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इराक प्रधानमंत्री मुस्तफा अल खादीमी पर ड्रोन हमले से और उलझेगी इराक की जटिल राजनीति

लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन (सेवानिवृत्त)
गुरु, 18 नवम्बर 2021   |   5 मिनट में पढ़ें

काफी लंबे समय से दुनियाँ का ध्यान अफगानिस्तान और तालिबान 2.0 पर  केंद्रित है। यह धारणा प्रबल हो रही थी कि मध्य पूर्व में सब कुछ शांत है।  लेकिन एक नया चिंताजनक घटनाक्रम सामने आया। अमेरिका ने अपनी  उपस्थिति और इंडो पैसिफिक पर अपना ध्यान कम कर दिया था। इसी दौरान पिछले चार हफ्तों से उनका ध्यान इराक चुनावों पर था।

इस चुनाव में ईरान आधारित मिलिशिया के समर्थन वाले बलों ने अपनी सीटें गवां दीl शायद इराक में उनका प्रभाव कम हो गया था। 2019 के अंत में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए, जिसमें बगदाद और मुख्य रूप से शिया बहुल वाले दक्षिणी प्रांतों में   भ्रष्टाचार, खराब सेवाओं और बेरोजगारी के खिलाफ हज़ारों प्रदर्शन हुए। इस वजह से चुनाव निर्धारित समय से कई माह पूर्व करवाने पड़े।

इराकी मूल के 48 वर्षीय राष्ट्रवादी शिया धर्मगुरु मुक्तादा अल सदर और ईरान समर्थक उन्मुखीकरण दल ने 10 अक्टूबर 2021 के चुनाव में घोषित 329 नतीजों में से 73 सीटों पर जीत हासिल की। जो संख्या में पिछली बार की सीटों से 20 अधिक है। इस वजह से उनका प्रभाव बढ़ने की संभावना है, क्योंकि प्रधान मंत्री को गठबंधन सरकार चलाने के लिए अन्य दलों को एक साथ लाना होगा।

मुक्तदा अल-सद्र का राजनीतिक आंदोलन धीरे-धीरे इराकी राज्य तंत्र पर हावी हो रहा है और उसका प्रभाव बढ़ रहा है। 2018 के चुनावों के बाद से मिलिशिया ने लोकप्रियता खो दी है। कई इराकी उन्हें 2019 के विरोध प्रदर्शनों को दबाने और राज्य के अधिकार को चुनौती देने के लिए जिम्मेदार मानते हैं।

ईरान समर्थित इराकी मिलिशिया, हाल के चुनावों में जिनकी संख्या में कमी देखी  गयी है, जाहिर तौर पर बहुत खुश नहीं हैंl वे चुनाव में कदाचार का आरोप लगा रहे हैं। अमेरिका और अन्य पश्चिमी शक्तियां 10 अक्टूबर 2021 के चुनावों से काफी संतुष्ट हैं। इससे एक ऐसी स्थिति पैदा हो गयी है जिससे बगदाद का  अत्यधिक सुरक्षा वाला ग्रीन ज़ोन, जो सबसे सुरक्षित क्षेत्र है, जहाँ विदेशी दूतावास और सरकारी भवन मौजूद हैं, ईरान समर्थन वाले इराकी मिलिशिया समूहों के समर्थित गुटों के विरोधी सदस्यों से घिर गया है। पूर्व-खुफिया प्रमुख, प्रधान मंत्री मुस्तफा अल खादीमी ने व्यक्तिगत रूप से प्रदर्शनकारियों पर किसी भी तरह की गोलीबारी करने पर रोक लगाने के निर्देश पारित किए हैं। वह अच्छी तरह से जानते है कि ऐसा करने से शियाओं के बीच तनाव पैदा हो जायेगा और उन अराजक दिनों की वापसी होगी जब सिर्फ तीन साल पहले ईरान समर्थित इराकी मिलिशिया इस्लामिक स्टेट (आईएस) के खिलाफ टकराव के बाद अपनी पकड़  बनाने करने का प्रयास कर रहा था।

प्रधान मंत्री खादीमी प्रदर्शन स्थलों का दौरा करके 7 नवंबर 2021 को वापस लौटे थेl उस समय विस्फोटक पेलोड के साथ एक छोटा ड्रोन उनके आवास पर फटा, जिसमें सात गार्ड और अन्य अधिकारी घायल हो गए। इस मिशन में दो अन्य ड्रोनों का इस्तेमाल भी किया गया, लेकिन इससे पहले कि वे कोई नुकसान कर पाते, उन्हें नष्ट कर दिया गया। प्रधानमंत्री को चोट नहीं पहुंची और अभी तक किसी ने इस घटना की जिम्मेदारी लेने का दावा नहीं किया है। हालांकि इस घटना को स्पष्ट रूप से आतंकी गतिविधि माना जा रहा है। इराकी सशस्त्र बलों के साथ स्थिति अजीब तरह से स्थिर बनी हुई है और ईरान समर्थित इराकी मिलिशिया गतिरोध में हैl आगे किसी भी ट्रिगर से राजधानी में बेकाबू हिंसा हो सकती है। यह इराक के बाकी हिस्सों और शायद मध्य पूर्व के अन्य हिस्सों के वातावरण को  किस तरह से प्रभावित करेगा, यह बेहद अप्रत्याशित है।

यह सब क्यों हो रहा है, इसकी जांच होनी चाहिए। इराक में इस तरह की उथल-पुथल के पीछे जटिल राजनीतिक कारण है, जिससे अपना प्रभाव स्थापित करने की कोशिश कर रहे शियाओं के लिए यह एक खेल का मैदान बन गया है। शिया एक  मलखंभ नहीं हैं; वे एक विभाजित घर हैं, हालांकि वे इराक में 68 प्रतिशत बहुमत बनाते हैं। इराकी शिया सद्दाम हुसैन के अधीन थे और उनके तख्तापलट के बाद ईरान के साथ एक अजीब रिश्ते में रहे हैं जो खुद को हमेशा शियाओं के भाग्य का नियंत्रक मानते हैं। 1979 की ईरानी क्रांति के बाद ईरान ने शिया नेतृत्व की कमान संभाली, जिसे अब ‘शिया क्रिसेंट’ कहा जाता है। ईरान के बाद शियाओं का सबसे बड़ा वर्ग इराक (15-16 मिलियन) में रहता है, हालांकि यह संख्या में भारत  और पाकिस्तान की शिया आबादी की तुलना में बहुत कम है। इराक में शिया  विचारधारा वाली राजनीति के दो महत्वपूर्ण व्यक्तित्व हैं, मुक्तदा अल सदर और अयातुल्ला सिस्तानी। सिस्तानी, जो अब लगभग 94 वर्ष का है, इस्लामिक स्टेट (IS) से लड़ने के लिए शिया मिलिशिया के ईरानी प्रायोजन में सहायक था, जबकि  उस समय वह इराक और सीरिया में अपनी शक्ति के चरम पर था। आईएस को हराने और विस्थापित कर देने के बाद शिया मिलिशिया इराक के सुरक्षा परिदृश्य का एक स्थायी हिस्सा बन गए। इनमें पॉपुलर मोबिलाइजेशन फोर्स (पीएमएफ) या हशद अल शबी और कातिब हिजबुल्लाह शामिल हैं।

ईरान भी इराक में अमेरिकी हितों के खिलाफ इन समूहों का इस्तेमाल करता रहा है। 31 दिसंबर 2019 को अमेरिकी दूतावास पर हमला पीएमएफ द्वारा किया गया था, हालांकि अमेरिका ने पीएमएफ और कातिब हिजबुल्लाह दोनों के खिलाफ जवाबी कार्रवाई की थी। ईरानी प्रभाव के तहत ये बल उन लगभग 5000 अमेरिकी सैनिकों की पूर्ण वापसी की  मांग भी कर रहे हैं जो अभी भी इराक में तैनात हैं। 2018 के चुनावों के बाद से मिलिशिया की लोकप्रियता में कुछ कमी आयी। कई लोग उन्हें 2019 के विरोध प्रदर्शनों को दबाने और राज्य के अधिकार को चुनौती देने के लिए जिम्मेदार मानते हैं। 2021 के चुनाव इस बात की पुष्टि कर रहे है कि मुक्तदा अल सद्र के समर्थन से राष्ट्रवादी ताकतों ने अधिक प्रभाव हासिल कर लिया है।

मुक्तदा अल सदर, इराक के अंतरराष्ट्रीय रूप से प्रसिद्ध व्यक्ति है, जिसने सद्दाम हुसैन को उखाड़ फेंकने के बाद अमेरिकी सैनिकों का मुकाबला करने के लिए 2003 में प्रसिद् मेहदी सेना को खड़ा किया था। एक समय में वह अमेरिकी सेनाओं का  प्रमुख लक्ष्य था, जिसने बाद में उसकी हत्या ना करने की सलाह दी, उन्हें लगा कि कही हालात बेकाबू होने से इराक भड़क ना जाये। ऐसा प्रतीत होता है कि सदर ने अपना सारा दृष्टिकोण ही बदल दिया। अब उन्होंने अमेरिका के प्रति अपना रुख नरम कर लिया है, हालांकि उन्हें अभी भी एक नापसंद अमेरिकी सहयोगी के रूप में देखा जाता है। उन्होंने महसूस किया कि यदि ईरानी प्रभाव को उसी तरह से बढ़ने की अनुमति दी गयी, जैसा तीन चार साल पहले आईएस संकट की चरम अवस्था के दौरान हुआ था, तो ऐसी स्थिति में इराकी शिया केवल ईरानी हितों के लिए ही आगे बढ़ेंगे। इसका अर्थ अमेरिका के साथ सतत टकराव होगा, यह अमेरिकी दूतावास के खिलाफ ईरान समर्थित इराकी मिलिशिया की शत्रुतापूर्ण कार्रवाइयों और वियना में ईरान-अमेरिका वार्ता में प्रगति की कमी की याद दिलाता है।

सदर की इच्छा है कि, आधिकारिक इराकी सशस्त्र बलों के अलावा अन्य किसी भी गुट के पास कोई शस्त्र ना हो। शिया धर्मगुरु के एक सहयोगी ने कहा है कि  यह सदर के अपने  उन मिलिशिया बलों पर भी लागू हो, जो सरकार के नियंत्रण में नहीं है। सदर के राजनीतिक आंदोलन के एक पूर्व शीर्ष अधिकारी, धिया अल-असदी ने कहा कि, “कोई भी देश ऐसी ताकतों को नहीं चाहता जो उसकी सेना से अधिक शक्तिशाली हों।” उन्होंने कहा कि मुक्तदा सदर यह निर्णय आने वाली सरकार पर छोड़ दें कि अमेरिकी सेना को इराक में रहना चाहिए या नहीं। इराक में वर्तमान अमेरिकी उपस्थिति लगभग 5,000 है। आईएस को किसी भी प्रकार से पनपने न देने के लिए इस उपस्थिति को महत्वपूर्ण माना जाता है। ईरान समर्थित इराकी लड़ाकों को विश्वास है कि वे आईएस की वापसी को रोक सकते हैं लेकिन सदर ऐसा कुछ नहीं चाहते हैं।

यदि चुनाव परिणामों को भविष्य की सरकार के गठन की अनुमति दी जाती है, तो इसका अर्थ ईरानी प्रभाव की कमी होगा, यह कुछ ऐसा है जो ईरान के समर्थन वाले समूहों को स्वीकार्य नहीं होगा। प्रधान मंत्री अल खातिमी की हत्या का प्रयास    एक परोक्ष खतरे की धमकी है कि यदि इराकी राष्ट्रवादी ताकतें साथ नहीं आती हैं तो क्या होगा? अगर ईरान पीछे नहीं हटना चाहता तब ऐसी घटनाओं के परिणामस्वरूप सड़कों पर अशांति बढ़ने की संभावना है। एक तरफ अशांत अफगानिस्तान और पश्चिम में राष्ट्रवादी ताकतों के साथ एक अशांत इराक ऐसी स्थिति नहीं है जिससे ईरान खुश होगा। यही कारण है कि ईरान शायद पीछे न हटे। एक तरफ मुक्तदा अल सद्र एवं यूएस और दूसरी ओर अंतर-शिया की शत्रुता के एक अजीबोगरीब दौर की पूरी संभावना है।

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लेखक
लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन (सेवानिवृत्त), पीवीएसएम, यूवाईएसएम, एवीएसएम, एसएम, वीएसएम, भारतीय सेना के श्रीनगर कोर के पूर्व कमांडर रहे हैं। वह रेडिकल इस्लाम के इर्द-गिर्द घूमने वाले मुद्दों पर विशेष जोर देने के साथ एशिया और मध्य पूर्व में अंतर-राष्ट्रीय और आंतरिक संघर्षों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। वह कश्मीर केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं और रणनीतिक मामलों और नेतृत्व के इर्द-गिर्द घूमने वाले विविध विषयों पर भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों में बड़े पैमाने पर बोलते हैं।

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