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Geopolitics & National Security
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चीन का नया सीमा कानून पड़ोसियों से धोखाधड़ी का नया पैंतरा

डॉ. राकेश कुमार मीना
रवि, 28 नवम्बर 2021   |   5 मिनट में पढ़ें

चीन ने हाल ही में अपने यहाँ भू सीमा (बॉर्डर) सम्बन्धी नये कानून पास किये है, जो कि 1 जनवरी 2022 से प्रभावी रूप से लागू हो जायेंगे। चीन की भू सीमायें 14 देशों के साथ मिलती है, जहाँ अक्सर एक तनाव की स्थिति बनी रहती है। भारत चीन के साथ लगभग 3488 किमी लम्बी भू सीमा को साझा करता है और पड़ोसी देश नेपाल एवं भूटान भी चीन के साथ सीमा साझा करते है। उल्लेखनीय बात यह कि इन तीनों देशों के साथ चीन का सीमा को लेकर विवाद होता रहा है। इस परिदृश्य में चीन एक नये भू सीमा कानून को लेकर आ रहा है। इस कानून में कहा गया है कि राज्य सीमा पर रक्षा सम्बन्धी आधारभूत संरचना का निर्माण, सीमा पर सामजिक और आर्थिक निर्माण, सीमा पर जीवन स्तर और अन्य सुविधाओं को उन्नत करने का प्रयास करेगा। इसके साथ-साथ सीमा पर रहने वाले लोगों और वहां की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को भी प्रोन्नत करेगा।

अपनी सुरक्षा के नाम पर नया कानून

चीन एक उभरती शक्ति होने के कारण और अपने देशों के साथ भू सीमा और सामुद्रिक सीमाओं के विवाद के चलते जनवरी 2022 में तटीय सुरक्षा कानून पास करेगा। चीन के विभिन्न शक्ति प्रतिष्ठानों में इस बात पर चर्चा हो रही है कि तटीय सुरक्षा कानून के साथ-साथ भू सीमा सुरक्षा पर भी कानून बनना चाहिए। चीन की सरकार के द्वारा सीमा सम्बन्धी कानून का निर्माण त्वरित प्रक्रिया नहीं है इसके लिए वहां काफी लम्बे समय से वार्ता चल रही थी। यद्यपि चीन ने अपने पड़ोसियों से सीमा सम्बन्धी विवादों पर वार्ता के माध्यम से इनको सुलझाने की पहल की है लेकिन भारत चीन सीमा विवाद को सुलझाने के प्रयास नजर नहीं आते है। यह तथ्य उल्लेखनीय है कि अफगानिस्तान से अमेरिकी बलों के जाने के बाद वहां से मध्य एशिया का खुला बॉर्डर चीन में आतंकवाद और कट्टरपंथियों के प्रभाव को बढ़ा सकता है और यह जिनजियांग क्षेत्र को प्रभावित कर सकता है। इससे बचाव के लिए भू सीमा कानून ऐसी विकट परिस्थितियों में पीपल्स लिबरेशन आर्मी और पीपल्स आर्म्ड पुलिस जैसी संस्थाओं को वहां जाने की अनुमति देता है। यह नया कानून ‘चीनी राष्ट्र की एकसमान पहचान की निश्चेतना’ को स्थापित करने की बात करता है। यह विचार चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने संजातीय अल्पसंख्यक नीति को दृष्टि में रखते हुए दिया। कानून में इसे अलग से विशिष्ट स्थान दिया गया क्योंकि यह विचार चीन के राष्ट्रपति के वाक्य ‘चीन के नागरिकों में मात्रभूमि की रक्षा की चेतना’ को मजबूती प्रदान करता है। इस कदम के पीछे ऐसे कयास लगाये जा रहे है कि अगले वर्ष 20वें पार्टी कांगेस के नेतृत्व में शी जिनपिंग अपना तीसरा कार्यकाल सुरक्षित करने का प्रयास करेंगे।

पड़ोसी जमीन पर हमेशा रही है बुरी नजर

चीन की काफी लम्बे समय से पड़ोसी देशों की सीमाओं में अतिक्रमण करने और उनके भूभाग पर कब्ज़ा करने की आदत रही है। चीन द्वारा सीमाओं के पास बसे गावों में अवैध निर्माण करके सीमाओं में घुस जाना काफी बार देखा गया है। विशेष रूप से नेपाल, भूटान और अरुणाचल प्रदेश के भूभाग पर ऐसी गतिविधियाँ देखी जाती रही है। विचित्र बात यह है कि ये नया कानून चीन के द्वारा किये जाने वाले भूमि अतिक्रमण को विश्व के सामने वैध ठहराने का काम करेगा। यह कानून अन्य देशों के साथ चल रहे भू सीमा विवादों को सुलझाने के संकेत नहीं देता है। बल्कि यह चीन के केन्द्रीय और प्रांतीय स्तर पर बने सीमा प्रबंधन नीतियों और नियामकों में एकरूपता और मानकीकरण लाने का प्रयास करता है। भारत के संदर्भ में देखें तो यह कानून कुछ हद तक चिंता का विषय हो सकता है, पर जमीनी वास्तविकताओं में देखें तो यह कानून निर्वहन योग्य नहीं है। भारत ने अपनी उत्तर और उत्तर पूर्वी सीमाओं पर आधारभूत संरचना के कार्यों को गति दी है लेकिन चीन के इस नये पैंतरे के बाद यहाँ सीमा प्रबंधन के कार्य बहुत सतर्कता की आवश्यकता है। चीन का यह नया कानून भारत के साथ सीमा विवादों के संदर्भ में होने वाली वार्ता में नरम रुख नहीं अपनाएगा और कोई भी निर्णय चीन की शर्तों के साथ होगा। भारत सरकार ने इसे एकतरफा कार्यवाही कहा और वहीं भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा कि चीन के इस एकतरफा निर्णय से जो कानून आ रहा है उसका असर सीमा प्रबंधन पर दोनों देशों के मध्य हुए द्विपक्षीय समझौतों पर पड़ेगा और साथ ही भारत द्वारा सीमा से सम्बंधित उठाये गये सवालों पर भी असर पड़ेगा। इस प्रकार की एकतरफा कार्यवाही का उन समझौतों पर प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए जो पहले से ही लागू है, चाहे वो सीमा पर शांति बनाये रखने की हो या भारत चीन सीमा क्षेत्र में वास्तविक सीमा रेखा से सम्बंधित हों। मंत्रालय ने चीन को चेताया कि भारत चीन से तार्किक कदमों की उम्मीद करता है और चीन को इस प्रकार के एकतरफा निर्णयों से पहले के बने प्रबंधनों को नहीं बदलना चाहिए और खासतौर से भारत चीन सीमा क्षेत्रों पर नए कानून का प्रभाव नहीं आना चाहिए।

पड़ोसियों को सीमा विकसित करने से रोकने वाला कानून

चीन का यह नया कानून यह भी वर्णित करता है कि कोई भी पड़ोसी देश सीमा के नजदीक निर्माण कार्य बिना चीन के प्राधिकारियों की अनुमति के नहीं कर सकता। इसका तात्पर्य यह हुआ कि भविष्य में भारत को अपनी सीमाओं पर किसी भी निर्माण कार्य को करने से पहले चीन के प्राधिकारियों से अनुमति लेनी होगी। दूसरी तरफ यह अक्सर देखा गया है कि चीन भारत और चीन के सुरक्षा बलों की यथा स्थिति पर बनी आपसी समझ का अपमान करते हुए अपनी सीमाओं के पास लगातार निर्माण कार्य करता रहा है। यह भू सीमा कानून भारत की सीमा पर पीपल्स लिबरेशन आर्मी और पीपल्स आर्म्ड पुलिस जैसी संस्थाओं को कार्यवाही करने  की अनुमति देता है और इसके जवाब में भारत को भी अपने रक्षा बलों को सतर्क करने की नितांत आवश्यकता है। यह उल्लेखीय है कि दोनों देशों के बीच सैन्य वार्ता के हुए 13 दौर असफल रहे है, जहाँ दोनों ही देशों ने इसकी असफलता के लिए एक दूसरे पर आरोप लगाये है।

विवाद में उलझाए रखना ही चीन की चाल

यदि चीन इस कानून को लागू करता है और सीमा के आसपास दूसरे देशों की भूमि पर अतिक्रमण करके नये गाँव बसाता है तो सीमा विवादों को सुलझाने के स्थान पर उलझाने का काम होगा। यह कानून देश के सामान्य नागरिकों और नागरिक संस्थानों को सेना के साथ संजातीय अल्पसंख्यक पहचान को कम करने की रणनीति में सक्रिय साझेदार बनाती है। चीन की विस्तारवादी नीतियों और दूसरे देश की भूमि पर कब्ज़ा करने की कोशिशों और मंसूबा काफी पुराना रहा है जिसको हम माओ की ‘पांच अंगुली के सिद्धांत’ द्वारा समझ सकते है। जिसमें तिब्बत, नेपाल, भूटान, सिक्किम और नेफा (अरुणाचल प्रदेश) को अपनी सीमा में शामिल करने का जिक्र था। यह नया कानून भी चीन की उन्ही चालों को उजागर करता है। हालाँकि यह कानून इतना जल्दी जमीनी वास्तविकताओं को नहीं बदल सकता है। लेकिन पीपल्स लिबरेशन आर्मी और चीन के राजनीतिक नेतृत्व की प्रकृति में ताईवान, दक्षिणी चीन सागर और भारत की सीमा को लेकर बढ़ती आक्रामकता को देखकर चीन पर विश्वास करना गलत कदम होगा। चीन की बेल्ट रोड योजना और अब ये भू सीमा सम्बन्धी नया कानून पड़ोसी देशों, दक्षिण एशिया क्षेत्र और विशेष रूप से भारत चीन संबंधों पर प्रभावकारी होगा।

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लेखक
डॉ. राकेश कुमार मीना वर्तमान में डीएवी पीजी कालेज, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी के राजनीति विज्ञान विभाग में सहायक प्राध्यापक के पद पर कार्यरत है। इसके पूर्व डॉ. मीना इंडियन कौंसिल ऑफ़ वर्ल्ड अफेयर्स (ICWA), सप्रू हाउस, नई दिल्ली में रिसर्च फेलो के पद पर दक्षिण एशियाई देशों की राजनीति और विशेष रूप से नेपाल के शोध विशेषज्ञ के रूप में वर्ष 2015 से 2020 कार्य कर रहे थे। डॉ. मीना ने भारतीय राजनीति, वैश्विक मामलों, नेपाल और दक्षिण एशियाई देशों की राजनीति के मामलों पर कई शोध पत्र लिखे है।

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