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मध्‍य एशियाई देशों के लिए ओआइसी से अहम है भारत संग संवाद

डॉ सुरेंद्र कुमार मिश्र
मंगल, 21 दिसम्बर 2021   |   5 मिनट में पढ़ें

भारत एवं मध्य एशियाई देशों के बीच तीसरे संस्करण की वार्ता विगत दिवस सम्पन्न हुई, जिसमें अफगानिस्तान की स्थिति, सम्पर्क व विकास केन्द्रित सहयोग को प्रगाढ़ बनाने पर विशेष बल दिया गया। इस संवाद में भारत एवं मध्य एशिया के प्रमुख पांच देशों कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, उज्बेकिस्तान, किर्गीस्तान गणराज्य तथा ताजिकिस्तान ने विशेष रूप से अपने वाणिज्य, क्षमता सम्बर्धन, संयोजकता (कनेक्टिविटी) एवं सम्पर्क के आधार पर परस्पर सम्बन्धों और सहयोग को नये स्तर पर स्थापित करने का संकल्प लिया। इसके साथ ही सहभागिता करने वाले देशों के प्रतिनिधियों ने अफगानिस्तान से आतंकवाद के खतरे पर अंकुश लगाने एवं वहां की जनता को मानवीय सहायता पहुंचाने के लिए मिल-जुलकर काम करने पर सहमति व्यक्ति की।

वास्तव में इस संवाद का राजनयिक व सामरिक महत्व इसलिए और अधिक माना जा रहा है, क्योंकि जब पाकिस्तान के इस्लामाबाद में इस्लामिक सहयोग संगठन (ओ.आई.सी.) के विदेश मंत्रियों की बैठक हो रही है, इसी दिन मध्य एशिया के प्रमुख पांच देश उस अहम वार्ता को छोड़कर भारत के साथ अपना संवाद करने को प्राथमिकता प्रदान की। इस वार्ता में अफगानिस्तान की स्थिति, सम्पर्क और विकास केन्द्रित सहयोग को बढ़ावा देने पर विशेष बल दिया। भारत से भूमि व्यापार पर पाकिस्तान के अवरोध को देखते हुए मध्य एशियाई देशों ने चाबहार बन्दरगाह का अन्तर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन कोरिडोर (आई.एन.एस.टी.सी.) के ढांचे के भीतर शामिल करने के प्रस्ताव का स्वागत किया। इसके साथ ही उन्होंने मध्य व दक्षिण एशिया में सम्पर्क तथा संयोजकता (कनेक्टिविटी) के विकास व मजबूती पर सहयोग करने के लिए भी अपनी विशेष रुचि व्यक्त की। भारत व मध्य एशियाई देशों के बीच वस्तुओं एवं सेवाओं की मुफ्त आवाजाही हेतु प्रबन्ध व्यवस्था स्थापित करने के लिए संयुक्त कार्य समूहों की स्थापना की संभावना तलाशने पर भी आपसी सहमति बनी, ताकि पर्यटन एवं व्यापार के क्षेत्र में भी अपार रूप से वृद्धि करके सम्बन्धों को प्रगाढ़ बनाया जा सके।

विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर की अध्यक्षता में कजाकिस्तान के उपप्रधानमंत्री एवं विदेश मंत्री मुख्तार तिल्यबर्दी, तुर्कमेनिस्तान के विदेश मंत्री एवं कैबिनेट के उपसभापति राशिद मेरेदोव, उज्बेकिस्तान के विदेश मंत्री कामीलोव, किर्गीस्तान गणराज्य के विदेश मंत्री रूसलान कजाकबाएव और ताजिकिस्तान के विदेश मंत्री सिरोजिद्दीन मुहरिद्दीन आदि ने इस तीसरे मध्य एशिया डॉयलाग में सहभागिता की।

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा- मैं अपने द्विपक्षीय सम्बन्धों की स्थिति से बेहद आनन्द की अनुभूति कर रहा हूं, किन्तु कोविड महामारी के फलस्वरूप वैश्विक स्वास्थ्य एवं अर्थव्यवस्था को बहुत बड़ा आघात भी मिला है। आज के समय में बड़ी तेजी के साथ बदलती वैश्विक, आर्थिक तथा राजनीतिक परिस्थितियों के बीच यह एक अहम बैठक सम्पन्न हो रही है। हम सभी को अपने सतत् विकास लक्ष्य की दिशा में काम करने की महती आवश्यकता है। हम सभी मिलकर ही एक बेहतर अर्थ व्यवस्था के पुननिर्माण का एक बड़ा काम कर सकते हैं। डॉ. एस. जयशंकर ने स्पष्ट किया कि ‘‘मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि भारत इस पुनीत कार्य हेतु आपका एक मजबूत सहयोगी सिद्ध होगा। इसके साथ ही हमारे पास पहले से ही सहयोग स्थापित करने का एक अच्छा इतिहास है।’’

कोविड-19 महामारी का विशेष रूप से उल्लेख करते हुए भारतीय विदेश मंत्री ने स्पष्ट रूप से कहा कि – इस महासंकट से निपटने के लिए भारत सदैव से दृढ़ संकल्पित रहा है। हमने ताजिकिस्तान एवं उज्बेकिस्तान सहित लगभग 90 से अधिक देशों को आपदा के इस भीषण दौर में वैक्सीन की आपूर्ति करके तत्कालीन सहायता की है। हमने अपने मित्र देशों के सहयोग एवं सहायता से वैक्सीन के चुनौतीपूर्ण कार्यक्रम के क्रियान्वयन हेतु कोविन प्लेटफार्म भी साझा किया है। इसके साथ ही हम कोविड महामारी के कारण आपदा की आयी दूसरी लहर के दौरान कजाकिस्तान एवं उज्बेकिस्तान सहित अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा भारत को सक्रिय सहयोग प्रदान करने हेतु भी अपना आभार व्यक्त करते हैं। हम इस महामारी अथवा आकस्मिक आपदा के समय आप सभी देशों के द्वारा भारतीय छात्रों के कल्याण हेतु आयोजित व्यवस्था की भी खुलकर सराहना करते हैं।

अफगानिस्तान का उल्लेख करते हुए भारतीय विदेश मंत्री ने स्पष्ट रूप से कहा कि इस देश के साथ हमारे प्रगाढ़ ऐतिहासिक एवं सभ्यतागत सम्बन्ध है। हम सभी मध्य एशिया के देशों की चिन्ता, चुनौती एवं उद्देश्य अफगानिस्तान के मामले में एक समान है। इसके लिए हम सभी को मिलकर अफगानिस्तान के लोगों की सहायता हेतु उपाय तलासने होंगे, जिसके लिए निम्न उपायों पर विशेष रूप से ध्यान देने की जरूरत है।

 इन पर व्यापक सहमति बनी
– वास्तविकता में समावेशी और प्रतिनिधि सरकार का गठन।
– आतंकवाद तथा नशीले पदार्थों की तरस्करी के विरुद्ध मुकाबला करना।
– निर्बाध रूप से तत्काल अफगान लोगों की मानवीय सहायता करना।
– संयुक्त राष्ट्र की केन्द्रीय भूमिका
– महिलाओं, बच्चों एवं अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा को सुनिश्चित करना।

वर्तमान में अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के पश्चात वहां की स्थिति अत्यन्त दयनीय होती जा रही है। वस्तुस्थिति यह है कि अफगानिस्तान आतंकवाद का एक गढ़ बनता जा रहा है। यहां के लोगों को तत्काल प्रभाव से मानवीय सहायता की आवश्यकता है। मध्य एशियाई देशों के प्रतिनिधियों ने दिल्ली डॉयलाग में स्पष्ट रूप से एक स्वर में आतंकवादी का आधार बने पाकिस्तान का नाम लिये बिना ही कहा कि अफगान क्षेत्र का उपयोग किसी भी स्थिति में आतंकवादी गतिविधियों को आश्रय देने, उन्हें प्रशिक्षण प्रदान करने, रणनीति तैयार करने या आर्थिक सहयोग के लिए नहीं किया जाना चाहिए। जरूरत इस बात की है कि अफगानिस्तान की सम्प्रभुता, एकता और क्षेत्रीय अखण्डता का सतत सम्मान किया जाये। सभी सहयोगी साथियों ने एक संयुक्त बयान में एक स्वर में शान्तिपूर्ण, सुरक्षित और स्थिर अफगानिस्तान के लिए अपने सशक्त समर्थन की बात दोहरायी। किर्गीस्तान गणराज्य के विदेश मंत्री रसलान कजाकवाएव ने कहा कि भारत मध्य एशिया के सभी देशों का रणनीतिक सहयोगी है। मुझे इस बात की खुशी है कि भारत के साथ हमारे अच्छे सम्बन्ध हैं। इस क्षेत्र को और अधिक सुरक्षित रखने हेतु हम सभी जरूरी सहयोग करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।

भारत और मध्य एशियाई देशों के संवाद की इस तीसरी बैठक पर संयुक्त वक्तव्य में बताया गया कि आज अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवाद पर संयुक्त राष्ट्र (यू.एन.) के कॉम्प्रिहेन्सिव कन्वेशन को शीघ्र अपनाने का आवाहन किया गया है। भारत ने मध्य एशियाई देशों के चाबहार बन्दरगाह पर शहीद बेहेश्ती टर्मिनल की सेवाओं का उपयोग करने के लिए भारत और उससे आगे के साथ अपने व्यापार को सुविधाजनक बनाने के लिए रुचि का स्वागत किया। तुर्कमेनिस्तान के विदेश मंत्री राशिद मेरेदोव ने अफगानिस्तान के साथ अपने सम्बन्धों पर विशेष बल दिया तथा ताप्ती (टी.ए.पी.आई) गैस पाइपलाइन परियोजना का भी उल्लेख किया।

निसन्देह यह भारत-मध्य एशियाई संवाद सामयिक, सामरिक, राजनयिक, मानवीय, आर्थिक, व्यापारिक, राजनीतिक तथा भौगोलिक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इस संवाद में जहां भारत ने अपनी मानवीय मूल्यों की सुरक्षा के प्रति सोंच से मध्य एशियाई देशों को अवगत कराया तथा क्षेत्रीय शान्ति, सुरक्षा व विकास के लिए सभी के सहयोग को अत्यन्त महत्वपूर्ण एवं हितकारी बताया। अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे से उत्पन्न समस्याओं पर न केवल विचार-विमर्श हुआ, बल्कि उनके निदान की भी व्यापक चर्चा की गयी। यह बात विशेषरूप से उल्लेखनीय है कि ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान तथा उज्बेकिस्तान की सीमायें युद्धग्रस्त व संकटों से घिरे अफगानिस्तान से संलग्न हैं। अतः अफगानिस्तान की सीमा के अन्दर आतंकवाद के सभी रूपों और अभिव्यक्तियों पर अंकुश लगाने में यह संवाद बेहद सहयोगी व सटीक सिद्ध होगा। आतंकवादियों की द्वारा मनी लान्ड्रिंग तथा टेरर फण्डिंग पर नकेल लगाने के लिए फाइनेन्शियल एक्सन टॉस्क फोर्स (एफ.ए.टी.एफ.) के तहत कार्यवाही करने पर भी विशेष बल दिया। इसके साथ ही क्षेत्र के पारगमन व रसद संचालन क्षमता के प्रभावी उपयोग और परिवाहन हेतु बुनियादी ढांचे के विकास को सुनिश्चित किया गया। सभी देशों ने इस संवाद में एक स्वर से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के लिए अपने समर्थन को दोहराया।

भारत इन मध्य एशियाई देशों को सांस्कृतिक व जनता के स्तर पर सम्पर्क को भी बेहद अहम मानता है, क्योंकि इन देशो में भारतीय फिल्में, संगीत व योग आदि पहले से प्रचलित व प्रसिद्ध है। अतः भारत के साथ मध्य एशियाई देशों का आर्थिक सहयोग व सम्पर्क बढ़ाये जाने की भी विशेष आवश्यकता है।

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लेखक
डॉ सुरेंद्र कुमार मिश्र डिफेंस स्टडीज में पीएचडी हैं और इनका हरियाणा के विभिन्न गवर्नमेंट कालेजों में शिक्षण का अनुभव रहा है। वह जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी जोधपुर के विजिटिंग फेलो हैं। ‘रक्षा अनुसंधान’ और ‘टनर’ नामक डिफेंस स्टउीज रिसर्च जरनल से जुड़े हैं। 15 सालों का किताबों के संपादन का अनुभव है और करीब 35 सालों से देश के विभिन्न समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में लिख रहे हैं। डिफेंस मॉनिटर पत्रिका नई दिल्ली के संपादकीय सलाहकार हैं। उन्हें देश की रक्षा व सुरक्षा पर हिंदी में उल्लेखनीय किताब लिखने के लिए भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय से वर्ष 2000, 2006 और 2011 में प्रथम, तृतीय व द्वितीय पुरस्कार मिल चुका है। इन्होंने पांच रिसर्च प्रोजेक्ट पूरे किए हैं, इनकी 47 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं और 300 से अधिक रिसर्च पेपर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय जरनल में छप चुके हैं।

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