि ऐसा होने से पहले कुछ और करना पड़ सकता है। एफएटीएफ के फैसले पर पाकिस्तान के भीतर हाय- तौबा थी। एफएटीएफ की कार्य योजना पर अभूतपूर्व प्रगति के लिए एक ओर जहाँ पाकिस्तानी अधिकारियों ने अपनी पीठ थपथपाई; वहीं दूसरी ओर, पाकिस्तान को भारत और अमेरिका जैसे देशों द्वारा एफएटीएफ का राजनीतिकरण करने की    चिंता भी थी। पाकिस्तान ने ग्रे सूची से बाहर होने के लिए कोई कमी नहीं छोड़ी। दरअसल, एफएटीएफ के अध्यक्ष मार्कस प्लीयर की प्रेस कॉन्फ्रेंस में पाकिस्तानी पत्रकारों ने ट्रोल्स की तरह व्यवहार किया और ऐसे सवाल पूछे जो पाकिस्तान के प्रति अन्याय के आरोपों की तरह लग रहे थे। लेकिन प्लीयर ने इन्हें विनम्रता से खारिज कर दिया, उन्होंने पाकिस्तान को सूचित किया कि ग्रे लिस्टिंग की वजह भारत नहीं था, बल्कि यह पाकिस्तान द्वारा एफएटीएफ की उच्च-स्तरीय राजनीतिक प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में गंभीर कमियों के कारण थी।

एफएटीएफ ने स्वीकार किया कि पाकिस्तान ने “सीएफटी कार्य योजना में महत्वपूर्ण प्रगति किया है” और “अपनी 2018 की कार्य योजना में 27 में से 26 कार्य मदों को पूरा किया है।” इसने यह भी स्वीकार किया कि पाकिस्तान ने जून 2021 में उसे दी गई नई कार्य योजना पर कदम उठाए थे, लेकिन”रणनीतिक रूप से एएमएल/सीएफटी में दो महत्वपूर्ण कमियाँ” पायी गयी। जो इस प्रकार थी : “(1) सबूत प्रदान करना कि यह संयुक्त राष्ट्र में  नियुक्ति के लिए अतिरिक्त व्यक्तियों और संस्थाओं को नामित करके अपने अधिकार क्षेत्र से परे प्रतिबंधों के प्रभाव को सक्रिय रूप से बढ़ाने का प्रयास  है; और (2) एमएल जांच और मुकदमों में वृद्धि दिखा कर यह बताने की कोशिश करना कि अपराध पर लगातार रोक लगाई जा रही है और इसकी आय को पाकिस्तान के प्रोफ़ाइल के अनुरूप प्रतिबंधित और जब्त करना जारी है, जिसमें विदेशी समकक्षों के साथ काम करना, संपत्ति का पता लगाना, फ्रीज करना और जब्त करना शामिल है।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि एफएटीएफ इस बात पर जोर दे रहा है कि  क्या पाकिस्तान “आतंकवादी वित्तपोषण की जाँच कर रहा है और उन पर मुकदमों से संयुक्त राष्ट्र के नामित आतंकवादी समूहों और उनके सहयोगियों के बड़े नेताओं और कमांडरों को निशाना बना रहा हैं”। इसी कारण एफएटीएफ की कार्ययोजना के अनुपालन में पाकिस्तान द्वारा की गई प्रशासनिक और विधायी कार्रवाई तब तक पूरी नहीं मानी जायेगी, जब तक पाकिस्तान अपने संरक्षण में रहने वाले हाफिज सईद, मसूद अजहर जैसे आतंकवादी सरदारों और बाकी बदमाशों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करता। बदमाशों के खिलाफ कार्यवाही करने की इस प्रतिबद्धता को पूरा करना कहाँ आसान काम है। वास्तव में, पाकिस्तान ने सोचा था ,कि यदि वह कार्य योजना की अन्य मदों को पूरा कर लेता  है, और इस पर रुक जाता है, तो वह ग्रे लिस्ट से बाहर हो जाएगा। स्पष्ट रूप से, ऐसा नहीं हो रहा है,  जिससे पाकिस्तान फंस गया है, यह देखते हुए कि संयुक्त राष्ट्र द्वारा नामित कई आतंकवादी दिग्गज हैं, जिनके खिलाफ उसे प्रत्यक्ष रूप से कार्रवाई करनी होगी, कुछ ऐसा जो बैक-लैश को आमंत्रित कर सकता है।

सितंबर 2021 में पाकिस्तान के मूल्यांकन पर तीसरी अनुवर्ती रिपोर्ट के अनुसार, 10 ‘तत्काल परिणामों’ में से, पाकिस्तान के प्रदर्शन को ‘निम्न स्तर की प्रभावशीलता’ का दर्जा दिया गया (तत्काल परिणाम या तो प्राप्त नहीं किए जाते हैं या प्राप्त किए जाते हैं) उनमें से 9 ना के बराबर  है और    उनमें मूलभूत सुधार की आवश्यकता है), और केवल एक में ‘मध्यम प्रभावशीलता’ है। 40 सिफारिशों में से, पाकिस्तान तीन-नई तकनीकों, डीएनएफबीपी के विनियमन और पर्यवेक्षण, और आंकड़ों का ‘आंशिक रूप से अनुपालन’ कर रहा है। लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यह उनमें से 2  का ‘गैर-अनुपालन’ रहा है – एक, सिफारिश सं 37 है, जो “मनी लॉन्ड्रिंग, संबंधित विधेय अपराधों और आतंकवादी वित्तपोषण जांच, अभियोजन और संबंधित कार्यवाही और फ्रीजिंग और जब्ती के संबंध में” पारस्परिक कानूनी सहायता से संबंधित है।”;  दूसरी,  सिफारिश सं 38 है,  जो “मनी लॉन्ड्रिंग, विधेय अपराधों, या आतंकवादी में उपयोग किए जाने वाले और उपयोग के लिए अभिप्रेत साधन” के साथ साथ “विदेशों द्वारा वितपोषण को पहचानने, फ्रीज करने, या जब्त करने के अनुरोधों के जवाब में शीघ्र कार्रवाई” के लिए पारस्परिक कानूनी सहायता  से संबंधित है। वास्तव में पाकिस्तान ने इनमें से एक का भी आंशिक रूप से भी अनुपालन नहीं किया। पाकिस्तान के लिए इन मुद्दों पर काम करना एक कठिन प्रस्ताव है, क्योंकि इसका मतलब है कि अगर कल भारत  कानूनी सहायता का अनुरोध करता है, तो पाकिस्तान को उस पर कार्रवाई करनी होगी।

अफगानिस्तान की स्थिति पर एफएटीएफ द्वारा सार्वजनिक रूप से दिये गए बयान से इस्लामाबाद में खतरे की घंटी बज जानी चाहिए, जिसमें “अफगानिस्तान की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के हालिया प्रस्तावों की पुष्टि की गयी है। विशेष रूप से, यूएनएससीआर 2593” और “जोखिम-आधारित दृष्टिकोण, जिसमे निजी क्षेत्र को, पहचाने गए   एमएलए/टीएफ जोखिमों का आकलन करने और उनमें कमी  लाने की  सलाह तथा जानकारी साझा करने की सुविधा देने के लिए सभी न्यायालयों के सक्षम अधिकारियों का आह्वान  किया गया है।” बयान में आगे कहा गया है कि “एफएटीएएसफ, एपीजी, ईएजी और ग्लोबल नेटवर्क, अफगानिस्तान में मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवादी वित्तपोषण में किसी भी बदलाव की स्थिति की बारीकी से निगरानी करेगा।” यह पाकिस्तान के गले में एक  फंदे की तरह है, जो भविष्य में बहुत दूर नहीं है। आगे बढ़ते हुए, तालिबान नियंत्रित अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच एफएटीएफ के अनिवार्य सुरक्षा उपायों के बिना, नकदी और माल के प्रवाह के साथ व्यापार करने और वित्तीय संबंधों को देखते हुए, पाकिस्तान को एक बार फिर इन प्रवाहों पर कार्रवाई करने, विनियमित करने और  प्रमाण देने के लिए कहा जाएगा।

प्लीयर के इस बयान से पाकिस्तान उत्साहित हो गया कि एफएटीएफ द्वारा पाकिस्तान को ‘ब्लैक लिस्टेड’ किए जाने का कोई खतरा नहीं है। लेकिन अभी के लिए, ऐसा लगता नहीं है कि पाकिस्तान को जल्द ही ग्रे लिस्ट से हटा दिया जाएगा। संभावना है कि पाकिस्तान की कार्य योजना में और शर्तें जोड़ी जाएंगी, विशेष रूप से अफगानिस्तान और अल कायदा/आईएसआईएस पर, जो पाकिस्तान के लिए बाधक होंगी।   पाकिस्तान पर, अफगानिस्तान के अंदर और बाहर से वित्तीय और व्यापार प्रवाह को समाप्त करने का बहुत दबाव होगा।

पाकिस्तान के सिर पर एफएटीएफ की तलवार लटकती रहेगी। जब ​​कि ग्रे लिस्ट में रहना भी पाकिस्तान के लिए महंगा विकल्प नहीं है। एक अनुमान के अनुसार, केवल 2019 में ग्रे-लिस्टिंग में पाकिस्तान की लागत लगभग 10 बिलियन डॉलर थी। 2008-19 के ग्यारह वर्षों में,  एफएटीएफ ग्रे लिस्टिंग की पाकिस्तानी लागत लगभग 38 बिलियन डॉलर थी। तब से अब तक, इस संख्या में कुछ और अरब डॉलर जोड़े जा सकते हैं। लेकिन अगर अफगानिस्तान में चीजें बिगड़ जाती हैं, तो यह लागत काफी बढ़ जाएगी, और इससे भी ज्यादा पाकिस्तान को एक बार फिर ‘ब्लैक लिस्ट’ से खतरा है, जो  अभी पूरी तरह से तालिका से बाहर नहीं है।

हालांकि एफएटीएफ अपने लक्ष्यों के मानदंडों पर काम करता है, लेकिन  वास्तविकता यह है कि इसमें राजनीति का एक तत्व भी शामिल है। लेकिन यह राजनीति उस तरह से काम नहीं करती जिस तरह से पाकिस्तान सोचता है। दूसरे शब्दों में, ऐसा नहीं है कि ऐसे देशों का  कोई एक समूह है जो सक्रिय रूप से पाकिस्तान के खिलाफ साजिश रच रहे हैं और गिरोह बना रहे हैं। यह बात और है कि जो देश पाकिस्तान को कुछ ढील देने से नहीं कतराते थे, वे शायद अब ऐसा करने के लिए तैयार नहीं हैं, क्योंकि वे पाकिस्तानियों के छल-कपट और धोखे को समझ चुके  हैं।   पाकिस्तान ने  जिस तरह से एएमएल/सीएफटी पर  कार्यवाही  की  है और आतंकवादी समूहों को दण्ड से मुक्ति और राज्य संरक्षण  में  इनको   संचालन करने की अनुमति दी है, उससे उनके प्रति विश्वास में कमी आयी है। जब तक पाकिस्तान इस भरोसे की कमी को दूर नहीं कर लेता है – ऐसा करने का एकमात्र तरीका देश में आतंक के दलदल को खत्म करना और अपनी प्रतिबद्धताओं को पूरा करना है – तब तक उसे नाकाम होने से कोई नहीं रोक सकता।

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लेखक
सुशांत सरीन आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो हैं और चाणक्य फोरम में सलाहकार संपादक हैं। वह पाकिस्तान और आतंकवाद विषयों के विशेषज्ञ हैं। उनके प्रकाशित कार्यों में बलूचिस्तान : फारगॉटेन वॉर, फॉरसेकेन पीपल (2017), कॉरिडोर कैलकुलस : चाइना-पाकिस्तान इकोनोमिक कोरिडोर और चीन का पाकिस्तान में निवेश कंप्रेडर मॉडल (2016) शामिल है।

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