• 02 May, 2024
Geopolitics & National Security
MENU

चीन की चुनौती और ताइवान की चेतावनी

डॉ सुरेंद्र कुमार मिश्र
बुध, 13 अक्टूबर 2021   |   6 मिनट में पढ़ें

चालाक चीन के निरन्तर चक्रव्यूह के कारण परेशान होकर आखिर ताइवान ने चीन को चेतावनी देते हुए कहा कि वह ताइवान को झुकने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है। ताइवान के राष्ट्रीय दिवस पर आयोजित एक जनसभा को सम्बोधित करती हुई राष्ट्रपति साई इंग-वेन ने स्पष्ट रूप से कहा कि ताइवान अपनी आज़ादी और लोकतांत्रिक तरीके को नहीं छोड़ेगा। उल्लेखनीय है कि चीन की ओर से एकीकरण को लेकर बढ़ते दबाव के बीच यह बात ताइवान की राष्ट्रपति ने कही और स्पष्ट किया कि ताइवान अपने आपको सुरक्षित, संरक्षित एवं सक्षम बनाने के लिए जो भी कदम उठाने पड़ेंगे उसे अपनाने से कदापि संकोच नहीं करेगा। विगत सप्ताह से अभी तक चीन के युद्धक विमानों द्वारा ताइवान के हवाई क्षेत्र का सरेआम उल्लंघन किया गया। यही नहीं कुछ दिन पहले ही चीन के 56 अति आधुनिक जेट विमानों ने ताइवान के हवाई क्षेत्र में उड़ान भरकर अपनी दबंगई एवं दादागिरी का स्पष्ट संकेत दिया। वास्तव में ताइवान द्वारा इसे चीन की एक आक्रामक पहल के रूप में एक बड़ी वृद्धि के रूप में देखना लाज़मी है।

वर्ष 1949 से दोनों देशों मे है अलग शशन व्यवस्था
गौरतलब है कि चीन ताइवान को अपना हिस्सा बताता है, जबकि ताइवान अपने आपको एक संप्रभु सम्पन्न देश कहता है। स्मरणीय है कि 1949 से दोनों देश अलग-अलग शासन व्यवस्था में सम्प्रभु राष्ट्र की भांति कार्य कर रहे हैं। इस दौरान चीन ने अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर ताइवान की स्वतंत्र मान्यता का लगातार विरोध करता रहा है। इसके बावजूद भी दुनिया के 15 देशों ने ताइवान को मान्यता दी हुई है। भारत सहित विश्व के लगभग 80 ऐसे देश हैं, जिन्होंने ताइवान के साथ अनौपचारिक और आर्थिक सम्बन्ध स्थापित किये हुए हैं। उल्लेखनीय है कि अमेरिका ने ताइवान को एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में भले ही मान्यता प्रदान नहीं की है, किन्तु उसकी सुरक्षा एवं समर्थन में सदैव ही मुस्तैद रहा है। हाल ही में व्हाइट हाऊस की प्रेस सचिव जेम साली ने भी स्पष्ट किया कि हम ताइवान के समीप चीन की उकसाने वाली सैन्य गतिविधि को लेकर चिन्तित है, जो क्षेत्रीय शान्ति व स्थिरता को कमतर करती है।

618-907 ईशा पूर्व से चल रहा तनाव
वास्तव में चीन व ताइवान का टकराव दशकों पुराना है। ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर तांग राजवंश (618-907 ई.) के समय से ही चीन के लोग मुख्य भू-भाग से बाहर निकलकर ताइवान में बसने लगे। वर्ष 1624 से 1661 तक चीन एक डच (वर्तमान में नीदरलैंड) उपनिवेश था। ताइवान व चीन के संघर्ष की पृष्ठभूमि समझने के लिए हमें वर्ष 1894 की घटना पर ध्यान देना होगा, जब चीन के चिंग राजवंश और जापान के साम्राज्य के बीच प्रथम चीन-जापान युद्ध हुआ। इसमें जापान साम्राज्य को विजय मिली, जिससे जापान ने कोरिया तथा दक्षिण चीन सागर में अधिकांश भू-भाग पर अधिकार किया, जिसमें ताइवान भी शामिल है। 1895 में जापान से हार के बाद चीन के किंग राजवंश ने ताइवान का नियंत्रण जापान को दे दिया था। कुछ दशक तक ताइवान पर जापान का नियंत्रण रहा। द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हार के कारण चीन ने अमेरिका और ब्रिटेन की सहमति से फिर ताइवान पर नियंत्रण कर लिया।

गृह युद्ध के बाद अलग गुआ ताइवान
वर्ष 1949 में चीन में गृह-युद्ध शुरू हो गया। इसी दौरान माओ-त्से-तुंग के नेतृत्व में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने चियांगकाई-शेक की सेना को हरा दिया। विजयी सेना के रूप में माओ जेदांग की कम्युनिस्ट सेना को घोषित किया गया। इस दौरान चियांग काई शेक अपनी राष्ट्रवादी कॉमिंगतांग पार्टी के सदस्यों के साथ ताइवान चले गये और वहां अपनी सरकार स्थापित की। ज्ञात हो कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी उस समय ताइवान पर अधिकार जमा नहीं सकी थी, क्योंकि कम्युनिस्ट पार्टी के पास नौसैनिक क्षमता बहुत ही सीमित थी। चियांग का अनेक वर्षों तक ताइवान की राजनीति राष्ट्रपति ली-टेंग-हुई ने वहां पर अनेक संवैधानिक बदलाव किये और वर्ष 2000 में पहली बार कुओमिनतांग (केएमटी) पार्टी से हटकर राष्ट्रपति चयनित किये जाने का मार्ग प्रशस्त हुआ और चेन-शुई-बियान राष्ट्रपति बने। ताइवान का अपना संविधान है। लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित नेता है और इनका सशस्त्र बलों में लगभग 3 लाख सक्रिय सैनिक हैं।

चीनी विरोधी पार्टी के बढ़ते कद ने बढ़ाई चिंता
पूर्वी एशिया का ताइवान एक ऐसा द्वीप है, जिसे चीन और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी एक विद्रोही क्षेत्र के रूप में देखती है। लगभग 36917 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले इस द्वीप की आबादी करीब 2 करोड़ 30 लाख है। इसकी राजधानी ताइपे है जो कि ताइवान के उत्तरी भाग में स्थित है। जहां एक ओर चीन में एक दलीय शासन व्यवस्था है, वहां दूसरी ओर ताइवान में बहु-दलीय लोकतांत्रिक व्यवस्था है। ताइवान के अधिकांश लोग अमाय, स्वातोव और हक्का भाषायें बोलते हैं, जबकि मंदारिन राजकार्य की भाषा है। हक़ीक़त में ताइवान में चेन शुई-बियान के राष्ट्रपति बनने के बाद से ही चीन चिन्तित एवं बेचैन हैं, क्योंकि राष्ट्रपति चेन ने सार्वजनिक रूप से ताइवान की आबादी की आवाज को बुलन्द किया। जब 2004 में चेन ने पुनः चुनावी सफलता प्राप्त की, तो इसके बाद चीन ने कथित अलगाव रोधी कानून पास किया। इसके अन्तर्गत ताइवान द्वारा चीन से अलग होने के किसी भी प्रयास पर लगाम लगाने के लिए सैन्य उपाय अपनाने का भी उल्लेख किया। वर्ष 2008 में मा यिंग जेओ ने आर्थिक समझौते के माध्यम से चीन के साथ सम्बन्धों को सुधारने की पहल की, जिसके फलस्वरूप कुछ वर्षों तक चीन व ताइवान के बीच टकराव एक बार थमता नज़र आने लगा।

Taiwan’s President Tsai Ing-wen speaks at The Third Wednesday Club, a high-profile private industry trade body in Taipei.

वर्ष 2016 से चली बदली हवा, मिला अमेरिका का साथ
ताइवान में वर्ष 2016 में डमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (डी.पी.पी.) की नेता राष्ट्रपति साई इंग-वेन राष्ट्रपति बनीं, जो कि आधिकारिक रूप से ताइवान की स्वाधीनता की प्रबल पक्षधर हैं। इस सन्दर्भ में उन्होंने वर्ष 2016 में अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से भी आपसी संवाद किया। इससे चीन को बड़ी चिढ़ हुई और उसकी चिन्ता भी बढ़ गयी। अमेरिका ने ताइवान को आवश्यक हथियारों की आपूर्ति का आश्वासन भी दिया। विगत वर्ष 2020 में साई इंग-वेन के दुबारा विजयी होने के साथ ही चीन की चिन्ता और चुनौतियां निरन्तर बढ़ती नज़र आयीं। हाल ही में चीन की गतिविधियों के सन्दर्भ में चिन्तित अमेरिका ने भी कहा कि हम बीजिंग से ताइवान के विरुद्ध अपना सामरिक, कूटनीतिक व आर्थिक दबाव कम करने तथा बलपूर्वक कार्यवाही बन्द करने का अनुरोध करते हैं। ताइवान में शान्ति एवं स्थिरता स्थापित करने में हमारा स्थायी हित है। इसलिए हम आत्मरक्षा की क्षमता बनाये रखने में ताइवान की सहायता करते रहेंगे।

National day celebration in Taipei.

राष्ट्रीय दिवस पर ताइवान ने दिखाया रक्षा क्षमता प्रदर्शन
हाल ही में राष्ट्रीय दिवस पर आयोजित परेड में ताइवान की रक्षा क्षमता का प्रदर्शन किया गया और इस असवर पर राष्ट्रपति साई इंग-वेन ने चीनी सेना के बल प्रयोग को बड़ी दृढ़ता से खारिज किया। उन्होंने कहा, हम राजनीतिक यथास्थिति को एक तरफा रूप से बदलने से रोकने के लिए पूरा प्रयास करेंगे। हम राष्ट्रीय रक्षा व सुरक्षा को निरन्तर बढ़ावा देते रहेंगे और यह सुनिश्चित करेंगे कि कोई भी देश ताइवान को चीन द्वारा निर्धारित मार्ग पर चलने के लिए मजबूर नहीं करे। हम अपनी प्रतिरक्षा करने हेतु दृढ़संकल्प का प्रदर्शन करते रहेंगे। चीन ताइवान को अपना क्षेत्र होने का दावा करता है, जबकि वास्तव में यह द्वीप 1949 में गृहयुद्ध के दौरान कम्युनिस्ट शासित मुख्य भूमि से अलग होने के बाद से स्वायत्तशासी है। यह ध्यान में रखा जाना चाहिए ताइवान के लोग किसी दबाव के आगे नहीं झुकेंगे। हम संप्रभु, स्वाधीन और जनतांत्रिक जीवन शैली को प्रभावित नहीं होने देंगे। चीन भले ही यह स्वीकार न करे कि ताइवान एक स्वतंत्र राष्ट्र की शर्तें पूरी करता है। 2021 में 140 देशों की सूची में ताइवान की सेना को 22वें स्थान पर रखा गया है। अमेरिका की सहायता से ताइवान की सैन्य शक्ति भी सुदृढ़ हुई है।

दबाव बनाकार परेशान करना चाह रहा चीन
निःसन्देह यदि चीन ने ताइवान को अपने अधिकार में करने का प्रयत्न किया तो एशिया में शान्ति तथा लोकतंत्र के लिए विनाशकारी परिणाम सिद्ध होंगे। वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए बल द्वारा चीन ताइवान को मिलाने का विकल्प नहीं अपना सकता है, क्योंकि चीन की विस्तारवादी नीति के विरुद्ध इस समय विश्व की शक्तियाँ एकजुट होती नज़र आ रही हैं। आखिर ‘‘क्वॉड’’ एवं ऑकष संगठन का दबाव भी चीन की एक बड़ी परेशानी बनी हुई है। चीन का प्रमुख लक्ष्य ताइवान को तंग करके निरन्तर दबाव बनाने का रहता है तथा बिना सैन्य हमले की रणनीति अपनाकर एक बेहतर विकल्प पर गंभीरता के साथ कूटयोजना व राजनयिक चाल चलने हेतु भी जुटा है। अमेरिका सहित अनेक देश ताइवान के निकट चीन की उकसाने वाली सैन्य गतिविधियों पर अपनी पैनी निगाहें लगाये हुये है। ताइवान ने चीन की चुनौती को स्वीकार करते हुए स्पष्ट कर दिया है और अपनी स्पष्ट चेतावनी देते हुए कहा कि चीन ताइवान को झुकने के लिए मजबूर नहीं कर सकता। विश्वास है ताइवान पर व्याप्त तनाव शीघ्र ही समाप्त हो जायेगा और ताइवान को कोई कठोर कदम उठाने की जरूरत नहीं होगी। चीन हमेशा हमला की बजाय हौआ खड़ा करने पर विश्वास अधिक करता है, ताकि पड़ोसी देश दबाव में बने रहे। यदि चीन ताइवान की चेतावनी के बाद भी आक्रामक कार्यवाई करता है, तो निश्चित रूप इसके घातक परिणाम सिद्ध होंगे।

*********************************


लेखक
डॉ सुरेंद्र कुमार मिश्र डिफेंस स्टडीज में पीएचडी हैं और इनका हरियाणा के विभिन्न गवर्नमेंट कालेजों में शिक्षण का अनुभव रहा है। वह जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी जोधपुर के विजिटिंग फेलो हैं। ‘रक्षा अनुसंधान’ और ‘टनर’ नामक डिफेंस स्टउीज रिसर्च जरनल से जुड़े हैं। 15 सालों का किताबों के संपादन का अनुभव है और करीब 35 सालों से देश के विभिन्न समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में लिख रहे हैं। डिफेंस मॉनिटर पत्रिका नई दिल्ली के संपादकीय सलाहकार हैं। उन्हें देश की रक्षा व सुरक्षा पर हिंदी में उल्लेखनीय किताब लिखने के लिए भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय से वर्ष 2000, 2006 और 2011 में प्रथम, तृतीय व द्वितीय पुरस्कार मिल चुका है। इन्होंने पांच रिसर्च प्रोजेक्ट पूरे किए हैं, इनकी 47 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं और 300 से अधिक रिसर्च पेपर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय जरनल में छप चुके हैं।

अस्वीकरण

इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं और चाणक्य फोरम के विचारों को नहीं दर्शाते हैं। इस लेख में दी गई सभी जानकारी के लिए केवल लेखक जिम्मेदार हैं, जिसमें समयबद्धता, पूर्णता, सटीकता, उपयुक्तता या उसमें संदर्भित जानकारी की वैधता शामिल है। www.chanakyaforum.com इसके लिए कोई जिम्मेदारी नहीं लेता है।


चाणक्य फोरम आपके लिए प्रस्तुत है। हमारे चैनल से जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें (@ChanakyaForum) और नई सूचनाओं और लेखों से अपडेट रहें।

जरूरी

हम आपको दुनिया भर से बेहतरीन लेख और अपडेट मुहैया कराने के लिए चौबीस घंटे काम करते हैं। आप निर्बाध पढ़ सकें, यह सुनिश्चित करने के लिए पूरी टीम अथक प्रयास करती है। लेकिन इन सब पर पैसा खर्च होता है। कृपया हमारा समर्थन करें ताकि हम वही करते रहें जो हम सबसे अच्छा करते हैं। पढ़ने का आनंद लें

सहयोग करें
Or
9289230333
Or

POST COMMENTS (0)

Leave a Comment